Awanish Tiwari

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Awanish Tiwari "सोच गहरी हो तो लफ्ज़ कम हो जाते हैं, और नज़र साफ़ हो तो रास्ते खुद-ब-खुद बन जाते हैं।"

एयर इंडिया की अहमदाबाद दुर्घटना की प्रारंभिक रिपोर्ट का इंतज़ार इस बार केवल विशेषज्ञों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि आम जनता ...
12/07/2025

एयर इंडिया की अहमदाबाद दुर्घटना की प्रारंभिक रिपोर्ट का इंतज़ार इस बार केवल विशेषज्ञों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि आम जनता भी बेसब्री से इसकी प्रतीक्षा कर रही थी। आमतौर पर विमानन दुर्घटनाओं और घटनाओं पर एएआईबी (एयरक्राफ्ट एक्सीडेंट इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो) नियमित रूप से रिपोर्टें प्रकाशित करता है, जिन पर बहुत कम लोग ध्यान देते हैं। लेकिन इस बार मामला हर दिल से जुड़ गया क्योंकि इस हादसे में 270 निर्दोष लोगों की जान चली गई। प्रारंभिक रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि उड़ान से पहले सभी आवश्यक जांचें की गई थीं और कोई भी असामान्यता दर्ज नहीं की गई थी। दिल्ली से अहमदाबाद तक इसी विमान से यात्रा कर चुके एक यात्री ने बताया कि उड़ान के दौरान कुछ ठीक नहीं लग रहा था। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि दिल्ली से अहमदाबाद तक विमान उड़ाने वाले कप्तान ने कुछ तकनीकी गड़बड़ी की सूचना दी थी, जिसे इंजीनियर द्वारा ठीक कर विमान को 'उड़ान के योग्य' घोषित कर दिया गया। विमान का भार निर्धारित सीमा के भीतर था और मौसम भी सामान्य था।

हालांकि, उड़ान भरने के कुछ ही देर बाद कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर में दर्ज बातचीत ने सभी को झकझोर दिया। एक पायलट दूसरे से पूछता है – "तुमने दोनों इंजन क्यों बंद किए?" जिस पर जवाब मिलता है – "मैंने नहीं किए।" इसके बाद दोनों पायलट इंजन को दोबारा चालू करने की कोशिश करते हैं, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और विमान हादसे का शिकार हो जाता है।

इस त्रासदी के पीछे की असल वजह—आख़िर इंजन के स्विच कैसे और क्यों बंद हुए? यह जानने के लिए विस्तृत जांच अभी जारी है। नागरिक विमानन नियमों के अनुसार, प्रारंभिक रिपोर्ट घटना के 30 दिनों के भीतर प्रकाशित करना अनिवार्य है, इसी कारण यह रिपोर्ट आज जारी की गई। मगर इस बार यह रिपोर्ट केवल एक औपचारिक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि पूरे देश के जले हुए दिल का एक सवाल बन चुकी है— आखिर ऐसा क्यों हुआ?

(संपूर्ण रिपोर्ट का लिंक कमेंट बॉक्स में है)

पत्नी नाम है रिश्ते का, प्रेमिका नाम है जज़्बातों का।उस रिश्ते और हर जज़्बात को जीने वाली हमसफ़र को उसके जन्मदिवस पर समर...
07/07/2025

पत्नी नाम है रिश्ते का, प्रेमिका नाम है जज़्बातों का।
उस रिश्ते और हर जज़्बात को जीने वाली हमसफ़र को उसके जन्मदिवस पर समर्पित

*मुफ़लिसी -तंगी
*अमारत -अमीरी

जब युद्ध कहीं दूर घटित होता है, तो वह हमारे लिए केवल एक समाचार बनकर रह जाता है — एक दृश्य, एक कहानी, एक रोमांचक नाटक जिस...
19/06/2025

