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13 दिसंबर को भव्य समारोह में काशी विश्वनाथ धाम का अनावरण करेंगे पीएम मोदीउद्घाटन समारोह का नाम "दिव्य काशी, भव्य काशी" र...
11/12/2021

13 दिसंबर को भव्य समारोह में काशी विश्वनाथ धाम का अनावरण करेंगे पीएम मोदी

उद्घाटन समारोह का नाम "दिव्य काशी, भव्य काशी" रखा गया है।

कहानी:प्रतिभा देवी सुरेश कातिब, वैशाली, गाज़ियाबाद (भारत)अपार भीड़ उमड़ रही थी, एक हुजूम, एक सैलाब बहा जा रहा था लोगों का,...
13/11/2021

कहानी:

प्रतिभा देवी

सुरेश कातिब, वैशाली, गाज़ियाबाद (भारत)

अपार भीड़ उमड़ रही थी, एक हुजूम, एक सैलाब बहा जा रहा था लोगों का, सिविल लाइन्स की ओर। प्रतित हो रहा था मानो सारे कस्बे की ट्रेफिक एक तरफ को मोड़ दी गई हो। लोग, मोटरौं मे, मोटरसाइकिल, साइकिलों पर, या फिर पैदल ही चले जा रहे थे, एक ही दिशा में। इतनी भीड़ और इस चिल्चिलाती धूप मे? कहां जा रहे थे यह लोग? कोई जलसा, कोई जुलूस कोई बड़े नेता के स्वागत मे? उत्सुकता अनिवार्य थी।

आगे जा के देखा, तो पाया,ये सारे लोग एक बड़ी सारी कोठी (एकड़ो मे फैली हुई), के बड़े सारे लोहे के गेट के सामने इकट्ठा हो रहे थे। उनमे से कुछ गेट पर चढ़, कोठी के भीतर जाने की नाकाम कोशिश मे लगे थे। जैसे ही वे गेट पे चढ़ते, अन्दर खड़े दो चोकिदार, उन्हे डन्डे मार नीचे गिरा देते। कुछ के तो खून भी बह रहा था। एक, पागलपन, बदहवासी और अराजकता का माहौल हो चला था। भीड़ मे खड़े हुए लोगो में कुछ बिलकुल मौन धारण करे खड़े थे। चेहरा बिकुल सफेद, मानो किसी ने उनका खून निकाल/चूस लीया हो, किसी यन्त्र से। कुछ नीढ़ाल हो बैठ गये थे, ज्यादातर अपना सर पकड़े। कुछ तो अपने बाल भी नोच रहे थे।

सबसे ज्यादा लोग आक्रोशीत वे थे जो जोरो-जोरो से चिल्ला रहे थे, नारे लगा रहे थे। 'प्रतिभा तेरा सत्यानाश हो,' 'प्रतिभा तू नर्क मे जाए,' 'प्रतिभा तूझे नर्क मे भी जगह ना मिले,' 'प्रतिभा तेरी लाश को चील कव्वे नोचे,' इत्यादी, इत्यादि। कुछ तो चिल्लाते चिल्लाते बेहोश हुए जा रहे थे, कुछ, बेहोश हो, गिर चुके थे।

कोठी के अन्दर का द्रश्य । बड़ी सारी कोठी का, बड़ा सारा ड्रॉइंग हाल। बिलकुल खाली, सारा फर्नीचर हटा लिया गया था शायद। हाल के बीचो-बीच एक लाश, लेटी हुई।अकेली, तनहा और शान्त। चहरा खुला हुआ। चहरे पर एक हल्की सी मुस्कान। लग रहा था मानो अभी बोल पड़ेगी। लाश डॉक्टर प्रतिभा देवी की।

आज सुबह का अखबार, हमीरपुर मेल, जब लोगों के हाथ आया, तो पढ़ कर सब के होश उड़ गये। पहले पन्ने पर ही एक, लैटर टू दी एडिटर (सम्पादक को पत्र) छपा था, मोटे अक्षरों में। लिखने वाली थी डॉक्टर प्रतिभा देवी। खत का मज्मून/विषय बहुत ही भयावह और पीड़ाजनक था। कहीं उससे भी ज्यादा, जान लेवा। खत मे प्रतिभा देवी ने लिखा था:

"सम्पादक महोदय, नमशकार।

जब तक यह खत आपके हाथों मे पड़ेगा, मै इस दुनिया से जा चुकी हुंगी। पर मै यह चाहूंगी कि आप मेरा यह खत अपने अखबार मे जरूर छापें। शायद इसे पढ़, आप खुद को रोक भी नही पायेंगे।

महोदय, जैसा कि आप जानते हैं कि मै करीब तीस साल से, कस्बे का सबसे बड़ा मैटर्निटी होम, माँ दुर्गा मैटर्निटी होम, चला रही हूँ। गत तीस सालों मे, मेरे यहां, हजारों बच्चों ने जन्म लिया, सभी धर्म, जाति और तबके के लोगों ने।

आगे की बात कहने से पहले मै अपना बैकग्राउंड, यानी पृष्ठभूमि, बताती चलूँ। मेरे पिता, सेना मे, एक आला ऑफिसर थे। उन्होँने, मुझे बहुत लाड़-प्यार से बड़ा किया, और उच्चतम शिक्षा दी। मै डॉक्टर बन गई। थोड़ी सुन्दर और पढी-लिखी होने के कारण, मेरी शादी, एक बहुत बड़े परिवार/घराने में हो गई। वे ठाकुर, जमींदार थे। दो सो एकड़ से उपर ज़मीन, आलिशान महल नुमा कोठी, घोड़ा, गाड़ी, नौकर-चाकर, सब कुछ था, मगर कमी थी तो इंसानियत की। क्रूर और घमंडी थे वे। नही जानते थे दूसरों की इज्जत करना, खासकर औरतों की। पैर की जूती समझते थे वो औरतों को। मेरे पति ठाकुर विजेंद्र सिंह, चार भाईयों मे तीसरे थे, उन्ही मे से एक। शराब, जुआ, रंगरेलीया उनके खून मे बसा था।

