The Historic Journey of Jharkhand

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The Historic Journey of Jharkhand This page traces the evolution & transformation of the Jharkhandi identity over the last half century

हमारा एक मात्र उद्देश्य यह है की आने वाली पीढ़ी झारखण्ड के इतिहास को जाने और यह समझे की झारखण्ड का निर्माण एक लम्बे अथक समर का प्रतिफल है।

पद्मश्री डॉ राम दयाल मुंडा की 85 वी जयंती के मौके पर पूरा झारखंड उन्हें नमन कर रहा है🙏_____________________________झारखं...
23/08/2025

पद्मश्री डॉ राम दयाल मुंडा की 85 वी जयंती के मौके पर पूरा झारखंड उन्हें नमन कर रहा है🙏
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झारखंडी तेवर और सरलता के प्रतिनिधि रहे डॉ.राम दयाल मुंडा झारखंड के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के अधिष्ठाता, प्रणेता और नेता थे।वह सांस्कृतिक आंदोलन में सक्रिय रहते हुए राजनीतिक एजेंडा को भी अहमियत देते रहे।उनका यह विश्वास था कि सांस्कृतिक नीवं पक्की हो तो राजनीतिक भवन बनाएं और संवर्धित किया जा सकता है. राजनीतिक आंदोलन में तत्कालिकता प्रधान होती है, जबकि संस्कृतिक पूर्णजागरण अनंत काल तक उस समाज और जाति को जीवित,संवर्धित, उत्तरोतर प्रगति पथ पर अग्रसर करता रहता है।डॉ रामदयाल मुंडा ने झारखंड के सांस्कृतिक एवं बौद्धिक जागरण को मेरुदंड और केंद्रीय भित्ति बनाकर एक शाश्वत सनातन आंदोलन का सूत्रपात किया।हर झारखंडी अपनी भाषा गर्व से बोले अपनी पारंपरिक वेशभूषा में गौरव का अनुभव करें अपनी ऐतिहासिक धरोहर से महिमान्वित हो, अपने पर्व - त्योहार को सोल्लास मनाने में स्वाभिमान का अनुभव करें और विश्व मानचित्र पर अपने को अपमानित,अवहेलित न महसूस करे और अपनी विलक्षण सांस्कृतिक उपस्थिति,अस्तित्व और अस्मिता का परिचय दे। झारखंड के राजनीतिक आंदोलन को सांस्कृतिक संजीवनी प्रदान करने में सतत उद्यमशील और प्रयासरत डॉ. मुंडा समर्पण भाव से झारखंड हित में संलग्न हो गए। वे रांची विश्वविद्यालय के जनजाति एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग मैं अध्यक्ष के रूप में कार्य कर रहे थे। झारखंड मुक्ति मोर्चा का तीन दिवसीय द्वितीय महाधिवेशन स्थल पर आकर भेट की । महाधिवेशन के अंतिम दिन झामुमो के नवनिर्वाचित अध्यक्ष निर्मल महतो ने एक प्रेस बयान में कहा कि डॉ मुंडा जैसी शख्सियत को रांची विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया जाना चाहिए, नहीं तो झामुमो आंदोलन का रास्ता अख्तियार करेगा। इस बयान को बिहार के मुख्यमंत्री बिंदेशवरी दुबे ने अहमियत दी और उनकी अनुशंसा पर अक्टूबर 1986 में डॉ मुंडा को कुलपति तो नहीं, प्रतिकुलपति नियुक्त किया गया।झारखंड के बौद्धिक एवं संस्कृतिक सिपाही को यह मान्यता उनके उद्यम को प्रोत्साहित करने का एक छोटा सा उपक्रम था। प्रतिकुलपति के पद पर रह कर उन्होंने सांस्कृतिक और बौद्धिक पुनर्जागरण का काम जारी रखा। 28 जनवरी 1987 को उन्हें कुलपति बनाया गया। झामुमो अध्यक्ष निर्मल महतो की शहादत के बाद झारखंड आंदोलन काफी उफान पर था। इसी बीच केंद्रीय गृहमंत्री बूटा सिंह कांग्रेस के जाने-माने नेता स्वर्गीय कार्तिक उरांव के जयंती समारोह में भाग लेने के लिए 3 नवंबर 1987 को रांची आए हुए थे। गृहमंत्री ने डॉ मुंडा को रात्रि में राजभवन बुलाकर झारखंड आंदोलन की ऐतिहासिक पृष्भूमि पर बातचीत की। बातचीत पर गृहमंत्री संतुष्ट हुए और उन्होंने डॉ मुंडा को झारखंड आंदोलन की पृष्ठभूमि पर एक नोट(रिपोर्ट)तैयार करने को कहा। डॉ मुंडा ने दिल्ली जाकर 20 मार्च 1988 को गृह मंत्री से मिलकर लिखा गया नोट सौंप दिया।इसमें उन्होंने सुझाव के रूप में चार विकल्प दिया था-
(a) Sixth Scheduled Area
(b) Autonomus Area Council
(c) Union Territory
(d) Statehood
डॉ मुंडा का झारखंड राज्य के प्रति प्रेम, समर्पण और प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रूप से झारखंड आंदोलन में जुड़े रहने के कारण उन्हें 9 अगस्त 1988 को बिहार सरकार के इशारे पर राज्यपाल एवं कुलाधिपति श्री गोविंद नारायण सिंह ने रांची विश्वविद्यालय के कुलपति पद से बर्खास्त कर दिया। डॉ मुंडा को कुलपति पद से हटाया जाने पर बिहार सरकार का झारखंड के प्रति सौतेला भाव उजगार हुआ। बिहार सरकार के इस व्यवहार से झारखंड आंदोलन को और बल मिला। डाॅ मुंडा पूर्ण रूप से झारखंड आंदोलन में शामिल हो गए।



