Agoreshwer Mahaprabhu

Agoreshwer Mahaprabhu Namaste! If you are interested in knowing more, please like and follow our page ‘अघोर क्या है?

Welcome to ‘The Way to Know Aghor.’ Many people are curious about Aghor,In this vlog, we will explore the true essence of Aghor and clear common misconceptions.

दुनिया का सबसे बड़ा रिश्ता कौन-सा होता है?कोई कहेगा – माँ और बेटे का रिश्ता।कोई कहेगा – पिता और बेटी का रिश्ता।कोई कहेगा...
23/07/2025

दुनिया का सबसे बड़ा रिश्ता कौन-सा होता है?

कोई कहेगा – माँ और बेटे का रिश्ता।
कोई कहेगा – पिता और बेटी का रिश्ता।
कोई कहेगा – पति-पत्नी का रिश्ता।
कोई कहेगा – भक्त और भगवान का रिश्ता।

लेकिन अगर गहराई से देखा जाए, तो ये सभी रिश्ते या तो जन्म से जुड़े होते हैं, या समाज द्वारा बनाए जाते हैं, या किसी इच्छा का परिणाम होते हैं।

सबसे बड़ा रिश्ता होता है – दोस्ती का।

क्योंकि दोस्त हम खुद चुनते हैं। इस रिश्ते में न कोई स्वार्थ होता है, न कोई अपेक्षा। बस साथ होने की खुशी होती है।
लेकिन जैसे-जैसे इंसान बड़ा होता है, सफल होता है, दोस्त उससे दूर होते जाते हैं। फिर वह अपनी हैसियत के अनुसार दोस्ती करने लगता है।

वाकई, जीवन में मित्र वही होना चाहिए जो अंत तक साथ दे, और सच्चाई के साथ खड़ा रहे, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों।
चलिए इसे दो ऐतिहासिक और महाभारत से लिए गए उदाहरणों से समझते हैं, जो सच्ची और अंधी दोस्ती के बीच का फर्क बताते हैं:

कृष्ण और सुदामा — सच्ची मित्रता की मिसाल:

कृष्ण भगवान थे, द्वारका के राजा। सुदामा एक गरीब ब्राह्मण, जिनके पास खाने तक को कुछ नहीं था। लेकिन जब सुदामा अपने मित्र कृष्ण से मिलने पहुँचे, तो कृष्ण ने उन्हें राजा की तरह सम्मान दिया। पैर धोए, गले लगाया, और उनकी आँखों से आंसू बह निकले।

सुदामा ने कुछ नहीं माँगा, लेकिन कृष्ण ने सब कुछ दे दिया,
क्योंकि सच्चा मित्र वो होता है जो मांगने से पहले समझ जाए।

कर्ण और दुर्योधन — अंधी मित्रता का उदाहरण:

कर्ण एक महान योद्धा था, लेकिन उसे समाज में उसका स्थान नहीं मिला था। दुर्योधन ने उसे सम्मान दिया, राजा बनाया और अपनी ओर कर लिया।

कर्ण ने भी उसके बदले में वफादारी की हदें पार कर दीं,
यहाँ तक कि जब दुर्योधन ने अधर्म का रास्ता चुना,
तो कर्ण ने भी सच्चाई के खिलाफ जाकर उसका साथ दिया।
यह मित्रता थी वफादार, लेकिन अंधी। जिसने अंत में कर्ण को मूल्यांकन की शक्ति से वंचित कर दिया।

तो मित्र कौन?
मित्र वो नहीं जो हर हाल में तुम्हारा साथ दे,
बल्कि मित्र वो है जो हर हाल में ‘सच’ का साथ दे — और तुम्हें भी सच की राह पर रखे।”

कृष्ण जैसे मित्र बनाओ – जो जरूरत में साथ दें, बिना कहे समझें, और अच्छाई में तुम्हारा साथ निभाएँ। और कर्ण जैसी मित्रता से सीखो, लेकिन यह भी जानो कि जब मित्र अधर्म करे, तो उसके साथ खड़ा होना सही नहीं होता।

✨“मित्रता भावनाओं से करो, लेकिन विवेक से चुनो –
क्योंकि जीवन की दिशा, आपके साथ चलने वाले लोगों से तय होती है।”✨

“जबसे यह सृष्टि बनी है, नदी की धारा और चट्टान के मध्य हमेशा संघर्ष रहा है। परन्तु जीत किसकी हुई? हर बार हार चट्टान को ही...
22/07/2025

“जबसे यह सृष्टि बनी है, नदी की धारा और चट्टान के मध्य हमेशा संघर्ष रहा है। परन्तु जीत किसकी हुई? हर बार हार चट्टान को ही माननी पड़ती है। नदी, जो इतनी कोमल है, वह कठोर पत्थरों को भी काट देती है।

चट्टान अडिग थी, कठोर थी,उसके पास बल था, स्थिरता थी। लेकिन नदी के पास था निरंतर बहाव,
धैर्य, लचीलापन, और समय।

हर बार… उस कोमल, बहती हुई नदी
धीरे-धीरे, पर लगातार। और एक दिन, उसी कठोर चट्टान में
अपना रास्ता बना लिया।