जब युद्ध कहीं दूर घटित होता है, तो वह हमारे लिए केवल एक समाचार बनकर रह जाता है — एक दृश्य, एक कहानी, एक रोमांचक नाटक जिसमें हम दर्शक होते हैं, पात्र नहीं। जिनकी ज़िंदगी उस युद्ध की आग में झुलस रही होती है, उनके लिए वह त्रासदी होती है, लेकिन हमारे लिए वह कभी-कभी मनोरंजन बन जाती है। यह मनोविज्ञान का अजीब पहलू है कि जब किसी दर्द का अनुभव प्रत्यक्ष न हो, तो हम उसके प्रति संवेदना की बजाय जिज्ञासा और रोमांच महसूस करते हैं। हमारे मस्तिष्क को संघर्ष, खतरा और शक्ति की कहानियाँ आकर्षित करती हैं — वही कहानी संरचना जो हम फिल्मों, किताबों और ऐतिहासिक गाथाओं में देखते आए हैं। युद्ध का कवरेज जब टी.वी. की स्क्रीन पर चमकता है, जब किसी राष्ट्र की विजय को गर्व की भाषा में पेश किया जाता है, जब गोलियों की आवाज़ें पृष्ठभूमि संगीत बन जाती हैं, तो हम भूल जाते हैं कि वहाँ कोई माँ अपने बेटे को खो रही है, कोई बच्चा अपनी आँखों के सामने अपना घर उजड़ते देख रहा है। यह दूरी (शारीरिक और मानसिक) हमारे भीतर एक भ्रम रच देती है, जहाँ युद्ध ‘हमारा नहीं है’, तो दुख भी ‘हमारा नहीं है’।

आजकल सोशल मीडिया पर हम यही होते देख रहे हैं — जैसे ही ईरान और इज़राइल के बीच तनाव बढ़ा, लोग वीडियो क्लिप्स, रॉकेट लॉन्च की स्लो-मोशन फुटेज, धमाकों के रंगीन दृश्य शेयर करने लगे। कुछ लोगों ने तो ‘असली थ्रिलर मूवी’ जैसे कैप्शन तक लिख दिए। यूट्यूब पर “World War 3 Started?” जैसे थंबनेल चमकने लगे, और कमेंट्स में लिखा गया "अब मज़ा आएगा" या "देखते हैं कौन किसको मिटाता है"। भारत में भी कई लोग, जिनका इस युद्ध से कोई सीधा नाता नहीं, टीम की तरह पक्ष चुनते दिखे — कोई इज़राइल के समर्थन में राष्ट्रवादी भावनाओं से भरे पोस्ट करता दिखा, तो कोई ईरान की रणनीति को ‘शानदार जवाब’ बताता रहा। पर बहुत कम लोगों ने उन बच्चों के बारे में सोचा जो बंकरों में छुपे हैं, उन अस्पतालों के बारे में जिन पर मिसाइलें गिरीं, या उन बूढ़ी आँखों के आँसू जिनका घर अब सिर्फ मलबा है। यही वह खामोश और भयानक सच्चाई है, कि जब किसी और की त्रासदी हमारे लिए तमाशा बन जाए, तो हम इंसान नहीं, एक संवेदनहीन भीड़ बन जाते हैं, जिसे केवल रोमांच चाहिए।

अहमदाबाद में हुए एयर इंडिया विमान हादसे ने जहां सैकड़ों परिवारों को दर्द दिया वही लगभग सभी देशवासियों की आँखें भी नम रही...
15/06/2025

अहमदाबाद में हुए एयर इंडिया विमान हादसे ने जहां सैकड़ों परिवारों को दर्द दिया वही लगभग सभी देशवासियों की आँखें भी नम रही। जहां सैकड़ों लोग, सैकड़ों कहानियां व हजारों सपने आसमान से बरसी आग में जलकर कुछ क्षणों में ही खाक हो गए। वहीं सूरजभाई पटानी के परिवार की कहानी भी इस त्रासदी का दिल तोड़ देने वाला पहलू बनकर सामने आई है।

सिर्फ 15 साल का, नौवीं कक्षा का छात्र आकाश... एक मासूम लड़का, जो स्कूल से लौटकर हर रोज़ की तरह अपनी मां को खाना देने गया था। उसकी मां, सीताबेन, मेघानी नगर में चाय की छोटी सी दुकान चलाती हैं। वही जगह… जहां से कुछ ही दूर, मौत आसमान से आग बनकर बरसी।

