Good Messages

  • Home
  • Good Messages
30/09/2023

मौत तू जल्दी आया कर गरीब के घर पे ।
कफ़न का पैसा भी खर्च होता है
दवाइयां खरीदते खरीदते।।

🙏🙏
04/09/2022

🙏🙏

01/08/2022

*🏉 घमण्ड़ 🏉*

एक आदमी को इस बात पर बहुत घमण्ड था कि मेरे बिना मेरा परिवार नहीं चल सकता, उसकी एक छोटी सी किराने की दुकान थी उससे जो भी कमाई होती थी, उसी से परिवार का गुजारा चलता था, क्योंकि पूरे घर में कमाने वाला वह अकेला ही था इसलिए उसे लगता था कि उसके बगैर सब भूखे मरेंगे।

एक दिन वह पूर्ण संत जी के सत्सँग में गया, सन्त जी ने उस पर दृष्टि डाली और फरमाया, यह घमण्ड झूठा और फिजूल है कि मेरे बिना मेरा परिवार भूख से मर जायेगा, मैं ही सब को खाना खिलाता हूँ, ये सब मेरे प्रभु की लीला है, वो तो पत्थरों के नीचे रहने वाले जीवों को भी भोजन पहुँचाता है, उस आदमी के मन में कई सवाल उठने लगे।

सत्संग समाप्त होने के बाद, उस आदमी ने सन्त जी से कहा कि मैं दिन भर कमाकर जो पैसे लाता हूं उसी से मेरे घर का खर्च चलता है, मेरे बिना तो मेरे परिवार के लोग जल्दी ही भूखे मर जाएंगे।

सन्त जी ने उसे बड़े ही प्यार से समझाया, बेटा यह तुम्हारे मन का भ्रम है, हर कोई अपने भाग्य का ही खाता है, वो आदमी बोला यदि ऐसा है तो आप मुझे साबित करके दिखाओ।

सन्त जी ने हँस कर कहा, ठीक है बेटा , तुम बिना किसी को बताए, अपने घर से एक महीने के लिए चले जाओ, उसने पूछा कि मेरे परिवार का ध्यान कौन रखेगा, सन्त जी ने समझाया बेटा परमात्मा सब का ध्यान रखता है, तुम्हें यही तो देखना है, वो चुपचाप चला गया और कुछ दिनों के बाद गाँव में ये अफवाह फैल गई कि उसे शेर खा गया होगा।

उसके परिवार वाले कई दिनों तक उसे ढूँढते भी रहे और रोते भी रहे लेकिन उसका कुछ पता नहीं चला, आखिर कार गाँव के कुछ भले लोग उनकी मदद के लिए आ गये। एक सेठ ने उसके बड़े लड़के को अपने यहाँ नौकरी दे दी, गाँव वालों ने मिलकर उसकी बेटी की शादी कर दी । एक भला आदमी उसके छोटे बेटे की पढ़ाई का पूरा खर्च देने को तैयार हो गया।

एक महीने बाद वही आदमी छिपता छिपाता रात के वक्त अपने घर लौट आया, पहले तो घर वालों ने भूत समझकर दरवाजा ही नहीं खोला, जब वह बहुत गिड़गिड़ाया और उसने सन्त जी से हुई सारी बातें बताई तो उसकी बीवी ने कहा कि अस हमें तुम्हारी कोई जरूरत नहीं है, अब तो हम पहले से भी ज्यादा सुखी हैं, उस आदमी का सारा घमण्ड चूर-चूर हो गया। वो रोता हुआ, सन्त जी के डेरे पर चला गया और कहने लगा कि मुझे माफ कर दो, सन्त जी ने बड़े प्यार से कहा, अब तुम्हें अपने घर वापिस जाने की क्या ज़रूरत है?

बेटा, इस जगत को चलाने का दावा करने वाले बडे बडे बादशाह, मिट्टी हो गए, दुनिया उनके बिना भी चलती रही इसलिए अपनी ताकत का, अपने पैसे का, अपने काम काज का, अपने ज्ञान का घमण्ड फिजूल है, अब तुम्हें बाकी का सारा जीवन मालिक की भक्ति में और लाचारों की सेवा में लगा कर इसे सफल करना है।

‌ वो आदमी सन्त जी के चरणों में गिर पड़ा और रोते हुए बोला, आप जो भी कहेंगे, आज से मैं वही करूँगा।


शिक्षा

एक बार सोचना ज़रूर, कहीं हम भी किसी चीज़ का घमण्ड तो नहीं कर रहे है।

🙏

28/07/2022

*🌷एक साधु का इंटरव्यू *एक साधु का न्यूयार्क में बडे पत्रकार इंटरव्यू ले रहे थे।*

*पत्रकार-*
सर, आपने अपने लास्ट लेक्चर में
संपर्क (contact) और
संजोग (connection)
पर स्पीच दिया लेकिन यह बहुत कन्फ्यूज करने वाला था। क्या आप इसे समझा सकते हैं ?

