08/09/2025
*प्राकृतिक खेती सितंबर में बाग़-बगीचों के लिए ज़रूरी काम*
हिमाचल प्रदेश का पहाड़ी इलाका सेब, नाशपाती, अखरोट और अन्य फलों के लिए जाना जाता है। यहाँ खेती के लिए मिट्टी और मौसम दोनों संवेदनशील होते हैं। इसलिए प्राकृतिक खेती (जीवामृत, घनजीवामृत, अग्निअस्त्र, ब्रह्मास्त्र आदि) अपनाना न सिर्फ लागत कम करता है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता और फसल की गुणवत्ता को भी सुरक्षित रखता है।
सितंबर महीने में, विशेषकर फल तुड़ान (हार्वेस्टिंग) के बाद, बागों और खेतों में निम्नलिखित कार्य व्यवस्थित रूप से करने चाहिए:
1. जीवामृत और घनजीवामृत का प्रयोग
जीवामृत छिड़काव: तुड़ान के बाद पेड़ों में ऊर्जा की कमी होती है। इसके लिए 15–20 दिन के अंतराल पर जीवामृत का प्रयोग करें।
मिट्टी में: पेड़ के आकार अनुसार प्रति पेड़ 5–7 लीटर।
पत्तों पर छिड़काव: 200 लीटर पानी में 30 लीटर जीवामृत।
घनजीवामृत: मिट्टी की जैविक सक्रियता और ह्यूमस बढ़ाने के लिए प्रति बीघा लगभग 100 किलो प्रयोग करें।
2. नमी संरक्षण और मल्चिंग
मानसून के बाद मिट्टी की नमी जल्दी खत्म हो जाती है।
उपाय:
पेड़ के चारों ओर 4–5 इंच मोटी गीली घास की परत बिछाएँ।
वाफसा खाइयाँ (0.5 से 1 फुट गहराई व चौड़ाई) बेसिन क्षेत्र के बाहर या दो कतारों के बीच खोदें। इससे पानी लंबे समय तक टिका रहता है।
3. रोग और कीट प्रबंधन
रोकथाम हेतु:
महीने में एक बार खट्टी लस्सी और अग्निअस्त्र/दशपर्णी (6 लीटर/200 लीटर पानी) का छिड़काव।
यदि संक्रमण हो जाए (जैसे आल्टरनेरिया, मार्सोनिना, एन्थ्रेक्नोज):
खट्टी लस्सी + सोंठास्त्र + गौमूत्र का छिड़काव 5–6 दिन के अंतराल पर, कम से कम 3–4 बार।
स्केल व माइट्स के लिए:
अग्निअस्त्र/दशपर्णी के अलावा 200 लीटर पानी में 2–4 लीटर नीम तेल या अलसी तेल मिलाकर छिड़कें।
4. तनों की सुरक्षा
पतझड़ के समय पेड़ों के तनों पर सीधी धूप नुकसान पहुँचाती है।
उपाय: सितंबर खत्म होने से पहले तनों पर सुरक्षा पेस्ट लगाएँ। इससे छाल फटने और धूप से जलने से बचाव होता है।
5. अन्य सामान्य सुझाव
अग्निअस्त्र और ब्रह्मास्त्र जैसे जैविक कीटनाशकों का समय-समय पर उपयोग करें।
मिश्रित खेती अपनाएँ: फलदार पेड़ों के बीच दालें, सब्जियाँ या औषधीय पौधे लगाकर मिट्टी की उर्वरता व नमी बनाए रखें।
स्थानीय गोवंश का गोबर व गौमूत्र ही जीवामृत बनाने में प्रयोग करें, क्योंकि इनका प्रभाव पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक अनुकूल होता है।
मौसम का ध्यान रखें: ऊँचाई वाले क्षेत्रों में तापमान तेजी से गिरता है, इसलिए पौधों की जड़ों को ठंडी हवा से बचाने के लिए मिट्टी को ढककर रखें।
*सारांश* यह है कि सितंबर माह प्राकृतिक खेती की दृष्टि से तैयारी का समय है। तुड़ान के बाद पेड़ों को जीवामृत और घनजीवामृत से ताकत दें, मल्चिंग और खाइयों से नमी बचाएँ, और खट्टी लस्सी व अग्निअस्त्र से रोग-कीटों को समय रहते नियंत्रित करें।
यह सुझाव हिमाचल प्रदेश की भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियों को ध्यान में रखकर लिखे गए हैं।