मुझे आते के साथ फरमान मिला। कोई ज़रूरत नही प्रक्टिस वगरैह करने की। घर सम्भालो, बाकियों की तरह। मगर मै भी कहां मानने वाली थी, अड़ गई बूरी तरह। आखिर, थक-हार कर यह मेटर्निटी होम बनवा दिया, पांच एकड़ जमीन पर। मै खुश, मगर घर और बाहर, मै लोगो पर निरंतर होती ज्यादतियां देखती और सुनती थी। घर मे नौकरो को ही नही, स्त्रियों को , मारना-पीटना , कभी शराब पीकर, कभी यूं ही। जायदाद और दौलत की हेकड़ी, नसों-नसों मे बहती थी। इसी तरह समाज मे हो रही ज्यादती, अमानवीय वातावरण, लड़ाई-झगड़े, कभी धर्म के नाम पर, कभी जाति के नाम पर और कभी दौलत को लेकर, खून-खराबा, भ्रूण हत्या, सब देख, मै बहुत परेशान और दुखी हो गई थी। लोग बच्चियों तक को मार देते थे, पैदा होने पर। उनकी शादी और दहेज़ की वजह से। दिल कांप उठता था यह देख, सुन कर।

मैने, एक दिन, एक प्लान बनाया। दो नर्सों को विश्वास मे लिया। एक बाल विधवा थी, और दूसरी का पति उसे छोड़ भाग गया था, किसी और के संग। मैने उन्हे अपने दिल की वेदना बतायी और प्लान समझाया। इस निर्दयी और बद्तमीज़ समाज को सबक सिखाने के लिये हम बच्चे बदल देंगें। जिसको लड़की चाहिये उसे लडकी, जिसे लड़का चाहिये उसे लड़का। किसी गरीब का बच्चा किसी अमीर को, और किसी अमीर का किसी गरीब को। इसीतरह अलग-अलग जाति और धर्म के बच्चों को भी हम बदल देंगें। मगर यह काम हमे बहुत ही सावधानी और चतुरता से करना होगा। पहले तो वे बहुत घबराई मगर आखिर मे राजी हो गई।

महोदय, यह काम हम, गत तीस सालों से, करते आ रहे हैं। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हमने कितने बच्चे बदले होंगे। कस्बे के लोग के ही नही, आस-पास के सभी गावों से भी लोग डेलिवेरी करवाने आते हैं हमारे पास। तीन पीढियाँ बीत गई है हमे यह सब करते।

यह सब पढ़ आपको आश्चर्य ही नही, झटका लगा होगा। लगना भी चाहिये। आप मेरे इस पत्र को लोगो तक ज़रूर पहुंचायेंगे, इस की मै आशा करती हूँ। जैसा कि मैने ऊपर कहा, आपको मेरा यह पत्र मिलने से पहले, मै यह दुनिया छोड़ जा चुकी हुंगी। मै आत्महत्या कर रही हूँ।

धन्यवाद।"

डॉक्टर प्रतिभा देवी,
दुर्गा मेटर्निटी होम,
हमीरपुर।

केरल इकाई के कार्यक्रम में अकादमी चेयरमैन द्वारा 'कुञ्जुन्नी सफरनामा' का विमोचन।रपट- डॉ.रतीश निराला,अध्यक्ष:केरल इकाईविभ...
06/09/2021

केरल इकाई के कार्यक्रम में अकादमी चेयरमैन द्वारा 'कुञ्जुन्नी सफरनामा' का विमोचन।

रपट- डॉ.रतीश निराला,अध्यक्ष:केरल इकाई
विभाअ (रजि.),भारत।

'कुञ्जुन्नी सफरनामा' एक ऐसा उपन्यास है, जिसे सुदूर केरल प्रांत के श्री एस आर लाल ने मलयालम में लिखा और जिसे सन 2017 में बालसाहित्य की श्रेणी में केंद्र साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ | केरल के हिन्दी लेखक एवं अनुवादक श्री सजयकुमार ने पुस्तक का हिन्दी अनुवाद कर समस्त हिन्दी प्रेमियों को मलयालम साहित्य की गरिमा से सराबोर कर दिया |

अकादमी की केरल इकाई के तत्वावधान में इस पुस्तक के विमोचन समारोह का आयोजन ऑनलाइन माध्यम से सम्पन्न हुआ | विश्व भाषा अकादमी केरल के अध्यक्ष डॉ. रतीश निराला की अध्यक्षता में आयोजित सभा के मुख्य अतिथि अकादमी के चेयरमैन श्री मुकेश शर्मा थे | मुख्य अतिथि श्री शर्मा द्वारा ही इस पुस्तक का ऑनलाइन विमोचन भी किया गया।

सभा का शुभारंभ श्रीमती सरिता एस के वंदन गीत से हुआ | केरल इकाई की सचिव डॉ. शीनुजा मोल एच.एन. ने सभा का स्वागत किया | अध्यक्ष भाषण में श्री रतीश निराला ने इस बात पर ज़ोर दिया कि हिन्दी तेज़ी से हिंदीतर प्रान्तों में विकसित हो रही है | कुञ्जुन्नी सफरनामा का अनुवाद यह सिद्ध करता है कि हिन्दी केलिए समर्पित जीवन और व्यक्तित्व दक्षिण में भी उतना ही तीव्र है जितना किसी अन्य भाषाई प्रदेश में |

