Agoreshwer Mahaprabhu

Agoreshwer Mahaprabhu Namaste! If you are interested in knowing more, please like and follow our page ‘अघोर क्या है?

Welcome to ‘The Way to Know Aghor.’ Many people are curious about Aghor,In this vlog, we will explore the true essence of Aghor and clear common misconceptions.

हिंगलाज देवी की आराधना और देवी का आशीर्वादहे वृद्धे, सुनो!एक बार महाराज श्री कीनाराम जुनागढ़ से चल कर कच्छ की खाड़ियों औ...
11/10/2025

हिंगलाज देवी की आराधना और देवी का आशीर्वाद

हे वृद्धे, सुनो!

एक बार महाराज श्री कीनाराम जुनागढ़ से चल कर कच्छ की खाड़ियों और दलदलों को, जहाँ जाना असम्भव है, अपने खड़ाऊँ से पार कर हिंगलाज पहुँचे, जो कराची से ४५ मील की दूरी पर अवस्थित है। हिंगलाज देवी के मन्दिर से कुछ ही दूर धूनी लगाये और तपस्यारत महाराज श्री कीनाराम को एक कुलीन घर की महिला के रूप में हिंगलाज देवी स्वयं प्रतिदिन भोजन पहुँचाती रहीं। इनकी धूनी की सफाई, १०–११ वर्ष के एक बटुक के रूप में, भैरव स्वयं किया करते थे। एक दिन महाराज श्री कीनाराम ने पूछ दिया – “आप किसके घर की महिला हैं? आप बहुत दिनों से मेरी सेवा में लगी हुई हैं। आप अपना परिचय दीजिए नहीं तो मैं आपका भोजन ग्रहण नहीं करूँगा।”

मुस्कुराकर हिंगलाज देवी ने महाराज श्री कीनाराम को दर्शन दिया और कहा – “जिसके लिए आप इतने दिनों से तप कर रहे हैं, मैं वही हूँ। मेरा भी समय हो गया है। मैं अपने नगर काशी में जाना चाहती हूँ। अब आप जाइए और जब कभी भी स्मरण कीजिएगा मैं आप को मिल जायूँगी।” महाराज श्री कीनाराम ने पूछा – “माता, काशी में कहाँ निवास करिएगा?”

हिंगलाज देवी ने उत्तर दिया – “मैं काशी में केदारखण्ड में ‘क्रीकुण्ड’ पर निवास करूँगी।” उसी दिन से ऋद्धियाँ महाराज श्री कीनाराम के साथ-साथ चलने लगीं और बटुक भैरव की उस धूनी से महाराज श्री का सम्बन्ध और सम्पर्क टूट गया। महाराज श्री कीनाराम ने धूनी ठंडी की और चल दिये। महाराज श्री कीनाराम घोड़े पर बैठ कर वहाँ से मुलतान की ओर चले गये।

हिंगलाज देवी (माँ काली का एक रूप) का मंदिर आज भी वाराणसी के क्रीकुण्ड (Krinkund) में स्थित है। यही स्थान महान अघोरी संत महाराज श्री कीनाराम जी की समाधि स्थली भी है।

यह स्थान “क्रीकुण्ड, रविन्द्रपुरी, वाराणसी” में स्थित है और इसे “बाबा कीनाराम स्थली – अघोर पीठ” के नाम से भी जाना जाता है।
यहाँ —
• हिंगलाज माता का मंदिर,
• बाबा कीनाराम जी की समाधि,
• तथा अघोर परम्परा का मुख्य केन्द्र (Aghor Peeth)
सभी एक ही परिसर में हैं।

यह स्थान अघोर परम्परा का सबसे प्रमुख तीर्थ माना जाता है। यहाँ आज भी साधु-संत अघोर साधना करते हैं और हर साल बाबा कीनाराम जयंती बड़े धूमधाम से मनाई जाती है।Agoreshwer Mahaprabhu ゚viralシalシ

09/10/2025
🌼अघोर वचन🌼प्रिय सुधर्मा! सौ वर्ष तक एक कंधे पर माता को ढोये तथा एक कंधे पर पिता को ढोये। उन्हें उबटन मलने, मर्दन करने, न...
06/10/2025