Source: झारखंड की समरगाथा
(झारखंड आंदोलनकारी सह पूर्व सांसद श्री शैलेंद्र महतो)

42 साल पहले 1981 में गुआ फायरिंग के बाद जमशेदपुर में हुई बैठक में शिबू सोरेन, निर्मल महतो, शैलेन्द्र महतो, कृष्णा मार्डी...
22/08/2025

42 साल पहले 1981 में गुआ फायरिंग के बाद जमशेदपुर में हुई बैठक में शिबू सोरेन, निर्मल महतो, शैलेन्द्र महतो, कृष्णा मार्डी, सूरज मंडल व अन्य |||
Picture Credits : झारखंड की समरगाथा

विश्व आदिवासी दिवस की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं एवं जोहार।  #आदिवासीदिवस
09/08/2025

विश्व आदिवासी दिवस की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं एवं जोहार।

#आदिवासीदिवस

निर्मल महतो झामुमो के अध्यक्ष कैसे बने?--------------------------------------------------आज 8 अगस्त, निर्मल महतो का 38 व...
08/08/2025

निर्मल महतो झामुमो के अध्यक्ष कैसे बने?
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आज 8 अगस्त, निर्मल महतो का 38 वां शहादत दिवस है। सबसे पहले मैं उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
काफी दिनों से यह सवाल उठता है कि विनोद बिहारी महतो झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष रहते हुए निर्मल महतो कैसे अध्यक्ष बने ?
मैं उपरोक्त सवाल का जवाब ,खुलासा और स्पष्ट करना चाहता हूं क्योंकि मैं उस समय झारखंड मुक्ति मोर्चा केंद्रीय समिति का सदस्य था। यह सर्वविदित है कि विनोद बिहारी महतो झारखंड मुक्ति मोर्चा का संस्थापक अध्यक्ष थे और उन्होंने 1972 से लेकर 1984 तक निर्विवाद रूप से पार्टी के कार्यक्रमों को आगे बढ़ाया। यह भी सत्य है कि सामाजिक, राजनीतिक रूप से शोषितों, वंचितों और झारखंडी समाज में उनकी इज्जत, सम्मान बहुत अधिक था। 1980 में विधानसभा का चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा गया जिसमें झामुमो के 12 विधायक चुनकर आए। विनोद बाबू बिहार विधानसभा में झामुमो विधायक दल के नेता चुने गए और सूरज मंडल उप नेता बने। ज्ञातव्य है कि पटना में बिहार के कुछ लोगों ने 1983 के अंत में ' बिहार मुक्ति मोर्चा ' नामक एक राजनीतिक दल का गठन किया और इसका अध्यक्ष विनोद बिहारी महतो को बनाया गया। विनोद बाबू झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष होते हुए उन्होंने एक अन्य राजनीतिक पार्टी बिहार मुक्ति मोर्चा का अध्यक्ष पद स्वीकार कर लिया। इसके बाद चुनाव आयोग ने विनोद बिहारी महतो से स्पष्टीकरण मांगा कि आप किन-किन