choudhary_raju_godara

choudhary_raju_godara फना होने की इज़ाजत ली नहीं जाती, ये वतन की मोहब्बत है जनाब पूछकर की नहीं जाती 🙏🙏🙏💐💐💐❤❤❤

शादीशुदा स्त्री अक्सर कर बैठती है इश्क ❤️ मांग में सिंदूर होने के बाबजूद जुड़ जाती है किसी के अहसासो से कह देती है उससे ...
07/06/2024

शादीशुदा स्त्री अक्सर कर बैठती है इश्क ❤️
मांग में सिंदूर होने के बाबजूद
जुड़ जाती है किसी के अहसासो से
कह देती है उससे कुछ अनकही बाते
ऐसा नहीं कि बो बदचलन है
या उसके चरित्र पर दाग है..
तो फिर वो क्या है जो वो खोजती है
सोचा कभी स्त्री क्या सोचती है
तन से वो हो जाती है शादीशुदा
पर मन कुंवारा ही रह जाता है
किसी ने मन को छुआ ही नहीं
कोई मन तक पहुंचा ही नहीं
बस वो रीती सी रह जाती है
और जब कोई मिलता है उसके जैसा
जो उसके मन को पढ़ने लगता है
तो वो खुली किताब बन जाती है
खोल देती है अपनी सारी गिरहें
और नतमस्तक हो जाती है उसके सम्मुख
स्त्री अपना सबकुछ न्यौछावर कर देती है
जहां वो वोल सके खुद की बोली
जी सके सुख के दो पल
बता सकें बिना रोक टोक अपनी बातें
हंस सके एक बेखौफ हंसी
हां लोग इसे ही इश्क कहते हैं
पर स्त्री तो दूर करती है
अपने मन का कुंवारापन..
कुछ लोगो को पोस्ट अच्छी नहीं लग सकती है लेकिन यही सच्चाई है कोई स्त्री के मान को पढ़ी नही पता है 🙏

किसी  #विवाह समारोह या पार्टी में  #पुरुष के पेंट की ज़िप भी खुली रह जाय तो वो बड़ा  #लज्जित महसूस करता है....वहीं कुछ अ...
17/05/2024

किसी #विवाह समारोह या पार्टी में #पुरुष के पेंट की ज़िप भी खुली रह जाय तो वो बड़ा #लज्जित महसूस करता है....

वहीं कुछ अभिजात्य और आधुनिक वर्ग की #स्त्री जब तक अपनी उघड़ी हुई पीठ,नाभिदर्शन और अधखुले वक्ष न दिखा दे उसके कलेजे को ठंडक नहीं मिलती....

#मातृशक्ति अन्यथा न लें,
पर,जो #सत्य है वो सत्य है....!!

03/04/2024

हर train में जनरल बोगी अवश्य होना चाहिए l कlरण समझिए,,,

पत्नी का मायका  मैंने दीवार की कील पर लटकी घड़ी की तरफ देखते हुए कहा शाम के 7:00 बज चुके हैं जल्दी खाने का टिफिन थैले मे...
31/03/2024

