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अब्दुल बिस्मिल्लाह का उपन्यास ‘दंतकथा’ उस गहरी विडम्बना को बेपर्दा करता है, जहाँ सभ्यता की विजय दरअसल मनुष्यता की पराजय ...
24/07/2025

अब्दुल बिस्मिल्लाह का उपन्यास ‘दंतकथा’ उस गहरी विडम्बना को बेपर्दा करता है, जहाँ सभ्यता की विजय दरअसल मनुष्यता की पराजय बनकर उभरती है। प्रखर लेखिका और आलोचक सुप्रिया पाठक का इस उपन्यास पर लिखा यह लेख एक देसी मुर्गे की दृष्टि से रची गयी कथा में छिपी सामाजिक क्रूरताओं, असमानताओं और प्रकृति के साथ हुए छल को मार्मिक ढंग से उद्घाटित करता है। यह मुर्गा महज एक पक्षी नहीं, बल्कि उस निरीह मनुष्य का प्रतीक है, जो जाति, वर्ग, लिंग और आर्थिक शोषण के दुष्चक्र में फँसा हुआ है। सवाल यह है कि क्या सभ्यता के नाम पर अर्जित की गयी यह हिंसा वास्तव में हमें ‘मनुष्य’ बनाती है? यही सवाल इस लेख की केंद्रीय संवेदना बनकर उभरता है। सुप्रिया पाठक ने इस लेख के माध्यम से अब्दुल बिस्मिल्लाह की कथा-दृष्टि, उनके रचनात्मक सरोकारों और प्रतीकों की सघन व्याख्या करते हुए स्त्रीवाद, पर्यावरण और मानवता के अन्तःसम्बन्धों की भी गहराई से पड़ताल की है। यह न केवल ‘दंतकथा’ को नये सन्दर्भों में देखने का अवसर प्रदान करता है, बल्कि मनुष्यता की पुनर्रचना की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है- जहाँ एक मुर्गे की जिजीविषा, हमारी चेतना के दर्पण में झाँकने का साहस कराती है।
DrMohsina Bano Kishan Kaljayee Abdul Bismillah

https://samwed.com/dantkatha-ki-jijeevisha-manushyata-ki-haar/7572/

साम्प्रदायिकता की समस्या पर हिन्दी साहित्य में विपुल लेखन हुआ है। और लेखन की यह विपुलता विधाओं की विविधता में मुखरित हुई...
12/12/2024

साम्प्रदायिकता की समस्या पर हिन्दी साहित्य में विपुल लेखन हुआ है। और लेखन की यह विपुलता विधाओं की विविधता में मुखरित हुई हैं। इस विषय पर कविताएँ ज़्यादा लिखी गयीं हैं। कथा-साहित्य की दुनिया में इस पर विश्वसनीयता और पूर्वग्रह से परे जाकर लिखने वाले कुछ चन्द नामों में एक अब्दुल बिस्मिल्लाह हैं। उत्तर भारतीय समाज की बहुस्तरीय, जटिल बुनावट में पैबस्त साम्प्रदायिकता के रेशे को उन्होंने अलगाकर चिह्नित किया है। प्रस्तुत आलेख में वरिष्ठ लेखक हरियश राय ने अब्दुल बिस्मिल्लाह की ऐसी ही साम्प्रदायिकता विषयक कहानियों पर विचार किया है...
https://samwed.com/stories-of-resistance-to-communal-thinking/7534/
Hariyash Rai DrMohsina Bano Kishan Kaljayee

Home/शख्सियत/साम्प्रदायिक सोच के प्रतिरोध की कहानियाँ शख्सियत साम्प्रदायिक सोच के प्रतिरोध की कहानियाँ हरियश राय5 mi...

अब्दुल बिस्मिल्लाह हिन्दी की दुनिया में उपन्यासकार, कहानीकार के रूप में जाने जाते हैं। उनकी प्रसिद्धि का एक बड़ा आधार 'झ...
23/11/2024

अब्दुल बिस्मिल्लाह हिन्दी की दुनिया में उपन्यासकार, कहानीकार के रूप में जाने जाते हैं। उनकी प्रसिद्धि का एक बड़ा आधार 'झीनी झीनी बिनी चदरिया' रहा है। उपन्यासकार, कहानीकार के रूप में उनकी प्रसिद्धि ने उनके एक दूसरे लेकिन महत्वपूर्ण रूप को लगभग गौण कर दिया है- वह है उनका समर्थ आलोचक रूप। प्रस्तुत आलेख में लेखक के उसी कम देखे पक्ष की एक पड़ताल की गयी है।
पढ़े Diwyanand Dev का लेख...

