SPNF Karsog

SPNF Karsog Subhash Palekar Natural Farming Karsog Block District Mandi Himachal Pradesh

20/09/2025
20/09/2025

08/09/2025

*प्राकृतिक खेती सितंबर में बाग़-बगीचों के लिए ज़रूरी काम*
हिमाचल प्रदेश का पहाड़ी इलाका सेब, नाशपाती, अखरोट और अन्य फलों के लिए जाना जाता है। यहाँ खेती के लिए मिट्टी और मौसम दोनों संवेदनशील होते हैं। इसलिए प्राकृतिक खेती (जीवामृत, घनजीवामृत, अग्निअस्त्र, ब्रह्मास्त्र आदि) अपनाना न सिर्फ लागत कम करता है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता और फसल की गुणवत्ता को भी सुरक्षित रखता है।
सितंबर महीने में, विशेषकर फल तुड़ान (हार्वेस्टिंग) के बाद, बागों और खेतों में निम्नलिखित कार्य व्यवस्थित रूप से करने चाहिए:
1. जीवामृत और घनजीवामृत का प्रयोग
जीवामृत छिड़काव: तुड़ान के बाद पेड़ों में ऊर्जा की कमी होती है। इसके लिए 15–20 दिन के अंतराल पर जीवामृत का प्रयोग करें।
मिट्टी में: पेड़ के आकार अनुसार प्रति पेड़ 5–7 लीटर।
पत्तों पर छिड़काव: 200 लीटर पानी में 30 लीटर जीवामृत।
घनजीवामृत: मिट्टी की जैविक सक्रियता और ह्यूमस बढ़ाने के लिए प्रति बीघा लगभग 100 किलो प्रयोग करें।
2. नमी संरक्षण और मल्चिंग
मानसून के बाद मिट्टी की नमी जल्दी खत्म हो जाती है।
उपाय:
पेड़ के चारों ओर 4–5 इंच मोटी गीली घास की परत बिछाएँ।
वाफसा खाइयाँ (0.5 से 1 फुट गहराई व चौड़ाई) बेसिन क्षेत्र के बाहर या दो कतारों के बीच खोदें। इससे पानी लंबे समय तक टिका रहता है।
3. रोग और कीट प्रबंधन
रोकथाम हेतु:
महीने में एक बार खट्टी लस्सी और अग्निअस्त्र/दशपर्णी (6 लीटर/200 लीटर पानी) का छिड़काव।
यदि संक्रमण हो जाए (जैसे आल्टरनेरिया, मार्सोनिना, एन्थ्रेक्नोज):
खट्टी लस्सी + सोंठास्त्र + गौमूत्र का छिड़काव 5–6 दिन के अंतराल पर, कम से कम 3–4 बार।
स्केल व माइट्स के लिए:
अग्निअस्त्र/दशपर्णी के अलावा 200 लीटर पानी में 2–4 लीटर नीम तेल या अलसी तेल मिलाकर छिड़कें।
4. तनों की सुरक्षा
पतझड़ के समय पेड़ों के तनों पर सीधी धूप नुकसान पहुँचाती है।
उपाय: सितंबर खत्म होने से पहले तनों पर सुरक्षा पेस्ट लगाएँ। इससे छाल फटने और धूप से जलने से बचाव होता है।
5. अन्य सामान्य सुझाव
अग्निअस्त्र और ब्रह्मास्त्र जैसे जैविक कीटनाशकों का समय-समय पर उपयोग करें।
मिश्रित खेती अपनाएँ: फलदार पेड़ों के बीच दालें, सब्जियाँ या औषधीय पौधे लगाकर मिट्टी की उर्वरता व नमी बनाए रखें।
स्थानीय गोवंश का गोबर व गौमूत्र ही जीवामृत बनाने में प्रयोग करें, क्योंकि इनका प्रभाव पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक अनुकूल होता है।
मौसम का ध्यान रखें: ऊँचाई वाले क्षेत्रों में तापमान तेजी से गिरता है, इसलिए पौधों की जड़ों को ठंडी हवा से बचाने के लिए मिट्टी को ढककर रखें।
*सारांश* यह है कि सितंबर माह प्राकृतिक खेती की दृष्टि से तैयारी का समय है। तुड़ान के बाद पेड़ों को जीवामृत और घनजीवामृत से ताकत दें, मल्चिंग और खाइयों से नमी बचाएँ, और खट्टी लस्सी व अग्निअस्त्र से रोग-कीटों को समय रहते नियंत्रित करें।
यह सुझाव हिमाचल प्रदेश की भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियों को ध्यान में रखकर लिखे गए हैं।