राजनीतिक पार्टियों के अध्यक्ष हैं ? अन्यथा झारखंड मुक्ति मोर्चा का पंजीकरण रद्द किया जाएगा। इस परिस्थिति में झारखंड मुक्ति मोर्चा केंद्रीय समिति की बैठक 15 मार्च 1984 को बोकारो वालीडीह गेस्ट हाउस में संपन्न हुई। बैठक में विनोद बाबू से अनुरोध किया गया कि आप बिहार मुक्ति मोर्चा से त्यागपत्र दे दें और पार्टी के तत्कालीन महासचिव शिबू सोरेन ने ऐलान किया था कि विनोद बाबू जब तक जिंदा हैं तब तक पार्टी के अध्यक्ष बने रहें ,लेकिन उन्होंने अनसुनी कर दी। विनोद बाबू ने चुनाव आयोग को कोई जवाब नहीं दिया।
फिर 15 दिन बाद 4 अप्रैल 1984 को बालीडीह ( बोकारो) गेस्ट हाउस में ही झामुमो केंद्रीय समिति की बैठक हुई। बैठक लंबी चली, गहन विचार विमर्श हुआ, पार्टी का पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) बचाना था,
सभी को पार्टी से विनोद बाबू को खोने का डर सता रहा था लेकिन असल सवाल था चुनाव आयोग को जवाब देना। अब विनोद बाबू के जगह एक नया अध्यक्ष चुनने का अवसर था। कई नाम आये, महतो के जगह महतो को ही चुनना था। गुरुजी शिबू सोरेन ने मुझे निर्मल महतो का नाम प्रस्ताव करने के लिए एक कागज में लिखकर धानसिंह मुंडारी के द्वारा भेजा। मैंने झामुमो अध्यक्ष पद के लिए निर्मल महतो का नाम प्रस्ताव किया जिसे सभी उपस्थित केंद्रीय समिति के सदस्यों ने समर्थन किया। इस तरह से निर्मल महतो झामुमो के अध्यक्ष बने ।
मैं और भी स्पष्ट करना चाहता हूं। उसके बाद विनोद बाबू ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (बी )बनाया। उन्होंने उस पार्टी को 5 साल चलाया। मैं 1989 में जब सांसद बना तो विनोद बाबू को फिर से झारखंड मुक्ति मोर्चा में लौटने का अनुरोध किया। मैं उस समय झारखंड मुक्ति मोर्चा का एकमात्र महासचिव था। मैं शिबू सोरेन से विनोद बाबू के संदर्भ में बात किया और शिबू सोरेन ने भी कहा कि ठीक है विनोद बाबू पार्टी में लौटकर आते हैं तो अच्छी बात है । डुमरी स्थित झारखंड कॉलेज में फिर से समझौता वार्ता हुआ। 1989 में संसदीय चुनाव के बाद विनोद बाबू ने अपनी पार्टी झामुमो (बी)को झारखंड मुक्ति मोर्चा में विलय कर दिया और 1990 का बिहार विधानसभा चुनाव टुंडी से और 1991 का गिरिडीह लोकसभा से संसद का चुनाव झामुमो पार्टी के तीर धनुष चिन्ह से लड़े।उनका संसदीय जीवन 6 माह का रहा। वे जिस झामुमो पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष थे, उस पार्टी के ही सांसद रहते हुए 18 दिसंबर 1991 को दिल्ली में हार्ट अटैक से उनका देहावसान हुआ।

