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28/12/2024

बेरमो में फिर से बरसे विधायक जयराम महतो, विस्थापितों को एक होने पर दिया जोर

Photo Of The Day: हटिया में डुमरी विधायक की दादीजी, विधायक जयराम के घर का संघर्ष आज भी नहीं बदला।धनबाद - तोपचांची हटिया ...
28/12/2024

Photo Of The Day: हटिया में डुमरी विधायक की दादीजी, विधायक जयराम के घर का संघर्ष आज भी नहीं बदला।

धनबाद - तोपचांची हटिया में डुमरी विधायक #जयराम_महतो के बुजुर्ग दादी झूपरी देवी (84 वर्ष) आज अपने घर में उगाये सिम और बैंगन बेच रही है. उम्र होने के कारण दादी ठीक से नहीं चल पाती है फिर भी इस उम्र में उनके जुनून, जज्बे और हौसला को सलाम, पोता जयराम महतो के विधायक बनने के बाद भी दादी ने अपने पुराने दिन को भूले नहीं, उम्र के इस पड़ाव में आराम करने की जगह अपने घर में सब्जी उगाने, हटिया में सब्जी बेचने तक वह खुद मोर्चा संभाल रखी है, भावुक पल...!!!
बता दें की कभी-कभी विधायक की माँ भी हटिया में सब्जी बेचती नजर आती है, इन दिनों माताजी बीमार चल रही है...दादी को गांव के ही पड़ोसी युवक बाइक से हटिया तक पहुंचा देते हैं।

27/12/2024

विधानसभा चुनाव जीतने के बाद सभी 80 विधायकों को लग रहा है जैसे अब तो सरकारी नौकरी मिल गया है, भाड़ में जाए जनता😄 और उधर विधायक जयराम महतो रोज का जनता दरबार लगाओ, कोई जनता को परेशान करे तो फोन से बांस कर दो, दिन हो चाहे रात अकेले सबका बांस करके रखा है🔥😌🐅

27/12/2024

मानते हैं तीर्थनाथ जी का टाईगर से व्यक्तिगत नहीं वैचारिक मतभेद है, इसका मतलब यह तो नहीं की टाईगर कुछ अच्छा करें तो बिल में घुस जाओ और टाईगर का कुछ नेगेटिव दिखे तो...हम फर्स्ट हम फर्स्ट करने लग जाओ😂
बाकी गोदी मीडिया का रैंक तो सबको पता ही है 🫣

27/12/2024

दूसरे करें तो रामलीला और हम करें तो कैरेक्टर ढीला।
और प्रशासन ज्ञान देगी संविधान उल्लंघन की।
वाह भई वाह!
संदर्भ - क्वार्टर कब्जा

27/12/2024

गोदी मीडिया वालों को 58000 क्वार्टरों के अवैध कब्जे को लेकर रिपोर्ट दिखाने में फट क्यों जाता है। और रही बात टाईगर का तो उनका मकसद क्वार्टर कब्जा करना नहीं है, कब्जा किए गए क्वार्टरों को खाली कराना है।

26/12/2024

एक क्वार्टर पर प्रशासन का ऐसा एक्शन तो फिर उन 5000 क्वार्टरों के अवैध कब्जों पर एक्शन क्यों नहीं।

26/12/2024

रात 2 बजे विधायक जयराम महतो का टकराव पुलिस से

25/12/2024

विधायक जयराम महतो ने मानवता का मिशाल पेश करते हुए घायल का किया मदद।

झारखंड: प्रकृति और संस्कृति का अनुपम संगम!झारखंड, जहां हर कोना अपनी अनोखी खूबसूरती और सुकूनभरे अनुभव से आपका स्वागत करता...
25/12/2024

झारखंड: प्रकृति और संस्कृति का अनुपम संगम!
झारखंड, जहां हर कोना अपनी अनोखी खूबसूरती और सुकूनभरे अनुभव से आपका स्वागत करता है।
पतरातू घाटी की हरी-भरी वादियां, नेतरहाट का अद्भुत सूर्योदय, और हुंडरू व दशम जलप्रपात की गूंजती जलधारा आपको प्रकृति के करीब ले आती है।
आस्था का केंद्र बैद्यनाथ धाम, रोमांच से भरपूर बेतला नेशनल पार्क, और शांति का प्रतीक धुर्वा डैम झारखंड को एक आदर्श पर्यटन स्थल बनाते हैं।

अपनी अगली यात्रा के लिए झारखंड को चुनें और यहां के अद्वितीय सौंदर्य का अनुभव करें।