Kishan Kaljayee Asha Sharma DrMohsina Bano

अब्दुल बिस्मिल्लाह हिन्दी की दुनिया में उपन्यासकार, कहान

किस्सागोई की परम्परा के सूत्र भारत में मध्यकाल में मिलते हैं। उर्दू के साथ-साथ हिन्दी कथा साहित्य ने भी इसके अमल से लाभ ...
05/09/2024

किस्सागोई की परम्परा के सूत्र भारत में मध्यकाल में मिलते हैं। उर्दू के साथ-साथ हिन्दी कथा साहित्य ने भी इसके अमल से लाभ उठाया है। अब्दुल बिस्मिल्लाह की कहानी की समीक्षा करते हुए संताल परगना से उभरे कवि राही डूमरचीर ने ऐसे ही और तत्त्वों की तलाश उनकी कहानी में की है। यह लेख हमें हिन्दी कहानी की परम्परा से परिचित कराते हुए उसके भविष्य के बारे में भी संकेत करता है।
अब्दुल बिस्मिल्लाह पर केन्द्रित संवेद के आगामी अंक के लिए लिखा गया यह लेख संवेद के पोर्टल के लिए प्रस्तुत है।

  किस्सागोई की परम्परा के सूत्र भारत में मध्यकाल में मिलते

कबीरदास के प्रचलित दोहे ‘कस्तूरी कुंडली बसै, मृग ढूंढे बन माहि…’ और योगिता यादव की कहानी ‘गंध’ में एक खास किस्म का अंतर्...
12/12/2023

कबीरदास के प्रचलित दोहे ‘कस्तूरी कुंडली बसै, मृग ढूंढे बन माहि…’ और योगिता यादव की कहानी ‘गंध’ में एक खास किस्म का अंतर्द्वंद देखने को मिलता है। एक में शिनाख्त स्पष्ट है तो दूसरे में स्पष्टता और अस्पष्टता के बीच गहरी कशमकश है।

संक्षेप में कहा जाए तो योगिता यादव की कहानी ‘गंध’ मानवीय जीवन के प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष घटनाओं, स्मृतियों, जरूरतों ....

प्रेमचन्द और केदारनाथ सिंह’ यह शीर्षक थोड़ा असहज लग सकता है। कहाँ कथा सम्राट प्रेमचन्द और कहाँ काव्य के शिखर को छूने वाले...
31/07/2023

प्रेमचन्द और केदारनाथ सिंह’ यह शीर्षक थोड़ा असहज लग सकता है। कहाँ कथा सम्राट प्रेमचन्द और कहाँ काव्य के शिखर को छूने वाले केदारनाथ सिंह। एक गद्य का महारथी तो दूसरा पद्य का बाहुबली। आखिर इन दोनों को कैसे देखा जाए? काल भी तो एक नहीं है? प्रेमचन्द की मृत्यु के समय केदार जी की उम्र मात्र दो वर्ष थी। यह शीर्षक न जाने ऐसे कई प्रश्न खड़ा करता है। जब प्रश्न है तो उसके उत्तर भी ढूँढने होंगे। प्रेमचन्द और केदारनाथ सिंह किस बिन्दु पर आकर मिलते हैं, यह इस आलेख में हम देखेंगे। वे कब कहाँ और कैसे मिले, यह भी हम जान पाएँगे। तो चलिये चलते हैं, केदारनाथ सिंह के प्रेमचन्द के पास। इससे पहले थोड़ा-सा प्रेमचन्द के बारे में।

पूरा लेख इस लिंक पर

Home/लेख/प्रेमचन्द और केदारनाथ सिंह प्रेमचन्दलेख प्रेमचन्द और केदारनाथ सिंह samvedJuly 31, 20200 143 15 minutes read   मृत्युंजय पाण्डेय   ‘.....

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