साधु मुस्कराये और उन्होंने कुछ अलग...
पत्रकारों से ही पूछना शुरू कर दिया।

"आप न्यूयॉर्क से हैं?"

पत्रकार: "yeah..."

सन्यासी: "आपके घर मे कौन कौन हैं?"

पत्रकार को लगा कि.. साधु उनका सवाल
टालने की कोशिश कर रहे है क्योंकि
उनका सवाल बहुत व्यक्तिगत और
उसके सवाल के जवाब से अलग था।

फिर भी पत्रकार बोला : मेरी "माँ अब नही हैं, पिता हैं तथा 3 भाई और एक बहिन हैं !
सब शादीशुदा हैं "

साधू ने चेहरे पे एक मुस्कान के साथ पूछा:
"आप अपने पिता से बात करते हैं?"

पत्रकार चेहरे से गुस्से में लगने लगा...

साधू ने पूछा, "आपने अपने फादर से
last कब बात की?"

पत्रकार ने अपना गुस्सा दबाते हुए जवाब दिया : "शायद एक महीने पहले"

साधू ने पूछा: "क्या आप भाई-बहिन अक़्सर मिलते हैं, आप सब आखिर में कब मिले
एक परिवार की तरह ?

इस सवाल पर पत्रकार के माथे पर पसीना
आ गया कि , इंटरव्यू मैं ले रहा हूँ या ये साधु ?
ऐसा लगा साधु, पत्रकार का इंटरव्यू ले रहा है?

एक आह के साथ पत्रकार बोला : "क्रिसमस
पर 2 साल पहले" .

साधू ने पूछा: "कितने दिन आप सब
साथ में रहे ?"

पत्रकार अपनी आँखों से निकले
आँसुओं को पोंछते हुये बोला : "3 दिन..."

साधु: "कितना वक्त आप भाई बहनों ने
अपने पिता के बिल्कुल करीब बैठ कर गुजारा ?

पत्रकार हैरान और शर्मिंदा दिखा और
एक कागज़ पर कुछ लिखने लगा...

साधु ने पूछा: " क्या आपने पिता के साथ नाश्ता , लंच या डिनर लिया ?
क्या आपने अपने पिता से पूछा के वो कैसे हैँ ?
माता की मृत्यु के बाद उनका वक्त
कैसे गुज़र रहा है..... !!
साधु ने पत्रकार का हाथ पकड़ा और कहा: " शर्मिंदा, या दुखी मत होना।
मुझे खेद है अगर मैंने आपको
अनजाने में चोट पहुंचाई हो,
लेकिन ये ही आपके सवाल का जवाब है ।
"संपर्क और संजोग"
(contact and connection)

आप अपने पिता के सिर्फ संपर्क
(contact) में हैं,
‌ परआपका उनसे कोई 'connection' (जुड़ाव ) नही है।
you are not connected to him.
आप अपने father से संपर्क में हैं
जुड़े नही है

connection हमेशा आत्मा से आत्मा का होता है।
heart से heart होता है।
एक साथ बैठना, भोजन साझा करना और
एक दूसरे की देखभाल करना, स्पर्श करना,
हाथ मिलाना, आँखों का संपर्क होना,
कुछ समय एक साथ बिताना

आप अपने पिता, भाई और बहनों के
संपर्क ('contact') में हैं लेकिन
आपका आपस मे कोई' जुड़ाव (connection) नहीं है".

पत्रकार ने आंखें पोंछी और
बोला: "मुझे एक अच्छा और अविस्मरणीय
सबक सिखाने के लिए धन्यवाद"

आज ये भारत की भी सच्चाई हो चली है।
सबके हज़ारो संपर्क (contacts) हैं
पर कोई connection नही।
कोई विचार-विमर्श नहीं।
हर आदमी अपनी नकली दुनिया में
खोया हुआ है।
वो साधु और कोई नहीं
"स्वामी विवेकानंद" थे।”.........