सीताबेन खाने के लिए बैठीं ही थीं, आकाश ने उन्हें खाना दिया और थककर पास की एक लकड़ी की खाट पर लेट गया। तभी अचानक... एक ज़ोरदार धमाका हुआ। आसमान से एक विशाल विमान गिरा और देखते ही देखते चारों तरफ आग ने विकराल रूप ले लिया। सब कुछ लपटों में घिर गया। आग का गोला आकाश तक पहुंच गया, उसकी माँ उसे बचाने की कोशिश के साथ साथ मदद की गुहार भी लगाती रही, लेकिन हर तरफ त्राहि माम मचा हुआ था। आकाश वहीं जलकर राख हो गया। उसकी मां बुरी तरह झुलस गईं और अब ट्रॉमा सेंटर में ज़िंदगी से जंग लड़ रही हैं। एक माँ की मनोदशा क्या होगी जिसका बच्चा उसकी आंखों के सामने आग में जल गया और तमाम कोशिशों के बावजूद भी उसे बचा न सकी?

सूरजभाई, जो एक ऑटोरिक्शा चलाते हैं, ड्यूटी पर थे जब यह हादसा हुआ। हादसे की खबर मिलते ही वो घटनास्थल की ओर भागे — लेकिन वहां जो देखा, उसने उनका सब कुछ छीन लिया। उनका बेटा अब इस दुनिया में नहीं था... और पत्नी का चेहरा, जिस पर वो रोज़ मुस्कान देखते थे, अब गंभीर जख्मों में छिपा हुआ है।

“क्या मैं बेटे की मौत का दुख मनाऊं या पत्नी के बच जाने की राहत महसूस करूं?” — इस एक सवाल में एक पिता का टूटा हुआ दिल छुपा है।

सरकार ने एक करोड़ रुपये की मुआवज़े की घोषणा की है, इलाज का खर्चा उठाने की बात कही है… लेकिन क्या कोई मुआवज़ा उस बाप की तन्हाई खरीद सकता है जो अब अस्पताल के बाहर एक कोने में बैठा है, कभी ट्रॉमा सेंटर की ओर देखता है, कभी मुर्दाघर की ओर।

रिश्तेदार कहते हैं, “वो तो बस अपनी मां की मदद करने गया था… एक बच्चा, जिसने अपनी मासूमियत में मौत को गले लगा लिया।” अब उसका शरीर डीएनए टेस्ट के इंतज़ार में है… और उसके पिता के जीवन में एक ऐसी चुप्पी उतर आई है, जो किसी आवाज़ से नहीं टूटेगी।

यह सिर्फ एक विमान हादसा नहीं था… यह बहुत सारे परिवारो के सपनों का मलबा है।
पुनः श्रद्धांजलि 🙏 😞

अहमदाबाद में आज एक भीषण त्रासदी ने सभी को झकझोर कर रख दिया, जब एयर इंडिया का विमान 242 यात्रियों के साथ लन्दन के लिए उड़...
12/06/2025

अहमदाबाद में आज एक भीषण त्रासदी ने सभी को झकझोर कर रख दिया, जब एयर इंडिया का विमान 242 यात्रियों के साथ लन्दन के लिए उड़ान भरने के कुछ ही मिनट बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गया। आसमान से उठी यह उड़ान अचानक चीखों और मलबे में तब्दील हो गई। राहत और बचाव कार्य जारी हैं, लेकिन हर गुज़रते पल के साथ परिजनों की बेचैनी और देश की चिंता बढ़ती जा रही है। यह हादसा सिर्फ एक तकनीकी विफलता नहीं, बल्कि इंसानी ज़िंदगियों की अनकही कहानियों का मूक अंत बनता जा रहा है। समूचा देश एकजुट होकर दुआ कर रहा है ,कोई चमत्कार हो जाए। ईश्वर सबको सुरक्षित रखें।

कभी-कभी यूँ ही,रात की ख़ामोशी में सोचता हूँ ,क्या सिर्फ वही दृश्य हैं सत्यजो मेरी आँखों के आगे हैं?या कहीं मेरी दृष्टि क...
09/06/2025

कभी-कभी यूँ ही,
रात की ख़ामोशी में सोचता हूँ ,
क्या सिर्फ वही दृश्य हैं सत्य
जो मेरी आँखों के आगे हैं?
या कहीं मेरी दृष्टि की हदों से परे,
किसी पन्ने पर
मेरे नाम की अनुपस्थिति में भी
कोई प्रेम लिखा जा रहा है?