Post credits : शैलेंद्र महतो (पूर्व सांसद)


#शहीद_निर्मल_महतो

झारखंड राज्य आंदोलन के सबसे पुरोधा एवं अग्रणी भूमिका में थे शहीद निर्मल महतो । प्रेरणास्रोत एवं झारखंड राज्य के गठन में ...
07/08/2025

झारखंड राज्य आंदोलन के सबसे पुरोधा एवं अग्रणी भूमिका में थे शहीद निर्मल महतो ।
प्रेरणास्रोत एवं झारखंड राज्य के गठन में निर्णायक भूमिका निभाने वाले शहीद निर्मल महतो के 38 वां शहादत दिवस पर उन्हें शत शत नमन।।🙏🙏
वीर शहीद निर्मल महतो अमर रहे!!✊✊
जय झारखंड

#शाहिद_निर्मल_महतो
#झारखंड

झारखंड आंदोलकारी सह पूर्व सांसद Shailendra Mahto जी के फेसबुक वॉल से :-______________________________________झारखंड आंदो...
07/08/2025

झारखंड आंदोलकारी सह पूर्व सांसद Shailendra Mahto जी के फेसबुक वॉल से :-
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झारखंड आंदोलन के दौरान 26 जून 1979 को बिहार पुलिस ने मुझे चाईबासा बस स्टैंड से गिरफ्तार कर स्थानीय सदर थाना में ले जाया गया। मेरी गिरफ्तारी सुनते ही अविभाजित सिंहभूम जिला के तत्कालीन एसपी रामेश्वर उरांव(झारखंड राज्य के पूर्व वित्त मंत्री) तुरंत सदर थाना में पहुंचे और उन्होंने मुझे अपने अधीन ले लिया। मैं बिहार पुलिस की मारपीट से बच गया। एसपी ने आंदोलन के दौरान की घटनाओं को मुझसे जानकारी ली। आधा घंटा के बाद उन्होंने एक रिक्शा बुलाया फिर कोल्ड ड्रिंक पिलाकर एक सिपाही के साथ चाईबासा जेल भेज दिया। मैं तीन महीना चाईबासा कारा (जेल) में बंदी था। उस समय झारखंड मुक्ति मोर्चा के तत्कालीन महासचिव माननीय गुरु जी शिबू सोरेन मुझसे चाईबासा जेल में मिलने आए थे। मैंने झारखंड आंदोलनकारियों का उत्साह बढ़ाने के लिए जेल में ही एक कविता लिखी थी।ज्ञातव्य है कि उन दिनों चाईबासा से एक पाक्षिक पत्रिका "सिंहभूमि एकता" प्रकाशित होती थी जो मजदूर, किसान, छात्र - युवा और झारखंड आंदोलन की आवाज को बुलंद करता था। जेल में मेरी लिखी हुई कविता को संपादक ने "सिंहभूमि एकता"(अंक अगस्त, द्वितीय पक्ष 1979) में छापा था।
आज शिबू सोरेन हमारे बीच नहीं रहे। उस वीर युग पुरुष के सम्मान में मेरी यह कविता "झारखंड की ललकार" जनता के बीच शेयर करने की इच्छा हुई ।सिंहभूमि एकता पत्रिका के ओरिजिनल फोटोकॉपी फेसबुक में जारी कर रहा हूं --
शैलेंद्र महतो (पूर्व सांसद)

Hemant Soren

झारखंड के नेल्सन मंडेला थे शिबू सोरेन :- शैलेंद्र महतो( झारखंड आंदोलनकारी सह पूर्व सांसद) #दिशोम_गुरु_शिबू_सोरेन_अमर_रहे...
05/08/2025