18/07/2022

पिता का समाज व पुत्रों के नाम पत्र: 😥😥😥

लखनऊ के एक उच्चवर्गीय बूढ़े पिता ने अपने पुत्रों के नाम एक चिट्ठी लिखकर खुद को गोली मार ली। चिट्ठी क्यों लिखी और क्या लिखा। यह जानने से पहले संक्षेप में चिट्ठी लिखने की पृष्ठभूमि जान लेना जरूरी है।

पिता सेना में कर्नल के पद से रिटार्यड हुए। वे लखनऊ के एक पॉश कॉलोनी में अपनी पत्नी के साथ रहते थे। उनके दो बेटे थे। जो सुदूर अमेरिका में रहते थे। यहां यह बताने की जरूरत नहीं है कि माता पिता ने अपने लाड़लों को पालने में कोई कोर कसर नहीं रखी। बच्चे सफलता की सीढ़िंया चढते गए। पढ़-लिखकर इतने योग्य हो गए कि दुनिया की सबसे नामी-गिरामी कार्पोरेट कंपनी में उनको नौकरी मिल गई। संयोग से दोनों भाई एक ही देश में, लेकिन अलग-अलग अपने परिवार के साथ रहते थे।

एक दिन अचानक पिता ने रूंआसे गले से बेटों को खबर दी। बेटे! तुम्हारी मां अब इस दुनिया में नहीं रही। पिता अपनी पत्नी की मिट्टी के साथ बेटों के आने का इंतजार करते रहे। एक दिन बाद छोटा बेटा आया, जिसका घर का नाम चिंटू था।

पिता ने पूछा चिंटू! मुन्ना क्यों नहीं आया। मुन्ना यानी बड़ा बेटा। पिता ने कहा कि उसे फोन मिला, पहली उड़ान से आये।

धर्मानुसार बडे बेटे का आना सोच वृद्व फौजी ने जिद सी पकड़ ली।

छोटे बेटे के मुंह से एक सच निकल पड़ा। उसने पिता से कहा कि मुन्ना भईया ने कहा कि, "मां की मौत में तुम चले जाओ। पिता जी मरेंगे, तो मैं चला जाऊंगा।"

कर्नल साहब (पिता) कमरे के अंदर गए। खुद को कई बार संभाला फिर उन्होंने चंद पंक्तियो का एक पत्र लिखा। जो इस प्रकार था...

प्रिय बेटो

मैंने और तुम्हारी मां ने बहुत सारे अरमानों के साथ तुम लोगों को पाला-पोसा। दुनिया के सारे सुख दिए। देश-दुनिया के बेहतरीन जगहों पर शिक्षा दी। जब तुम्हारी मां अंतिम सांस ले रही थी, तो मैं उसके पास था। वह मरते समय तुम दोनों का चेहरा एक बार देखना चाहती थी और तुम दोनों को बाहों में भर कर चूमना चाहती थी। तुम लोग उसके लिए वही मासूम मुन्ना और चिंटू थे। उसकी मौत के बात उसकी लाश के पास तुम लोगों का इंतजार करने लिए मैं था। मेरा मन कर रहा था कि काश तुम लोग मुझे ढांढस बधाने के लिए मेरे पास होते। मेरी मौत के बाद मेरी लाश के पास तुम लोगों का इंतजार करने के लिए कोई नहीं होगा। सबसे बड़ी बात यह कि मैं नहीं चाहता कि मेरी लाश निपटाने के लिए तुम्हारे बड़े भाई को आना पड़े। इसलिए सबसे अच्छा यह है कि अपनी मां के साथ मुझे भी निपटाकर ही जाओ। मुझे जीने का कोई हक नहीं क्योंकि जिस समाज ने मुझे जीवन भर धन के साथ सम्मान भी दिया, मैंने समाज को असभ्य नागरिक दिये। हाँ अच्छा रहा कि हम अमरीका जाकर नहीं बसे, सच्चाई दब जाती।

मेरी अंतिम इच्छा है कि मेरे मैडल तथा फोटो बटालियन को लौटाए जाए तथा घर का पैसा नौकरों में बाटा जाऐ। जमापूँजी आधी वृद्ध सेवा केन्द्र में तथा आधी सैनिक कल्याण में दी जाऐ।
तुम्हारा पिता