संभव है
इस ब्रह्मांड की परिधि से परे,
या इसी शहर की किसी खिड़की के पीछे,
कोई आत्मा,
स्याही में डूबे अपने अन्तर्मन के टुकड़े,
वो शब्दों में सिल रही हो शायद,
किसी ऐसे के लिए
जो उसके प्रेम का संज्ञान तक नहीं रखता।

जैसे अमृता ने
अपने शब्दों के संधि-विरामों में
साहिर को जीवित रखा
बिना अधिकार, बिना प्रतिवाद,
बिना एक भी प्रतिउत्तर की अपेक्षा के।

प्रेम,
जो अक्सर शब्दों में नहीं उतरता,
पर स्याही की सूखती रेखाओं में
अपना स्वर खोज लेता है।
ऐसा प्रेम
जो किसी को बाँधता नहीं,
बस उसकी स्वतंत्रता में ही
अपनी पराकाष्ठा पाता है।

क्या यह संभव नहीं
कि हमारे अस्तित्व के समानांतर
कहीं कोई हमें भी
अपने मौन एकालाप में गूँथ रहा हो?
हमारी मुस्कानों में अपना सुख ढूँढ रहा हो,
हमारे नाम के बिना भी
हमें अपने जीवन के शिलालेख में तराश रहा हो?

क्योंकि प्रेम
केवल सम्मति नहीं, केवल स्पर्श नहीं
कभी-कभी यह
विरह के अरण्य में खिलता पुष्प होता है,
जिसे कोई देखे न देखे,
उसकी सुगंध फैलती ही है।

इसलिए,
यदि तुम प्रेम में हो,
या कभी थे,
या हो भी नहीं पाए
तो यह स्मरण रखना:
कहीं कोई तुम्हें
अपनी नज़्मों में संजोए बैठा हो सकता है।
बिना माँग, बिना नाम,
सिर्फ तुम्हारे "होने" से प्रेम करता हुआ।

इंदौर से आई यह घटना किसी अपराध कथा की तरह लगती है, लेकिन दुर्भाग्यवश यह कल्पना नहीं, हकीकत है। एक नवविवाहित जोड़ा, जिन्ह...
09/06/2025

इंदौर से आई यह घटना किसी अपराध कथा की तरह लगती है, लेकिन दुर्भाग्यवश यह कल्पना नहीं, हकीकत है। एक नवविवाहित जोड़ा, जिन्होंने अभी-अभी सात फेरे लिए थे, एक साथ जीवन के नए अध्याय में प्रवेश किया था, हनीमून के नाम पर किसी अनकहे सौंदर्य की ओर निकल पड़ा था। लेकिन इस यात्रा का अंत प्रेम, अपनापन या स्मृतियों में नहीं, बल्कि एक लहूलुहान साज़िश में हुआ।

पति की लाश जंगल में मिली, शरीर पर हिंसा के गहरे निशान थे, और पत्नी जैसे हवाओं में गायब हो गई थी। शहर, समाज, और मीडिया ने एक सुर में उसकी सलामती की दुआ की। हर दिल में यही कामना थी कि वह जीवित मिले, सुरक्षित मिले। लेकिन इस कहानी की सबसे क्रूर विडंबना यही थी कि जिसे हम पीड़िता मानते रहे, वही इस पूरे रक्तरंजित नाटक की सूत्रधार निकली।

जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, हर परत किसी नाटक के दृश्य की तरह खुलती गई। मोबाइल लोकेशन, कॉल रिकॉर्डिंग, गवाही और घटनाक्रमों की गूंज से यह स्पष्ट हुआ कि पत्नी ने प्रेम की चादर ओढ़कर मृत्यु का बीज बोया था। सुपारी किलरों को हायर कर अपने ही जीवनसाथी को मार डालना, यह न केवल कानून के लिए चुनौती है, बल्कि मनुष्य की आत्मा पर भी एक गहरा सवाल है।

शादी, जहाँ दो आत्माएँ मिलती हैं, जहाँ भविष्य की कल्पनाएँ साथ बुनी जाती हैं, वहीं से मौत की पटकथा लिखी गई थी। वह हनीमून जो प्रेमगीत होना चाहिए था, वह एक अश्रुगीत बन गया, एक मृत्यु-संवाद। यह घटना दिल को भीतर से झकझोर देती है! क्या मनुष्य इतना निर्मम हो सकता है? क्या संबंध अब केवल मुखौटे बन गए हैं, जिनके पीछे स्वार्थ, ईर्ष्या और छल की परतें छुपी हैं?

यह घटना केवल एक हत्या नहीं है। यह विश्वास की हत्या है, वहम की, और उस भावुकता की, जिसमें हम प्रेम को सर्वोच्च और शुद्धतम मानते आए हैं। यह एक ऐसा आख्यान है, जो हम सब को वर्षों तक कचोटता रहेगा, क्योंकि यहाँ जीवन ने कल्पना से भी ज़्यादा भयानक रूप धारण कर लिया।

बाज़ार में चिड़ियों कोपिंजरों के भीतर बिकते देखा,समझ न सका ,ये किस अपराध की सज़ा भुगत रही हैं?शायद इस जुर्म की,कि ये रंग...
31/05/2025

बाज़ार में चिड़ियों को
पिंजरों के भीतर बिकते देखा,
समझ न सका ,
ये किस अपराध की सज़ा भुगत रही हैं?

शायद इस जुर्म की,
कि ये रंग-बिरंगी हैं, मोहक हैं,
कि इनमें सौंदर्य है, नज़ाकत है।
क्योंकि कभी किसी कौए को
बाज़ार में बिकते नहीं देखा।

पर कौए को भी कुरूप कैसे कह दूँ?
जबकि सुंदरता के मानदंड
भी तो हमने ही गढ़े हैं ,
समाज ने, सुविधा ने, सौदेबाज़ी ने।

शायद इसलिए क़ैद हैं ये चिड़ियाँ,
क्योंकि दुनिया को बस रंग चाहिए,
उड़ान नहीं।
इनका परों से उड़ना नहीं,
दीवार पर सजा बैठना पसंद है लोगों को।

इनका चहकना, इनकी आज़ादी
अब महज़ मनोरंजन बन गई है ,
एक व्यापार, एक शौक़।

इंसान ने पिंजरे में वो पर बाँध दिए,
जिनसे कभी उसने
आज़ादी के ख्वाब बुने थे।
अब उन्हीं परों को
तौलता है तिजारत की तराज़ू में।

पर क्या तुमने कभी
उस पिंजरे की ख़ामोशी सुनी है?
हर सुबह वहाँ एक चीख़ दबती है
जो कहती है:
"रंग मेरा गुनाह नहीं,
फिर भी सज़ा मेरी ही क्यों है?"

और वहीं दूर,
एक कौआ खुले आकाश में उड़ रहा है,
जिसे बदसूरत कह दिया गया,
पर जो आज़ाद है,
बिना बिके।

✍️ अवनीश

प्रिय अव्यान,मैं शायद तुम्हारे लिएसोने-चाँदी की तिजोरियाँ ना छोड़ सकूँ,ना ही बड़े बंगले या गाड़ियों की चाबी,पर एक कमरा ह...
28/05/2025

प्रिय अव्यान,
मैं शायद तुम्हारे लिए
सोने-चाँदी की तिजोरियाँ ना छोड़ सकूँ,
ना ही बड़े बंगले या गाड़ियों की चाबी,
पर एक कमरा होगा तुम्हारे लिए,
जिसकी दीवारों से सटी होंगी
किताबों भरी पुरानी आलमारियां।