24/12/2024

झारखंड : एक ऐसा प्रदेश जहाँ हर कुछ प्रकृति से जुड़ा है। जहाँ हर कोई इसकी ओर आकर्षित हो चला आता है। यहां की संस्कृति और सभ...
24/12/2024

झारखंड : एक ऐसा प्रदेश जहाँ हर कुछ प्रकृति से जुड़ा है। जहाँ हर कोई इसकी ओर आकर्षित हो चला आता है। यहां की संस्कृति और सभ्यता भी सभी राज्यों से हट कर है जो इस राज्य को और भी खास बनती है।

झारखंड के अलग संस्कृति और सभ्यता की तरह यहाँ का खान-पान भी बाकि राज्यों से अलग है जो अन्य राज्यों में काफी मुश्किल से ही दिखता है, और कहीं-कहीं तो पाया भी नहीं जाता है। झारखंड के लाजवाब जायकों के बारे में जान कर आप भी एक बार सभी व्यंजनों ( Delicious Foods ) को एक बार चखने की इच्छा जरूर उत्पन कर लेंगे ।

1. धुस्का :-
धुस्का झारखंडी जायकों में श्रेष्ट है। यह चावल के आटा को पानी में मिला कर और स्वादानुसार नमक डाल एक मिश्रण तैयार किया जाता है ,जिसमें कुछ भिगोया हुआ चना के भी मिलाया जाता है जो धुस्का को और खास बनाता है। तैयार किये गए मिश्रण को तेल में तल कर निकला जाता है। और इसे आलू चना के सब्जी के साथ परोसा जाता है। जो इसके स्वाद में चार चाँद लगा देता है।

2. मड़ुआ रोटी :-
मड़ुआ रोटी भी उन जायकों में खास है जो झारखंड के पारम्परिक खान-पान को अपनी ओर खींचे रखता है। मड़ुआ रोटी दरअसल मड़ुआ के आटे से बनता है। मड़ुआ एक प्रकार का मोटा अनाज है जिसे लोग रागी के नाम से भी जानते है। रागी या मड़ुआ अफ्रीका और एशिया के सूखे क्षेत्रों में उगाया जाने वाला एक मोटा अन्न है। यह एक बरस में पक कर तैयार हो जाता है। इसकी रोटी झारखण्ड के मुख्य व्यंजनों में एक है।

3. छिलका रोटी :-
छिलका रोटी अरवा चावल के आटे के घोल से तैयार किया गया मिश्रण से बनता है जो की तवे पर ही बनाया जाता है।आलू चना के सब्जी के साथ इसे परोसकर खाने में अलग ही आनंद की अनुभूति होती है।

4. ढक्कन डब्बा रोटी :-
ढक्कन डब्बा रोटी भी अरवा चावल के आते से ही बनाया जाता है पर इसके बनाने की विधि के कारन यह बाकि अन्य रोटी से भिन्न है। इसे मिटटी के बर्तन में दाल कर बनाया जाता है। मिटटी के बर्तन (कुल्हड़) में डालकर ऊपर से ढक दिया जाता है। जिसके कुछ देर बाद ढक्कन हटा कर इसे खाने के लिए परोसा जाता है। इसे किसी भी स्वादिष्ट सब्जी के साथ परोस कर खाया जाता है।

5. पीठा :-
पीठा झारखंड का एक प्रमुख व्यंजन है जो काफी लोकप्रिय भी है। यह चावल के आटा से बनाया जाता है , चावल के आटा के लोई में फ्राइड दाल या आलू मसाला को भरकर इसे एक बर्तन में भाप से पकाया जाता है। यह आज कल के मोमो वाले स्टाइल से काफी मिलता जुलता ही है। जिस प्रकार मोमो में भिन्न-भिन्न जायके बनाये जाते है उसी प्रकार पीठा के भी कई प्रकार हैं। दाल पीठा , आलू मसाला पीठा सबसे मुख्य एवं सभी का पसंदीदा भी होता है।

झारखंड के प्रसिद्ध पिकनिक स्पॉट :- वैसे तो आप झारखंड के किसी भी कोने में रहो पिकनिक का आनंद हर जगह मिल जायेगा बस आपको शह...
23/12/2024

झारखंड के प्रसिद्ध पिकनिक स्पॉट :- वैसे तो आप झारखंड के किसी भी कोने में रहो पिकनिक का आनंद हर जगह मिल जायेगा बस आपको शहर से हटकर एकांत जगह पर जाना होगा। झारखंड की हरियाली और यहां की खूबसूरती दूर-दूर से अपने पर्यटकों को अपनी ओर खूब आकर्षित करती है।