कमरे से ठांय की आवाज आई। कर्नल साहब ने खुद को गोली मार ली।

यह क्यों हुआ, किस कारण हुआ? कोई दोषी है या नहीं। मुझे इसके बारे में कुछ नहीं कहना।
हाँ यह काल्पनिक कहानी नहीं। पूरी तरह सत्य घटना है।

11/07/2022

*कंद-मूल खाने वालों से*
मांसाहारी डरते थे।।

*पोरस जैसे शूर-वीर को*
नमन 'सिकंदर' करते थे॥

*चौदह वर्षों तक खूंखारी*
वन में जिसका धाम था।।

*मन-मन्दिर में बसने वाला*
शाकाहारी *राम* था।।

*चाहते तो खा सकते थे वो*
मांस पशु के ढेरो में।।

लेकिन उनको प्यार मिला
' *शबरी' के जूठे बेरो में*॥

*चक्र सुदर्शन धारी थे*
*गोवर्धन पर भारी थे*॥

*मुरली से वश करने वाले*
*गिरधर' शाकाहारी थे*॥

*पर-सेवा, पर-प्रेम का परचम*
चोटी पर फहराया था।।

*निर्धन की कुटिया में जाकर*
जिसने मान बढाया था॥

*सपने जिसने देखे थे*
मानवता के विस्तार के।।
*नानक जैसे महा-संत थे*
वाचक शाकाहार के॥

*उठो जरा तुम पढ़ कर देखो*
गौरवमय इतिहास को।।

*आदम से आदी तक फैले*
इस नीले आकाश को॥

*दया की आँखे खोल देख लो*
पशु के करुण क्रंदन को।।

*इंसानों का जिस्म बना है*
शाकाहारी भोजन को॥

*अंग लाश के खा जाए*
क्या फ़िर भी वो इंसान है?
*पेट तुम्हारा मुर्दाघर है*
या कोई कब्रिस्तान है?

*आँखे कितना रोती हैं जब*
उंगली अपनी जलती है

*सोचो उस तड़पन की हद*
जब जिस्म पे आरी चलती है॥

*बेबसता तुम पशु की देखो*
बचने के आसार नही।।

*जीते जी तन काटा जाए*,
उस पीडा का पार नही॥

*खाने से पहले बिरयानी*,
चीख जीव की सुन लेते।।

*करुणा के वश होकर तुम भी*
गिरी गिरनार को चुन लेते॥

*शाकाहारी बनो*...!

ादेव 🙏🙏

08/07/2022

कल्पना कीजिए...

इस धरती पर मनुष्य जाति से भी विकसित कोई दूसरे ग्रह की जाति हमला कर दे और वो बुद्धि में, बल में, विज्ञान में, तकनीक आदि में आपसे हजार गुना शक्तिशाली हो और आप उनके सामने वैसे ही निरीह और बेबस हो जैसे पशु आपके सामने हैं।

अब वो पूरी मनुष्य जाति को अपने जीभ के स्वाद के लिए वैसे ही काटकर खाने लगे जैसे आप पशुओं को खाते हो। आपके बच्चों का कोमल मांस उनके रेस्त्रां में ऊंचे दामों पर बिके और आपकी आंखों के सामने आपके बच्चों को काटा जाए। उनका स्वयं लिखित संविधान हो और उसमें ये प्रावधान हो कि मनुष्य जाति को भोजन के रूप में खाना उनका मूलभूत अधिकार है क्योंकि वो आपसे अधिक विकसित सभ्यता है और उनके संविधान में वैसी ही आपकी जीवेषणा के प्रति कोई सहानुभूति न हो जैसी मनुष्य निर्मित संविधान में पशुओं के लिए नही है। वो इस धरती पर मनुष्य जाति को काटने का सुनियोजित आधुनिक बूचड़खाने खोले और मनुष्य के मांस का बन्द डिब्बों में अपने ग्रह पर निर्यात करे और उनके ग्रह के अर्थशास्त्री अपने लैपटॉप पर अंगुली चलाते हुए अखबारों में ये सम्पादकीय लिखे कि इससे हमारी अर्थव्यवस्था व जीडीपी ग्रो हो रही है। उनके अपने कोई धार्मिक त्यौहार भी हो जहां सामुहिक रूप से मनुष्यों को जंजीरों में जकड़कर उनकी हत्या की जाए और फिर मनुष्य के मांस को एक दूसरे की प्लेट में परोसते हुए, गले मिला जाए व मुबारकबाद भी दी जाए।

