02/12/2025
स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः ।
भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम् ॥
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं—
“अर्जुन! आज मैं तुम्हें वही प्राचीन दिव्य ज्ञान दे रहा हूँ, जो मैंने प्रारम्भ में सूर्य को और फिर ऋषियों को दिया था।
मैं यह महान रहस्य इसलिए बता रहा हूँ, क्योंकि तुम मेरे प्रिय भक्त और मित्र दोनों हो।”
अर्थात—
👉 ज्ञान उन्हीं को दिया जाता है जो श्रद्धावान, भक्त, ईमानदार, और योग्य हों।
👉 यह ज्ञान केवल बुद्धि से नहीं, भक्ति, विश्वास और आत्मीयता से प्राप्त होता है।
🌹 ज्ञान का स्रोत स्वयं भगवान हैं
यह ज्ञान सनातन है, समय से परे है। कृष्ण बताते हैं कि यह योग उन्होंने अनेक बार अवतार लेकर स्थापित किया है।
🌹 जन्म-मरण का रहस्य
कृष्ण कहते हैं—
वे जन्म लेते हैं, पर उनका जन्म दिव्य है; वे शरीर बदलते हैं, पर उनकी शक्ति अजर-अमर है।
यह दुनिया के लिए धर्म की स्थापना हेतु है।
🌹अवतार का उद्देश्य
धर्म की रक्षा, अधर्म का नाश, और सज्जनों का कल्याण।
🌹 कर्म, अकर्म और विकर्म का रहस्य
सबसे गहरा भाग यह है—
कैसे कर्म करते हुए भी पाप नहीं लगता
कैसे निष्काम भाव से किए गए कर्म मुक्ति देते हैं
कैसे सही ज्ञान कर्म को हल्का कर देता है
कैसे अहंकार रहित कर्म ईश्वर को प्रिय होता है
🌹 ज्ञान की अग्नि कर्मों को जलाती है
जो व्यक्ति सच्चे ज्ञान को धारण कर लेता है, उसके कर्मों के बंधन कट जाते हैं।
🌹 गुरु और भक्ति का महत्व
ज्ञान गुरु से मिलता है —
“प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया”
अर्थात विनम्रता + सही प्रश्न + सेवा = सच्चा ज्ञान।
🌹 विश्वास ही शक्ति है
जो विश्वास नहीं करता, उसका जीवन अंधकारमय रहता है।
जो ईश्वर पर भरोसा करता है, उसके भीतर प्रकाश भर जाता है।
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📖 एक सुंदर कहानी (ज्ञानयोग का रहस्य कहानी के रूप में)
प्राचीन समय में एक गाँव में अर्जुन नाम का एक युवा योद्धा रहता था।
वह साहसी था, पर मन में बहुत उलझनें थीं।
एक दिन युवा अर्जुन ने अपने गुरु से कहा—
“गुरुदेव, मैं कर्म करता हूँ पर मन अशांत है।
जो भी करता हूँ, लगता है कहीं पाप न हो जाए।
क्या मैं लड़ूँ? क्या मैं रुक जाऊँ?
क्या करूँ कि जीवन सही दिशा में चले?”
गुरु मुस्कुराए और बोले—
“चलो, नदी किनारे चलते हैं।”
दोनों नदी तक पहुँचे।
अर्जुन ने देखा कि नदी का पानी तेज़ बह रहा है।
गुरु ने एक सूखी लकड़ी उठाई और कहा—
“अर्जुन, यह लकड़ी नदी में डालो।”
अर्जुन ने लकड़ी पानी में फेंक दी।
लकड़ी बहने लगी।
गुरु बोले—
“देखो अर्जुन, यह लकड़ी तुम्हारे कर्म हैं। नदी में डाल दिया तो बहते रहेंगे।
पर यदि मैं यह लकड़ी आग में डाल दूँ—?”
उन्होंने पास की चिता में लकड़ी डाल दी, और लकड़ी पल भर में जलकर राख हो गई।
गुरु फिर बोले—
“ज्ञान की आग भी ऐसी ही है।
जो भी कर्म किए हैं, चाहे अच्छे हों या गलती वाली हों—
यदि तुम सच्चे ज्ञान को समझ लो तो वे सब जलकर समाप्त हो जाते हैं।”
अर्जुन ने पूछा—
“लेकिन गुरुदेव, यह ज्ञान मिलता कैसे है?”
गुरु ने कहा—
“जब तुम श्रद्धा से भगवान का स्मरण करते हो,
जब तुम अपने हृदय को विनम्र रखते हो,
जब तुम कर्म करते हुए फल की चिंता छोड़ देते हो—
तभी दिव्य ज्ञान तुम्हारे भीतर उतरता है।
भगवान वह ज्ञान उसी को देते हैं जो उनका मित्र और भक्त होता है।”
अर्जुन समझ गए कि—
कर्म करना है
बस अहंकार छोड़ना है
फल की चिंता छोड़नी है
और भगवान में विश्वास रखना है
जीवन की सारी उलझनें समाप्त हो गईं।
✨ सच्चा ज्ञान उन्हें मिलता है जो योग्य बनते हैं
ईश्वर ज्ञान उसी को देते हैं जो—
ईमानदार
सच्चा
विनम्र
श्रद्धावान
होता है।
✨ गलतियां जीवन का अंत नहीं हैं
ज्ञान की अग्नि सबसे भारी पाप और कर्म को भी जला देती है।
बस सीखते रहिए, आगे बढ़ते रहिए।
✨ कर्म करते रहो, फल की चिंता मत करो
काम करते समय भगवान याद हों, स्वार्थ न हो, अहंकार न हो
यही श्रेष्ठ कर्म है।
✨ ईश्वर आपके साथ तब होते हैं जब आप स्वयं सच्चे होते हैं
कृष्ण ने अर्जुन को ज्ञान दिया क्योंकि वह उनका प्रिय मित्र था।
आप भी भगवान के प्रिय बन सकते हैं—
बस भक्ति, विश्वास और सच्चाई को ना छोड़ें।