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10/08/2024
*शव रखने वाले डीप फ्रीजर 6 महीने से हैं खराब क्या किया, न्यायाधीश धर्मशक्तू ने सीएमएस से मांगा जवाब*
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03/04/2024
*‘लीगल अम्बिट सन्देश’*आपको यह जानकर ताज्जुब नहीं करना चाहिए कि पांच वर्ष में राजस्थान के शासन के पास विभिन्न योजनाओं से ...
02/04/2024

*‘लीगल अम्बिट सन्देश’*

आपको यह जानकर ताज्जुब नहीं करना चाहिए कि पांच वर्ष में राजस्थान के शासन के पास विभिन्न योजनाओं से इतना पैसा आता है कि हमारी सडकें, हमारे स्कूल-अस्पताल, हमारे खेत-उद्योग, हमारे गाँव, हमारे शहर, सिंगापुर या स्वीडन जैसे बन सकते हैं. हम यह बात कागजों के विस्तृत अध्ययन से कह रहे हैं, यह कोई हवाई जुमला नहीं है. हम यह बात किसी भी मंच से यह एक घंटे में सिद्ध कर सकते हैं. हमारे पास पुख्ता प्रमाण हैं.

*फिर यह हो क्यों नहीं रहा है ?*

*अधिकतर लोग भ्रष्ट अधिकारियों और राजनेताओं का इसका दोषी मानकर बात ख़त्म कर देते हैं. हाँ, यह कारण है पर यह 3रा कारण है.*

*सबसे पहला कारण* लोकतंत्र की शिक्षा का अभाव है. किताबी नहीं, लोकतंत्र की शिक्षा का अभाव. हमारे औसत नागरिक शासन की व्यवस्था को गहराई से नहीं समझते हैं और न ही कोई जिम्मेदारी लेना चाहते हैं. हजार वर्ष की गुलामी के कारण वे इस ‘राज’ को किसी और का मानते हैं. कभी कॉंग्रेस(गहलोत) का, कभी भाजपा (वसुंधरा) का या किसी कलक्टर का. इसलिए शासन से अपनेपन का भाव नहीं आता है, जैसा अपनी जाति या गाँव के लिए आता है. अख़बार-चेनल की आधी अधूरी या भ्रामक जानकारी से वे अपनी धारणाएं बनाते हैं और वोट वोट का खेल देखते हैं और खेलते हैं. अपना घर जलते हुए देखते हैं और ‘लाइटिंग’ का मजा लेते हैं ! समस्या की जड़ में यह उदासीनता है.

ऐसे हालातों में राजनेता और अफसर भी ‘राज’ के मूड में रहते हैं. वे भी ‘विकास’ से परहेज करते हैं. ‘बाय द वे’ कुछ हो जाये तो मीडिया से मिलकर हल्ला कर देते हैं कि यह उनकी ‘सौगात’ है. एक मुनीम की मालिक को सौगात ! उनको योजनाओं को बनाने में या उनको ठीक से चलाने में कोई खास रुचि नहीं होती है. केंद्र का भी अधिकतर पैसा खर्च ही नहीं हो पाता है. योजनाएं मोहल्लों तक नहीं पहुँचती हैं. कई तो समझ ही नहीं आती हैं, अंग्रेजी में लिखी होने के कारण ! विधानसभा में क्या होता है, यह आप अच्छे से जानते हैं. राजस्थान में तो योजना बनाने, चलाने या उस पर चर्चा करने के मामले में अक्षमता चरम पर है. ‘राज’ की अदला बदली ही लोकतंत्र का मतलब रह गया है. वोटतंत्र को ही लोकतंत्र समझा दिया गया है. वोट दे दो, वादे ले लो, हम कुछ न करें तो पुराने वालों को चुन लेना !

और *तीसरा कारण*, रिश्वतखोरी है. योजना में अरूचि के साथ जब रिश्वतखोरी मिल जाती है तो अधिक घातक हो जाती है. कोढ़ में खाज ! इसके कारण जो सड़क पांच साल चलनी चाहिए, वह दो साल में टूट जाती है. इसके कारण जो स्कूल या अस्पताल साधनों-सुविधाओं से भर जानी चाहिए थे, वे लाखों खर्च होने के बाद भी उजड़े से दिखाई देते हैं. इसके कारण दो रूपये की चीज दस रूपये में पड़ती है और उसकी क्वालिटी भी घटिया रहती है.

Legal Ambit में इन कारणों का निवारण भी इसी क्रम में होगा. पहले जनजागरण, फिर योजना और फिर पारदर्शिता. त्रिरत्न विधान ! यह क्रम और संगम जरूरी है. जनजागरण से शासन अपना लगने लगेगा, योजना से एक रूपये में दस रूपये का काम होगा, पारदर्शिता से भ्रष्ट होने की प्रवृति ही नहीं पनपेगी, जड़ से ईलाज. अँधेरे में चोरी होती है ! लेकिन तीनों में से एक का भी अभाव ‘बेलेंस’ बिगाड़ देता है. तीनों मिलते ही राजस्थान की शक्ल एक ही वर्ष में निखरने लगेगी. तीन वर्षों में सडकें बोल पड़ेंगी, पेड़ और खेत समृद्धि के इशारे कर देंगे, स्कूल-अस्पताल चहक जायेंगे, लोगों के चेहरे चमक से भर जायेंगे, चिंता की लकीरें चेहरों से साफ़ होने लगेंगी. इसका विज्ञापन नहीं करना पड़ेगा और न इसका श्रेय देने की भीख जनता से मांगनी पड़ेगी !

हम पिछले 4 वर्षों से जनजागरण कर रहे हैं. गजब समर्थन मिला है. *अपने शासन की जिम्मेदारियां सूचना के अधिकार से ले रहे हैं* और आगे भी लेंगे. लेकिन इसके लिए हम झूठ नहीं बोलेंगे, पैर नहीं पकड़ेंगे, पैसे का खेल नहीं खेलेंगे. साध्य या लक्ष्य पवित्र हो तो साधन भी साफ़ होना चाहिए. साधन गंदा है तो लक्ष्य को गन्दा होना पड़ेगा. भले आप कोई भी कुतर्क दो. हम धीरज नहीं खोएंगे. हमारी राह कठिन हो सकती है, होनी भी चाहिए पर यही अंतिम, सुन्दर और स्थाई समाधान है. हँसते हँसते कहेंगे कि एक ईमानदार प्रयास किया है.

हम होंगे कामयाब, पूरा है विश्वास. हम होंगे कामयाब, बहुत जल्द.

(महावीर पारीक, Legal Ambit अभियान )

( हमारी वेबसाइट www.legalambit.org है, फेसबुक पर ‘ legal Ambit’ https://www.facebook.com/legalambit.in?mibextid=kFxxJD पेज है.)

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