झारखंड के नेल्सन मंडेला थे शिबू सोरेन :- शैलेंद्र महतो( झारखंड आंदोलनकारी सह पूर्व सांसद)

#दिशोम_गुरु_शिबू_सोरेन_अमर_रहे

कोयलांचल को माफिया और सूदखोरों के बीच अपने लड़ाई करते हुए शहीद हो गए थे अथवा कोयलांचल का हीरा कहे जाने वाले क्रांति दूत ...
02/08/2025

कोयलांचल को माफिया और सूदखोरों के बीच अपने लड़ाई करते हुए शहीद हो गए थे अथवा कोयलांचल का हीरा कहे जाने वाले क्रांति दूत अमर शहीद शक्तिनाथ महतो की जयंती है।
आइये हम सब मिलकर इस महान दिवस पर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देते हैं शत शत नमन करते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करें।*💐🙏
#झारखंड_आंदोलन
#शहीद_शक्तिनात_महतो

रतिलाल महतो (1949-99), जो जीवन भर शोषणकारी व्यवहार के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हुए! उनका राजनीतिक विश्वास था 'जब तक शोषण है,...
13/07/2025

रतिलाल महतो (1949-99), जो जीवन भर शोषणकारी व्यवहार के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हुए! उनका राजनीतिक विश्वास था 'जब तक शोषण है, लड़ाई जारी रहेगी'! झारखंड आंदोलनकारीयों को देखते हुए रतिलाल दा की एक बात अनोखी है कि उन्होंने सबसे लंबा समय जेल में बिताया। झारखंड आंदोलन में इस ट्रेड यूनियन नेता के साहसी और शानदार योगदान को हमेशा याद किया जाता है।
गम्हरिया (सिंहभूम) के महान सपूत की शहादत के दिन उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि!!
HUL JOHAR ✊✊
#शहीद_रतिलाल_महतो

झारखंड आंदोलन से संबंधित किताब प्रकाशित ---------------------------------------------------------प्रभात खबर के पूर्व कार...
03/07/2025

झारखंड आंदोलन से संबंधित किताब प्रकाशित
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प्रभात खबर के पूर्व कार्यकारी संपादक अनुज कुमार सिन्हा और उसकी पत्नी डॉ अंजू कुमारी ने मिलकर एक पुस्तक लिखी है। पुस्तक का नाम है- "झारखंड आंदोलन और पत्र-पत्रिकाएं"। सौभाग्य से पुस्तक की भूमिका लिखने की जिम्मेदारी अनुज कुमार सिन्हा ने मुझ पर सौंपा जिसे मैंने उनका अनुरोध स्वीकारा और भूमिका लिखी।
अनुज कुमार सिन्हा और डॉक्टर अंजु कुमारी ने बहुत मेहनत कर एक-एक तथ्य को खोजा है। इन लोगों ने झारखंड आंदोलन के इतिहास को सबूत के साथ पाठकों के सामने परोसा है। झारखंड आंदोलन के दौरान अनेक अखबार, पत्र, पत्रिकाएं निकली, बंद भी हो गई। उनकी बड़ी भूमिका रही है लेकिन उन्हें कोई जानता नहीं या याद करता नहीं। इस पुस्तक के माध्यम से झारखंड राज्य के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पत्रकार, अखबार और पत्रिकाओं को भी याद किया गया है। उन्हें सम्मान दिया गया है। पुरानी चीजों, पुराने दस्तावेजों को, पुरानी घटनाओं को खोज- खोज कर निकालने और पुस्तक, अखबार में छापने का जुनून अनुज सिन्हा में रहा है। लंबे समय से मैं उनके काम को जानता हूं उन्होंने झारखंड आंदोलन पर और भी पुस्तकें लिखी है। पुस्तक को "प्रभात प्रकाशन प्रा• लि•(नई दिल्ली) ने प्रकाशित किया है।
धन्यवाद,

शैलेंद्र महतो (पूर्व सांसद)

Post Courtesy: झारखंड आंदोलनकारी सह पूर्व संसद Shailendra Mahto जी के फेसबुक वॉल से |||

