
20/07/2025
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ॐ श्रीसद्गुरवे नमः
सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज ऋषियों और सन्तों की दीर्घकालीन अविच्छिन्न परम्परा की अद्भुत आधुनिकतम कड़ी के रूप में परिगणित हैं । भागलपुर नगर के मायागंज महल्ले के पास पावन गंगा-तट पर अवस्थित इनका भव्य विशाल आश्रम आज भी अध्यात्म-ज्ञान की स्वर्णिम ज्योति चतुर्दिक बिखेर रहा है ।
महर्षि का अवतरण विक्रमी संवत् 1942 के वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि तदनुसार 28 अप्रैल, सन् 1885 ई0, मंगलवार को बिहार राज्यान्तर्गत सहरसा जिले (अब मधेपुरा जिले) के उदाकिशुनगंज थाने के खोखशी श्याम (मझुआ) नामक ग्राम में अपने नाना के यहाँ हुआ था ।
महर्षि का जन सामान्य के लिए उपदेश था कि ईश्वर की खोज के लिए कहीं बाहर मत भटको; उसे मानस जप, मानस ध्यान, दृष्टियोग और नादानुसंधान (सुरत-शब्दयोग) के द्वारा अपने ही शरीर के अन्दर खोजो । ईश्वर की भक्ति करने के लिए कोई खास वेश-भूषा धारण करने की जरूरत नहीं है ।
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