24/08/2025

हमारा प्रयास है कि खेती केवल गुज़ारे का ज़रिया न रहकर, किसान की मेहनत की सम्मान का प्रतीक बने।

अब प्रदेश के किसान बिना किसी बिचौलिए के अपनी प्राकृतिक तरीके से उगाई गेहूं, मक्की, जौ और कच्ची हल्दी की फसल सीधे आढ़त में बेच सकेंगे और उन्हें उनकी उपज का सही दाम मिलेगा।

हिमाचल सरकार किसानों को MSP का लाभ देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने पर जोर दे रही है।

- मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू

08/11/2024

*नवम्बर माह में प्राकृतिक खेती के अंतर्गत बगीचों की देखभाल के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाएं*:

1) *नियमित जीवामृत छिड़काव*: हर 15-20 दिनों पर जीवामृत का छिड़काव करें। पेड़ के आकार के अनुसार, प्रति पेड़ मिट्टी में 5-7 लीटर जीवामृत डालें और पत्तियों पर छिड़काव के लिए 200 लीटर ड्रम में 20 लीटर जीवामृत मिलाएं। यह पौधों को आवश्यक पोषण प्रदान करता है और मौसम परिवर्तन के प्रभावों से बचाता है।

2) *घनजीवामृत का उपयोग*: यदि अक्टूबर में घनजीवामृत नहीं दिया गया है, तो मिट्टी की उर्वरता, ह्यूमस निर्माण, और जैविक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए 100 किलो प्रति बीघा घनजीवामृत का प्रयोग करें। यह मिट्टी में पोषक तत्वों का संतुलन बनाए रखता है और पौधों को स्वस्थ बनाता है।

3) *मल्चिंग और वाफसा खाइयां*: उचित नमी बनाए रखने के लिए मल्चिंग करें और वाफसा खाइयों को बनाए रखें। ये खाइयां बेसिन क्षेत्र के बाहर या दो पंक्तियों के बीच होनी चाहिए, जिससे मिट्टी में नमी बनी रहती है और पौधों की जड़ों को सुरक्षा मिलती है।

4) *खट्टी लस्सी और अग्निअस्त्र / दशपर्णी अर्क का छिड़काव*: हर महीने एक बार 6 लीटर खट्टी लस्सी और अग्निअस्त्र या दशपर्णी अर्क का छिड़काव करें। यह कीटों से बचाव के साथ-साथ पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है।

5) *स्केल नियंत्रण के लिए तेल का प्रयोग*: स्केल नियंत्रण के लिए अग्निअस्त्र / दशपर्णी के अतिरिक्त 200 लीटर पानी में 2-4 लीटर नीम का तेल या अलसी का तेल मिलाकर छिड़काव करें। यह प्राकृतिक कीटनाशक के रूप में काम करता है और पौधों को हानिकारक कीड़ों से बचाता है।

6) *सह फसलों का पोषण*: सह फसलों में भी नियमित रूप से ऊपर दी गई मात्रा के अनुसार जीवामृत, खट्टी लस्सी, और अग्निअस्त्र का प्रयोग करें। इससे सह फसलें स्वस्थ रहेंगी और मुख्य फसल को लाभकारी प्रभाव प्राप्त होंगे।

इन उपायों से आपके बगीचे में प्राकृतिक तरीके से पौधों का संरक्षण होगा और उनकी उन्नत वृद्धि में सहूलियत मिलेगी।

आत्मा टीम
करसोग ब्लॉक जिला मंडी

08/11/2024


07/12/2023

09/09/2023
https://youtu.be/I_JJtNhXi2oLike share comment Follow this page
13/08/2023

https://youtu.be/I_JJtNhXi2o
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28/06/2023

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