पत्नी का मायका
मैंने दीवार की कील पर लटकी घड़ी की तरफ देखते हुए कहा शाम के 7:00 बज चुके हैं जल्दी खाने का टिफिन थैले में रखो श्रीमती जी रसोई में खड़ी खाना बांधते हुए बोली कई महीने हो गए मायके की शक्ल तक नहीं देखी मां का फोन स्विच ऑफ जा रहा है
मैंने खाने का थैला हाथ में लेते हुए कहा सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी है छुट्टी एक भी मिलती नहीं साइकिल भी पंचर हो चुकी है अभी मुझे ड्यूटी जाने दो ,,,,
हमारी श्रीमती जी का चेहरा उतर गया वह पलंग पर गुस्से में बैठकर मुझे देखती रही और मैं थैला लेकर सड़क पर निकल आया
बस स्टॉप पर पहुंच कर एक बस मिल गई ,, उसी में चढ़ गया,,
तभी मुझे महसूस हुआ जिस रास्ते मुझे जाना है बस उस रास्ते नहीं जा रही है लेकिन बस वाले ने बस नहीं रोकी कहने लगा तुम्हें देखकर चढ़ना चाहिए आगे कोई बस स्टॉप दिखाई देगा तो उतर जाना
आगे एक बस स्टॉप दिखाई दे गया,, बस रुकी और मैं हड़बड़ी में बस से उतरने लगा सामने से एक कार ने जोरदार टक्कर मारी और में उछल कर दूर जा गिर पड़ा,, पब्लिक इकट्ठी हो गई
जिस कार ने टक्कर मारी थी उसमें से एक महिला निकली शायद 36 या 37 वर्ष की थी,,
वह जल्दी से मेरी तरफ लपकी,, कुछ लोगों की मदद से उसने मुझे अपनी कार में बैठने के लिए कहा मैं कुछ समझता कार स्टार्ट होकर सड़क पर दौड़ने लगी एक मकान के सामने कार अचानक रुकी
उसने बताया अस्पताल जाने पर डॉक्टर तरह-तरह के सवाल पूछेंगे सामने मेरा घर है ज्यादा चोट नहीं आई है
मैं एक डॉक्टर हूं घर पर ही तुम्हारे पट्टी बांध दूंगी
वह मुझे अपने कमरे के भीतर ले गई वहां एक पलंग था वहां पर मैं लेट गया
उस कमरे में कोई न था तब मैंने पूछा तुम क्या इस घर में अकेली रहती हो,,,,,
उसने सर हिलाते हुए कहा ,,,,
मेरे पति है दो बच्चे हैं पति रात को 10:00 बजे तक घर आते हैं साथ में शराब की बोतल भी लेकर आते हैं अब तो शराब पीनी उन्होंने बहुत ज्यादा कर दी है नशे की हालत में कभी-कभी बच्चों पर भी हाथ उठा देते हैं
मैंने पट्टी को पैर में कसकर बांधते हुए पूछा आपके पति शराब कब से पी रहे हैं और उन्हें शराब पीने की आदत कैसे पड़ी
वह मुझे अपने बीते हुए कल की दुनिया में ले गई
मेरा नाम पायल शर्मा है जन्म गुजरात गांधीधाम राधानपुर में हुआ था वही पढ़ी-लिखी
20 साल की उम्र पार करते ही मां ने मेरी शादी दिल्ली शहर में कर दी
मायके आने के लिए मैं अपने पति के साथ हमेशा ट्रेन से अपने मायके जाया करती थी
पति मुझे मायके छोड़कर फिर वापस दिल्ली आ जाते थे
मैं वही मायके में ही एक दो हफ्ते रूक जाया करती थी
मेरे मायके में,,
मेरी मुलाकात एक मुकेश नाम के लड़के से हुई कभी-कभी उससे बातें हो जाया करती थी बड़ा ही हंसमुख और चंचल मन का साफ दिल का था। मेरा उससे मिलना हंस हंस के बातें करना
मेरी मां पिताजी भाई को यह अच्छा नहीं लगता था
हालांकि मैं पढ़ी लिखी लड़की हूं अच्छा बुरा मुझे सब मालूम है
उसे मैं अक्सर भाई का दर्जा दिया करती थी वह भी मुझे अक्सर दीदी कहकर बुलाता था,,
किंतु यह समाज हमेशा लोगों को गलत निगाहों से ही देखता है
शादीशुदा लड़की को किसी भी लड़के से बात करने पर परिवार वालों में तुरंत शक पैदा हो जाता है यह आज के समाज की सबसे घटिया सोच है और मोहल्ले के लोग अलग-अलग भड़काते हैं ,,,अरे तुम्हारी बेटी तो मायके में ही पड़ी रहती है मोहल्ले के लोगों को सब पता है आजकल एक मुकेश नाम के लड़के के साथ कुछ ज्यादा ही मौज मस्ती हो रही है
ऐसी जली कटी सुना सुनाकर मेरा घर से निकलना बंद करवा दिया
मैंने मां से सॉफ्टवेयर का काम सीखने की इच्छा प्रकट की तो दिल्ली आकर शहर में नौकरी करने लगी दो पैसे कमाऊंगी तो पति पर बोझ नहीं बनूंगी मां की तबीयत खराब थी मुझे अचानक अकेले ही ट्रेन पकड़ कर मायके जाना पड़ा उसी ट्रेन में मुझे फिर मुकेश मिला
वह मुझे देखकर हैरान रह गया
मैं हमेशा उसे अपना भाई मानती थी मैंने 1 घंटे उससे बातें की
कुछ घर की बातें बताई उसने भी बताया पढ़ाई पूरी हो चुकी है अब नौकरी कर रहा हूं दीदी ,,,
आप शादी के बाद खुश तो है दीदी आपके पति आपको परेशान तो नहीं करते,,
मेरी आंख से एक आंसू की बूंद टपक पड़ी मैंने रोते हुए कहां भैया अब क्या तुम्हें बताऊं लेकिन जरूर बताऊंगी वह मुझ पर शक करते हैं
शायद हमारे मोहल्ले के लोगों ने ही उनके कान भरे हैं
