24/11/2025
🌼“गुरुभक्ति और आंतरिक वैराग्य की साधना”🌼
गुरु साधना इस साधना की सबसे बड़ी खासियत यह है कि साधक सब ओर से उदासीन होकर केवल एक अपने गुरु से ही सम्बन्ध रखे।इसका अर्थ यह नहीं होता है कि साधक संसार से या समाज से विमुख हो जाये।करना यह है कि संसार का सब व्यवहार करते हुए ,समाज का सब सम्बन्ध निभाते हुए ,साधारण शिष्टाचार की मर्यादा कायम रखते हुए अन्तर में सबसे अलग रहे,केवल अपने गुरु से प्रेम का नाता जोड़े रहे। जिसका अर्थ यह होता है कि "बाहर से सबसे मिले रहो किन्तु भीतर से एक के सिवा सबसे अलग रहो।"
"जिस प्रकार पतिव्रता स्त्री का सम्बन्ध एक ही से होता है उसी तरह तुम्हारे लिये भी वही एक हो ,सर्वत्र तुमको वही एक दिखाई दे, मन में ,आँखों में उसी का स्वरूप हर समय नाचा करे,तुम्हारा सिर झुके तो उसको झुके,तुम्हारा हृदय खुले तो उसके सम्मुख खुले।दूसरे चाहे कितने ही प्रसिद्ध महात्मा व प्रसिद्ध विद्वान हों,उनसे अपना निजी साधन और निजी अवस्था प्रकट न करो,न साधन के सम्बन्ध में किसी से पूछो,एक ही से काम रखो,उसी की आज्ञा में चलो,उसी को मन और बुद्धि समर्पित कर निश्चिन्त होकर बैठो।यदि ऐसा नहीं कर सकोगे तो व्यभिचार का दोष लग जायेगा और गुरु भी तुम ध्यान देना छोड़ देगा।फिर न इतना प्रेम तुमसे रहेगा,न इतनी कृपा तुम्हारे ऊपर रहेगी और न गुप्त रहस्य वह तुम पर प्रकट करेंगे।ऐसे लोग बीच ही में लटके रह जाते हैं।
जब तक मनुष्य संसार में लिप्त रहेगा ,वह इच्छाओं का दास रहेगा और जब तक इच्छाओं का दास है उसका हृदय निर्मल नहीं हो सकता।उसके लिए यह परम आवश्यक है कि वह अपनी इच्छायें गुरु की इच्छा में मिला दे।इसके बारे में एक दृष्टांत है कि एक गली में दो संत रहते थे।एक ,कोई सूखी रोटी लाता, तभी खाने के लिए लेते,अगर कोई और पकवान होता तो वापस कर देते।दूसरे संत थे वह जो कुछ आ जाता ,उसको रख लेते और खा लेते ।एक बार उनके शिष्य ने कहा कि वह जो संत हैं वह तो केवल सूखी रोटी लेते हैं परन्तु आप तो हलवा पूड़ी जो भी आ जाये रख लेते हैं तो उन संत ने समझाया कि वह जो संत हैं उन्होंने अपने स्वाद का त्याग किया है और वह केवल सूखी रोटी खाते हैं ,मैंने अपनी सारी इच्छाओं को भोजन के बारे त्याग कर दिया है,उससे वैराग्य ले लिया है,गुरु जो भेजता है वह मैं खा लेता हूँ और जो नहीं भेजता है तो उस दिन भूखा भी रह जाता हूँ लेकिन मुझे इससे कोई मतलब नहीं कि वह क्या भेजता है,मुझे तो उसकी इच्छाओं में रहना है कि जो वह भेजेगा वह मुझे स्वीकार होगा तो सचमुच में हृदय निर्मल तभी होता है जब यह कार्य कर लेते हैं। har mahadev kinaram sarkar baba gurudev awdoot baba samuhratn ram ji 🙏🌼🌼