झारखंड के प्रसिद्ध पिकनिक स्पॉट :-

1. हुंडरू फॉल :- अगर आप प्राकृतिक खूबसूरती और सुकून भरे माहौल की तलाश में हैं, तो हुंडरू फॉल एक परफेक्ट पिकनिक स्पॉट है। रांची से लगभग 45 किमी दूर स्थित यह झरना, स्वर्णरेखा नदी से गिरते हुए 98 मीटर की ऊंचाई से पानी की धारा बनाता है। हरियाली से घिरा यह स्थान आपकी आत्मा को शांति और ताजगी का अहसास कराएगा। सर्दियों के मौसम में यहां का नजारा और भी खूबसूरत हो जाता है। फैमिली, फ्रेंड्स या सोलो ट्रिप के लिए यह जगह शानदार है। झारखंड के इस नेचुरल वंडर का लुत्फ उठाएं और यादगार पल बनाएं!

2. दशम फॉल :- रांची से लगभग 40 किमी दूर स्थित दशम फॉल झारखंड के सबसे खूबसूरत पिकनिक स्थलों में से एक है। यह झरना कांची नदी पर बना है और करीब 44 मीटर की ऊंचाई से गिरते हुए अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है। घने जंगलों और पहाड़ियों से घिरा यह स्थान प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग जैसा है। सर्दियों और मानसून के मौसम में इसकी खूबसूरती कई गुना बढ़ जाती है। यहां की ठंडी हवा और बहते पानी की आवाज आपकी थकान मिटाकर मन को ताजगी से भर देती है। दशम फॉल की यात्रा जरूर करें और प्रकृति के इस अनमोल खजाने का आनंद लें!

3. मैथन डैम :- धनबाद जिले में स्थित मैथन डैम झारखंड के सबसे सुंदर और शांत पिकनिक स्थलों में से एक है। यह डैम बराकर नदी पर बना है और बिजली उत्पादन के लिए जाना जाता है। यहां का विशाल जलाशय और आसपास का हरियाली भरा वातावरण इसे एक आकर्षक टूरिस्ट स्पॉट बनाता है। बोटिंग, फिशिंग और प्राकृतिक नजारों का आनंद लेने के लिए यह जगह परफेक्ट है। सर्दियों के मौसम में यहां का माहौल और भी खुशनुमा हो जाता है। फैमिली या फ्रेंड्स के साथ समय बिताने के लिए मैथन डैम जरूर आएं और झारखंड के इस अद्भुत स्थल का आनंद लें!

4. पतरातू डैम और नदी :- रांची जिले में स्थित पतरातू नदी और डैम झारखंड के बेहतरीन पिकनिक स्थलों में से एक हैं। पतरातू घाटी के बीच स्थित यह डैम अपने खूबसूरत प्राकृतिक नजारों और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है। यह स्थान हरियाली, पहाड़ों और झील के अद्भुत संगम का उदाहरण है। यहां बोटिंग, फोटोग्राफी और सूर्योदय का आनंद लेना एक अलग ही अनुभव देता है। वीकेंड पर दोस्तों और परिवार के साथ सुकून भरा समय बिताने के लिए पतरातू डैम एक परफेक्ट डेस्टिनेशन है। झारखंड की इस सुंदरता को जरूर देखें और अपने सफर को यादगार बनाएं!

5. चांडिल डैम :- सरायकेला-खरसावां जिले में स्थित चांडिल डैम झारखंड के प्रसिद्ध पर्यटक और पिकनिक स्थलों में से एक है। यह सुवर्णरेखा नदी पर बना हुआ है और अपने शांत जलाशय और सुंदर परिवेश के लिए जाना जाता है। डैम के आसपास की हरियाली, पहाड़ और नीला आसमान इसे प्रकृति प्रेमियों के लिए खास बनाते हैं। यहां बोटिंग का आनंद लिया जा सकता है और सूरज ढलते वक्त का नजारा बेहद खूबसूरत होता है। परिवार या दोस्तों के साथ वीकेंड पर समय बिताने के लिए चांडिल डैम एक आदर्श जगह है। यहां आकर झारखंड की प्राकृतिक सुंदरता का भरपूर आनंद लें!