शक की बीमारी बड़ी गंदी होती है मैंने ना जाने कितने लोगों के घर तबाह होते हुए देखे हैं पत्नी अपना कलेजा भी निकाल कर रख दे तब भी पति औरत पर विश्वास नहीं करता है,,,
जब मैंने कोई पाप किया ही नहीं तो मैं क्यों डरूं दुनिया वालों से अपने पति से अपने ससुराल और मायके वालों से लेकिन हूं तो आखिर एक औरत ही परिवार के लिए औरत को ही झुकना पड़ता है
मुकेश भैया,,,
मेरा स्टेशन आ चुका था इतना कहकर ,, मैं ट्रेन से उतर गई
मायके पहुंचने के बाद मां का हाल-चाल पूछा तो मां ने आंखें लाल करते हुए कहा तुझे अकेले आने के लिए किसने कहा था दामाद जी कहां है
कही तुम मुकेश से मिलने के लिए मेरा बहाना बनाकर तो नहीं आई हो,,
मां,,,, तुम कैसी घटिया बातें कर रही हो अपनी बेटी से,,,मेरी सब्र का बांध टूट चुका था आजू-बाजू रहने वाले लोगों के सिखाए पढ़ाने में तुम आ चुकी हो मैं अपनी जान दे सकती हूं मगर कोई गलत काम नहीं करूंगी
मां ने छत से दामाद जी को बुलाते हुए कहा ,,,,पायल,,, मेरी बात ध्यान से सुनो दामाद जी दूसरी ट्रेन पड़कर यहां तुमसे आधे घंटे पहले ही आ चुके हैं
रात को 2:30 बजे यहां से ट्रेन सीधी दिल्ली तुम्हें पहुंचा देगी
अब तू हमेशा हमेशा के लिए अपना मायका भूल जा अगर तू मायके आई तो तू मेरा मरा हुआ मुंह देखेगी
उसी रात मैं अपने पति के साथ सन 2012 को अप्रैल के महीने में दिल्ली लौट आई आज 12 बर्ष बीत चुके हैं मां का चेहरा नहीं देखा
पति ने शहर का पुराना घर बेचकर ,,, यह नया घर ले लिया
पति ने पुराने नंबर और सिम तोड़कर फेंक दिये
और मुझे कसम दी कि तुम कोई फोन अपने पास नहीं रखोगी
12 साल से मेरे पास कोई मोबाइल नहीं है
पास की सहेली पारो वर्मा ने मुझे कार चलाना सिखा दिया और डॉक्टरनी का काम भी
मैं अपने क्लीनिक से लौट रही थी कि रास्ते में मैं ब्रेक लगा रही थी कि तुमसे टकरा गई
पायल शर्मा ने कहना जारी रखा,,,
आज हमारे देश में पति अपनी पत्नियों को मायके इसलिए नहीं ले जाते
उन्हें डर रहता है कहीं उनकी पत्नी मायके जाकर पिछली जिंदगी को दोबारा याद न कर ले पड़ोस में रहने वाले लड़कों से कोई बात ना कर ले
मर्दों के दिमाग में केवल एक ही कीड़ा रहता है शादी होने के बाद औरत को हमेशा कमरे के भीतर रहना चाहिए और किसी भी पुरुष से बात नहीं करनी चाहिए ,,,
बस यही सोचकर मर्द,,,अपनी औरत को मायके नहीं भेजते
काम धंधे का कोई ना कोई बहाना बना देते हैं डार्लिंग आज नहीं कल चलेंगे कल निकल जाता है कहते हैं परसों चलेंगे इसी तरह हफ्ते महीने बीतते चले जाते हैं क्योंकि पुरुषों के दिमाग में शक का कीड़ा पल रहा होता है
समाज में मुश्किल से बहुत कम ऐसे परिवार है जो अपनी पत्नी को मान सम्मान देते हैं उनका आदर करते हैं और सबसे बड़ी बात अपनी पत्नी पर विश्वास करते हैं
पायल शर्मा की बात खत्म होते ही,,,
मैं बिस्तर से उठकर खड़ा हो गया बहन जी मेरा ड्यूटी का टाइम निकल चुका है लेट हो गया हूं मुझे अब जाना होगा
क्या पता आपके पति यहां आकर मुझपर भी शक करें
कि सामने पर्दा हिला एक आदमी दिखाई दिया
उसने मुझे देखा और कहा घबराओ नहीं मैं पायल का पति राकेश हूं
मैं पर्दे के पीछे खड़े सब बातें सुन रहा था
पायल मुझे माफ कर दो,, शक की बीमारी ने मुझे बुरी तरह तोड़ दिया था दरअसल ऐसा कुछ है ही नहीं मोहल्ले में कुछ ऐसी औरतें भी होती है जो दूसरों का घर तोड़ने में माहिर होती है दूसरों का घर टूटते हुए देखना दूसरों का घर बिखरते हुए देखना उन्हें बहुत अच्छा लगता है
मेरी आंखें अब खुल चुकी है आज मुझे मेरी आत्मा मुझे धिक्कार रही है आज मुझे आत्मग्लानि हो रहा है
बच्चे ट्यूशन से आने वाले हैं जब तक तुम कपड़े पैक करो हम अभी तुम्हारे मायके चलेंगे
रास्ते में मोबाइल की दुकान से तुम्हें एक नया फोन भी दिलवा दूंगा टच वाला
राकेश ने शराब की बोतल फेंकते हुए पायल को गले से लगा लिया
राकेश ने तुरंत कार में बिठाकर मुझे मुखर्जी नगर ड्यूटी पर पहुंचा दिया उसी रात बच्चों को लेकर अपनी पत्नी के मायके की ओर रवाना हो गया
जैसे तैसे मैंने रात काट ली सुबह घर पहुंचा हमारी श्रीमती जी आंगन में झाड़ू लगा रही थी मैंने तुरंत झाड़ू हाथ से छीनी
मुस्कुराते हुए कहा कपड़े पैक कर लो बच्चों को तैयार कर दो हम अभी के अभी तुम्हारे मायके निकल रहे हैं
मेरे मुंह से यह शब्द सुनकर,,,
हमारी श्रीमती जी का चेहरा एकदम खिल गया,,,
नेकराम सिक्योरिटी गार्ड दिल्ली से