हर आलमारी में बंद होगी
मेरी सोच, मेरे सपने,
वो पन्ने जो मैंने उम्र भर उलटे,
वो शब्द जो मेरे दिल को छूते रहे।

कुछ किताबों में तुम्हें मिलेगी
मेरी अधूरी-चिन्हित पंक्ति,
कहीं कोने में पड़ी होगी
वो कविता जो मैं तुम्हारे बचपन में पढ़ा करता था।

शायद तुम सोचो—ये सब किस काम की?
तो सुनो,
इन किताबों में छुपे हैं वो रास्ते
जिनसे मैं गुज़रा हूँ,
कुछ आसान, कुछ बहुत कठिन।

हर क़िताब तुम्हें बताएगी
कि सोचने का हुनर
पैसे से बड़ा होता है,
कि जब दुनिया जवाब देना बंद कर दे
तब किताबें बोलती हैं।

बेटा,
शायद मैं तुम्हारे लिए
बाज़ार में बिकने वाली विरासत न छोड़ पाऊँ,
पर एक ख़ज़ाना ज़रूर छोड़ जाऊँगा—
जिसे पढ़ते हुए
तुम मुझे हर बार पास पाओगे।

संलग्न चित्र, कल के अखबार का है जो पाकिस्तान में प्रकाशित होता है। यह देखने पर इतना तो स्पष्ट हो जाता है कि कैसे राष्ट्र...
23/05/2025

संलग्न चित्र, कल के अखबार का है जो पाकिस्तान में प्रकाशित होता है। यह देखने पर इतना तो स्पष्ट हो जाता है कि कैसे राष्ट्र, प्रायः अपनी जनता को संतुष्ट करने और उन्हें उकसाने के लिए मीडिया का उपयोग करते है। इसके लिए वह ऐसे नैरेटिव गढ़ते है जो भावनाओं को भड़काएं और राष्ट्रीय भावना को उभारें। हाल ही में पाकिस्तान में एक स्कूल बस पर हुए हमले का दोष बिना किसी ठोस प्रमाण के भारत पर मढ़ दिया गया और भारत को आतंकवादी राष्ट्र भी घोषित कर दिया गया। यह एक गैर-संबंधित और संदिग्ध खबर थी, जिसका उद्देश्य नागरिकों के गुस्से और भय को दिशा देना तथा आंतरिक असफलताओं से ध्यान भटकाना था। ऐसे दावे न केवल अंतरराष्ट्रीय संबंधों को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि आम नागरिकों की सोच को भी पक्षपाती और उग्र बनाते हैं। मीडिया का ऐसा दुरुपयोग जनता को वास्तविक समस्याओं से दूर रखकर, एक नियंत्रित और राजनीतिक दृष्टिकोण से पोषित दृष्टिकोण अपनाने के लिए मजबूर करता है।

लोकतंत्र का चौथा स्तंभ धराशाई हो चुका है। पिछले दो सप्ताह में सारी हदें पार कर दी गई। TRP की दौड़ में अंधे हो चुके भारत ...
19/05/2025