22/12/2024

झारखंड का इतिहास और पहचान :-
झारखंड, जो 15 नवंबर 2000 को बिहार से अलग होकर भारत का 28वां राज्य बना, आदिवासी संस्कृति और प्राकृतिक संसाधनों का अद्भुत मिश्रण है। इसका नाम ‘झार’ (जंगल) और ‘खण्ड’ (भूमि) से लिया गया है, जिसका अर्थ है जंगलों की भूमि। झारखंड के घने जंगल, ऊँचे पहाड़, और खनिज संपदा इसे भारत के महत्वपूर्ण राज्यों में से एक बनाते हैं।

इस क्षेत्र का इतिहास बहुत पुराना है। हड़प्पा सभ्यता से लेकर मुगल और अंग्रेजों तक, झारखंड की भूमि ने कई सभ्यताओं को अपनी गोद में पनपते हुए देखा है। अंग्रेजों के शासन के दौरान, यह इलाका छोटा नागपुर और संथाल परगना के नाम से जाना जाता था। बिरसा मुंडा जैसे वीर आदिवासी नेता ने यहाँ के लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित किया। उनकी विरासत को आज भी ‘धरती आबा’ के रूप में सम्मानित किया जाता है।

राज्य के पर्वतों में पारसनाथ पहाड़ी सबसे ऊँचा स्थान है, जिसे जैन धर्म के अनुयायी पवित्र मानते हैं। वहीं, स्वर्णरेखा और दामोदर जैसी नदियाँ यहाँ की जीवनधारा हैं। जंगलों में हाथियों की गूँज और कोयल की मधुर आवाज झारखंड के प्रकृति प्रेम का प्रतीक हैं।

झारखंड को "भारत का कोयला भंडार" कहा जाता है, क्योंकि यहाँ भारत का लगभग 40% कोयला उत्पादन होता है। बोकारो स्टील प्लांट और जमशेदपुर का टाटा स्टील झारखंड की औद्योगिक ताकत को दर्शाते हैं।

यहाँ के लोग अपनी संस्कृति और परंपराओं से गहराई से जुड़े हैं। सरहुल, करमा, और मागे जैसे त्योहार प्रकृति के साथ उनके गहरे रिश्ते को दिखाते हैं। संताली, मुंडारी, और नागपुरी जैसी भाषाएँ यहाँ की विविधता को बढ़ाती हैं।

झारखंड आज विकास की ओर बढ़ रहा है, लेकिन उसकी आत्मा अब भी उसकी आदिवासी जड़ों, जंगलों, और संस्कृति में बसी है। यह राज्य न केवल प्राकृतिक संसाधनों का खजाना है, बल्कि भारत की विविधता का एक जीवंत उदाहरण भी है।

झारखंड सामान्य ज्ञान!क्या आप जानते हैं? कॉमेंट करें👇
22/12/2024

झारखंड सामान्य ज्ञान!
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बिरसा मुंडा - "भगवान" का उदय :झारखंड के घने जंगलों के बीच एक छोटा सा गांव था, उलिहातू। यहीं 15 नवंबर 1875 को एक बच्चे का...
21/12/2024

बिरसा मुंडा - "भगवान" का उदय :
झारखंड के घने जंगलों के बीच एक छोटा सा गांव था, उलिहातू। यहीं 15 नवंबर 1875 को एक बच्चे का जन्म हुआ, जिसका नाम था बिरसा मुंडा। यह बच्चा साधारण नहीं था; उसकी आंखों में सपने और दिल में अपने लोगों की भलाई की चाहत थी।

उस समय ब्रिटिश हुकूमत आदिवासियों की जमीनें छीन रही थी। गरीब आदिवासी लोग अपने जंगल, अपनी जमीन और अपनी पहचान खोते जा रहे थे। बिरसा ने इस अन्याय को बचपन से देखा और इसे सहन करने के बजाय इसके खिलाफ खड़े होने का फैसला किया।

बिरसा ने अपने आसपास के लोगों को एकत्रित करना शुरू किया। उन्होंने जंगल के नियम-कानूनों को समझाया और बताया कि हमें अपने अधिकारों के लिए लड़ना होगा। धीरे-धीरे उनका प्रभाव बढ़ने लगा, और उन्हें लोग "भगवान बिरसा" के नाम से पुकारने लगे।

उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत की, जिसे "उलगुलान" कहा गया। यह लड़ाई न केवल जमीन और जंगल के लिए थी, बल्कि यह आदिवासी संस्कृति और आत्मसम्मान को बचाने की लड़ाई थी। बिरसा ने यह संदेश दिया कि हमारी संस्कृति, भाषा और परंपराएं हमारी पहचान हैं।

हालांकि, अंग्रेजों ने उन्हें कैद कर लिया और 9 जून 1900 को बिरसा ने जेल में अपने प्राण त्याग दिए। लेकिन उनकी कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। आज भी झारखंड के लोग बिरसा मुंडा को अपने नायक और भगवान के रूप में याद करते हैं। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि अगर इरादे पक्के हों, तो बड़े से बड़ा अन्याय भी समाप्त किया जा सकता है।

"भगवान बिरसा मुंडा" के बलिदान को झारखंड के हर कोने में गर्व से याद किया जाता है।

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