एक दिन मेरी एक महिला मित्र ने मुझसे सवाल पूछा कि स्टलिन अच्छे लड़के क्यों नहीं मिलते....?जिससे भी बात करो उसे सिर्फ Body...
17/03/2024

एक दिन मेरी एक महिला मित्र ने मुझसे सवाल पूछा कि स्टलिन अच्छे लड़के क्यों नहीं मिलते....?
जिससे भी बात करो उसे सिर्फ Body चाहिए...!!

मैंने कहा देखो यार ऐसे लड़के होने चाहिए...!
जो की लड़की को सिर्फ शरीर के तौर पर ना देखें, कि एक Body चली आ रही है और मुझे इसका use करना है ..!
बिल्कुल ये जरूरी है कि लड़के ऐसे ना हो, लेकिन साथ ही साथ ये भी जरूरी है कि लड़कियां भी ऐसी हो जिनके पास पूंजी के तौर पर , asset के तौर पर देह (body) से आगे भी तो कुछ और हो ...!
लड़कियां कहती हैं कि रिश्ते में मेरे पास लाने के लिए सिर्फ मेरी अदाये है, जुल्फें है , मेरा चेहरा देखो ऐसे glow कर रहा जैसे अभी पार्लर से निकला है, और मेरे कपड़े देखो , मैंने कैसे खुद को maintain करके groom करके आई हूं यही है मेरे पास...!
अब अगर लड़का चाहे भी तो उसे उस लड़की से क्या मिलेगा ...?
बताओ...?
ये बात सिर्फ कहने कि है कि प्यार देने का नाम है
जहां प्रेम है वहां अपेक्षाएं भी होगी...!
बीना अपेक्षाओं के दुनिया में कोई भी रिश्ता संभव नहीं है...!

स्टलिन इंगले

नींद की गोलियाँ"नींद की गोलियों की आदी हो चुकी बूढ़ी माँ नींद की गोली के लिए ज़िद कर रही थी।बेटे की कुछ समय पहले शादी हुई ...
06/03/2024

नींद की गोलियाँ"

नींद की गोलियों की आदी हो चुकी बूढ़ी माँ नींद की गोली के लिए ज़िद कर रही थी।

बेटे की कुछ समय पहले शादी हुई थी। बहु डॉक्टर थी। बहु सास को नींद की दवा की लत के नुक्सान के बारे में बताते हुए उन्हें गोली नहीं देने पर अड़ी थी।

जब बात नहीं बनी तो सास ने गुस्सा दिखाकर नींद की गोली पाने का प्रयास किया। अंत में अपने बेटे को आवाज़ दी। बेटे ने आते ही कहा, 'माँ मुहं खोलो।'

