05/07/2025
अम्बाला में महा-भ्रष्टाचार के 'सिम्पटम' (लक्षण) स्पष्ट हैं, इलाज करने की सरकारी मंशा अभी स्पष्ट नहीं-: चित्रा सरवारा
समय सीमा, बजट 2 से 3 गुणा लांघने के बाद भी प्रोजेक्ट अधूरा भ्रष्टाचार पूरा :-चित्रा सरवारा
अम्बाला कैंट का शायद एक भी प्रोजेक्ट इस कसौटी पर पूरा नहीं उतरेगा- : चित्रा सरवारा
अम्बाला छावनी:- "इस बात पर कोई संदेह नहीं बचा कि अम्बाला छावनी का शायद ही कोई प्रोजेक्ट ऐसा हो जिसे भ्रष्टाचार ने छुआ ना हो" — यह तीखे आरोप चित्रा सरवारा ने उस वक्त लगाए जब बैंक स्क्वायर प्रोजेक्ट में कथित घोटाले की जांच घोषित हुई है ये तथ्य पब्लिक में खुलने के बाद की टेंडर प्रक्रिया में ₹87.12 करोड़ की सबसे किफायती बोली को अयोग्य घोषित कर ₹106.79 करोड़ की महंगी निविदा को सौंपा गया।
चित्रा सरवारा ने कहा —
"मैं कहूँगी हमारे लिए यह कोई हैरानी की बात नहीं रही कि अम्बाला के एक और प्रोजेक्ट में घोटाले के आरोप और तथ्य उजागर हुए हैं। ये सिर्फ़ सवाल नहीं हैं, ये अब दस्तावेज़ हैं —यह तो बस शुरुआत है, आगे अंबाला में मेहरबानियों की परतें खुलती जाएँगी।"
हर बीमारी के कुछ 'कॉमन सिम्पटम्स' (समान्य लक्षण) होते हैं जिनसे उसकी पहचान हो सकती है और तभी सही इलाज हो सकता है। अम्बाला छावनी के भ्रष्टचार के भी कुछ साफ़-साफ़ लक्षण हैं जैसे :
1. प्रोजेक्ट द्वारा समय सीमा को 2-3 गुणा से लांघ जाना I
2. प्रोजेक्ट द्वारा निर्धारित बजट को 2-3 गुणा से लांघ जाना I
3. समय और बजट को लांघने के बाद भी प्रोजेक्ट अधूरा होना I
अगर इनको देखें तो आज अंबाला का शायद एक भी ऐसा प्रोजेक्ट नहीं मिलेगा जहां ये लक्षण देखने को नहीं हों I निकासी-सीवरेज प्रोजेक्ट से सड़कों तक, नागरिक अस्पताल से नाइट मार्केट तक, शिक्षा प्रणाली से जुड़े प्रोजेक्ट से लेकर स्टेडियम तक, अग्निशमन भवन से लेकर 1857 की क्रांति के अधूरे स्मारक तक — हर लटके प्रोजेक्ट की फाइल पर पर सम्भावित भ्रष्टाचार की धूल जमी है।
मुख्यमंत्री को हमने कई बार निवेदन किया — वर्तमान भी और पूर्व भी — कि इन सब प्रोजेक्ट्स की विजिलेंस जांच होनी चाहिए। अगर सरकार की मंशा वास्तव में भ्रष्टाचार मिटाने की है तो यह उनके लिए अग्निपरीक्षा है। जिसने खाया है, उसे सामने लाया जाए और जेल की सलाखों के पीछे धकेला जाए। जनता को जवाब चाहिए — और अब जवाबदेही से भागना बंद होना चाहिए।
चित्रा सरवारा ने चेताया —
हर वह ईंट जो करदाताओं के पैसे से उठाई गई है, अगर भ्रष्टाचार की बलि चढ़ गई है, तो यह केवल निर्माण नहीं, जन-विश्वास का विध्वंस है। अगर सरकार इस पर चुप है, तो यह चुप्पी उसकी संलिप्तता की गवाही बन जाएगी ।
इसी सन्दर्भ में, चित्रा सरवारा ने इसे "राजकोषीय छल और जनता के विश्वास की संगठित लूट" की संज्ञा दी। उन्होंने कहा कि जब किसी निर्माण परियोजना की शुरुआती ईंट खोखले वायदों और निगरानी से दूर रखी जाती है, तो वह परियोजना विकास नहीं — एक प्रतीक बन जाती है नीतियों की क्षय और नीयत की गिरावट का।
यह घोटाला अम्बाला छावनी के गांधी मैदान के समीप तीन एकड़ भूमि पर प्रस्तावित बैंक स्क्वायर प्रोजेक्ट से जुड़ा है। चार कंपनियों ने इस परियोजना के लिए टेंडर डाला था। ₹87.12 करोड़ की सबसे किफायती बोली देने वाली मैसर्ज गोरा लाल बिल्डर्स एंड इंजीनियर्स को तकनीकी बहाने से बाहर कर ₹106.79 करोड़ की कंपनी को काम सौंप दिया गया। मामला जब हरियाणा हाईकोर्ट और मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुँचा तो दोबारा जाँच कर सही कंपनी को टेंडर दिया गया — पर तब तक सच उजागर हो चुका था।
एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) ने इस मामले में रिटायर्ड एसडीएम सुभाष सिहाग, एसई रमेश मदन, ईओ विनोद नेहरा, एक्सईएन पंकज सैनी, एमई हरीश मनेश्वर भारद्वाज, जेई हरीश शर्मा, कपिल कंबोज सहित नौ अधिकारियों के विरुद्ध केस दर्ज कर जाँच शुरू कर दी है। लेकिन चित्रा सरवारा का कहना है कि "सिर्फ ACB की कार्रवाई ही काफी नहीं है — जवाबदेही उस राजनीतिक व्यवस्था की भी होनी चाहिए, जो इन अफसरों को संरक्षण देती आई है।"