🌼अघोर वचन🌼

प्रिय सुधर्मा! सौ वर्ष तक एक कंधे पर माता को ढोये तथा एक कंधे पर पिता को ढोये। उन्हें उबटन मलने, मर्दन करने, नहलाने तथा हाथ-पैर दबाने आदि सेवा करे, यदि वे उसके कंधे पर ही मल-मूत्र कर दें तो भी सुधर्मा, यह न माता-पिता के प्रति कोई उपकार होता है और न प्रत्युपकार। सुधर्मा, यदि इस सप्तरत्न-बहुल पृथ्वी का ऐश्वर्य राज्य भी माता पिता को सौंप दिया जाय तो भी न उनका उपकार होता है और न प्रत्युपकार। यह किसलिए?सुधर्मा! माता पिता का पुत्रों पर उपकार है। वे उनका पालन करने वाले हैं, पोषण करने वाले हैं, वे उन्हें यह लोक दिखाने वाले हैं।सुधर्मा, जो कोई अश्रद्धावान-माता को श्रद्धा में प्रतिष्ठित करता है, दुराचारी माता-पिता को सदाचार में प्रतिष्ठित करता है, कंजूस माता-पिता को त्याग में प्रतिष्ठित करता है, दुष्प्रज्ञ माता-पिता को प्रज्ञा में प्रतिष्ठित करता है तो उससे माता पिता का उपकार होता है---प्रत्युपकार होता है तथा अतिरिक्त उपकार होता है।

🌺 श्री साधु सेवा अभेद आश्रम, घाघरमुंडा छत्तीसगढ़ 🌺परंपूज्य श्री अवधूत बाबा समूह रतनराम जी के दीक्षित शिष्य श्री कृष्णा स...
02/10/2025

🌺 श्री साधु सेवा अभेद आश्रम, घाघरमुंडा छत्तीसगढ़ 🌺

परंपूज्य श्री अवधूत बाबा समूह रतनराम जी के दीक्षित शिष्य श्री कृष्णा सिंह द्वारा नवरात्रि पूजन, कन्या पूजन एवं भूमि पूजन विधिवत सम्पन्न हुआ।
fans
इस शुभ अवसर पर वहाँ के निवासियों ने बढ़-चढ़कर माँ की पूजा एवं विसर्जन में अपना योगदान दिया श्री बेगा जी, जो बाबाजी के त्दीक्षित शिष्यों में से एक हैं स्वयं बाबाजी की पूजा की थाली सजाने का पुण्य कार्य किया तथा भूमि पूजन में भी अपना विशेष सहयोग प्रदान किया।

माँ भगवती का दिव्य आशीर्वाद सभी भक्तों को प्राप्त हुआ।
माँ सदा प्रसन्न रहें और समस्त जनमानस को सुख, शांति एवं समृद्धि प्रदान करें।

🔱 हर हर महादेव! 🔱 # # 🙏🪷

ईर्ष्या और घृणा करने वाले मनुष्य सेश्वान अच्छा२६—सुधर्मा ! आश्रम में रहने वाले आश्रम के आश्रित सभी जन साधु नहीं होते, मह...
23/09/2025

ईर्ष्या और घृणा करने वाले मनुष्य से
श्वान अच्छा

२६—सुधर्मा ! आश्रम में रहने वाले आश्रम के आश्रित सभी जन साधु नहीं होते, महापुरुष, औघड़-अघोरेश्वर नहीं होते। महापुरुष औघड़-अघोरेश्वर की तरह वस्त्र पहनने से, माला फेरने से, आसन लगा लेने से, सभी लोगों को गुणधर्म से वैसा मान लेना अनभिज्ञता होगी। क्योंकि वहाँ बैल भी रहते हैं, गाय भी रहती है और आदमी भी रहते हैं, कुत्ते भी रहते हैं और अनेक तरह के प्राणी भी रहते हैं।

