15/06/2025
ट्रॉमा सेंटर को ट्रॉमा से निकाल कर त्वरित चिकित्सा और चिकित्सा गुणवत्ता के शिखर पर पहुंचाने वाले डा. सौरभ सिंह के खिलाफ सारे हथकंडे अपनाये जा रहे हैं। अब दो हफ़्तों पहले उनके खिलाफ वितंडा खड़ा करने वाले डॉक्टर साहब की पत्नी ने भी डा. सौरभ के खिलाफ मुकदमा करवा दिया है, जिसे उनके इस रिश्ते को छुपाकर "एक महिला प्रोफेसर द्वारा दायर मुकदमा" के शीर्षक से ऐसे प्रचारित किया जा रहा है, जैसे किसी दूसरे ने ऐसा किया हो। वस्तुतः तरकश से सारे तीर निकाल कर ट्रॉमा सेंटर को नष्ट करने के लिए चालें चली जा रही हैं। बाउंसरों की नियुक्ति की आड़ लेकर किये जा रहे इन हमलों का एकमात्र उद्देश्य येन-केन-प्रकारेण ट्रॉमा सेंटर पर आधिपत्य स्थापित करना है, और इस नापाक इच्छा को पूरी करने में बाधा डा. सौरभ सिंह की पारदर्शी और जनहित कार्यप्रणाली है, जिसके चलते उन्हें निशाना बनाया जा रहा है।
पृष्ठभूमि में जायेंगे तो पाएंगे कि डा. सौरभ द्वारा ट्रॉमा सेंटर को जनसामान्य से जोड़ने का सफल प्रयास ही उनके राह में कांटे बिछा रहा है। मरीजों को महंगी दवाइयां मुफ्त में उपलब्ध कराना, महंगी जांचों को मुफ्त कर देना, एक्सरे-एमआरआई-सीटी स्कैन को मोबाइल पर उपलब्ध कराने के साथ ही कृत्रिम अंगों और ऑपरेशन के उपयोग की विभिन्न वस्तुओं के उचित मूल्य-निर्धारण ने दलालों-सप्लायरों-वेंडरों के आर्थिक हितों पर गंभीर चोट की है जिससे वे बिलबिला उठे हैं और ट्रॉमा सेंटर को अपने कब्जे में लेने के लिए व्याकुल हो गए हैं। दलालों की कमर तोड़ने की इस मुहिम के साथ ही मरीजों की सुविधा के लिए चल रही मुहीम ने दलालों-सप्लायरों-वेंडरों के समूह को बेचैन कर दिया है और वे अपने मंसूबों को पूरा करने के लिए हर हथकंडे अपना रहे हैं।
सर सुन्दर लाल चिकित्सालय का एमआरआई मशीन लगाने का टेंडर निरस्त हो जाने के बाद से यह गठजोड़ बौखला कर हमलावर हो चुका है।इस कुचक्र की व्यूहरचना में वे सभी शामिल हैं जिनके लिए एक समय ट्रॉमा सेंटर दुधारू गाय बन चुका था और अब वे मरीजों का खून चूसने में खुद को असहाय पा रहे हैं। लम्बे समय से बेरोजगार घूम रहे और राजनीतिक समायोजन ढूंढ रहे कुछ नेता आर्थिक लाभ को देखते हुए इस नापाक-मुहिम के सरगना बन लिए और कुछ पूर्व और वर्तमान छात्रों को जोड़ते हुए "भ्रष्टाचार है-भ्रष्टाचार है" का नारा लगाते हुए हर घर घूमने लगे हैं। सभी का उद्देश्य बस एक है कि डा. सौरभ को हटा दिया जाय और लू-खसोट का कारोबार फिर शुरू हो जाए।
आश्चर्य की बात यह है कि इन नेताओं की आंखों में तब मोतियाबिंद उतर आया था जब इनके स्वयं के अग्रज एक विश्वविद्यालय में बैठ कर महिलाओं को "शरीर के बदले नौकरी" देने के आरोप में हटे। इन्हें तब भ्रष्टाचार नहीं दिखाई दिया जब इनके अग्रज की वादाखिलाफी से आहत महिला ने जहर खा लिया और कई महिलाएं अपने शोषण को लेकर सामने आ गयीं। अपने स्वार्थ के चलते मरीजों के हित से खिलवाड़ करने वाला दलालों-सप्लायरों-वेंडरों और इन नेताओं का यह समूह डा. सौरभ के नहीं, उनके द्वारा स्थापित उस बेहतरीन व्यवस्था के पीछे पड़ा है जो मरीजों की परेशानियां हल कर रही है, उन्हें बेहतर सुविधाएं उपलब्ध करा रही है और मरीजों और उनके परिजनों का जीवन सुगम बना रही है। क्योंकि इस गठजोड़ को पता है मरीजों और भ्रष्टाचारियों के बीच डा. सौरभ दीवार बन कर खड़े हैं और अगर वे हट गए तो इनके लूट-खसोट का रास्ता साफ हो जाएगा।
ऊंट किस करवट बैठेगा ये तो मुझे नहीं मालूम, पर ये तय है कि आने वाला समय ये जरूर निर्धारित करेगा कि धर्म और अधर्म की इस रस्साकशी में विजय किसकी होगी। ट्रॉमा सेंटर अपने सकारात्मक परिवर्तन के मिशन से आगे बढ़ता रहेगा, डा. सौरभ द्वारा मरीजों के हित में जलाई गयी एक ज्योत जलती रहेगी, या फिर दलालों-सप्लायरों-वेंडरों और पैसे क नेताओं का नापाक गठबंधन अपने मंसूबों में कामयाब होगा।