पूरी मनुष्य जाति पिंजरों में बंद, चुपचाप अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा करें, उसके हाथ पैर बंधे हो और आपको, आपके बच्चों व महिलाओं को सिर्फ इसलिए काटकर खाया जा रहा है कि आप बुद्धि बल में उनसे कमतर हैं।

सोचकर देखिए आपकी आत्मा कांप उठेगी और पूरी मनुष्य जाति निर्लज्जता के साथ, सदियों से, पशु जाति के साथ यही करती आ रही है और इस ब्रह्मांड में अगर कोई सबसे अधिक अनैतिक, पापी, बलात्कारी, दुराचारी, निर्लज्ज, लालची, घटिया कोई जाति है तो वो मनुष्य जाति ही है।

इसमें मुझे तो कोई संदेह नही है।

शुभ देपावत।

24/06/2022

*🌷वृन्दावन का रहस्य🌷*
*एक बार एक बंगाली व्यक्ति घर से परेशान हो गया,*
*उन्होंने सोचा कि लोग कहते है, कि कृष्ण भगवान् की भक्ति करने से जीवन सफल हो जाता है,*
*उसने निर्णय लिया कि मैं वृन्दावन जा के वहाँ ध्यान करूँगा, और वो वृन्दावन आ गए*
*उन्होंने 20 वर्ष तपस्या की, लेकिन कन्हैया राधा का दर्शन नही हो पाया,*
*आखिर वो थक गया और पुन: विचार किया कि चलो कान्हा तो मिलेंगे नहीं अपने गांव चलते है, वहां चावल तो खाएंगे (बंगाली वैसे भी चावल के शौकीन होता है)*
*वो अपना सामान ले के पैदल चल पड़ा, क्योंकि किराया था नही पास,*
*जैसे ही वृन्दावन से रवाना हुआ तो रास्ते मे एक अति शौभनीय महल दिखाई दिया, वहां एक कन्या खड़ी थी..*
*उस कन्या ने उस वृद्ध बाबा को बोला बाबा यहाँ हमने आज हवन रखा है तो आप हमारे यहाँ भोजन करे,*
*बाबा वैसे भी भूखा था चलो कन्या ने बोल दिया तो भोजन कर ही लेते है*,
*बाबा महल में गए और उस कन्या ने आसन लगा दिया भोजन रख दिया..*
*बाबा बैठ गए, और भोजन करने लगे.. कन्या पास खड़ी थी...*
*बाबा ने उस कन्या को देखा तो परछाईं के रूप में कभी राधा का दर्शन तो कभी कान्हा का दर्शन..*
*बाबा सोच में पड़ गए कि क्या है ये, फिर सोचा कि आँखे कमजोर है इसलिए हो रहा है,*
*जैसे ही भोजन किया कन्या ने बोला बाबा अब में जाऊ आप प्रस्थान करो..*
*बाबा बोले ठीक है बेटा जाओ, कन्या वहां से गायब.. फिर देखा तो वहां न तो महल था, और ना ही वहाँ आसन था जिस पर बाबा बैठे थे,*
*तब उस बाबा को यकीन हुआ कि भगवान् तो है लेकिन परीक्षा बहुत लेते है*
*तब उसने ठान ली कि मरेंगे तो वृन्दावन में और जियेंगे तो वृन्दावन में। ये है मेरे वृन्दावन का रहस्य*
*🌷श्री राधे 🌿*

15/06/2022

"केदारनाथ को क्यों कहते हैं ‘जागृत महादेव’?, दो मिनट की ये कहानी रौंगटे खड़े कर देगी"