पत्नी ने मना करने पर भी बेटे ने जेब से एक दवा का पत्ता निकाल कर एक छोटी पीली गोली माँ के मुहं में डाल दी। पानी भी पिला दिया। गोली लेते ही आशीर्वाद देती हुई

माँ सो गयी।

पत्नी ने कहा ,'ऐसा नहीं करना चाहिए।' पति ने दवा का पत्ता अपनी पत्नी को दे दिया। विटामिन की गोली का पत्ता देखकर पत्नी के चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी।

धीरे से बोली ,'आप माँ के साथ चीटिंग करते हो।'

'बचपन में माँ ने भी चीटिंग करके कई चीजें खिलाई है। पहले वो करती थीं, अब मैं बदला ले रहा हूँ।'

यह कहते हुए बेटा मुस्कुराने लगा। 😊😊

"जिद ..... घर का माहौल बेहद तनावपूर्ण बना हुआ था यूं तो घर के सदस्य मात्र तीन ही लोग हैं बिरजू उसकी पत्नी सुधा और बेटी आ...
16/01/2024

"जिद .....

घर का माहौल बेहद तनावपूर्ण बना हुआ था यूं तो घर के सदस्य मात्र तीन ही लोग हैं बिरजू उसकी पत्नी सुधा और बेटी आराध्या .... सभी एक दूसरे से बेहद प्यार भी करते हैं मगर वो कहते है ना जहां प्यार वहां थोड़ी सी तकरार जरुर होती है कुछ ऐसा ही होता था इस परिवार में सुधा आए दिन किसी ना किसी रूप में जिद करने लगती थी अब अगर बेटी जिद करें तो बात समझ में आती क्योंकि वह बच्ची है और बच्चे नासमझी में जिद करते ही हैं मगर यहां बात सुधा की थी एक मेच्योर महिला की जो एक पत्नी के साथ साथ एक मां भी है बिरजू को अक्सर यही बात परेशान करती वो अक्सर सुधा को समझाया करता मगर सुधा बजाय समझने के जिद पर अड़ी रहती बिरजू को पत्नी के साथ मारपीट करना गाली गलौज करना पसंद नहीं था क्योंकि वो हर महिला को देवी स्वरूप मानता था बचपन से घरों में यही होता हुआ देखा था उसने कन्या रुप में पूजन तक होता रहा है घरपरिवार में आखिर इस बार उसने फैसला किया की वो भी सुधा की जिद के आगे नहीं झुकेगा इसलिए जबतक सुधा अपनी जिद नहीं छोड़ेगी वो कुछ खाएगा
आज उसे पूरे दो दिन हो गए थे घरपर खाना खाएं भूख की वजह से एक आध -बार उसका मन अवश्य डोला पर स्वयं को समझा-बुझाकर वह अपने निर्णय पर अटल रहने में सफल हो गया था हालाँकि सुधा के व्यवहार को लेकर उसका तनाव कम होने की अपेक्षा बढ़ता ही जा रहा था दिन में आज उसने अपनी बिजली का बिल जमा करवाया था लेकिन वहां से मिलने वाली रसीद उसे नहीं मिल पा रही थी उसे समझ नहीं आ रहा था वो रसीद कहा रखकर भूल गया मेज पर अलमारी में टीवी पर तकरीबन सभी जगहों पर वह ढूंढ चुका था उसके साथ ऐसा पहले भी कई बार हुआ था मगर उस वक्त ऐसे में सुधा ही उसकी मदद करती रही थी मगर यदि वह उससे बोला तो ... नहीं नहीं .... कुछ सोचते हुए अचानक उसका हाथ जेब में गया उसने जेब में रखे सारे कागज बाहर निकाल लिए और एक-एक करके उन्हें देखने लगा
बाकी तो कुछ ऐसे वैसे पेपर थे मगर अचानक उसके हाथ में आई कागज की एक छोटी सी पर्ची जिसे देखकर वह चौंका ... पर्ची पर लिखावट उसकी बेटी आराध्या की थी वह तेजी से उसे पढ़ने लगा ...पापा जी...मैं दो दिन से भूखी हूं और जब तक आप खाना नहीं खाएंगे तबतक मैं पानी भी नहीं पीयूंगी