आदिवासिओं का क्रांतिकारी इतिहास।।'हूल' कथा का सरल पाठ=====================================1857 के सिपाही विद्रोह को आजाद...
30/06/2025

आदिवासिओं का क्रांतिकारी इतिहास।।
'हूल' कथा का सरल पाठ
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1857 के सिपाही विद्रोह को आजादी के पहले संग्राम के रूप में इतिहास में याद किया जाता है, लेकिन उसके दो वर्ष पूर्व 1855 में हुए संथाल विद्रोह को इतिहास में कम ही जगह मिली है. वैसे, हममे से अधिकतर साथी हूल दिवस के महत्व को जानते हैं. जो नहीं जानते, उनके लिए अपनी ही किताब 'झारखंड के आदिवासियों का संक्षिप्त इतिहास' से हूल कथा का सरल पाठ यहां शेयर कर रहा हूं.

''आदिवासी समुदाय, जिसने अपने मेहनत से दामिन-इ-कोह के जंगलों को साफ कर खेती लायक जमीन बनाई थी, उनका भीषण शोषण हो रहा था. सरकार को नियमित राजस्व चुकाने के लिए उन्हें महाजनों से कर्ज लेना पड़ता. महाजन उदारता से कर्ज देते और सिर्फ सूद के रूप में उनकी फसल का बड़ा हिस्सा उठा ले जाते. बंगाली मूल के हिन्दू जमींदार संथाल गांवों में गैर-आदिवासी जमींदारों को बसाने में लगे थे. महेशपुर और पाकुड़ के राजा संथालों के गांव को गैर-आदिवासी जमींदारों को लीज पर दे रहे थे. महेशपुर के राजा ने अपने अधीन पड़ने वाले 300 संताल गांवों को बाहिरागतों को लीज पर दे दिये जो तरह-तरह के टैक्स संतालों से वसूलते थे. यानी सरकारी राजस्व में तो लगातार वृद्धि हो ही रही थी, जमींदार, सूदखोर-महाजनों, थाना के अमलों द्वारा भी आदिवासियों का भीषण शोषण हो रहा था.

उसी दौरान अंग्रेज सरकार ने रेलवे लाइन बिछाने का काम भी शुरू किया था और करीब 200 मील रेलवे लाइन संथाल क्षेत्र में बिछना था. इसके लिए संथाल क्षेत्र में बड़े पैमाने पर काम शुरू हुआ. बड़े-बड़े बांध, जंगल की सफाई, पुल निर्माण आदि कार्यों में रोजगार का प्रचुर अवसर था और यह कठिन काम संथाल ही कर सकते थे. जाहिर है इस क्षेत्र में रोजगार का अवसर मिला, लेकिन उन आदिवासियों का रेलवे के अधिकारी और ठेकेदार शोषण करते थे और आदिवासी महिलाओं के यौन शोषण की कई घटनाएं भी लगातार हुईं. एक अंग्रेज लेखक मैक्डगाल लिखते हैं- ‘‘विद्रोहियों की मुख्य शिकायत महाजनों और छोटे अधिकारियों द्वारा मनमाने पैसे की उगाही थी, लेकिन जमींदारों-हिन्दू, मुस्लिम और यूरोपीय- द्वारा उन पर होने वाला अत्याचार भी कारण बना. रेलवे के कुछ कर्मचारियों पर संथाल महिलाओं के साथ बलात्कार का भी आरोप था.’’

