02/07/2025
मर्यादा से लीला तक
मैं प्रश्न नहीं, उत्तर हूँ —
कभी वनवासी की निःशब्द दृढ़ता,
तो कभी रणभूमि में गूंजता चक्रध्वनि का स्वर।
मैं वो मौन हूँ जो वचन बन जाए,
और वो वाणी हूँ जो व्यवस्था बदल दे।
मैं जब संकल्प लेता हूँ —
तो राजपाट छोड़कर पथरीले वन चुनता,
और जब समय माँग करे,
तो शतरंज की बिसात उलट देता।
मैं मर्यादा हूँ —
जो अपने ही प्रेम को अग्नि में उतार देता,
और फिर भी पलटकर कोई प्रश्न नहीं करता।
मैं लीला हूँ —
जो मुस्कराकर शस्त्र उठाता,
और अधर्म को खेल-खेल में मिटा देता।
मेरे एक रूप में,
पत्थर भी पूज्य बन जाता है।
दूसरे में,
पत्थर से टकराने वाले भी माटी में मिल जाते हैं।
मैं तप हूँ —
जो वन के मौन में जन्म लेता है।
मैं तर्क हूँ —
जो कुरुक्षेत्र की गर्जना में गूंजता है।
धनुष हो या सुदर्शन,
दोनों मेरे हाथों की नीति हैं —
एक से रक्षा करता हूँ,
दूसरे से संहार।
कभी अग्नि की परीक्षा करवाता हूँ,
कभी अग्नि में पूरा नगर भस्म कर देता हूँ।
पर हर बार —
धर्म की रेखा एक इंच भी नहीं डगमगाती।
मैं वही हूँ, पर समय से बदलता हूँ।
नायक नहीं, मैं नीति हूँ।
व्यक्ति नहीं, मैं संकल्प हूँ।
मैं ना सिर्फ कथा हूँ —
मैं चेतना हूँ
जो हर युग में
मर्यादा से लेकर लीला तक
धर्म का मार्ग बनती है।