महर्षि मेंहीं की सूक्तियाँ \ Maharshi Mehi ki suktiyan

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महर्षि मेंहीं की सूक्तियाँ \ Maharshi Mehi ki suktiyan इस पेज में सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस के अनमोल वचन को डाला जाता है ।

ॐ श्रीसद्गुरवे नमः
सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज ऋषियों और सन्तों की दीर्घकालीन अविच्छिन्न परम्परा की अद्भुत आधुनिकतम कड़ी के रूप में परिगणित हैं । भागलपुर नगर के मायागंज महल्ले के पास पावन गंगा-तट पर अवस्थित इनका भव्य विशाल आश्रम आज भी अध्यात्म-ज्ञान की स्वर्णिम ज्योति चतुर्दिक बिखेर रहा है ।
महर्षि का अवतरण विक्रमी संवत् 1942 के वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि तदनुसार 28 अप्रैल, सन् 188

5 ई0, मंगलवार को बिहार राज्यान्तर्गत सहरसा जिले (अब मधेपुरा जिले) के उदाकिशुनगंज थाने के खोखशी श्याम (मझुआ) नामक ग्राम में अपने नाना के यहाँ हुआ था ।
महर्षि का जन सामान्य के लिए उपदेश था कि ईश्वर की खोज के लिए कहीं बाहर मत भटको; उसे मानस जप, मानस ध्यान, दृष्टियोग और नादानुसंधान (सुरत-शब्दयोग) के द्वारा अपने ही शरीर के अन्दर खोजो । ईश्वर की भक्ति करने के लिए कोई खास वेश-भूषा धारण करने की जरूरत नहीं है । अपने घर-द्वार में रहो और अपने पसीने की कमाई से जीवन का निर्वाह करो ।
इस संसाररूपी रंगमंच पर आकर प्रत्येक प्राणी अपनी-अपनी भूमिका अदा करके चल देता है । ईसा की बीसवीं शताब्दी के तीन-चौथाई से भी कुछ अधिक काल तक अपने ज्ञानालोक से समस्त जगत् को आलोकित करते हुए अध्यात्म-गगन का यह महान् सूर्य भी 8 जून, सन् 1986 ई0, रविवार को अपने जीवन के 101 वर्ष पूरे करके हमारी आँखों से ओझल हो गया ।
- ब्रजेश दास
संतनगर, बरारी, भागलपुर-3 (बिहार)

 ,ॐ श्रीसद्गुरवे नमःसद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज ऋषियों और सन्तों की दीर्घकालीन अविच्छिन्न परम्परा की अद्भुत आध...
20/07/2025

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ॐ श्रीसद्गुरवे नमः
सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज ऋषियों और सन्तों की दीर्घकालीन अविच्छिन्न परम्परा की अद्भुत आधुनिकतम कड़ी के रूप में परिगणित हैं । भागलपुर नगर के मायागंज महल्ले के पास पावन गंगा-तट पर अवस्थित इनका भव्य विशाल आश्रम आज भी अध्यात्म-ज्ञान की स्वर्णिम ज्योति चतुर्दिक बिखेर रहा है ।
महर्षि का अवतरण विक्रमी संवत् 1942 के वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि तदनुसार 28 अप्रैल, सन् 1885 ई0, मंगलवार को बिहार राज्यान्तर्गत सहरसा जिले (अब मधेपुरा जिले) के उदाकिशुनगंज थाने के खोखशी श्याम (मझुआ) नामक ग्राम में अपने नाना के यहाँ हुआ था ।
महर्षि का जन सामान्य के लिए उपदेश था कि ईश्वर की खोज के लिए कहीं बाहर मत भटको; उसे मानस जप, मानस ध्यान, दृष्टियोग और नादानुसंधान (सुरत-शब्दयोग) के द्वारा अपने ही शरीर के अन्दर खोजो । ईश्वर की भक्ति करने के लिए कोई खास वेश-भूषा धारण करने की जरूरत नहीं है ।
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15/07/2025

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13/07/2025

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08/07/2025
संसार में सुरक्षित रहने के लिए, देश की रक्षा के लिए झुण्ड-के-झुण्ड सैनिक जान गँवाते हैं। हमको मारेगा वा हम मारेंगे, इतना...
08/07/2025

संसार में सुरक्षित रहने के लिए, देश की रक्षा के लिए झुण्ड-के-झुण्ड सैनिक जान गँवाते हैं। हमको मारेगा वा हम मारेंगे, इतना बड़ा काम करने को लोग तैयार होते हैं। इसी तरह भगवान के सगुण रूप की भक्ति और निर्गुण स्वरूप की भक्ति के लिए कोई बड़ा काम हो तो क्या है? करना चाहिए।

06/07/2025

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