सभा के मुख्य अतिथि एवं अकादमी के चेयरमैन श्री मुकेश शर्मा ने अकादमी की राष्ट्रभाषा सेवा के उपलक्ष्यों से जुड़ी गतिविधियों पर प्रकाश डाला | विश्व भाषा अकादमी सिर्फ भारत में ही नहीं, किन्तु विश्व के कई देशों में हिन्दी प्रचार प्रसार का कार्य कर रही है | न्यूज़ीलैंड जैसे देशों में अकादमी की गरिमा तेज़ी से फैल रही है |

कुञ्जुन्नी सफरनामा का अनुवाद करके श्री सजयकुमार ने इस पुस्तक को न सिर्फ हिन्दी प्रेमियों के लिए पढ़ने योग्य बनाया बल्कि इसे अन्य भारतीय भाषाओं में अनूदित होने के अवसर भी खोल दिये | यह पुस्तक हिन्दी अनूदित साहित्य भंडार की गरिमा बढ़ाएगी यह नि:संशय है |

उन्होंने पुस्तक के मूल लेखक श्री एस आर लाल एवं अनुवादक श्री सजयकुमार दोनों का अभिनंदन किया और यह आशा जताई कि केरल से अविरल श्रेष्ठ पुस्तकों का हिन्दी में अनुवाद होता रहे |

अकादमी के हरियाणा इकाई की अध्यक्षा एवं हिन्दी के उपन्यासकार श्रीमती अनघा जोगलेकर ने कुञ्जुन्नी सफरनामा पुस्तक का परिचय देते हुए कहा कि यह एक साधारण पुस्तक नहीं है | इसमें कहानियों में कहानियाँ खुलती जाएँगी | उन्होंने कहा – “बाल मनोविज्ञान की सिलाई से रोमांच की अजीबोगरीब दुनिया के बेलबूटे सजाकर, मन की ऊन से बुना स्वेटर है – कुञ्जुन्नी सफरनामा जो एहसासों की नरमी भी देता है और रिश्तों की गरमी भी |”

पुस्तक के मूल लेखक श्री एस आर लाल ने अपने आशंसा भाषण में कहा कि इसका हिन्दी अनुवाद मेरी चिर अभिलाषा रही है | यह सिर्फ कुञ्जुन्नी का सफरनामा नहीं है, यह मेरा भी सफरनामा है | इस उपन्यास का अनाथ बालक जीवन – कहीं कहीं मैं ही हूँ | तेरह वर्षीय कुञ्जुन्नी जब चित्र पुस्तक की खोज में अफ्रीका केलिए प्रस्थान करता है तब वह कहीं मेरी जिजीविषा बन जाती है |

पुस्तक के अनुवादक श्री सजयकुमार ने कहा कि पुस्तक विमोचन के लिए सितंबर 5 शिक्षक दिवस को ही चुना जाना केवल आकस्मिक नहीं है, यह सभा मेरे गुरुजनों और प्रिय शिष्यों का संगम भी हो गयी है | कुञ्जुन्नी सफरनामा एक उत्कृष्ट सृजन है जिसे हिन्दी भाषा के सुधि पाठकों के समक्ष रखकर मैंने अपना कर्तव्य निभाया है | हिन्दी की सेवा केवल एक छिपा आग्रह ही नहीं अपितु एक जीवन लक्ष्य भी है | हिन्दी तभी सच्चे अर्थ में राष्ट्रभाषा कहलाएगी जब वह समस्त भारतीय भाषाओं को अपने आंचल में समेट कर अपने साहित्य को बृहद बनाएगी | हिन्दी एक विशाल स्वच्छ सरोवर है जहाँ भारतीय भाषाओं का संगम होता है | यह पुस्तक कुञ्जुन्नी सफरनामा माँ भारती के शृंगार में मृणाल हार बनकर अलंकृत करेगी, यही मेरा विश्वास है |

विश्व भाषा अकादमी केरल इकाई का महासचिव श्री आंटो पी डी ने आभार प्रकट किया और कहा कि इस बैठक में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के विभिन्न राज्यों से हिन्दी लेखक एवं हिन्दी प्रेमी जुड़े हैं | यह इस बात को दर्शाता है कि हिन्दी समस्त भारत को सिर्फ जोड़ती ही नहीं, परंतु एक जुनून पैदा करती है जो राष्ट्र भावना को सुदृढ़ करती है |

भारत के विभिन्न राज्यों से जुड़े हिन्दी प्रेमियों ने अपना परिचय दिया और इति सभा सम्पन्न हुई |

नलिनी भार्गव की पुस्तक 'रामेश्वरम' का लोकार्पण।गुरुग्राम।लेखिका डॉ. नलिनी भार्गव की पुस्तक ‘रामेशवरम्’ का लोकार्पण भव्य ...
23/06/2021

नलिनी भार्गव की पुस्तक 'रामेश्वरम' का लोकार्पण।

गुरुग्राम।लेखिका डॉ. नलिनी भार्गव की पुस्तक ‘रामेशवरम्’ का लोकार्पण भव्य रूप से किया गया। डॉ. नलिनी भार्गव ने यह पुस्तक अपने पिता श्री रामेश्वर प्रसाद भार्गव जो शिक्षाविद् थे उनकी जीवन यात्रा पर लिखी है। जिसमें जीवन जीने की सीख, व्यवहार व अपने कर्तव्यों के बारे में बताया गया है। समाज के प्रति हमें अपनी ज़िम्मेदारी व कर्तव्यों का निर्वाह कैसे करना चाहिये यह बताया गया है।

साथ ही यह संदेश भी दिया है कि हमें शिक्षकों प्रति समाज को जागरूक करना चाहिये व कम से कम एक व्यक्ति को भी यदि हम शिक्षित कर दें तो हमारा जीवन सार्थक है।

