
13/08/2025
हिमालय की तराई में बसा एक छोटा-सा गाँव था जहाँ प्रकृति की गोद में जीवन सादगी से चलता था। उसी गाँव में रामू नाम का एक गरीब लकड़हारा अपने बूढ़े माता-पिता और दो छोटे भाई-बहनों के साथ रहता था। उसका जीवन कठिनाइयों से भरा था—रोज़ सुबह जंगल जाना, लकड़ी काटना, और शाम को बेचकर घर का गुज़ारा करना। उसके पास न अच्छे कपड़े थे, न पक्की छत, लेकिन उसका मन बहुत शांत और श्रद्धा से भरा था। उसका एकमात्र सहारा था — भोलेनाथ की भक्ति।
हर सुबह वह उठकर सबसे पहले अपने आँगन में बने मिट्टी के शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाता, दीप जलाता और कहता— "हे भोले, हिम्मत मत छीनना, बाकी जो दोगे, वो स्वीकार है।" गाँव के लोग उसका मज़ाक उड़ाते थे। कहते, "भोले बाबा ने तुझे क्या दिया..? तू तो वही गरीब का गरीब है!" लेकिन रामू बस मुस्कराता और कहता, "मुझे जो दिया है, वो तुम समझ नहीं सकते।"
एक दिन की बात है। आकाश अचानक काले बादलों से घिर गया। रामू जंगल में लकड़ी काट ही रहा था कि बिजली कड़कने लगी और तेज़ बारिश शुरू हो गई। वह जल्दी-जल्दी लकड़ियाँ समेट ही रहा था कि अचानक पहाड़ की चोटी से *भूस्खलन* शुरू हो गया। भारी पत्थर और मिट्टी नीचे गिरने लगी। वह भयभीत हो गया। एक तरफ तेज़ नदी, दूसरी तरफ गिरते पत्थर। उसके पास भागने का कोई रास्ता नहीं था।
वह एक बड़े पेड़ के नीचे बैठ गया, हाथ जोड़े और आँखें बंद करके बोला, “भोलेनाथ! आज जान आपके हाथ में है। अगर मेरी भक्ति सच्ची है, तो मुझे बचा लीजिए।” जैसे ही उसने आँखें खोलीं, सामने एक वृद्ध साधु खड़े थे। लंबी जटाएं, माथे पर भस्म, गले में रुद्राक्ष। उनकी आँखों में अजीब सी शांति थी। वे बोले, “चल बालक, इस ओर आ जा।”
रामू कुछ समझ नहीं पाया लेकिन उनके पीछे चल पड़ा। वे उसे पास की एक छोटी सी गुफा में ले गए और कहा, “यहाँ बैठ जा। कुछ देर में तू सब समझ जाएगा।” कुछ ही पलों में भूस्खलन ने पूरा वह इलाका तबाह कर दिया जहाँ रामू खड़ा था। वह स्तब्ध रह गया। बाहर सब मिट्टी में दब चुका था, पर वह सुरक्षित था। उसने मुड़कर साधु को धन्यवाद कहना चाहा, लेकिन वे वहाँ नहीं थे। रामू समझ गया कि ये कोई साधारण साधु नहीं थे —ये स्वयं भोलेनाथ ही थे।
गाँव लौटने पर लोगों ने उसकी बात सुनी तो कोई हँसा, कोई चौंका, पर रामू के मन में अब संदेह की कोई जगह नहीं थी। अब उसकी भक्ति और भी गहरी हो चुकी थी। वह पहले से अधिक श्रद्धा से पूजन करने लगा। धीरे-धीरे गाँव के लोग भी उसकी भक्ति से प्रभावित होने लगे।
समय बीता। मेहनत और ईमानदारी से रामू का जीवन सुधरने लगा। उसे लकड़ी का एक बड़ा ठेका मिल गया, व्यापार बढ़ा, और अब वह गाँव का सबसे प्रतिष्ठित व्यक्ति बन चुका था। लेकिन उसके स्वभाव में जरा भी बदलाव नहीं आया। पहले की तरह ही वह हर सोमवार को व्रत रखता, शिव मंदिर में पूजा करता और जरूरतमंदों की मदद करता।
उसने गाँव में एक सुंदर शिव मंदिर भी बनवाया, जिसमें रोज़ आरती और भंडारा होता था। एक दिन एक बड़ा व्यापारी रामू के पास आया और एक करोड़ों का सौदा रखा। वह डील बहुत लाभदायक लग रही थी, लेकिन रामू के मन में कुछ बेचैनी सी थी। उसने सौदा पक्का करने से पहले मंदिर में जाकर भोलेनाथ से मार्गदर्शन मांगा। उसी रात उसे सपना आया—उसी साधु रूप में *भोलेनाथ* प्रकट हुए और बोले, “जिसने तुझे बचाया, वो आज भी तेरे साथ है। इस सौदे में कुछ अधर्म है, सोच समझकर निर्णय लेना।”
अगली सुबह रामू ने साफ मना कर दिया। हफ्ते भर में ही समाचार आया कि वह व्यापारी कई लोगों को धोखा देकर फरार हो गया। इस घटना ने गाँव में हलचल मचा दी। लोग हैरान थे कि रामू कैसे बच गया। तब उसने सबको सपने की बात बताई और कहा— "भक्ति सिर्फ पूजा नहीं है। ये वो भरोसा है जो संकट में भी हमें सच्चाई के रास्ते पर टिकाए रखता है।"
अब गाँव के बच्चे भी शिव भक्ति की ओर आकर्षित होने लगे। रामू ने भजन संध्याएँ शुरू कीं, गरीबों के लिए अन्न क्षेत्र खोला, और मंदिर को ज्ञान केंद्र बना दिया। वह हर किसी से बस यही कहता, “जब सब रास्ते बंद लगें, तब शिव का नाम लो। वे रास्ता नहीं खोलेंगे, तो गोद में उठा लेंगे।”
रामू की कहानी अब सिर्फ गाँव की नहीं रही। आस-पास के गाँवों में भी उसकी भक्ति की मिसाल दी जाने लगी। कई लोग जो पहले भगवान को ‘ काल्पनिक ’ मानते थे, अब कहने लगे —“अगर भगवान होते हैं, तो वे रामू जैसे लोगों के साथ ज़रूर होते हैं।”
निष्कर्ष:
शिव भक्ति क्यों जरूरी है..?
क्योंकि जब सारा संसार मुँह फेर लेता है, तब भोलेनाथ हमें थामते हैं। उनकी भक्ति हमें शक्ति भी देती है और विवेक भी। जब हम सच्चे मन से भक्ति करते हैं, तो हम सिर्फ भगवान को नहीं पुकारते, बल्कि अपने भीतर की अच्छाई, धैर्य और साहस को भी जगाते हैं। रामू की कहानी ये सिखाती है कि भक्ति दिखावे की नहीं, भीतर के विश्वास की चीज़ है—और सच्ची भक्ति का फल हमेशा मिलता है।
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