Agoreshwer Mahaprabhu

Agoreshwer Mahaprabhu Namaste! If you are interested in knowing more, please like and follow our page ‘अघोर क्या है?

Welcome to ‘The Way to Know Aghor.’ Many people are curious about Aghor,In this vlog, we will explore the true essence of Aghor and clear common misconceptions.

यदि आपके गुरु, माता–पिता या पूज्यजनों की वाणी या आचरण में कभी आपकी बुद्धि को दोष दिखाई दे, तो उस दोष को देखने से पहले अप...
06/12/2025

यदि आपके गुरु, माता–पिता या पूज्यजनों की वाणी या आचरण में कभी आपकी बुद्धि को दोष दिखाई दे, तो उस दोष को देखने से पहले अपने मन को देखें। क्योंकि मन का विकार ही अधिकतर बाह्य दोष का कारण बन जाता है। उस समय मौन रहना और हृदय में श्रद्धा बनाए रखना ही उत्तम धर्म है। कटु वचन से सत्य भी अपना पवित्र रूप खो देता है।

आपके अंतःकरण में बसे हुए श्रद्धा, सेवा और विनय के भाव ही आपकी वास्तविक पूँजी हैं। यही वह ज्योति है जो आपके जीवनपथ को प्रकाशित करती है और अंधकार को समीप आने नहीं देती। जहाँ आदर है, वहाँ स्वतः ही सद्गुण निवास करने लगते हैं और जीवन सुगंधित हो जाता है।🙏🌼🌼

।।परम पुज्य अवधुत बाबा की मार्गदर्शी वाणी ।।विभूति (भस्मि) ऐश्वर्य को कहते हैं।विभूति को अपने ललाट पर नित्य लगाना चाहिए।...
05/12/2025

।।परम पुज्य अवधुत बाबा की मार्गदर्शी वाणी ।।
विभूति (भस्मि) ऐश्वर्य को कहते हैं।विभूति को अपने ललाट पर नित्य लगाना चाहिए।हमारे ललाट पर भस्मि की रेखाऐं हमें उस मृत्यु पर भी विजय प्राप्त करा सकती है जिस मृत्यु से हम नित्य ही लड़ रहे हैं।बुराई से लड़ने का विभूति एक सशक्त माध्यम है।शमशान सरीखे इस शरीर में जब हम विभूति को लगाते हैं,तभी देवताओं,महापुरूषों, संतों का आगमन होता है।विभूति जब हम अपने शरीर में लगाते हैं तो यह शरीर पावन,निर्मल,सुन्दर,स्वच्छ भाष्ता है।जिस दिन हमारा शरीर ख़ाक हो जायेगा उस दिन यह विभूति ही भारतवर्ष के कण-कण में ,इस मिट्टी में विलीन होजायेगा।लोग इसी मिट्टी के माध्यम से अपनी यादों में हम सभी को संजोये रखेंगे ।यदि विभूति(भस्मि) उपलब्ध न हो तो हम सभी मिट्टी या जल से भी भावना कर के अपने ललाट पर लगा सकते हैं।हमें इससे भी वही परिणाम प्राप्त होगा जो विभूति के लगाने से होता है।इसे अनुभव करना चाहिए। यदि नित्य नहीं कर सकते तो नवरात्र में अवश्य करें।
।।जय मां गुरू को साष्टांग प्रणाम ।।

“अघोरेश्वर के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम है। 🙏🌼🌼
29/11/2025

“अघोरेश्वर के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम है। 🙏🌼🌼

🌼“गुरुभक्ति और आंतरिक वैराग्य की साधना”🌼गुरु साधना इस  साधना की सबसे बड़ी खासियत यह है कि साधक सब ओर से उदासीन होकर केवल ...
24/11/2025

🌼“गुरुभक्ति और आंतरिक वैराग्य की साधना”🌼

गुरु साधना इस साधना की सबसे बड़ी खासियत यह है कि साधक सब ओर से उदासीन होकर केवल एक अपने गुरु से ही सम्बन्ध रखे।इसका अर्थ यह नहीं होता है कि साधक संसार से या समाज से विमुख हो जाये।करना यह है कि संसार का सब व्यवहार करते हुए ,समाज का सब सम्बन्ध निभाते हुए ,साधारण शिष्टाचार की मर्यादा कायम रखते हुए अन्तर में सबसे अलग रहे,केवल अपने गुरु से प्रेम का नाता जोड़े रहे। जिसका अर्थ यह होता है कि "बाहर से सबसे मिले रहो किन्तु भीतर से एक के सिवा सबसे अलग रहो।"