एक बार एक शिव-भक्त अपने गांव से केदारनाथ धाम की यात्रा पर निकला। पहले यातायात की सुविधाएँ तो थी नहीं, वह पैदल ही निकल पड़ा। रास्ते में जो भी मिलता केदारनाथ का मार्ग पूछ लेता। मन में भगवान शिव का ध्यान करता रहता। चलते चलते उसको महीनो बीत गए। आखिरकार एक दिन वह केदार धाम पहुच ही गया। केदारनाथ में मंदिर के द्वार 6 महीने खुलते है और 6 महीने बंद रहते है। वह उस समय पर पहुचा जब मन्दिर के द्वार बंद हो रहे थे। पंडित जी को उसने बताया वह बहुत दूर से महीनो की यात्रा करके आया है। पंडित जी से प्रार्थना की, कृपा कर के दरवाजे खोलकर प्रभु के दर्शन करवा दीजिये । लेकिन वहां का तो नियम है एक बार बंद तो बंद। नियम तो नियम होता है। वह बहुत रोया। बार-बार भगवन शिव को याद किया कि प्रभु बस एक बार दर्शन करा दो। वह प्रार्थना कर रहा था सभी से, लेकिन किसी ने भी नही सुनी।

पंडित जी बोले अब यहाँ 6 महीने बाद आना, 6 महीने बाद यहा के दरवाजे खुलेंगे। यहाँ 6 महीने बर्फ और ढंड पड़ती है। और सभी जन वहा से चले गये। वह वही पर रोता रहा। रोते- रोते रात होने लगी चारो तरफ अँधेरा हो गया। लेकिन उसे विस्वास था अपने शिव पर कि वो जरुर कृपा करेगे। उसे बहुत भुख और प्यास भी लग रही थी। उसने किसी की आने की आहट सुनी। देखा एक सन्यासी बाबा उसकी ओर आ रहा है। वह सन्यासी बाबा उस के पास आया और पास में बैठ गया। पूछा, बेटा कहाँ से आये हो? उस ने सारा हाल सुना दिया और बोला मेरा आना यहाँ पर व्यर्थ हो गया बाबा जी। बाबा जी ने उसे समझाया और खाना भी दिया। और फिर बहुत देर तक बाबा उससे बाते करते रहे। बाबा जी को उस पर दया आ गयी। वह बोले, बेटा मुझे लगता है, सुबह मन्दिर जरुर खुलेगा। तुम दर्शन जरुर करोगे।

बातों-बातों में इस भक्त को ना जाने कब नींद आ गयी। सूर्य के मद्धिम प्रकाश के साथ भक्त की आँख खुली। उसने इधर उधर बाबा को देखा, किन्तु वह कहीं नहीं थे। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता उसने देखा पंडित जी आ रहे है अपनी पूरी मंडली के साथ। उस ने पंडित को प्रणाम किया और बोला, कल आपने तो कहा था मन्दिर 6 महीने बाद खुलेगा? और इस बीच कोई नहीं आएगा यहाँ, लेकिन आप तो सुबह ही आ गये। पंडित जी ने उसे गौर से देखा, पहचानने की कोशिश की और पुछा, तुम वही हो जो मंदिर का द्वार बंद होने पर आये थे? जो मुझे मिले थे। 6 महीने होते ही वापस आ गए! उस आदमी ने आश्चर्य से कहा, नही, मैं कहीं नहीं गया। कल ही तो आप मिले थे, रात में मैं यहीं सो गया था। मैं कहीं नहीं गया। पंडित जी के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था।

उन्होंने कहा, लेकिन मैं तो 6 महीने पहले मंदिर बन्द करके गया था और आज 6 महीने बाद आया हूँ। तुम छः महीने तक यहाँ पर जिन्दा कैसे रह सकते हो? पंडित जी और सारी मंडली हैरान थी। इतनी सर्दी में एक अकेला व्यक्ति कैसे छः महीने तक जिन्दा रह सकता है। तब उस भक्त ने उनको सन्यासी बाबा के मिलने और उसके साथ की गयी सारी बाते बता दी। कि एक सन्यासी आया था, लम्बा था, बढ़ी-बढ़ी जटाये, एक हाथ में त्रिशुल और एक हाथ में डमरू लिए, मृग-शाला पहने हुआ था। पंडित जी और सब लोग उसके चरणों में गिर गये। बोले, हमने तो जिंदगी लगा दी किन्तु प्रभु के दर्शन ना पा सके, सच्चे भक्त तो तुम हो। तुमने तो साक्षात भगवान शिव के दर्शन किये है। उन्होंने ही अपनी योग-माया से तुम्हारे 6 महीने को एक रात में परिवर्तित कर दिया। काल-खंड को छोटा कर दिया। यह सब तुम्हारे पवित्र मन, तुम्हारी श्रद्वा और विश्वास के कारण ही हुआ है। आपकी भक्ति को प्रणाम जय श्री महाकाल।

28/05/2022

चार चार बेटियां विदा हो जाती है खेल कूद कर,

और बहुएं आते ही नाप देती है, कि घर बहुत छोटा है।

09/05/2022

*जनवरी की एक सर्द सुबह थी ,अमेरिका के वाशिंगटन डीसी का मेट्रो स्टेशन* .
*एक आदमी वहां करीब घंटा भर तक वायलिन बजाता रहा* .इस दौरान लगभग 2000 लोग वहां से गुज़रे ,अधिकतर लोग अपने काम से जा रहे थे .

