23/06/2023
**आस्था**
आद्रा मेला (माँ सत्यबहिनी ) अम्बा
बतरे ,बटाने नदी के मध्य से जो मार्ग (मार्ग-139) हरिहरगंज से औरंगाबाद जाती है। औरंगाबाद जिले और हरिहरगंज के मध्य एक छोटा- सा बाजार पड़ती है। जिसे अम्बा के नाम से जाना जाता है । अम्बा बाजार से महज 100मी0 से 150मी0 की दूरी पर एक मंदिर स्थित है । जो सत्यबहिनी मंदिर के नाम से प्रचलित है। ये मंदिर आस्था के महत्तम केंद्र माना जाता है। लोगों का मानना है ,की जो माँ से मनत माँगी जाती है ।अवश्य पूर्ण होती है। ऐसी लोगों का आस्था है ,माँ सत्यबहिनी से ।
दन्त कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि सत्यबहिनी मंदिर के पास एक गांव स्थित है ,जिसका नाम चिल्हकी है। उसी गाँव के जमींदार महाराज पांडेय अपने सन्तान प्रप्ति हेतु किसी साधु-संत के कहना अनुसार स्थापित किया। अम्बा ग्राम के बुलक प्रसाद नामक सुनार ने कुछ दिन पश्चात अपनी मन्नत पुर्ण होने पर सात मुंडियो वाली देवी को सोने से माड़ वाने का कार्य किया ।इसी तरह आगे चलकर एक मंदिर का निर्माण हुआ।
परन्तु कुछ वर्ष पूर्व आंधी तूफान के कारण वट वृक्ष टूट जाती है।और मंदिर का भी विनाश हो जाती है। स्थानीय लोगों के अथक प्रयास से सरकार के द्वारा तमिलनाडु के मूर्तिकार के द्वारा इस मंदिर के पुनः निर्माण किया गया। यह मंदिर अपने जिला औरंगाबाद में ख्याति अर्जित कर रखी है। इसके दर्शन हेतू लोग दूर-दूर से आते हैं। अब इस मंदिर में गरीब तबके के लोगों अपने लड़के-लड़कियों की शादी करवाना शुरू कर दिया है। मंदिर के आसपास कई मैरिज हॉल भी जिसे शादी करने आये लोगों को सुविधा सफल बना रही है।साथ ही साथ यहाँ के लोगों की आर्थिक की जरिया भी बन चुकी है।
माँ सत्यबहिनी के नाम पर प्रत्येक वर्ष मन्दिर से सटे क्रीड़ा क्षेत्र चिल्हकी खेल मैदान में महोत्सव होती है। जो अम्बे महोत्सव के नाम से आज पूरे बिहार में प्रचलित है।इस महोत्सव का आयोजन पहले स्थानीय लोगों के द्वारा कराई जाती थी। पर अब इसे सरकार द्वारा कराई जाती है। जिसमें स्कूली बच्चों का प्रस्तुति के साथ-साथ राज स्तरीय कलाकार भाग लेते हैं। ये तीन दिवसीय आयोजन होती है। जो नवम्बर से दिसंबर माह किया जाता है।जिसमे क्रिकेट, फुटबॉल, बॉलीबॉल, वेरिबॉल, कबड्डी, खो- खो लॉन्ग जम्प, हाई जम्प ,दौड़ खेल -कूद का भी आयोजन होती है।स्थनीय स्कूली बच्चों का क्विज प्रतियोगिता भी कराई जाती है।अव्वल रहे बच्चों को पुरुस्कृत भी किया जाता था।
पहले एक छोटा-मोटा आयोजन के रूप में होती थी परन्तु अब ये वृहद रूप ले ली है।इसमें स्थानीय स्कूली बच्चों, कलाकारों के साथ -साथ बाहरी कलाकार अंजली भारद्वाज, अंकुश राजा, पुष्पा राणा, धर्मेंद्र धड़कन जैसे कलाकार और स्थानीय कलाकार जो राज्यस्तरीय ख़िताब हासिल कर चुकी डिंपल भूमि भी शिरकत कर चुकी है।डिम्पल भूमि स्वच्छता की ब्रांड एंबेसडर भी रह चुकी है।आज पूरे बिहार में अपनी कलाकारी की किरणें बिखर चुकी है।
''ओने जैबे तो भुलाइयो जैबे...
आषाढ़ मास के आद्रा नक्षत्र में हर साल एक मेला भी लगती है। जिसे आद्रा मेला के नाम से जाना जाता है।मेला आद्रा नक्षत्र के 15दिनों तक कि होती है।इस मेले में बहुत दूर-दूर से लोग माता के दर्शन हेतू तथा मेले घूमने आते हैं।पूर्व वर्ष बताया जाता है कि एक लाख से भी ज्यादा भीड़ थी।यह मेला 2020 -2021 में कॅरोना के कारण प्रभावित रहा।परंतु2022में मेले में भीड़ अलग ही रूप देखने को मिली बताया जाता है कि की ऐतिहासिक भी कहा जाय तो कोई ग़लती तुक नहीं है।मेले लगने से स्थानीय दुकानदारों की कामिनी खूब बढ़ जाती है। साथ ही साथ जिस जमीन पर मेले लगती है।जमीन वालों की काफी मुनाफा होती है।
मेले में काफी भीड़ से पूरे नक्षत्र में अम्बा बाजार में खूब चहल -पहल रहती है।साथ ही साथ भीड़ से बाजार प्रभावित भी होती है ।मेले में चरखा -चरखी,ब्रेक- डांस,नाव ,जादूगर का खेल ,मौत का कुआं, रेल इंजन, मीना बाजार आदि । मेले में जलेबी ,समोसा, मिठाई, आम, जामुन, केला, सेब,नारियल इलायची दाना अगरबत्ती, धूप ,कपूर आदि का भरपूर बिक्री होती है।इस मेले का आनंद बच्चे, बूढ़े, युवा, युवती सब लोग लेते हैं।
आद्रा नक्षत्र में अम्बा का एक अलग ही प्ररूप देखने को मिलती है।
Rs Naveen