बिरजू के दिल पर एक धक्का-सा लगा और वही धक्का बिजली के करंट की तरह सिर से पाँव तक सनसनाता हुआ निकल गया बेटी का कुम्हलाया चेहरा तथा बीमारों जैसी उसकी चाल उसे याद हो आई तनाव के कारण ही वह यह सब नोट नहीं कर पाया था लेकिन उसने यह पर्ची उसकी जेब में कब रखी
ये सवाल उसके दिमाग में अपना सिर उठा चुका था उसे याद आया कि जब वह बेटी को स्कूल से लिवाने गया था तो वह मरियल सी चाल चलते हुए उसके समीप आई थी मन ही मन उसकी धीमी चाल को देखकर वह चिढ़ भी गया था पर डांट पिलाने से उसने स्वयं को किसी तरह रोक लिया था बेटी ने पीछे बैठते हुए उसके कंधे पर हाथ रखा था उसका वह हाथ तब जेब तक भी गया था तभी उसने यह पर्ची उसकी जेब में रखी होगी उसकी प्यारी बेटी, उसकी वजह से दो दिन से भूखी ही नहीं प्यासी भी है
छी....धिक्कार है उसपर ऐसा सोचता हुआ वह दौड़ता-सा बेटी के पास आया बेटी मुरझाई सी बिस्तर पर पड़ी थी उसकी आँखें बंद थी उसकी मम्मी उसके समीप बैठी सलाइयों पर अँगुलियाँ चला रही थी उसने बेटी के माथे पर हाथ रखते हुए बड़े प्यार से कहा बेटी मुझे माफ कर दे मेरी वजह से तुम दो दिन से भूखी-प्यासी हो
उठो ... तुम्हारे लिए बाजार से तुम्हारी मन पसंद खाने की चीज लेकर आते हैं और फिर हम दोनों साथ मिल कर खाएँगे
आराध्या उठाकर बैठी और बिरजू का हाथ अपने अपने दोनों हाथों के बीच में लेकर उसे प्यार से सहलाते हुए बोली... पापाजी हमारे साथ में मम्मी भी खाएँगी इनके लिए भी कुछ ले आना
क्या तुम्हारी मम्मी....वो तो अपना पेट रोज भर रही है किचन में बर्तनों की उठा पटक हर रोज होती है इसे ना तुम्हारी चिन्ता है और ना ही मेरी... बिरजू गुस्से में चिढ़ते हुए बोला
नहीं पापाजी...ये सच नहीं है जिस दिन आपने इनकी जिद तोड़ने के लिए भोजन नहीं करने की बात कही थी सिर्फ उसी दिन सुबह ही इन्होंने नाश्ता किया था जब इनके कहने पर मैंने खाने-पीने से मना कर दिया तो इन्होंने भी कुछ नहीं खाने का मन बना लिया था और कहा था कि मैं भी तभी कुछ खाऊँगी जब तू खाएगी बेटी ने बडी मासूमियत से मुस्कुराते हुए उत्तर दिया
बिरजू ने एकटक सुधा की और देखा तो उसकी आंखें भीगी हुई थी तुम ... तुमने कुछ भी नहीं खाया कयुं ...
अर्धांगिनी हूं आपकी अर्धांगिनी मतलब आधा शरीर .... ऐसा कैसा हो सकता है शरीर भूखा हो और भोजन आधा शरीर ही खाएं .... आपसे विवाह हुआ है मेरा हम दो नहीं सात जन्मों तक एक ही है और रहेंगे
तो कयुं करती हो ये जिद ....कहो ...
जानते हैं शादी से पहले एक लड़की की जिद उसके पिता पूरी करते हैं और शादी के बाद उसका पति ....आप भी तो अपनी बेटी की जिद पूरी करते हैं ना तो आप ही बताइए एक पत्नी रुपी लड़की कहा जाएगी अपनी जिद मनवाने ... आखिर शादी के बाद उसका संसार उसका पति ही तो होता है ना और ये जिद में किसी नासमझी की वजह से नहीं करती ये तो मुझे आपका प्यार चाहिए होता है आप कभी रुठते है कभी मुझे मनाते हैं ये छोटी छोटी सी बातें जिद ही तो एक घर परिवार की खुशियों का आधार है जिनमें रुठते मनाते हम अपने परिवार में खोए रहते हैं... है ना...
हां ...सच कहा तुमने सुधा ... कहकर बिरजू ने आराध्या के साथ सुधा को भी सीने से लगा लिया...!!