उस व्यक्ति ने वायलिन बजाना शुरू किया .उसके तीन मिनट बाद एक अधेड़ आदमी का ध्यान उसकी तरफ गया .उसकी चाल धीमी हुई , वह कुछ पल उसके पास रुका और फिर जल्दी से निकल गया .

4 मिनट बाद : वायलिन वादक को पहला सिक्का मिला .एक महिला ने उसकी टोपी में सिक्का फेंका और बिना रुके चलती बनी .

6 मिनट बाद : एक युवक दीवार के सहारे टिककर उसे सुनता रहा ,फिर उसने अपनी घडी पर नजर डाली और चलता बना .

10 मिनट बाद : एक 3 वर्षीय बालक वहां रुक गया ,पर जल्दी में दिख रही उसकी माँ उसे खींचते हुए वहां से ले गयी .माँ के साथ लगभग घिसटते हुए चल रहा बच्चा मुड -मुड़कर वायलिन वादक को देख रहा था .

ऐसा ही कई बच्चो ने किया और हर बच्चे के अभिभावक उसे घसीटते हुए ही ले गये .

45 मिनट बाद : वह लगातार बजा रहा था ,अब तक केवल छः लोग ही रुके थे और उन्होंने भी कुछ देर ही उसे सुना .

लगभग 20 लोगो ने सिक्का उछाला, पर रुके बगैर अपनी सामान्य चाल में चलते रहे .उस आदमी को कुल मिलकर 32 डॉलर मिले .

1 घंटे बाद : उसने अपना वादन बंद किया .फिर से शांति छा गयी .इस बदलाव पर भी किसी ने ध्यान नहीं दिया .
किसी ने वादक की तारीफ नहीं की .

किसी भी व्यक्ति ने उसे नहीं पहचाना .वह था , विश्व के महान वायलिन वादकों में से एक ,जोशुआ बेल .

जोशुआ 16 करोड़ रुपए की अपनी वायलिन से इतिहास की सबसे कठिन धुन बजा रहे थे .महज कुछ दिन पहले ही उन्होंने बोस्टन शहर में मंचीय प्रस्तुति दी थी ,जहाँ प्रवेश टिकटों का औसत मुल्य 100 डॉलर था .

यह बिलकुल सच्ची घटना हैं .

जोशुआ बेल प्रतिष्ठित समाचार पत्र ‘WASHINGTON POST’ द्वारा ग्रहणबोध और समझ को लेकर किये गए एक सामाजिक प्रयोग का हिस्सा बने थे .इस प्रयोग का उद्देश्य यह पता लगाना था कि किसी सार्वजानिक जगह पर किसी व्यस्त समय में हम खास चीजो और बातो पर कितना ध्यान देते हैं ? क्या हम सुन्दरता या अच्छाई की सराहना करते हैं ? क्या हम आम अवसरों पर प्रतिभा की पहचान कर पाते हैं ?

इसका एक समान अर्थ यह निकलता हैं : जब दुनिया का एक श्रेष्ठ वादक एक बेहतरीन साज़ से इतिहास की सबसे कठिन धुनों में से एक बजा रहा था ,तब अगर हमारे पास इतना समय नहीं था कि कुछ पल रूककर उसे सुन सके ,तो सोचिये हम कितनी सारी अन्य बातो से वंचित हो गये हैं ,लगातार वंचित हो रहे हैं ??

संभवतः ये वक़्त बेहद गंभीरता से सोचने का है कि जिंदगी की भागदौड़ में हमनें कितनी खुबसूरत चीज़ों को नज़रअंदाज़ कर दिया है........!!

*सही मंच से ही सही प्रतिभा का मूल्यांकन होता है।*

06/05/2022

Think and share it

Address


Website

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Good Messages posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Shortcuts

  • Address
  • Alerts
  • Claim ownership or report listing
  • Want your business to be the top-listed Media Company?

Share