यह केवल प्रकृति की कहानी नहीं है,
यह जीवन का सत्य है।

हमारी राह में भी कई चट्टानें आती हैं—
समस्याएँ, निराशाएँ, असफलताएँ। वे स्थिर हैं, भारी हैं,
लेकिन अगर हम नदी की तरह निरंतर बहते रहें, तो हम भी उन चट्टानों को काट सकते हैं।

सफलता ताकत से नहीं, निरंतरता से मिलती है।

हर समस्या एक पत्थर की तरह है—कठोर, अडिग।
लेकिन तुम भी पानी की तरह हो सकते हो—निरंतर, लचीले, मगर अजेय। अगर तुम बहते रहो, बढ़ते रहो,
तो कोई भी चट्टान तुम्हारे रास्ते में टिक नहीं सकती।

रुको मत। थको मत।
हर दिन थोड़ा आगे बढ़ो।
क्योंकि इतिहास गवाह है—
जो बहता है, वही रास्ता बनाता है।”

🚩⸻ “हर हर महादेव”🙏🏻🌼🌼 ⸻🚩

⸻ परम पूज्य अघोरेश्वर अवधूत भगवान राम जी (समूहरत्न राम जी) की अमृत वाणी:“विचारों का चुम्बकत्व”“कभी चुम्बक को देखा है?”कै...
22/07/2025

⸻ परम पूज्य अघोरेश्वर अवधूत भगवान राम जी (समूहरत्न राम जी) की अमृत वाणी:

“विचारों का चुम्बकत्व”

“कभी चुम्बक को देखा है?”

कैसे वह लोहे को अपनी ओर खींचता है?
कैसे उसकी ओर खिंचता चला आता है लोहा ,जैसे कोई पुराना बिछड़ा साथी मिल गया हो। क्योंकि उसके स्वभाव में ही आकर्षण है। वह कुछ कहता नहीं, कुछ करता नहीं,
फिर भी उसकी मौन उपस्थिति ही काफी होती है—खींच लाने को, जोड़ लाने को। ठीक वैसे ही, हमारे भीतर भी एक चुम्बक है…विचारों का चुम्बक।

हम जो सोचते हैं, वही हम बनते हैं।हम जो महसूस करते हैं, वही संसार हमें लौटाता है। जैसे चुम्बक अपनी ओर वैसे ही तत्व खींचता है, हमारे विचार भी वैसी ही ऊर्जा को आकर्षित करते हैं।
हम जो बोते हैं, वही काटते हैं। यदि हम प्रेम, आशा और विश्वास बोएं, तो वही बनकर जीवन में लौट आता है।
पर यदि बोएं डर, नफ़रत, या संशय, तो वो भी चुम्बकित होकर लौटेंगे हमारे पास।

तो फिर सोचिए—
क्या आप अपने भीतर के चुम्बक को जान पाए हैं?
क्या आपने आज वो विचार चुने हैं,
जो कल आपके जीवन की तस्वीर बनेंगे? 🙏🏻🌼🌼

19/07/2025

🌼अघोर वचन🌼

जिस प्रकार सभी प्रकार के जीवों ( अण्डज, पिण्डज, उखमज, स्थावर ) का अपना-अपना एक प्राकृतिक धर्म है जिसे हम सभी लोग जानते हैं और जिसके लिये माता-पिता या किसी कालेज या स्कूल से प्रशिक्षण नहीं लेना पड़ता है। वह अपने आप होने लगता है, अपने आप उसका वेग चलने लगता है। उसी तरह हम उस अज्ञात के बारे में भी सोच सकते हैं। उस तंत्र के बारे में भी सोच सकते हैं जिसकी चर्चा अभी-अभी आपसे की है। इसके बाद भौतिक आकर्षणों तथा अन्य रहस्यमय कारणों से पढ़े-लिखे प्रतिभा सम्पन्न लोगों के सुदूर पश्चिमी देशों की तरफ आकर्षित होने ( प्रतिभा पलायन/ब्रेन ड्रेन ) तथा देश की अच्छी आत्माओं के इस्लाम या ईसाईयों द्वारा चोरी तथा अपहरण की तरफ संकेत करते हुए अघोरेश्वर ने बताया कि जैसे हमलोग देवी, देवता, काली-दुर्गा भगवान-भगवती तथा ईश्वर को फुसलाने की कोशिश करते हैं उसी तरह से इन चतुर लोगों ने हमारे यहाॅं की हिमालय के दक्षिणी छोर के ढलान की अच्छी-अच्छी आत्माओं, ऋषि-महर्षियों, साधू-महात्माओं और सन्तों को चाहे फुसलाकर या उन पर अपना जाल फेंक कर या जिस किसी तरह से भी हो सका, उन्हें अपने वश में किया। भेद बुद्धि द्वारा उन्हें गुमराह करके उनकी आत्मा के वेग, तेज, आभा, कान्ति, सोचने-समझने की शक्ति तथा आत्मा की सभी दिव्यताओं का अपहरण किया। जिसका परिणाम हुआ कि हम हजारों वर्ष के गुलाम हो गये। यह सब कुछ आज भी हो रहा है। हमारे देश की अच्छी आत्माओं को दुर्बल बनाने के हर संभव षडयंत्र किये जा रहे हैं। अच्छी आत्माओं को जो शासन तंत्र में हैं, जो हमारी व्यवस्था तंत्र में हैं, दुर्बल बनाने में केवल उन्हीं का हाथ नहीं है। यहाॅं के एजेन्टों का हाथ है। पण्डित, मुल्ला, पत्रकार, ज्योतिषी, साधु-सन्यासी, अच्छे नेता आदि का भी इसमें हाथ है। सभी की सहायता से उस अच्छी आत्मा को दुर्बल बनाकर उसकी उस दुर्बलता का मनोवांछित लाभ उठाया जाता है। यह एक तंत्र है। आपको तंत्र का अर्थ उसी अर्थ में यहाॅं पर लेना होगा। तंत्र का अर्थ जादूटोना थोड़े ही है। पूजा का अर्थ भी आपको इसी अर्थ में लेना होगा।

