
11/10/2025
हिंगलाज देवी की आराधना और देवी का आशीर्वाद
हे वृद्धे, सुनो!
एक बार महाराज श्री कीनाराम जुनागढ़ से चल कर कच्छ की खाड़ियों और दलदलों को, जहाँ जाना असम्भव है, अपने खड़ाऊँ से पार कर हिंगलाज पहुँचे, जो कराची से ४५ मील की दूरी पर अवस्थित है। हिंगलाज देवी के मन्दिर से कुछ ही दूर धूनी लगाये और तपस्यारत महाराज श्री कीनाराम को एक कुलीन घर की महिला के रूप में हिंगलाज देवी स्वयं प्रतिदिन भोजन पहुँचाती रहीं। इनकी धूनी की सफाई, १०–११ वर्ष के एक बटुक के रूप में, भैरव स्वयं किया करते थे। एक दिन महाराज श्री कीनाराम ने पूछ दिया – “आप किसके घर की महिला हैं? आप बहुत दिनों से मेरी सेवा में लगी हुई हैं। आप अपना परिचय दीजिए नहीं तो मैं आपका भोजन ग्रहण नहीं करूँगा।”
मुस्कुराकर हिंगलाज देवी ने महाराज श्री कीनाराम को दर्शन दिया और कहा – “जिसके लिए आप इतने दिनों से तप कर रहे हैं, मैं वही हूँ। मेरा भी समय हो गया है। मैं अपने नगर काशी में जाना चाहती हूँ। अब आप जाइए और जब कभी भी स्मरण कीजिएगा मैं आप को मिल जायूँगी।” महाराज श्री कीनाराम ने पूछा – “माता, काशी में कहाँ निवास करिएगा?”
हिंगलाज देवी ने उत्तर दिया – “मैं काशी में केदारखण्ड में ‘क्रीकुण्ड’ पर निवास करूँगी।” उसी दिन से ऋद्धियाँ महाराज श्री कीनाराम के साथ-साथ चलने लगीं और बटुक भैरव की उस धूनी से महाराज श्री का सम्बन्ध और सम्पर्क टूट गया। महाराज श्री कीनाराम ने धूनी ठंडी की और चल दिये। महाराज श्री कीनाराम घोड़े पर बैठ कर वहाँ से मुलतान की ओर चले गये।
हिंगलाज देवी (माँ काली का एक रूप) का मंदिर आज भी वाराणसी के क्रीकुण्ड (Krinkund) में स्थित है। यही स्थान महान अघोरी संत महाराज श्री कीनाराम जी की समाधि स्थली भी है।
यह स्थान “क्रीकुण्ड, रविन्द्रपुरी, वाराणसी” में स्थित है और इसे “बाबा कीनाराम स्थली – अघोर पीठ” के नाम से भी जाना जाता है।
यहाँ —
• हिंगलाज माता का मंदिर,
• बाबा कीनाराम जी की समाधि,
• तथा अघोर परम्परा का मुख्य केन्द्र (Aghor Peeth)
सभी एक ही परिसर में हैं।
यह स्थान अघोर परम्परा का सबसे प्रमुख तीर्थ माना जाता है। यहाँ आज भी साधु-संत अघोर साधना करते हैं और हर साल बाबा कीनाराम जयंती बड़े धूमधाम से मनाई जाती है।Agoreshwer Mahaprabhu ゚viralシalシ