और विद्रोह फूट पड़ा. 30 जून, 1855 को 10 हजार से भी अधिक सशस्त्र संथाल भोगनाडीह में जमा हुए. उन्होंने इस बात की घोषणा की कि वे बहिरागत महाजनों से इस क्षेत्र को खाली कर देंगे और इस क्षेत्र पर कब्जा कर अपना राज यहां स्थापित करेंगे. डब्लू डब्लू हण्टर ने ‘एनल्स आफ रूरल बंगला’, लंदन, 1868 में अपने ब्योरे में जहां-तहां हिन्दू शब्द का इस्तेमाल इस संदर्भ में किया है कि हूल-विद्रोही हिन्दुओं के विरोधी थे. लेकिन भागलपुर के कमिश्नर ने बंगाल सरकार के सचिव को 28 जुलाई, 1885 को जो पत्र लिखा था, उसके अनुसार कुम्हार, तेली, सोनार, मोमिन, चमार और डोम जैसी दलित हिन्दू एवं मुसलमान जातियां इस हूल में आदिवासियों में साथ थीं. हूल-विद्रोह के नेता सिदो और कान्हू इस मुद्दे पर साफ थे कि उनका दुश्मन वे लोग हैं- चाहे वे हिन्दू हों, मुसलमान हों या यूरोपीय- जो आदिवासी समाज का शोषण कर रहे हैं. वे इस क्षेत्र में ब्रिटिश राज का खात्मा कर अपना राज, अपनी व्यवस्था कायम करना चाहते थे.
और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए भोगनाडीह से कलकत्ता के लिए यात्रा शुरू हुई. कारवां बढ़ता गया. हण्टर के ब्योरे के अनुसार कम से कम 30 हजार लोग तो विद्रोह के नेताओं के अंगरक्षक ही थे. यह कारवां अपने साथ अपना रसद लेकर चल रहा था. लेकिन जब वह स्टाॅक खत्म हो गया तो लूटपाट शुरू हो गयी.

7 जुलाई को पंचकठिया के करीब दीघी थाना का दारोगा महेश लाल दत्त और नायक सेजवाल पुलिस की टुकड़ी के साथ सिदो, कान्हू को गिरफ्तार करने पहुंचा. उसने समझने में भूल की थी. लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. उसे भीड़ ने उसके दस्ते के साथ पकड़ लिया. भरी जन-अदालत में दो दशकों में किए गये उसके अत्याचारों पर विचार करने के बाद दारोगा और उसके सहयोगी का वध कर दिया गया. पंचकठिया की समीपवर्ती बाजार के महाजन मानिक चैधरी, गोराचन्द सेन, सार्थक रक्षित, निमाई दत्त और हीरू दत्त को भी संथालों ने मार डाला. बरहेट बाजार में नायक सेजवाल खान साहब की हत्या कर दी गयी. अंबर परगना जो पाकुड़ राज का हिस्सा था, में भी कई महाजनों की हत्या कर दी गयी. पाकुड़ राज के पतन के बाद उस क्षेत्र के सबसे बड़े महाजन दीन दयाल और उसके समर्थकों ने घोषणा कर दी कि अब वे अंबर परगना के जमींदार हैं. लेकिन बाद में दीनदयाल रे को भी मार डाला गया. महेशपुर में राजा के घर को लूट लिया गया.

15 जुलाई, 1855 को संथाल विद्रोहियों का सामना अंग्रेजी सेना के 7वें रेजीमेंट से हुआ. उसके बाद पाकुड़ के नजदीक तारी नदी के किनारे बड़ी संख्या में संथाल विद्रोही मारे गये, लेकिन विद्रोह थमा नहीं, बल्कि फैलता चला गया. संथाल विद्रोह के इतिहासकार डाॅ. के. के. दत्ता ;कलकत्ता 1946, पृ. 35, लिखते हैं- ‘‘20 जुलाई, 1854 तक विद्रोह वीरभूम के दक्षिण-पश्चिम ग्रैंड टंक रोड से दक्षिण-पूर्व सैंथिया तक तथा भागलपुर से राजमहल तक फैल चुका था. और उससे निबटने के लिए 37 रेजीमेंट, मूर्शिदाबाद के नवाब के 200 निजामत सिपाही, 30 हाथी, 32 घुड़सवार के साथ 63 रेजीमेंट एन. आई. को लगाया गया.’’