19/07/2025
🌼अघोर वचन🌼आलस्य, निद्रा, जम्हाई - तीनों काल के भाई । इनसे बचें!पेटू और पियक्कड़ों का संग, दुष्परिणाम की तरफ, कुकृत्यों क...
13/07/2025

🌼अघोर वचन🌼

आलस्य, निद्रा, जम्हाई - तीनों काल के भाई । इनसे बचें!पेटू और पियक्कड़ों का संग, दुष्परिणाम की तरफ, कुकृत्यों की तरफ ले जाता है। अतएव यह त्याज्य है।

🌼अघोर वचन🌼तू नम्र बन। सभी प्राणियों के सामने सुमधुर वाणी का उच्चारण कर।तुमने शंकराचार्य के बारे में नहीं सुना है? जब उनक...
13/07/2025

🌼अघोर वचन🌼

तू नम्र बन। सभी प्राणियों के सामने सुमधुर वाणी का उच्चारण कर।तुमने शंकराचार्य के बारे में नहीं सुना है? जब उनके शरीर का सारा मल विसर्जित होते-होते निकल गया, उन्हें प्यास लगी। उन्होंने जल माँगा।भगवान विश्वेश्वर वहीं डोम के रूप में खड़े थे। वे शंकराचार्य को तब तक जल नहीं देना चाहते थे जबतक उनके चित्त से भेद बुद्धि समाप्त न हो जाती। अत: उन्होंने शंकराचार्य से कहा "मैं तो डोम हूँ। मेरे हाथ आपकी पवित्रता, शुद्धता बनी रहे।" शंकराचार्य ने कहा "मुझमें शक्ति नहीं है। आप ही जल दे दीजिए।"मुडिया साधु! देखा, जिसका द्वैत-भाव, जिसकी भेद-बुद्धि समाप्त हो जाती है, वही ईश्वर हो जाता है। जब-तक भेद-बुद्धि, पवित्रता-अपवित्रता का भेद बना रहता है, शक्ति नहीं मिलती। शक्ति नहीं है' कहने को बाध्य होना पड़ता है। भेद-भाव समाप्त होने पर मन में, शरीर में, हाथ में, पैर में सर्वत्र शक्ति ही शक्ति जान पड़ती है।

🌼अघोर  वचन🌼खाली पेट के लिए मंदिर का कोई महत्व नहीं। हजारों मंदिरों में चिराग तक नहीं जलाया जाता। मंदिर-मस्जिद सुधारने के...
12/07/2025

🌼अघोर वचन🌼

खाली पेट के लिए मंदिर का कोई महत्व नहीं। हजारों मंदिरों में चिराग तक नहीं जलाया जाता। मंदिर-मस्जिद सुधारने के बजाए मनुष्य के दिल का सुधारा जाना चाहिए। मंदिर-मस्जिद के नाम पर "व्यापक ईश्वर" को कैद किया जा रहा है।"बन्धुओं! जिसे हम पूजा-पाठ या धरम करम कहते हैं, जिसे हम अनेकों नाम-रूप देते हैं, उस सब-कुछ की सिद्धि अपनी चतुराई को छोड़ देने के अर्थ में ही होती है। अतिशय चालाकी मनुष्य को दुर्बल बना देती है और अज्ञानता के आने का रास्ता खोलती है। इसके साथ ही अतिशय चालाकी देवताओं की जगह पर दैत्यों को पूजने के लिये बाध्य करती है।

07/07/2025

“भगवान राम से सावधान वह मेरा शिष्य नहीं है। ऐसा कहकर उनके गुरू ने अघोरेश्वर महाप्रभू को आश्रम से निकाल दिया था और सब जगह पत्र बटवा दिया था। इसकी कथा मैं आप सबों के सामने प्रस्तुत कर रही हूं।”

Address

Swindon

Opening Hours

Monday 9am - 5pm
Tuesday 9am - 5pm
Wednesday 9am - 5pm
Thursday 9am - 5pm
Friday 9am - 5pm
Saturday 9am - 5pm
Sunday 9am - 5pm

Telephone

+447459034175

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Agoreshwer Mahaprabhu posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Share