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थोड़ा सा लाइक, थोड़ा सा प्यार, पेज रहेगा सुपरस्टार

मन की मनोकामनाओं को पूर्ण कर देते हैं,बजरंग बली बिना कहे ही सब सुन लेते है..❤️🚩
21/08/2025

मन की मनोकामनाओं को पूर्ण कर देते हैं,
बजरंग बली बिना कहे ही सब सुन लेते है..❤️🚩

समाज सपनों को पंख नहीं देता हैं समाज तो अर्थी को कंधा देने का कार्य करता हैं..❤️🥀🥺
03/08/2025

समाज सपनों को पंख नहीं देता हैं समाज
तो अर्थी को कंधा देने का कार्य करता हैं..❤️🥀🥺

ये तस्वीर बताती है कि,किस्मत कभी भी पलटा खा सकती है,आपने बस कर्म पथ पर डटे रहना है,
02/08/2025

ये तस्वीर बताती है कि,
किस्मत कभी भी पलटा खा सकती है,
आपने बस कर्म पथ पर डटे रहना है,

शाहरुख़ ख़ान को जवान के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का सम्मान मिला है।अभिनय के मामले में वह काबिल हैं...
02/08/2025

शाहरुख़ ख़ान को जवान के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का सम्मान मिला है।

अभिनय के मामले में वह काबिल हैं, इसमें शक नहीं। स्वदेस, दिल से, चक दे इंडिया जैसी फ़िल्में इसका सबूत हैं। लेकिन अगर कभी राष्ट्रीय पुरस्कार का सही हक़दार शाहरुख़ थे, तो वो था स्वदेस के समय। अफ़सोस, उस साल सैफ़ अली ख़ान की माँ सेंसर बोर्ड की अध्यक्ष थीं, और कहा जाता है कि उन्होंने अपना असर दिखाकर यह पुरस्कार सैफ़ को दिला दिया — वो भी हम तुम जैसी “चिंदी” फ़िल्म के लिए।

अब सालों बाद जवान जैसी मसाला-भरी एक्शन-ड्रामा के लिए यह सम्मान मिलना, सवाल खड़े करता है। शायद वजह यह है कि इस बार जूरी प्रमुख आशुतोष गोवारिकर हैं — वही जिन्होंने स्वदेस बनाई थी। हो सकता है उन्होंने सोचा हो कि शाहरुख़ के साथ तब जो नाइंसाफ़ी हुई, उसे अब सुधार दिया जाए।

पर राष्ट्रीय पुरस्कार कोई लेन-देन का हिसाब चुकाने का मंच नहीं है। कला का सम्मान होना चाहिए, एहसान का नहीं। यह फ़ैसला, कम से कम इस बार, ग़लत है।

अभी कुछ दिन पहले कर्नाटक के कोप्पल ज़िले में एक सरकारी दफ़्तर में संविदा (आउटसोर्स) पर ₹15,000 महीने की तनख़्वाह पाने वा...
02/08/2025

अभी कुछ दिन पहले कर्नाटक के कोप्पल ज़िले में एक सरकारी दफ़्तर में संविदा (आउटसोर्स) पर ₹15,000 महीने की तनख़्वाह पाने वाले एक क्लर्क के यहाँ लोकायुक्त की छापेमारी हुई। उस क्लर्क के पास 24 मकान, 6 प्लॉट, 40+ एकड़ खेती की ज़मीन, 1 किलो से अधिक सोना, कई वाहन और अन्य गुप्त संपत्तियों के काग़ज़ात मिले।

ज़रा सोचिए, अगर एक कम वेतन और कम प्रभाव वाले पद पर बैठा व्यक्ति सिर्फ़ दो दशकों में इतनी बेहिसाब दौलत इकट्ठा कर सकता है, तो ऊँचे पदों पर बैठे लोगों के हालात क्या होंगे?

क्लर्क से लेकर बड़े अफ़सर, नेता और उनके रिश्तेदार — भ्रष्टाचार की जड़ें हर जगह फैली हुई हैं, जो जनता के संसाधनों को चूस रही हैं।

भारत इस सड़े-गले तंत्र के बावजूद आगे बढ़ रहा है। सोचिए, अगर हमने इसे काबू में किया होता तो आज हम कहाँ होते।

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