इस कार्यक्रम में अतिथियों के रूप में प्रसिद्ध साहित्यकार व कवि डॉ. सरोज कुमार जैन, ऑलइंडिया रेडियो के पूर्व महानिदेशक व प्रसिद्ध ग़ज़लकार श्री लक्ष्मीशंकर बाजपेयी, दूरदर्शन के पूर्व कार्यक्रम निदेशक व प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. अमर नाथ ‘अमर’, अंतरराष्ट्रीय फ़ोटोग्राफ़र प्रो. सुबंधु दुबे, मशहूर ग़ज़लकार श्रीमती ममता किरण जी व प्रसिद्ध हास्य व्यंग कवयित्री श्रीमती निशा भार्गव जी, मौजूद थे।
इस कार्यक्रम का कुशल संचालन डॉ. नलिनी भार्गव ने किया।

डॉ. सरोज कुमार जैन ने कहा कि - श्री रामेश्वर प्रसाद भार्गव एक रूटीन प्रिंसिपल नहीं थे। बहुत मित्रवत् थे। एक परिवार के मुखिया की तरह कॉलेज के स्टाफ़ व छात्रों को स्नेह दिया करते थे।

प्रो. दुबे ने कहा - भार्गव साहब बहुत सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। कोई भी शिक्षक, कर्मचारी, विद्यार्थी उनसे सहज रूप से मिल सकता था और वे सभी से स्नेह पूर्वक व आदर पूर्वक बात करते थे। किसी भी समस्या का निदान उसी समय कर दिया करते थे।

श्री लक्ष्मीशंकर बाजपेयी ने उनके प्रति ये पंक्तियाँ समर्पित कीं-
‘ज़िंदगी भर ज़िंदगी का कारवाँ बन कर जिये,
और जब गये तो एक लंबी दास्ताँ बन कर जीये।।’

डॉ. अमरनाथ ‘अमर’ - नलिनी जी के द्वारा लिखी गयी पुस्तक एक ऐतिहासिक कार्य है। इससे औरों को प्रेरणा मिलेगी। यह अनुकरणीय कार्य है।

श्रीमती ममता किरण - पिता को समर्पित पंक्तियाँ-
‘दरख़्त पर जिस तरह से कोई,
पके है फल बस उसी तरह से,
पिता के अनुभव बन हर कहानी,
एक-एक झुर्रियों में ढल रही हैं।’

श्रीमती निशा भार्गव - पिता पर समर्पित पंक्तियाँ-
‘पिता होता है जीवन का सवेरा,
वही मिटाता है परिवार का अँधेरा,
पिता में होती है, गहराई, ऊँचाई और विस्तार,
वही जोड़ता है वंशावली के तार।।’

श्री अनंतमल लूनिया - श्री रामेश्वर प्रसाद भार्गव जी एक कुशल प्रशासक थे, अनुशासन प्रिय थे, महापुरुष थे। उनका जीवन प्रेरणा प्रद था।

श्री सज्जन कुमार कानौडिया - मेरे मित्र थे। बहुत विनम्र थे। टेनिस व बैडमिंटन के उत्तम खिलाड़ी थे। हमारे समय के वो दिन स्वर्णिम दिन थे।

श्री वी. जी . महेश्वरी - वे बहुत सरल व प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। हमारी यादों में आज भी उसी प्रकार जीवंत हैं।

श्री जे.पी. सोमानी - भार्गव साहब छात्र हित को सर्वोपरि मानते थे। सदैव मानवीय संबंधों के प्रति सजग रहते थे। अनुशासन प्रिय व कुशल प्रशासक थे।

रपट- डॉ. नलिनी भार्गव,गुरुग्राम।

सौजन्य:श्री मुकेश शर्मा, चेयरमैन
विश्व भाषा अकादमी (रजि.),भारत।

इक्कसवीं सदी में लघुकथा फैलाव ले रही है - डॉ. अशोक भाटिया समाजसेवा, साहित्य और संस्कृति को समर्पित 'साक्षी' संस्था के फे...
17/05/2021