नववर्ष 2024 की मंगलकामनाएं।नववर्ष आपके और आपके परिवार के जीवन मे खुशियां और उमंग लेकर आये ।आप सपरिवार स्वस्थ, सुखी और प्...
31/12/2023

नववर्ष 2024 की मंगलकामनाएं।

नववर्ष आपके और आपके परिवार के जीवन मे खुशियां और उमंग लेकर आये ।

आप सपरिवार स्वस्थ, सुखी और प्रसन्न रहें

आज कल शादियों  का सीजन चल रहा है और कई शादियों में मुझे पूड़ी खा कर वापस आना पड़ रहा है 🤣🤣🤣क्योंकि तंदूरी रोटी और नान के...
09/12/2023

आज कल शादियों का सीजन चल रहा है और कई शादियों में मुझे पूड़ी खा कर वापस आना पड़ रहा है 🤣🤣🤣
क्योंकि तंदूरी रोटी और नान के आगे लंबी लाइन लगती हैं जिसमे खड़ा होना मेरे बस का नही होता ।

मेरी इस व्यथा को Kg Kadam जी ने बड़े चुटीले अंदाज में प्रस्तुत किया है ।
आप भी आनंद लीजिए ।

“ 30% लोगों की व्यथा कथा ”
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वैज्ञानिक लगे हुए है… मनुष्य को धरती से उठाकर मंगल ग्रह तक पहुंचाकर ही मानेगें..

लेकिन इस धरती के मनुष्यों से पूछो तो उनको “मंगल” में कोई दिलचस्पी नहीं…इन मनुष्यों में एक मैं भी शामिल हूं।

सब यही कह रहे है कि मंगल तक जाने का रास्ता तो आसान है.. सीधा सपाट.. बीच में कोई अवरोध नहीं।

इन वैज्ञानिकों को पहले.. शादियों में “तन्दूरी रोटियों तक पहुंचने के रास्ते” पर शोध करना चाहिए … ये ज्यादा जरूरी है..

आंकड़ो के अनुसार हमारे देश की शादियों में 30% सीधे, शिष्ट और कमजोर लोग या तो भूखे ही घर लौटते है या एक आध पनीरचिल्ला खाकर पेट को सांत्वना दे देते है.. तन्दूर से रोटी उड़ाना हर किसी के बस का नहीं होता ।

सोच रहा हूं ..शादियों में रोटियों के तन्दूर पर एक सीसी कैमरा लगा दिया जाये और दूसरे दिन, दस वैज्ञानिकों का एक दल इसे एक साथ बैठकर देखे.. तब उनको लगेगा कि जीवन में इस “तंदूरी रोटी” का महत्व उस “मंगल ग्रह” से कई ज्यादा है..

चुनाव में टिकट के लिए तो फिर भी कम लोगों की लाईनें होती है. यहां तो सारे के सारे मेहमान.. चाहे जोधपुरी सूट में हो या जरी की साड़ी में.. सबकी आंखे तंदूर से निकलती रोटी पर उसी तरह होती है जैसे महाभारत में अर्जुन की आंख उस घूमती हुई मछली पर थी।

मौका मिलते ही “भेद” लो. झपट लो।

ये तंदूर एक ऐसी जगह है जहां रिश्ते नाते , धैर्य, विनम्रता, शिष्टता आदि को अपने पेट के लिए त्यागना पड़ता है (नहीं त्यागोगे तो आपको भी मेरी तरह दुबारा फिर पनीर चिल्ला ही खाना पड़ेगा )

पेटपुराण में साफ लिखा है कि तृप्त होना है तो तंदूर पर अनजान बने रहो। मामा, मामी, काका, काकी, मौसा, मौसी, गुरूजी, फूरुजी,.. किसी को भी मत पहचानो…
और जो पहचान गये, नजर मिल गयी तो अपनी "रोटी" उनको देनी पड़ सकती है ।

हाल ही एक शादी में, मैं तंदूर से तीन फीट दूर आधे घंटे तक अटका रहा.. मेरे आगे पन्द्रह लोग और थे..

एक परिचित से नजर मिल गयी.. बोला .. कदमजी.. चपाती चाहिए क्या.. ?
मैंने कहा "जी नहीं.. यहां तो कलर केनवास लेने आया हूं..

बाजू में एक सज्जन और खड़े थे.. जिनकी प्लेट में काजू कतलियां.. हैदराबादी पुलाव पर लापरवाही से पसरी थी, गुलाबजामुन सूट पहने समधियों की तरह लग रहे थे ।उनकी प्लेट भरी हुई थी .. लेकिन चपाती की कमी थी सो यहां तक आ गये।

दायीं तरफ एक और सज्जन खड़े थे जिनके होठ मोटे थे और उन पर काफी मात्रा में रबड़ी लगी थी.. मेरे कहने पर उन्हौने साफ करके अपने हाथ को कुर्ते के पीछे की तरफ पौंछ लिया।

