16/08/2025
*श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं 🌺*
*भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी, रोहिणी नक्षत्र के समय, मथुरा नगरी में देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण का अवतरण हुआ। उस समय मथुरा का शासन अत्याचारी राजा कंस के हाथ में था, जिसने अपनी बहन देवकी और जीजा वसुदेव को कारागार में डाल रखा था।*
*भागवत और विष्णु पुराण के अनुसार, कंस के अत्याचार से धरती कांप रही थी। धर्म, सत्य और न्याय पर अधर्म का अंधकार छा गया था और धर्म की स्थापना अनिवार्य थी -
धर्म की एक अनूठी परिभाषा *शहनशाह बाबा अवतार सिंह जी महाराज ने दी है👇*
*💧रब नूं हाज़र नाज़र तकणा इसतो बड्डा धर्म नहीं*
और भगवान श्री कृष्ण युद्ध क्षेत्र में यही बोध करा रहे हैं। तभी उद्घोष किया है श्री मद्भगवद्गीता में *"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।*
*अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥" (4.7)*
*रब परमात्मा के दीदार के बाद मोह समाप्त हो जाता है और बोध हो जाता है।*
*रात के समय, चमत्कारिक रूप से वसुदेव जी ने नवजात कृष्ण को कारागार से गोकुल पहुँचाया, जहाँ नंद-बाबा और यशोदा ने उनका पालन-पोषण किया।*
*आओ उनकी बाल्य लीला को आत्मसात् करते हैं जिनका विशेष सामाजिक संदेश है।*
*गोकुल, वृंदावन और -नंदगांव में श्रीकृष्ण का बचपन केवल चमत्कारों से भरा नहीं था, बल्कि उसमें सामाजिक और आध्यात्मिक शिक्षा भी छिपी थी—*
*कालिया नाग मर्दन – अहंकार और विषैले स्वभाव का दमन।*
*गोवर्धन पूजा – प्रकृति की पूजा और अंधविश्वास का खंडन (इंद्र-पूजा का स्थान प्राकृतिक संवेदनशीलता को दिया)।*
*माखन-चोरी – निर्दोष चंचलता, लेकिन साथ ही जीविका के लिए श्रम की मिठास का प्रतीक। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं भगवान श्रीकृष्ण।*
*💧कर्मयोग – निस्वार्थ भाव से कर्तव्य करना।अनासक्त भाव से कर्म करना।*
*💧भक्तियोग – पूर्ण प्रेम और श्रद्धा से ईश्वर में लीन होना। पहले दर्शन फिर भक्ति क्योंकि जिसकी भक्ति करनी है उसका ज्ञान जरुरी है।*
*💧ज्ञानयोग – आत्मा की अमरता को समझना।आत्मा की पहचान और आत्मा का मूल परमात्म तत्व - का दीदार। फिर सभी में इन्हें और इनको सभी में देखना।*
*उन्हीं की वाणी में समझने का प्रयास करते हैं,:*
*यो मां पश्यति सर्वत्र, सर्वं च मयि पश्यति।*
*तस्याहं न प्रणश्यामि, स च मे न प्रणश्यति॥"*
*अर्थात "जो मुझे सब जगह देखता है और सब कुछ मुझमें देखता है, मैं उसके लिए अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिए अदृश्य नहीं होता।" ( 6. 30)*
*"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन* (2.47) –*
*फल की चिंता छोड़, कर्म करते रहो।*
*कर्म त्याग नहीं, कर्म में समर्पण ही मोक्ष का मार्ग है।*
*स्वधर्म पालन परिस्थितियाँ कैसी भी हों।*
*उन्होंने स्वयं इसका उदाहरण दिया*— *बाल्यकाल से लेकर महाभारत तक,* *उन्होंने अपना हर कार्य धर्म की रक्षा के लिए किया, चाहे वह कूटनीति हो या युद्ध हो या फिर संधि।*
*पूजा केवल विधि-विधान नहीं,* *बल्कि हृदय का भाव है। पूर्ण को जानना - पूजा और पूर्ण परमात्मा है।*
*"पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।*
*तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः॥" (9.26)*
*इससे स्पष्ट है—*भगवान को दिखावा नहीं, भक्ति चाहिए।* *पूजा का मर्म है—*
*मन, वचन, कर्म से समर्पण।*
*आडंबर से मुक्त साधना।*
*सेवा और सत्कर्म को ईश्वर अर्पण करना।*
*भगवान श्रीकृष्ण का धर्म-मत केवल जाति या परंपरा पर आधारित नहीं था, बल्कि सत्य, न्याय, और लोक कल्याण पर केंद्रित था।*
*उनका आवाह्न रहा कि सत्य को जानकर धारण करो। बिना जाने मानने से संकीर्णताएं नहीं जाती।*
*धर्म परिस्थिति के अनुसार व्यावहारिक होना चाहिए।*
*धर्म का उद्देश्य समाज में संतुलन और न्याय स्थापित करना है।*
*💧श्री कृष्ण जन्माष्टमी केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि एक जीवंत प्रेरणा है—*
*एक पल ठहरी रे सखी कान्हा संग*
*गई तो कुछ और थी, लौटी तो कुछ और।*
*सद्गुरु तत्वदर्शी के पास एक पल का ठहराव ईश्वर का दीदार दे जाता है और फिर जीवन में रुपांतरण हो जाता है।*
*स्वतंत्र हो जाती आत्मा - हर बंधन से चाहे वह भ्रम हो संकीर्णताएं हों या जन्म मरण का संशय।*
*ज्ञान से दृष्टि पवित्र करो।*
*भक्ति से हृदय निर्मल करो।*