बार-बार अंग्रेज अधिकारी उच्चाधिकारियों को खबर करते कि विद्रोह पर काबू पा लिया गया है, लेकिन अगले दिन विद्रोह के फिर फूट पड़ने की खबर आती. क्योंकि यह विद्रोह किसी रिसायत, राजा या भाड़े के सैनिकों का विद्रोह नहीं था. यह आदिवासी जनता का विद्रोह था और हर संथाल उसका सिपाही था. फिर भी यह लड़ाई अपने समय के सबसे शक्तिशाली साम्राज्यवादी शक्ति और एक छोटी-सी भौगोलिक सीमा में निवास करने वाले संथालों के बीच थी. अंग्रेज सिपाहियों के पास अपने समय के आधुनिकतम अग्नेयास्त्रा थे जबकि संथाल विद्रोही तीर-धनुष, टांगी, तलवार जैसे परंपरागत हथियारों से लड़ रहे थे. इसलिए इस यद्ध को तो खत्म होना ही था. 6 दिसंबर, 1855 को वीरभूम के मैजिस्ट्रेट ने 12 संथाल कैदियों - कान्हू, शोभा मांझी, निमई मांझी, चांद मांझी, भैरव मांझी, कानू मांझी, दुर्गा मांझी, मोटा रूमात्सा मांझी, सेन्हा मांझी, हरिदास मांझी, मोरही मांझी और मुटाह मांझी को मेजर जनरल एवायड के पास भेजा. संग्रामपुर में निर्णायक लड़ाई हुई और दिसंबर 1855 के अंत तक संथाल-विद्रोह पर काबू पा लिया गया. कुल 253 विद्राहियों के खिलाफ मुकदमा शुरू हुआ. दो सरकारी गवाह बन गये. 251 के खिलाफ मुकदमे की कार्रवाई शुरू हुई. इनमें 52 संथाल गांवों के 191 संथाल थे. शेष अन्य दलित जाति समूहों के. 49 कम उम्र के किशोर थे. उन्हें छोड़ कर अन्य को 7 से 14 वर्ष को सश्रम कारावास की सजा मिली. इस विद्रोह में सिदो, कान्हू, चांद, भैरव सहित लगभग 10 हजार से भी अधिक संथाल मारे गये थे.

संथाल विद्रोह : चानकु महतो को फॉसी

संथाल विद्रोह के दौरान 1856 में चानकु महतो को अंग्रेज सास्कों ने गोड्डा में सरेआम फांसी के फंदे पर झूला दिया था। चानकु महतो जैसे प्रमुख शहीद का नाम सरकारी दस्तावेज में उपलब्ध है। भारत सरकार के Anthropological Survey of India द्वारा प्रकाशित पुस्तक 'People of India' के (Bihar including Jharkhand,Volume XVI,Part 2, Page 584) में उल्लेखित है- " During the Santhal rebellion in the Santal parganas and Manbhum the kudmis participated under the leadership of chanku mahto,who was hanged in godda in 1856."
लेकिन इस महान विद्रोह के बाद ही संथाल परगना में प्रशासनिक सुधरों का दौर शुरू हुआ और कई तरह के कानून अस्तित्व में आये. संथाल परगना रेगुलेशन 3-1908, जिसके अंतर्गत उस क्षेत्र में संथालों की जमीन के हस्तांतरण पर पूर्ण रोक का प्रावधन किया गया, के बनने और लागू होने की पृष्ठभूमि हूल-विद्रोही ही था. स्वतंत्रता-प्रप्ति के बाद उन प्रावधनों को ‘संथाल परगना काश्तकारी’ पूरक प्रावधन अधिनियम 1949 में कायम रखा गया.

Source : झारखंड में विद्रोह का इतिहास

झारखंड आंदोलनकारी सह पूर्व उपमुख्यमंत्री स्वर्गीय  #सुधीर_महतो_जी के 69 वें जयंती पर उन्हें कोटि कोटि प्रणाम एवं विनम्र ...
25/06/2025

झारखंड आंदोलनकारी सह पूर्व उपमुख्यमंत्री स्वर्गीय #सुधीर_महतो_जी के 69 वें जयंती पर उन्हें कोटि कोटि प्रणाम एवं विनम्र श्रद्धांजलि🙏🙏

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