02/07/2025
"त्रिगुण मार्ग"
एक बार की बात है, गंगा के किनारे एक छोटे से गाँव में एक युवक रहता था - उसका नाम अयन था। वह शांत और विचारशील था। अयन के मन में तीन प्रश्न घूमते रहते थे - धर्म क्या है, कर्म क्या है और माया इतनी आकर्षक क्यों है?
अयन एक गरीब ब्राह्मण पुत्र था। पिता की मृत्यु के बाद संसार का भार उसके कंधों पर आ गया। सुबह वह पूजा-पाठ करता, फिर गाँव के लोगों की ज़मीन पर काम करके थोड़ा-बहुत कमाता और रात को माँ के साथ बैठकर चावल खाता और सो जाता।
एक दिन गाँव के मेले में उसकी मुलाक़ात एक संत से हुई। संत की आँखों में गहरी शांति थी, उनकी बातों में गहराई थी।
अयन ने पूछा, "पिताजी, मैं धर्म का पालन करता हूँ, कर्म करता हूँ, लेकिन माया मुझे नहीं छोड़ती। मैं किसका अनुसरण करूँ?"
संत ने धीरे से मुस्कुराया। उन्होंने कहा, "धर्म तुम्हारे भीतर से आता है, कर्म तुम्हारा बाह्य प्रयास है, और माया? यह जीवन का रंग है। माया का त्याग करते ही जीवन शुष्क हो जाता है। लेकिन यदि तुम माया के गुलाम बन जाते हो, तो तुम अपना मार्ग खो देते हो।" अयान को आश्चर्य हुआ, "तो मैं क्या करूँ?" संत ने कहा, "नदी की तरह बनो। धर्म तुम्हारा स्रोत होगा, कर्म तुम्हारा प्रवाह होगा, और माया तुम्हारे किनारों पर उगने वाले फूल होंगे - तुम देखोगे, लेकिन पकड़ोगे नहीं। तभी तुम्हें मार्ग मिलेगा।" उस दिन से अयान का जीवन बदल गया। उसे अब संकोच नहीं रहा। उसने समझ लिया कि जीवन का सत्य केवल धार्मिक अनुशासन में नहीं है, केवल कर्तव्यों को पूरा करने में नहीं है, या केवल संसार के मोह में नहीं है - सत्य संतुलन में छिपा है। अंतिम शब्द: मनुष्य जीवन भर मार्ग खोजता रहता है - कभी धर्म में, कभी कर्म में, तो कभी माया में। लेकिन मार्ग तभी स्पष्ट होता है जब वह स्वयं को जान लेता है।