*न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।*
*तत्स्वयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति।।4.38।।*
*अर्थात ज्ञान के समान पवित्र करने वाला शुद्ध करने वाला इस लोक में दूसरा कोई नहीं है।*
*ज्ञान दूसरा विकल्प नहीं है। इसलिए (ज्ञान तत्वदर्शी महात्मा से प्राप्त कर लेना चाहिए।)*
*देखते हैं इस श्लोक के भाव को*
*तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।*
*उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः।।4.34।।*
*अर्थात तत्त्वज्ञान को (तत्त्वदर्शी ज्ञानी महापुरुषों के पास जाकर) समझ। उनको साष्टाङ्ग दण्डवत् प्रणाम करने से, उनकी सेवा करने से और सरलतापूर्वक प्रश्न करने से वे तत्त्वदर्शी ज्ञानी महापुरुष तुझे तत्त्व ज्ञान का उपदेश देंगे।*
*श्रीकृष्ण का संदेश समयातीत है—*
*"निष्काम और अकर्ता भाव से कर्म करते हुए , धर्म का पालन करते हुए, मन को भगवान में स्थिर रखो। मनुष्य जन्म अति दुर्लभ है, इसलिए इसी जन्म में जीवन रहते निराकार ईश्वर की प्राप्ति करनी चाहिए और प्रेमा-भक्ति के रंग में रंगे रहना चाहिए।* *अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए प्रेमा-भक्ति के रंग में आनंदोत्सव मनाते हुए जीवन मुक्ति में सराबोर रहना ही यथार्थ सत्य है।*
*👉ज्यादा ना सोचिए उन्ही द्वारा कहा एक अनूठा श्लोक है :*
*सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।*
*अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।18.66।।*
*अर्थात सम्पूर्ण धर्मों को छोड़कर तुम केवल मेरी शरण में आ जाओ। मैं तुझे सम्पूर्ण पापों से मुक्त कर दूँगा, चिन्ता मत कर।*
*विचार करना है, यहां पर धर्म यानि धारणाएं - जो बना रखी हैं जन्म जन्मांतर से। उन्हें छोड़ना। स्पष्ट रुप से कहूं मैं का त्याग, अहम् का त्याग, अपने आप को अलग समझने का भाव क्वांटम फिजिक्स में भी यही भाव वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिए हैं।*
*आखिर में इन श्लोकों के साथ आज की अध्यात्मिक यात्रा को विराम देते हैं और श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पर्व को धूम-धाम से मनाते हैं। 💞*
*त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण*
*स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।*
*वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम*
*त्वया ततं विश्वमनन्तरूप।11.38।।*
*अर्थात आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष हैं तथा आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं। आप ही सबको जानने वाले, जानने योग्य और परमधाम हैं। हे अनन्तरूप ! आपसे ही सम्पूर्ण संसार व्याप्त है।*
*आदि का अर्थ होता है - आरंभ का।*
*देव - देवता दाता, अब चिंतन अनिवार्य है - एक साधे सब साधे - एक की मौत हो साधना - एक निराकार ईश्वर। आदि देव भगवान श्री कृष्ण ने अपने निराकार स्वरूप को कहा है। जब अर्जुन को तत्वज्ञान हुआ तो क्या कह उठे :*
*💧नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते*
*नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।*
*अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं*
*सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः।।*
(11.40)
*👉भाव यह है कि "हे भगवान, आपको आगे से, पीछे से और सब ओर से नमस्कार है। आप अनंत पराक्रमी और असीम शक्ति वाले हैं। आप सब कुछ व्याप्त किए हुए हैं, इसलिए आप ही सब कुछ हैं।" यहां निश्चित रूप से किसी व्यक्ति विशेष को नहीं कहा।* *दर्शन के उपरांत सभी ओर व्याप्त इस निर्गुण पारब्रह्म परमेश्वर को नमस्कार की बात कह रहे हैं।*
*एक छोटी - सी बात और समझते हैं कि ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण कुरुक्षेत्र के उस मैदान में अर्जुन को ज्ञान देते हुए बहुत बड़े हुए, यदि शरीर बड़ा होता तो रथ टूटना चाहिए या फिर रथ भी बड़ा होना चाहिए और यदि विशाल होते हैं ये दोनों तो मैदान में सैनाएं दब जाती या उन्हें वहां से अन्यत्र जाना चाहिए....*
*अब आप स्वंय निर्णय कीजिए कि भगवान श्रीकृष्ण किस ओर हमारा ध्यान दिलाना चाहते हैं। अव्यक्त, सर्व शक्तिमान परमेश्वर को अभिव्यक्ति देना संभव नहीं। इसलिए बख्श भी लेना।*
*आप सभी मानव परिवार को पुनः भगवान श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई 🌻🎉🥀*
*श्रद्धापूर्वक*
*मानवता को समर्पित*
💦🤝✍️