इक्कसवीं सदी में लघुकथा फैलाव ले रही है - डॉ. अशोक भाटिया

समाजसेवा, साहित्य और संस्कृति को समर्पित 'साक्षी' संस्था के फेसबुक पेज 'जश्न-ए-हिन्द' के साप्ताहिक आयोजनों की श्रृंखला में कल रविवार रात 8 बजे लघुकथा गोष्ठी का आयोजन हुआ। जिसमें देश के जाने माने लघुकथाकारों ने भाग लिया|
हर चीज का एक समय होता है, पिछली सदी में लघुकथा ने संघर्ष किया, अपनी पहचान बनाई| इक्कसवीं सदी में वह फैलाव ले रही है| और अब लघुकथा का समय चल रहा है|- यह उदगार हैं करनाल (हरयाणा) से वरिष्ठ लघुकथाकार डॉ. अशोक भाटिया के| अपनी बात कहते हुए डॉ. भाटिया ने अपनी लघुकथाएँ ‘जिंदगी’ और ‘स्त्री कुछ नहीं करती’ सुनाया जिसमें मजदूरों के जीवन के कठोर सत्य एवं स्त्री की दिनचर्या में छुपी अनेक अनचीन्हीं विसंगतियों को रेखांकित किया गया था|
सहभागी रचनाकारों में सर्वप्रथम दिल्ली से सुश्री शोभना श्याम ने अपनी लघुकथाएँ ‘बक्शीश’, ‘कुतरे हुए नोट का’ एवं ‘बेटी’ का पाठ किया जिसमें रिक्शावाले के प्रति सवारी की मानवीय भावना, कॉर्पोरेट जगत की वितृष्णा एवं बस में सफ़र करती लड़की के प्रति कुत्सित भावनाओं को रेखांकित किया गया था |
तत्पश्चात भोपाल (मध्यप्रदेश) से सुश्री कान्ता रॉय ने अपनी लघुकथाएँ ‘बैकग्राउंड’, ‘विलुप्तता’ और ‘कागज का गाँव’ का वाचन किया जिसमें मानवीय मूल्य, पर्यावरण एवं सरकारी योजनाओं से सम्बंधित विसंगतियों का चित्रण किया गया था|
दिल्ली से वरिष्ठ साहित्यकार श्री लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने अपनी दो लघुकथाएँ ‘लाभार्थी’ और ‘मानुष गंध’ का पाठ किया| इन दोनों कथाओं में भ्रष्टाचार में लिप्त सिस्टम पर तीखा व्यंग्यात्मक शैली में एवं अकेलेपन का दर्द का मार्मिकता से चित्रण किया गया था | उल्लेखनीय है कि कविता सहित साहित्य की अन्य विधाओं के महारथी श्री वाजपेयी की पहली लघुकथा का प्रकाशन सन 1975 में हुआ था| इसके तुरंत बाद हिसार (हरियाणा) से वरिष्ठ लघुकथाकार श्री कमलेश भारतीय ने ‘सात ताले और चाबी’, ‘खोया हुआ कुछ’ और ‘जन्मदिन’ का पाठ किया| श्री भारतीय की लघुकथाओं में स्त्री विमर्श, प्रेम एवं बेटियों के प्रति सहृदयता को रेखांकित किया गया था| वाचन की श्रृंखला में दिल्ली के वरिष्ठ साहित्यकार श्री महेश दर्पण ने अपनी तीन लघुकथाएँ ‘नंबर’, ‘मासूम’ और ‘प्रकृति, पौधा और प्यार’ में जीवन से जुड़ी विविध दशाओं का चित्रण किया| इन लघुकथाओं में मृत्यु के बाद मानवीय रिश्ते का द्वंद्व मोबाइल नम्बर, बालमन का विश्लेषण एवं पर्यावरण सम्बन्धी चेतना संपन्न कथ्य का समावेश किया गया था|
मंच का संचालन वरिष्ठ साहित्यकार सुश्री ममता किरण ने किया। इस गोष्ठी का समापन करते हुए सुश्री ममता जी ने अपनी लघुकथा 'कतारें' का पाठ किया जिसमें मंदिर के बाहर भक्तों और भिखारियों की बढ़ती कतारों पर तुलनात्मक दृष्टि डालते हुए मांगने वाले गरीब गुरबे की मन्नतें क्यों पूरी नहीं होती, जैसे अनेक प्रश्न उठाए गए।
अंत में अतिथियों एवं श्रोताओं का आभार दशकों से समाज सेवा व साहित्य और संस्कृति को समर्पित डा० मृदुला सतीश टंडन ने किया|
इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में देश-विदेश के जाने माने रचनाकार एवं प्रबुद्धजन उपस्थित रहे और लगातार अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणियां देते रहे।

रपट:ममता किरण

पत्रकारिता व्यापार नहीं हो सकती:राजकुमार सिंह, सम्पादक-दै.ट्रिब्यून -कमलेश भारतीय मीडिया प्रभारी: विश्व भाषा अकादमी (रजि...
16/05/2021

पत्रकारिता व्यापार नहीं हो सकती:राजकुमार सिंह, सम्पादक-दै.ट्रिब्यून

-कमलेश भारतीय
मीडिया प्रभारी:
विश्व भाषा अकादमी (रजि.),भारत।

अखबार या पत्रकारिता कभी भी व्यापार नहीं हो सकते । यदि दुर्भाग्यवश ऐसा हो जाये तो इसकी प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता नहीं रहेगी। यह कहना है लोकप्रिय समाचारपत्र दैनिक ट्रिब्यून के संपादक राजकुमार सिंह का ।

वे मूलतः आगरा के निकट बिसावर गांव के निवासी हैं जो अब हाथरस जिले में है। लेकिन पिता श्री चंद्रभान सिंह नौकरी में थे तो आगरा आ गये । प्रारम्भिक शिक्षा गांव में और उसके बाद एम ए संस्कृत तक की शिक्षा आगरा में हुई । इनके साथ दैनिक ट्रिब्यून में काम करने का अवसर और चंडीगढ़ जाने पर आज तक पत्रकारिता पर समय समय पर चर्चा । बात को सुनने वाले संपादक ।

-पत्रकारिता में कैसे आकर्षण हुआ ?
-काॅलेज छात्र के समय से ही अमर उजाला से जुड़ गया और इसके मालिक संपादक अनिल अग्रवाल मेरे प्रेरणा स्त्रोत रहे । तब आपातकाल के बाद का समय था और वैचारिक प्रवाह और परिवर्तन मेरे मन में उमड़ने लगे थे जिसे पत्रकारिता का माध्यम मिल गया ।

-अगली जाॅब ?
-सर्वाधिक लोकप्रिय साप्ताहिक धर्मयुग में । मेरा सपना भी था इसके संपादक धर्मवीर भारती के साथ काम करने का , जो पूरा हुआ।

-कितने वर्ष काम किया धर्मवीर भारती जी के साथ?
-सन् 1985 से सन् 1989 तक चार साल ।
-कैसे संपादक थे धर्मवीर भारती ?

