16/11/2025
गृहेऽपि पज्चेन्द्रियनिग्रहः तपः ॥१३०॥
भावार्थ :
घर में रहकर पाँचों इन्द्रियों को वशमें रखना तप है।
यह श्लोक बताता है कि घर में रहकर पाँचों इन्द्रियों को वश में रखना भी एक प्रकार का तप है। यहाँ पाँच इन्द्रियाँ (आँख, कान, नाक, जीभ, और त्वचा) का संकेत है और इन्हें नियंत्रित करने का महत्त्व समझाया गया है।
गृहेऽपि पज्चेन्द्रियनिग्रहः तपः:
- गृहेऽपि (घर में): यह बताता है कि व्यक्ति को अपने दैनिक जीवन में, विशेष रूप से अपने घर में रहते हुए भी संयम और अनुशासन बनाए रखना चाहिए।
- पज्चेन्द्रियनिग्रहः (पाँच इन्द्रियों का निग्रह): यहाँ पाँच इन्द्रियों (दृष्टि, श्रवण, गंध, स्वाद, और स्पर्श) को नियंत्रित करने की बात की गई है।
- तपः (तपस्या): यह तपस्या का एक रूप है, जिसमें व्यक्ति अपनी इच्छाओं और भावनाओं पर नियंत्रण पाता है।
इस श्लोक का भावार्थ है कि सच्चा तप वही है जो व्यक्ति अपने घर में रहते हुए भी अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखता है। इससे यह सिखने को मिलता है कि तपस्या केवल एकांत या वन में नहीं, बल्कि घर के वातावरण में भी की जा सकती है। यह आत्मसंयम और आत्मनियंत्रण का प्रतीक है, जो जीवन में संतुलन और शांति लाता है।
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