
06/06/2025
"रूपों में मौन, धातु में आत्मा" – मूर्तिकार मनोज शुक्ला की कलायात्रा
कभी-कभी कला शोर नहीं मचाती—वो बस ठहरती है, देखती है, और फिर चुपचाप हमारे भीतर कुछ छू जाती है। मनोज शुक्ला की मूर्तियाँ भी कुछ ऐसा ही अनुभव कराती हैं—वे घोषणाएँ नहीं हैं, बल्कि ध्यान की तरह गढ़े गए स्थान हैं, जो पत्थर, स्क्रैप और धातु से आकार लेते हैं।
Photo Story के आगामी संस्करण में, हमारे Showcase सेक्शन में प्रस्तुत है एक विशेष फीचर—मूर्तिकार मनोज शुक्ला पर, जो त्यागे गए और कठोर माने जाने वाले पदार्थों में से संवेदना और मौन का सौंदर्य निकालते हैं।
वे लखनऊ विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स से स्नातक हैं और उन्होंने डॉ. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय से मास्टर ऑफ विजुअल आर्ट्स की उपाधि प्राप्त की है।
उनकी कला ग्रामीण जीवन की बनावट, परंपरा और परिवर्तन के बीच के सूक्ष्म संतुलन, और आत्मिक शांति के भाव को स्पर्श करती है। हर मूर्ति जैसे समय में एक ठहराव बन जाती है—जहाँ पदार्थ प्रतीक बन जाता है, और मौन एक नई भाषा बोलता है।
इस विशेष प्रस्तुति में शामिल हैं:
🔸 उनकी प्रमुख मूर्तियों की एक चुनी हुई दृश्यात्मक झलक
🔸 एक आत्मीय साक्षात्कार, जिसमें वे अपनी रचना-प्रक्रिया, सामग्री के चुनाव और कलादर्शन को साझा करते हैं
🔸 और सबसे महत्वपूर्ण—एक ऐसा अनुभव, जहाँ पत्थर साँस लेते हैं और धातु स्मृतियों को संजोती है
जल्द ही प्रकाशित होगा।
जहाँ शिल्प, मौन और धातु मिलकर गढ़ते हैं आत्मा की अभिव्यक्ति—मनोज शुक्ला की कलाजगत में आपका स्वागत है।👇
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