21/09/2025
*सर्व पितृ अमावस्या विशेष...*
(श्राद्धपक्ष की पूर्णता, जो किसी कारण वश श्राद्ध नहीं कर सके, वे अमावस्या को कर सकते हैं...) #श्राद्ध न करने से हानि...
सनातन शास्त्र ने श्राद्ध न करने से होनेवाली जो हानि बतायी है, उसे जानकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। अतः श्राद्ध-तत्त्व से परिचित होना तथा उसके अनुष्ठानके लिये तत्पर रहना अत्यन्त आवश्यक है। यह सर्वविदित है कि मृत व्यक्ति इस महायात्रा में अपना स्थूल शरीर भी नहीं ले जा सकता है तब पाथेय (अन्न-जल) कैसे ले जा सकता है? उस समय उसके सगे-सम्बन्धी श्राद्धविधि से उसे जो कुछ देते हैं, वही उसे मिलता है। शास्त्र ने मरणोपरान्त पिण्डदान की व्यवस्था की है। सर्वप्रथम शवयात्रा के अन्तर्गत छः पिण्ड दिये जाते हैं, जिनसे भूमि के अधिष्ठातृ देवताओं की प्रसन्नता तथा भूत-पिशाचों द्वारा होने वाली बाधाओं का निराकरण आदि प्रयोजन सिद्ध होते हैं। इसके साथ ही दशगात्र में दिये जाने वाले दस पिण्डों के द्वारा जीवको आतिवाहिक सूक्ष्म शरीर की प्राप्ति होती है। यह मृत व्यक्ति की महायात्रा के प्रारम्भ की बात हुई। अब आगे उसे पाथेय (रास्ते के भोजन- अन्न-जल आदि) की आवश्यकता पड़ती है, जो उत्तम-षोडशी में दिये जाने वाले पिण्डदान से उसे प्राप्त होता है। यदि सगे-सम्बन्धी, पुत्र-पौत्रादि न दें तो भूख-प्यास से उसे वहाँ बहुत दारुण दुःख होता है।
श्राद्ध न करने वाले को कष्ट....
यह तो हुई श्राद्ध न करने से मृत प्राणी के कष्टों की कथा। श्राद्ध न करने वाले को भी पग-पग पर कष्ट का सामना करना पड़ता है। मृत प्राणी बाध्य होकर श्राद्ध न करनेवाले अपने सगे-सम्बन्धियों का रक्त चूसने लगता है---
(श्राद्धं न कुरुते मोहात् तस्य रक्तं पिबन्ति ते।) (ब्रह्मपुराण)
साथ-ही-साथ वे शाप भी देते हैं--
पितरस्तस्य शापं दत्त्वा प्रयान्ति च। (नागरखण्ड)
फिर इस अभिशप्त परिवार को जीवन भर कष्ट-ही-कष्ट झेलना पड़ता है। उस परिवार में पुत्र नहीं उत्पन्न होता, कोई नीरोग नहीं रहता, लम्बी आयु नहीं होती, किसी तरह कल्याण नहीं प्राप्त होता और मरने के बाद में नरक भी जाना पड़ता है।
उपनिषद् में भी कहा गया है कि....
'देवपितृकार्याभ्यां न प्रमदितव्यम्' (तै०उप० १।११।१)।
अर्थात् देवता तथा पितरों के कार्यों में मनुष्य को कदापि प्रमाद नहीं करना चाहिये। प्रमाद से प्रत्यवाय होता है।
(सारांश:: इसीलिये श्राद्ध जरूर करने चाहिये....)