01/12/2025
मालती चौहान उस शाम अकेली बैठी थी…
सूरज ढल रहा था, पर उसके दिल में अभी भी एक पुरानी क़मक़माती उम्मीद की लौ जल रही थी।
उसने आसमान की तरफ देखा और मन ही मन कहा—
“कभी-कभी इंसान टूट कर भी ज़िंदा रहता है… पर मैं टूटकर भी हारने वाली नहीं।”
गाँव की पगडंडी पर उसकी साड़ी का पल्लू हवा में हल्का-सा उड़ता रहा, और उसके चेहरे पर भावनाओं का तूफान साफ़ दिख रहा था।
वह रोना चाहती थी, पर आँसू जैसे आँखों में अटके रह गए।
दिल भारी था… बहुत भारी।
क्योंकि वह जानती थी—
प्यार से ज़्यादा दर्द वही महसूस करता है, जिसका दिल सच में सच्चा होता है।
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मालती ने धीरे से अपनी हथेली खोली…
उसमें एक छोटी-सी टूटी माला की मोती जड़े थे—
वही जो उसने कभी किसी की खुशी के लिए पहनी थी।
वह मोती उसके लिए गहना नहीं थे…
एक वादा थे।
एक अधूरा सपना…
एक नाम, जिसे वह आज भी अपने दिल में छुपाए हुए है।
आज उसे लगा जैसे हवा भी उसकी चुप्पी को पढ़ रही हो।
उसने हल्का सा मुस्कुराकर कहा—
“शायद मैं किसी की किस्मत न बन सकी…
पर अब मैं अपनी खुद की तक़दीर लिखूँगी।”
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उसने आँचल संभाला, और उठ खड़ी हुई।
आँखों में चमक थी—
दर्द की नहीं…
बल्कि एक नई शुरुआत की।
क्योंकि मालती चौहान जान चुकी थी—
जिंदगी उसे जितना भी रुलाए,
पर उसके कदम अब पीछे नहीं हटेंगे।
आज से नहीं…
यहीं से उसकी कहानी फिर से शुरू होती है।