22/12/2024
झारखंड का इतिहास और पहचान :-
झारखंड, जो 15 नवंबर 2000 को बिहार से अलग होकर भारत का 28वां राज्य बना, आदिवासी संस्कृति और प्राकृतिक संसाधनों का अद्भुत मिश्रण है। इसका नाम ‘झार’ (जंगल) और ‘खण्ड’ (भूमि) से लिया गया है, जिसका अर्थ है जंगलों की भूमि। झारखंड के घने जंगल, ऊँचे पहाड़, और खनिज संपदा इसे भारत के महत्वपूर्ण राज्यों में से एक बनाते हैं।
इस क्षेत्र का इतिहास बहुत पुराना है। हड़प्पा सभ्यता से लेकर मुगल और अंग्रेजों तक, झारखंड की भूमि ने कई सभ्यताओं को अपनी गोद में पनपते हुए देखा है। अंग्रेजों के शासन के दौरान, यह इलाका छोटा नागपुर और संथाल परगना के नाम से जाना जाता था। बिरसा मुंडा जैसे वीर आदिवासी नेता ने यहाँ के लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित किया। उनकी विरासत को आज भी ‘धरती आबा’ के रूप में सम्मानित किया जाता है।
राज्य के पर्वतों में पारसनाथ पहाड़ी सबसे ऊँचा स्थान है, जिसे जैन धर्म के अनुयायी पवित्र मानते हैं। वहीं, स्वर्णरेखा और दामोदर जैसी नदियाँ यहाँ की जीवनधारा हैं। जंगलों में हाथियों की गूँज और कोयल की मधुर आवाज झारखंड के प्रकृति प्रेम का प्रतीक हैं।
झारखंड को "भारत का कोयला भंडार" कहा जाता है, क्योंकि यहाँ भारत का लगभग 40% कोयला उत्पादन होता है। बोकारो स्टील प्लांट और जमशेदपुर का टाटा स्टील झारखंड की औद्योगिक ताकत को दर्शाते हैं।
यहाँ के लोग अपनी संस्कृति और परंपराओं से गहराई से जुड़े हैं। सरहुल, करमा, और मागे जैसे त्योहार प्रकृति के साथ उनके गहरे रिश्ते को दिखाते हैं। संताली, मुंडारी, और नागपुरी जैसी भाषाएँ यहाँ की विविधता को बढ़ाती हैं।
झारखंड आज विकास की ओर बढ़ रहा है, लेकिन उसकी आत्मा अब भी उसकी आदिवासी जड़ों, जंगलों, और संस्कृति में बसी है। यह राज्य न केवल प्राकृतिक संसाधनों का खजाना है, बल्कि भारत की विविधता का एक जीवंत उदाहरण भी है।