- अपने समय के महान् साहित्यकार ही नहीं पत्रकार भी जो बहुत दुर्लभ संयोग होता है । हर विभाग में सर्वश्रेष्ठ । बहुत सख्त संपादक लेकिन नये लोगों के प्रशिक्षण में मददगार । बाहर और भीतर गजब का अनुशासन । लगभग एक दर्जन कवर स्टोरीज ऐसी थीं जो सबसे पहले धर्मयुग में ही आईं ।

‌-और क्या क्या गुण आपकी नज़र में भारती जी के ?
-पूर्ण समर्पण, पाठकों लेखकों से पत्र व्यवहार और व्यक्तिगत सम्पर्क ।

-धर्मयुग के बाद कहां ?
-संडे आब्जर्वर में उदयन शर्मा के साथ क्योंकि वे भी धर्मयुग की ही उपज थे । जब दिल्ली आए तो मुझे भी कहा कि आ जाओ, आपकी जरूरत है । इस तरह उनके साथ पहुंचा दिल्ली सहायक संपादक बन कर । वे भी गजब के संपादक और पत्रकार ऐसे कि संपादक बनने के बावजूद सक्रिय संवाददाता । साम्प्रदायिक सद्भावना उनकी सदैव चिंता रही । नवभारत टाइम्स के संपादक एस पी सिंह को भी याद कर रहा हूं जो बहुत कम बोलते और बहुत कम लिखते थे लेकिन सटीक लिखते थे । उन्होंने ही आज तक को ही नहीं बल्कि टी वी को नया रूप दिया । टीवी का जनक कह सकते हैं आप उन्हें ।

-दैनिक ट्रिब्यून में कैसे ?
-जब संडे आब्जर्वर में था तब रमेश नैयर और देवेंद्र चिंतन भी थे जो ट्रिब्यून में काम कर चुके थे और चर्चा में ट्रिब्यून समूह की बड़ी तारीफ करते थे । सन् 1995 में जब सहायक संपादक की पोस्ट निकली तो मैंने ट्राई किया और सहायक संपादक चुना गया । अब संपादक ।

-कोई पुरस्कार?
-प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से सर्वश्रेष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार पुरस्कार सहित अनेक पुरस्कार/सम्मान। तब एक घंटे का कार्यक्रम भी दूरदर्शन पर आया मेरे बारे में ।

-कितनी पुस्तकें अब तक ?
- अब तक चार पुस्तकें -समय के चेहरे -समाज के विभिन्न चर्चित चेहरों पर । दूसरी आज़ादी के बाद की हिंदी पत्रकारिता । तीसरी कृष्णदत्त पालीवाल की जीवनी और चौथी ओसामा का अंत । वह ओसामा बिन लादेन पर पहली पुस्तक होगी।

-आज पत्रकारिता कहां से कहां आ गयी ?
-हर समय में चीजें , मूल्य और सरोकार बदलते हैं । स्वतंत्रता पूर्व सामाजिक चुनौतियां और थीं व हम परतंत्र थे । यही स्थिति दूसरे क्षेत्रों में भी थी । स्वतंत्रता के बाद सरोकार बदले । फिर भी पत्रकारिता को प्रोफेशन नहीं मान सकते । यह दूसरे प्रोफेशन्ज से बहुत अलग है ।

-फिर इतना बदलाव कैसे?
- बाजार का दखल बढ़ता गया । बाजार ने सब कुछ नियंत्रित करना शुरू कर दिया । पहले अखबार कौन निकालते थे ? स्वतंत्रतता सेनानी, क्रांतिकारी या समाजसेवी लोग और अब कौन ? व्यापारिक पृष्ठभूमि वाले लोग जो इसे व्यवसाय समझ कर मुनाफा कमाना चाहते हैं । इसलिए पत्रकारिता के सरोकार बदले हैं । मैं साफ तौर पर कहना चाहता हूं कि अखबार कभी व्यापार नहीं हो सकता ।

-पत्रकारिता के गुण क्या होने चाहिएं?
-मुनाफा कमाना नहीं बल्कि जन सरोकार, प्रतिबद्धता और विश्वसनीयता । सबसे बड़े गुण ।

-लक्ष्य ?
-भूमिका बदल सकती है लेकिन प्रतिबद्धता नहीं ।अंतिम समय तक पत्रकारिता।

हमारी शुभकामनाएं राजकुमार सिंह को ।

सौजन्य:मुकेश शर्मा, चेयरमैन
विश्व भाषा अकादमी (रजि.),भारत।

ऑस्ट्रेलिया की COVID-19 वैक्सीन रोलआउट योजना इस सोमवार से लागू होगी, जो देश के आधुनिक इतिहास के सबसे बड़े तार्किक अभ्यास...
20/02/2021

ऑस्ट्रेलिया की COVID-19 वैक्सीन रोलआउट योजना इस सोमवार से लागू होगी, जो देश के आधुनिक इतिहास के सबसे बड़े तार्किक अभ्यासों में से एक होगी।
अगर सब कुछ योजना के अनुसार हो जाता है, तो मार्च के अंत तक वायरस के खिलाफ लगभग चार मिलियन ऑस्ट्रेलियाई लोगों को टीका लगाया जाएगा।

20/02/2021

चिकित्सीय सामान प्रशासन (TGA) ने ऑस्ट्रेलिया में पूर्ण और गहन मूल्यांकन प्रक्रिया के बाद AstraZeneca COVID-19 वैक्सीन को आज मंजूरी दे दी है।

वैक्सीन सुरक्षा, गुणवत्ता और प्रभावकारिता के लिए आवश्यक मानकों को पूरा कर चुकी है और आस्ट्रेलियाई लोगों को मुफ्त प्रदान की जाएगी।

बेटे को इतना काबिल बनाओ कि अपने देश में ही रहे:हास्य कवि सुरेन्द्र शर्मारपट:दीपशिखा श्रीवास्तव, गुरुग्राम। गुरुग्राम।महि...
28/01/2021

