10/12/2025
मधुसूदन महतो : स्वतंत्रता से झारखंड आंदोलन तक की अद्वितीय संघर्ष-यात्रा
✍️ लेखक : राजेन्द्र प्रसाद महतो 'राजेन'
स्वतंत्रता आन्दोलन, स्वदेशी आन्दोलन, भूदान आन्दोलन से लेकर झारखंड आंदोलन तक—मधुसूदन महतो सक्रियता पूर्वक और साहस के साथ अग्रिम पंक्ति में खड़े रहे। उनकी राजनीतिक जागरूकता, सामाजिक समर्पण और कर्तव्यनिष्ठा को आज भी क्षेत्र की जनता सम्मानपूर्वक स्मरण करती है।
जन्म व पारिवारिक पृष्ठभूमि
मधुसूदन महतो का जन्म 11 दिसम्बर 1911 को पश्चिम सिंहभूम जिले के पोड़ाहाट पीड़ अन्तर्गत आसनतलिया गाँव में एक साधारण कृषक परिवार में हुआ।
पिता : सुदर्शन महतो
माता : मुक्ता देवी
दीर्घ संघर्षपूर्ण जीवन के पश्चात् 12 दिसम्बर 1989 को उनका निधन हुआ।
शिक्षा व विद्वता मिडिल पास होने के बावजूद वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। आयुर्वेद के ज्ञाता
हिन्दी, अंग्रेजी, उड़िया, बंगला और हो भाषा के जानकार उनका जीवन सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संरचनाओं से गहराई तक जुड़ा हुआ था।
पंचायती नेतृत्व व जनसेवा
पहली पंचायत चुनाव से लेकर 1971 तक वे आसनतलिया ग्राम पंचायत के मुखिया रहे।
हर सुबह उनके आवास पर जन-अदालत जैसी पंचायती लगती थी, जहाँ वे
भूमि-विवाद, पारिवारिक मामले, आपसी झगड़े
आदि को सहजता से निबटाते थे। उनके निर्णय सर्वमान्य होते थे और अधिकतर मामलों को वे अदालत तक जाने से रोक देते थे।
स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका
स्वतंत्रता सेनानी नागेश्वर पंडित के सम्पर्क में आने के बाद वे स्वदेशी और स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुएव वे महात्मा गांधी के कट्टर समर्थक थे और जीवनभर खादी धारण करते रहे।
चार मई 1934 को गांधीजी के चक्रधरपुर आगमन पर वे स्वागत व कार्यक्रम संचालन में अग्रणी भूमिका में थे। इस ऐतिहासिक आगमन ने कोल्हान क्षेत्र के आंदोलनकारियों में नई ऊर्जा का संचार किया।
उनके निकट सहयोगी स्वतंत्रता सेनानियों में शामिल थे— मंगल प्रसाद, गोपाल कुम्हार, सोहराय राम, कमल कृष्ण महतो, गंगाधर महतो, आचार्य शशिकर, सामुचरण तुबिड, काली प्रसन्न षाड़ंगी, द्वारिका प्रसाद मिश्र, आर.एन. राव, शिवचरण महतो आदि।
भूदान आंदोलन
वर्ष 1954–55 में वे विनोबा भावे के सम्पर्क में आए और भूदान आंदोलन से प्रभावित होकर 25 डिसमिल भूमि गरीब एवं भूमिहीन परिवारों को दान में दी।
कुड़मी समाज में योगदान
वे कुड़मी (कुरमी) समाज के कई राष्ट्रीय महाधिवेशनों में सक्रिय भागीदार रहे और समाजिक उत्थान के लिए निरंतर कार्य करते रहे।
झारखंड आंदोलन में सहभागिता
वर्ष 1970 के बाद जब झारखंड आंदोलन तेज हुआ, तब शहीद निर्मल महतो (निर्मल दा) 1977–78 में चक्रधरपुर आए और पहली ही भेंट में मधुसूदन महतो से प्रभावित हो गए।
निर्मल दा, शैलेन्द्र महतो (पूर्व सांसद), बहादुर उराँव (पूर्व विधायक), सुला पुरती, पीरू हेम्बोम, शहीद मछुआ गागराई, भुवनेश्वर महतो आदि अक्सर उनके आवास पर रुककर आंदोलन की रणनीति तैयार करते थे। निर्मल दा कई बार उनके घर पर रात्रि-विश्राम भी करते थे।
आंदोलनकारियों पर पुलिस अत्याचार होने पर मधुसूदन महतो हमेशा थाना पहुँच कर न्याय के लिए खड़े होते थे। झारखंड आंदोलनकारी एवं पूर्व विधायक बहादुर उराँव उन्हें अपना राजनीतिक परामर्शदाता मानते थे।
स्थायी संस्थाएँ व विरासत
मधुसूदन बाबू की स्मृति में चक्रधरपुर में कई संस्थाएँ संचालित हैं—
मधुसूदन मेमोरियल एजुकेशन सोसाइटी
मधुसूदन महतो उच्च विद्यालय
मधुसूदन पब्लिक स्कूल
मधुसूदन रेसिडेन्शियल इंस्टीच्यूशन
ये संस्थाएँ उनके समाज-सेवा और संघर्षपूर्ण जीवन की विरासत को आज भी आगे बढ़ा रही है।
Post credits : Kudmi Bandhu "Totemic"