आश्रम के बैल-गाय शान्तचित्त हों, अपने में लुढ़-झगड़ न रहे हों, एक दूसरे में आदर की भावना हो, एक दूसरे को सम्मान दें तो जानवर के रूप में भी मनुष्य के, सन्तों के गुणों से आच्छादित हैं। लेकिन भले वह मनुष्य हो या साधु हो, अगर मनुष्य के रूप में लड़ता है, झगड़ता है, एक दूसरे से ईर्ष्या करता है, एक दूसरे को घृणा करता है, एक दूसरे को अपमानित करना चाहता है, एक दूसरे की उपेक्षा करता है, अपने में हम-हम लगाए हुए है, वह मनुष्य रूप में रहकर भी पशु के गुणों से आच्छादित है।

वह साधु की भी शक्ल में दूसरे का तिरस्कार करने वाला, दूसरों को वाक्प्रहारों से बेधने वाला, दूसरों की निन्दा करने वाला, आश्रमवासियों से मैत्री न करने वाला, अमैत्री करने वाला, फूट डालने वाला, ईर्ष्या और घृणा करने वाला है तो वह श्वान से भी गया गुजरा है।

श्वान आश्रम में रहता है तो आश्रम की सुरक्षा करता है, आश्रम छोड़कर कहीं नहीं जाता है। आश्रम के समय से जो भोजन मिल जाता है उसकी कभी उपेक्षा नहीं करता। ऐसे आश्रमवासी, साधु या आदमी से अच्छे श्वान हैं सुधर्मा !Agoreshwer Mahaprabhu

2. अघोरेश्वर के रत्न सद्गुणी शिष्यसुधर्मा!वास्तव में मुझ अघोरेश्वर में विश्वास करने वाला शिष्य, महाकपालिक-अघोरेश्वर के अ...
22/09/2025

2. अघोरेश्वर के रत्न सद्गुणी शिष्य

सुधर्मा!
वास्तव में मुझ अघोरेश्वर में विश्वास करने वाला शिष्य, महाकपालिक-अघोरेश्वर के अनुग्रह का पात्र, आश्रम में निवास करने वाला –वह एक-दूसरे को गाली नहीं देता, एक-दूसरे को हेय दृष्टि से नहीं देखता, एक-दूसरे की निन्दा-शिकायत नहीं करता, एक-दूसरे की उपेक्षा नहीं करता,
बल्कि एक-दूसरे के साथ सहयोग करता है।

ऐसा औघड़-साधु आश्रम के रत्नों में से है, अघोरेश्वर के जवाहरातों में से है।

आश्रम में जो अनेक सम्पदाएँ हैं –
ज्ञान-सम्पदा, भक्ति-सम्पदा, शुद्धता-सम्पदा, सेवा-सम्पदा –
वे सभी रत्नों में मूल्यवान रत्न हैं।

जो एक-दूसरे को हेय दृष्टि से नहीं देखते, एक-दूसरे की निन्दा-शिकायत नहीं करते, और एक-दूसरे को सहयोग करने में उत्सुक रहते हैं – वे अघोरेश्वर के श्रेष्ठतर रत्नों में हैं, सुधर्मा!Dev Pratap Singh YadavSanjay PandeyAgoreshwer Mahaprabhu@everyone

1. दुर्जनों की संगति त्याज्यसुधर्मा!कंजूस के लिए त्याग सम्बन्धी बातचीत अप्रिय होती है।मूर्ख के लिए ज्ञान सम्बन्धी बातचीत...
22/09/2025

1. दुर्जनों की संगति त्याज्य

सुधर्मा!
कंजूस के लिए त्याग सम्बन्धी बातचीत अप्रिय होती है।
मूर्ख के लिए ज्ञान सम्बन्धी बातचीत अप्रिय होती है।
चोर के लिए साधुता की बातचीत अप्रिय होती है।
दुर्जन के लिए सज्जनता की बातचीत अप्रिय होती है।
नीच के लिए महानता की बातचीत अप्रिय होती है।
अश्रद्धालुओं के लिए श्रद्धा की बातचीत अप्रिय होती है।

इसलिए आश्रमवासियों का इन अमात्र लोगों के साथ बैठना-उठना, बातचीत करना – अपने आप को बालू की भीत पर खड़े हुए वेगवती नदी के किनारे पर देखना चाहिए, सुधर्मा!

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