लोकतंत्र का चौथा स्तंभ धराशाई हो चुका है। पिछले दो सप्ताह में सारी हदें पार कर दी गई। TRP की दौड़ में अंधे हो चुके भारत के सभी न्यूज चैनल अपना दायित्व एवं प्राथमिकता दोनों भूल चुके है।
टीआरपी का पूरा नाम है "टेलीविज़न रेटिंग प्वाइंट" (Television Rating Point)। यह एक ऐसा मापदंड है, जिससे यह पता लगाया जाता है कि कोई विशेष टीवी कार्यक्रम या चैनल कितने लोग देख रहे हैं और कितनी देर तक देख रहे हैं। टीआरपी जितनी ज्यादा, उतने अधिक विज्ञापन मिलते हैं और चैनल को उतना ही मुनाफा होता है। इसलिए न्यूज़ चैनल अक्सर ऐसी खबरें दिखाते हैं जो ज्यादा से ज्यादा लोगों को आकर्षित करें, भले ही वो खबरें भड़काऊ, अर्धसत्य या बेबुनियाद क्यों न हों। टीआरपी का यह लालच ही आज मीडिया के गिरते स्तर की एक बड़ी वजह बन चुका है।
अब इस खबर को ही देख लीजिए, इसको आज के माहौल में इस तरह प्रकाशित करना पत्रकारिता के गिरते स्तर का प्रमाण है। इससे पहले भी फलों के खेप को ऑस्ट्रेलिया, यूएई आदि राष्ट्रों द्वारा भी कीटनाशक की अधिकता की वजह से या तो वापस कर दिया गया था, या वापस करने की लागत अधिक होने को वजह से वही नष्ट कर दिया गया था। लेकिन आज यह प्रकाशित करना बहुत जरूरी था क्योंकि सही माहौल है, लोग भड़केंगे सरकार को कोसेंगे जिससे इनकी TRP आसमान छूएगी, विज्ञापन ज्यादा मिलेंगे। देश और नागरिक से इनका क्या नाता है।
आम जैसे फलों को निर्यात करने के दौरान बहुत सारी जरूरी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। जिसमें फलों को पैकिंग से पहले एपीडा (APEDA – Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority) तथा प्लांट क्वारंटाइन विभाग द्वारा निर्धारित मानकों के आधार पर जांचा जाता है।
अमेरिका में आमों के आयात के लिए यूएसडीए (US Department of Agriculture) की शर्तों के अनुसार फलों को गामा विकिरण से उपचारित किया जाता है। भारत में यह प्रक्रिया खास तौर पर महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और गुजरात में स्थित लाइसेंस प्राप्त केंद्रों पर होती है। यह विकिरण कीटों और बैक्टीरिया को मारने के लिए जरूरी होता है। गैमा विकिरण और अन्य परीक्षणों के बाद, भारत सरकार का प्लांट प्रोटेक्शन एंड क्वारंटाइन विभाग एक फाइटोसैनिटरी सर्टिफिकेट जारी करता है, जिसमें यह प्रमाणित किया जाता है कि फल कीट-मुक्त और सुरक्षित हैं।
जब आम अमेरिका पहुंचते हैं, तो वहाँ यूएस कस्टम्स एंड बॉर्डर प्रोटेक्शन (CBP) और यूएसडीए-APHIS (Animal and Plant Health Inspection Service) के अधिकारी इन फलों की दोबारा जांच करते हैं। यदि किसी भी प्रकार का संक्रमण, कीटनाशक की अधिकता या पैकिंग त्रुटि पाई जाती है, तो खेप को या तो वापस लौटा दिया जाता है या नष्ट कर दिया जाता है। इस बार भी इस स्तर पर अत्यधिक कीटनाशकों की मात्रा की वजह से ऐसा हुआ है।

आपका स्वागत है ।हम सब देशवासियों की ओर से बीएसएफ के उस वीर जवान का दिल से स्वागत है, जो एक मानवीय भूल के चलते पाकिस्तानी...
14/05/2025

आपका स्वागत है ।
हम सब देशवासियों की ओर से बीएसएफ के उस वीर जवान का दिल से स्वागत है, जो एक मानवीय भूल के चलते पाकिस्तानी सीमा में प्रवेश कर गए थे और अब सकुशल भारत लौट आए हैं। अंतरराष्ट्रीय सीमा पर तैनाती के दौरान, धुंध और सीमित दृश्यता के कारण वे अनजाने में सीमा पार कर गए, जहाँ पाकिस्तान रेंजर्स ने उन्हें हिरासत में ले लिया। इस घटना ने एक बार फिर यह दर्शाया कि सीमाओं पर तैनात हमारे जवान कितनी जटिल परिस्थितियों में अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। भारत-पाक के बीच सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर सतत संवाद और विश्वास ने इस जवान की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित की। उनका साहस, संयम और राष्ट्रभक्ति हम सभी के लिए प्रेरणा है। वतन के इस सपूत को शत-शत नमन।

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