बेटे को इतना काबिल बनाओ कि अपने देश में ही रहे:हास्य कवि सुरेन्द्र शर्मा

रपट:दीपशिखा श्रीवास्तव, गुरुग्राम।

गुरुग्राम।महिला काव्य मंच,गुरुग्राम इकाई (हरियाणा) की अध्यक्षा सुश्री दीपशिखा श्रीवास्तव का एक वर्ष का सफल कार्यकाल सम्पन्न होने पर इस जिला इकाई द्वारा एक विशिष्ट डिजिटल काव्यगोष्ठी का आयोजन किया।

गोष्ठी में जहाँ सान्निध्य प्राप्त हुआ महिला काव्य मंच के संस्थापक श्री नरेश नाज का,वहीं अध्यक्षता रही मकाम की राष्ट्रीय सचिव श्रीमती सारिका भूषण की। मुख्य अतिथि के रुप में विख्यात कवयित्री एवं मंच संचालिका डॉ.कीर्ति काले, विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे प्रसिद्ध हास्य कवि श्री सुरेंद्र शर्मा तथा विश्व भाषा अकादमी के चेयरमैन एवं प्रसिद्ध लघुकथाकार श्री मुकेश शर्मा।

कार्यक्रम का शुभारंभ महिला काव्य मंच गुरुग्राम इकाई की अध्यक्षा सुश्री दीपशिखा श्रीवास्तव 'दीप' द्वारा माँ शारदे को दीप प्रज्वलन व माल्यार्पण के साथ किया गया।महिला काव्य मंच गुरुग्राम इकाई की उपाध्यक्षा रश्मि चिकारा ने इस डिजिटल काव्य गोष्ठी का कुशलतापूर्वक संचालन किया।
इसके अतिरिक्त महिला काव्य मंच हरियाणा प्रांत की उपाध्यक्षा श्रीमती बीना कौशिक, गुरुग्राम इकाई की महासचिव अंजू सिंह, वरिष्ठ साहित्यकारा सविता स्याल, वरिष्ठ साहित्यकारा आभा कुलश्रेष्ठ, नीरजा मल्होत्रा, अर्चना सिन्हा,सुजीत कुमार ने अपनी मनमोहक रचनाओं से गोष्ठी में चार चांद लगा दिए एवं शाम को यादगार बना दिया।
अंत में श्रीमती दीपशिखा श्रीवास्तव 'दीप' ने सभी साहित्यकारों का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए गोष्ठी का समापन किया।
कविता की पंक्तियॉ कुछ इस प्रकार है-
श्री नरेश नाज़ ने सुनाया-
मेरे प्यारे देश वासियों सुनो देश का हाल।
लगे अगर मैं सच कहता हूं तुम भी देना ताल।।

प्रसिद्ध हास्य कवि श्री सुरेन्द्र शर्मा ने कहा-
बेटे को इस काबिल मत बनाओ कि-
वो विदेश जाकर पांच लाख महीना कमाए।
बल्कि इस ला यक बनाओ कि अपने देश मे कमाकर,
शाम को आपके साथ खाना खाएं।।

सुश्री सारिका भूषण -
बडी़ ढी़ट होती है लड़कियाँ
हर रिश्ते में रिसता जाता है इनका स्वाभिमान।

डॉ.कीर्ति काले ने सुनाया-
कई दिनों के बाद मिला है
मन चाहा इतवार।

सुश्री दीपशिखा श्रीवास्तव 'दीप'-
दिल के लहूँ से लिख दूं,कुछ लफ्ज़ तेरी शान में,
बस चाह अब इतनी सी है,हो हर जन्म हिंदुस्तान में।

सुश्री रश्मि चिकारा-
मां का क्या गुणगाण करूं-
मां तो सबसे प्यारी है।

श्री मुकेश शर्मा-
द्रौपदी लुटने लगे तो लड़ पडो़,कुछ चीख लो।
सांस लेते हो,पर तुम,जीना भी तो सीख लो।।

सुश्री आभा कुलश्रेष्ठ -
नई सोच है नई दिशाएँ,
जीवन बदला साथ बदल गई-
कितनी ही परिभाषाएँ।

सुश्री सविता स्याल-
बूढ़ी मां की सूनी आंखे थक जाती
करते इंतजार रख कलेजे पर पत्थर।

सुश्री अंजू सिंह -
आजकल हममें तुम में बात नहींं होती।
रोज मिलते तो है पर मुलाकात नहींं होती।।

सुश्री नीरजा मल्होत्रा -
कागज और कलम को कई बार सहेजा
दिल के जज्बात को कई बार रहा टटोला।

सुश्री अर्चना सिन्हा -
आज मैने आलू गोभी की सब्जी बनाई
उन्होने बडे़ ही चाव से खाई।

श्री सुजीत कुमार -
सच है यह मेरे जीवन में
सारे रंग तुम्हारे है।

साहित्य संवेदनशीलता बढ़ाता है : धीरा खंडेलवाल -कमलेश भारतीय,प्रभारी-मीडिया/पत्रकारिता विभागविश्व भाषा अकादमी (रजि.),भारत।...
24/12/2020

साहित्य संवेदनशीलता बढ़ाता है : धीरा खंडेलवाल

-कमलेश भारतीय,प्रभारी-मीडिया/पत्रकारिता विभाग
विश्व भाषा अकादमी (रजि.),भारत।

हरियाणा की अतिरिक्त मुख्य सचिव व जनसम्पर्क व भाषा धीरा खंडेलवाल का लक्ष्य है हरियाण के लेखकों/कलाकारों को प्रोत्साहन देना । इसके लिए वे नयी से नयी योजनाएं बनाती रहती हैं । उत्तरप्रदेश के उन्नाव में जन्मी धीरा खंडेलवाल ने कानपुर यूनिवर्सिटी से एम ए इतिहास किया और फिर पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ से एल एल बी ।