यहां रोटी से ज्यादा भूख दर्शन दे रही थी। मैं कुछ देर और खड़ा रहा .. रोटियां सिकती जा रही थी.. और जाती जा रही थी…

तंदूर से चिपके कुछ मेहमान दूसरो की परवाह किये बगैर अपनी थाली में चार चार चपातियां घी लगा लगाकर ऐसे सजा रहे थे.. जैसे सगाई की थालियों में ज्वैलरी सजाते है।…

खैर.. कहीं ले जा रहे होगें.. अपने क्या… मैं तो फिर निकल गया वहां से।

मैं मन ही मन बड़बड़ा रहा था कि शादियों में मिठाई दस की जगह दो ही रखो पर रोटियों के तंदूर दस जगह लगाऔ… ताकि वो 30% लोग भी तसल्ली से खाना खाकर जाये जिनमें मैं भी शामिल हूं।

अक्सर ऐसी शादियों से घर आते ही श्रीमतीजी का पहला सवाल यही होता है. "कि कुछ खाया है वहां या आज भी रोटी बनानी है.. अभी बता देना.. फिर आधे घंटे बाद कहोगे कि भूख लग रही है तो मैं नहीं उठने वाली ।

उसकी थकावट देखकर मैं चुप रहता हूं.. और ऐसे लेख लिखने लगता हूं जो सिर्फ मेरी नहीं.. 30% लोगों की व्यथा कथा है ।
(Kgkadam)

18/11/2023
2013 में अमेरिका में दो बड़े शहर लॉस एंजेल्स और सैनफ़्रांसिस्को को बुलेट ट्रेन से जोड़ने की घोषणा की गई, सिटी काउंसिल मे...
01/11/2023

2013 में अमेरिका में दो बड़े शहर लॉस एंजेल्स और सैनफ़्रांसिस्को को बुलेट ट्रेन से जोड़ने की घोषणा की गई, सिटी काउंसिल में सबको उम्मीद थी कि इस कदम का ज़बरदस्त स्वागत होगा.

शहर के नागरिक टेस्ला और स्पेस एक्स कंपनी के मालिक इलोन मस्क बहुत नाराज़ हुवे - 2013 में यह 1958 वाली बातें क्यों? बुलेट ट्रेन जापान ने 1958 में खोजी थी. 2013 में हम सिलिकॉन वैली में इसे कॉपी करेंगे? 400 किमी प्रति घंटा ट्रेन स्पीड 2013 में कितनी पिछड़ी हुई है.

इलोन इतने नाराज़ हुवे कि घर पहुँच कुछ दिन रिसर्च कर एक पेपर लिख डाला 57 पन्नों का और प्रोपोज किया हाइपर लूप सिस्टम. एक ऐसा ट्रांसपोर्टेशन जिसमें एक ट्यूब होगी वैक्यूम होगा और प्रेशर के सहारे कैप्सूल नुमा डब्बों को खींचा जायेगा, स्पीड होगी 1300 किमी प्रति घंटा.

इंडस्ट्री में कोहराम मच गया. किसी ने ऐसा सोचा ही न था. पचास साल से सब बुलेट ट्रेन के पीछे भाग रहे थे, अकस्मात् किसी ने एक नई दिशा दिखा दी. अब पूरी दुनिया में रिसर्च आरंभ हो गई ट्रांसपोर्टेशन के नये सिस्टम की खोज की.

अमेरिका, भारत, सऊदी, जर्मनी, इटली, कनाडा सब देश अपने अपने स्तर पर हाइपर लूप पर रिसर्च करने में लगे हैं. कुछेक प्रैक्टिकल मॉडल भी आये हैं,, जिनकी स्पीड अभी उतनी नहीं है जितनी मस्क ने कल्पना की थी, पर ऐसा हर अविष्कार में होता है. रेलगाड़ी के आरंभिक दौर में स्पीड 5-10 किमी ही होती थी.

किसी भी अविष्कार मे सबसे महत्वपूर्ण होता है पहला बड़ा कदम. दुनिया को अपने चश्मे से दिखा ले जाना. रेलगाड़ी, कार, हवाई जहाज़, इंटरनेट, हाइपर लूप यह सब ऐसे ही आविष्कार रहे कि लंबे समय तक दुनिया बग़ैर इनके जी रही थी. एक दिन किसी व्यक्ति ने एक नया सपना दिखाया और पूरी दुनिया उस सपने से कनविंस हो उस क्षेत्र में नये नये अविष्कार करने लगी.

देखियेगा हमारे लाइफ टाइम में ऐसी रेल आयेंगी जिनकी स्पीड हज़ार किमी प्लस होगी.

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