
24/07/2025
अब्दुल बिस्मिल्लाह का उपन्यास ‘दंतकथा’ उस गहरी विडम्बना को बेपर्दा करता है, जहाँ सभ्यता की विजय दरअसल मनुष्यता की पराजय बनकर उभरती है। प्रखर लेखिका और आलोचक सुप्रिया पाठक का इस उपन्यास पर लिखा यह लेख एक देसी मुर्गे की दृष्टि से रची गयी कथा में छिपी सामाजिक क्रूरताओं, असमानताओं और प्रकृति के साथ हुए छल को मार्मिक ढंग से उद्घाटित करता है। यह मुर्गा महज एक पक्षी नहीं, बल्कि उस निरीह मनुष्य का प्रतीक है, जो जाति, वर्ग, लिंग और आर्थिक शोषण के दुष्चक्र में फँसा हुआ है। सवाल यह है कि क्या सभ्यता के नाम पर अर्जित की गयी यह हिंसा वास्तव में हमें ‘मनुष्य’ बनाती है? यही सवाल इस लेख की केंद्रीय संवेदना बनकर उभरता है। सुप्रिया पाठक ने इस लेख के माध्यम से अब्दुल बिस्मिल्लाह की कथा-दृष्टि, उनके रचनात्मक सरोकारों और प्रतीकों की सघन व्याख्या करते हुए स्त्रीवाद, पर्यावरण और मानवता के अन्तःसम्बन्धों की भी गहराई से पड़ताल की है। यह न केवल ‘दंतकथा’ को नये सन्दर्भों में देखने का अवसर प्रदान करता है, बल्कि मनुष्यता की पुनर्रचना की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है- जहाँ एक मुर्गे की जिजीविषा, हमारी चेतना के दर्पण में झाँकने का साहस कराती है।
DrMohsina Bano Kishan Kaljayee Abdul Bismillah
https://samwed.com/dantkatha-ki-jijeevisha-manushyata-ki-haar/7572/