वैसे उन्होंने ज्योति प्रवीण और ज्योतिष विशारद भी किया है । टैरो रीडर भी हैं। यानी बहुमुखी प्रतिभा । हरियाणा के ही वरिष्ठ आईएएस अधिकारी डॉ कृष्ण कुमार खंडेलवाल की वे धर्मपत्नी हैं और अपने उपाध्यक्षके कार्यकाल के दौरान इनको समझने और मुलाकातों का सिलसिला रहा और इनके हंसमुख व मिलनसार व्यक्तित्व के चलते यह साहित्यिक संबंध बना हुआ है ।

-पहली जॉब कौन सी ?
-दिल्ली के सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की प्रोबेशनरी ऑफिसर । छह सात माह ।
-आईएएस कब ?

-सन् 1986 अगस्त माह में । कैडर था यू टी। दो साल नई दिल्ली की एसडी एम ।

-हरियाणा में कब से ?
-सन् 1990 से । कभी सी ई ओ तो कभी एडीसी । फिर संयुक्त सचिव शिक्षा और अब अतिरिक्त सचिव सूचना जनसंपर्क व भाषा तथा पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन ।

-साहित्य में रूचि कब से ?
-बचपन से ही । ग्रेजुएशन में संस्कृत पढ़ी । आईएएस परीक्षा में भी हिंदी साहित्य और इतिहास विषय रखे । कविताएं भी बचपन से ही लिखती आ रही हूं ।

-कितने काव्य संग्रह?
-मुखर मौन , सांझ संकारे, मेघ मेखला , तारों की तरफ , मन मुकुर, और कितने ही संयुक्त संकलनों में कविताएं संकलित । क्षनिकायें। कविता ,अकविता गज़ल ,हाईकु ,सायली छंद,,वर्ण पिरामिड , धनुषाकार पिरामिड, तॉंका, त्रयावली, लोकगीत , मुकरियॉं इत्यादि विधाओं में लिखा।

-आप बहुत छोटी रचनाएं लिखती हैं । कोई खास वजह ?
-नहीं । ऐसी कोई वजह नहीं । लम्बी कविताएं भी हैं मेरी । आठ नौ शब्दों से लेकर दो दो , तीन तीन पृष्ठ की भी । जैसे विचार आया , शुरू लिखना और कहां खत्म ये तो भाव ही जानता है ।

-आपके प्रिय कवि ?
-ज्यादातर छायावादी काल के कवि । जैसे जयशंकर प्रसाद , निराला , पंत और महादेवी वर्मा ।
-हरियाणा में रहते आपको लगभग तीस वर्ष हो गये यानी जीवन के स्वर्ण काल आपने हरियाणा को दिया ।

हरियाणा के साहित्य पर क्या कहेंगी ?
-मेरी कर्मभूमि हरियाणा है । इसलिए बहुत प्यार और लगाव है । हरियाणा के साहित्यकारों में बहुत पोटेंशियल है । पर नयी प्रतिभाओं को अवसर की जरूरत है । ऐसे में महसूस करती हूं । अभी अकादमी में बैठक की और कहा कि रचनाकारों की जिलावार सूचियां बनाइए ।

-इसके अतिरिक्त कोई नयी योजना ?
-हरियाणा सरकार की ओर से ‘कला मेधा ‘तीस वर्ष तक कलाकारों के लिए ,
‘कला प्रवीण ‘चालीस साल तक , ‘कलाश्री ‘पचास वर्ष, ‘कला
रत्न ‘अवार्ड शुरू किये गये हैं इनमें लगभग सभी ऑडियो व विजुअल आर्ट विधायें शामिल है । इसमें प्रतिवर्ष लगभग एक सौ तीस पुरस्कार दिये जाने हैं। प्रथम वर्ष के चयनित कलाकारों का पुरस्कार वितरण समारोह कोविड के कारण नहीं हो पा रहा है । ऐसे ही एज वाइज साहित्य में भी पुरस्कार होने चाहिएं जिससे नयी प्रतिभाओं को प्रोत्साहन मिल सके ।

-हरियाणा के राष्ट्रीय स्तर पर योगदान पर क्या कहेंगी?
-राष्ट्रीय संस्थाओं में हरियाणा का प्रतिनिधित्व बढ़ाने की दिशा में काम करना है । उनमें प्रतिनिधित्व कम है ।

-आपने अकादमी की बैठक ली है। कुछ बतायेंगी । यह विचार कैसे आया ?
साहित्य इतिहास का पूर्वगामी है
साहित्य से लगाव व्यक्तित्व में आदर्शवादिता और संवेदनशीलता बढ़ाता है । साहित्य और कला राजा के प्रश्रय से ही पनपते हैं। सरकार की तरफ से उदारवादिता है। अत: आप सभी के सहयोग से लेखन प्रतिभा को प्रोत्साहन मिले यही प्रयास रहेगा। सुधीजनों के सुझाव आमंत्रित हैं।

-नया क्या?
-मेरी चार किताबें प्रकाशनाधीन हैं ।
-लक्ष्य ?

-साहित्य में मन रमा रहे और क्या चाहिए? कलम जिधर ले जाए ।

सौजन्य:मुकेश शर्मा, चेयरमैन
विश्व भाषा अकादमी (रजि.),भारत।

https://youtu.be/3g3uwA506XU
30/10/2020

https://youtu.be/3g3uwA506XU

'मैंने तेरे लिए ही सात रंग के सपने चुने' एफएम रेडियो 107.8 पर प्रसारित प्रसिद्ध कथाकार मुकेश शर्मा का साक्षात्कार (2013) औ.....

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