"जिस प्रकार पतिव्रता स्त्री का सम्बन्ध एक ही से होता है उसी तरह तुम्हारे लिये भी वही एक हो ,सर्वत्र तुमको वही एक दिखाई दे, मन में ,आँखों में उसी का स्वरूप हर समय नाचा करे,तुम्हारा सिर झुके तो उसको झुके,तुम्हारा हृदय खुले तो उसके सम्मुख खुले।दूसरे चाहे कितने ही प्रसिद्ध महात्मा व प्रसिद्ध विद्वान हों,उनसे अपना निजी साधन और निजी अवस्था प्रकट न करो,न साधन के सम्बन्ध में किसी से पूछो,एक ही से काम रखो,उसी की आज्ञा में चलो,उसी को मन और बुद्धि समर्पित कर निश्चिन्त होकर बैठो।यदि ऐसा नहीं कर सकोगे तो व्यभिचार का दोष लग जायेगा और गुरु भी तुम ध्यान देना छोड़ देगा।फिर न इतना प्रेम तुमसे रहेगा,न इतनी कृपा तुम्हारे ऊपर रहेगी और न गुप्त रहस्य वह तुम पर प्रकट करेंगे।ऐसे लोग बीच ही में लटके रह जाते हैं।

जब तक मनुष्य संसार में लिप्त रहेगा ,वह इच्छाओं का दास रहेगा और जब तक इच्छाओं का दास है उसका हृदय निर्मल नहीं हो सकता।उसके लिए यह परम आवश्यक है कि वह अपनी इच्छायें गुरु की इच्छा में मिला दे।इसके बारे में एक दृष्टांत है कि एक गली में दो संत रहते थे।एक ,कोई सूखी रोटी लाता, तभी खाने के लिए लेते,अगर कोई और पकवान होता तो वापस कर देते।दूसरे संत थे वह जो कुछ आ जाता ,उसको रख लेते और खा लेते ।एक बार उनके शिष्य ने कहा कि वह जो संत हैं वह तो केवल सूखी रोटी लेते हैं परन्तु आप तो हलवा पूड़ी जो भी आ जाये रख लेते हैं तो उन संत ने समझाया कि वह जो संत हैं उन्होंने अपने स्वाद का त्याग किया है और वह केवल सूखी रोटी खाते हैं ,मैंने अपनी सारी इच्छाओं को भोजन के बारे त्याग कर दिया है,उससे वैराग्य ले लिया है,गुरु जो भेजता है वह मैं खा लेता हूँ और जो नहीं भेजता है तो उस दिन भूखा भी रह जाता हूँ लेकिन मुझे इससे कोई मतलब नहीं कि वह क्या भेजता है,मुझे तो उसकी इच्छाओं में रहना है कि जो वह भेजेगा वह मुझे स्वीकार होगा तो सचमुच में हृदय निर्मल तभी होता है जब यह कार्य कर लेते हैं। har mahadev kinaram sarkar baba gurudev awdoot baba samuhratn ram ji 🙏🌼🌼

आत्माराम के चिंतन से सभी विघ्न समूल नष्ट हो जाते हैं। ज्ञान संसार की पोथी, पुराणों और निर्देशों में नहीं होता वह तो आत्म...
23/11/2025

आत्माराम के चिंतन से सभी विघ्न समूल नष्ट हो जाते हैं। ज्ञान संसार की पोथी, पुराणों और निर्देशों में नहीं होता वह तो आत्मिक चिंतन से मानव हृदय में अपने आप ही उद्वेलित होता है। पोथी-पुराण निर्देश तो आत्म चिंतन के साधारण रास्ते हैं। जिस दिन तुम अपने को देखने की कोशिश करोगे सारे जन्मों के कर्म-बंधन से बनी हुई इच्छाओं की बेड़ी से जकड़े हुए सभी विचार पुरोहित हो जाएंगे दूर भाग जाएंगे विलुप्त हो जाएंगे जब तक तुम दूसरों को देखने का प्रयत्न करते रहोगे तब तक तुम अपने को निराश्रित अपने आप से बहुत दूर पाओगे मंत्र, क्रिया, अनुष्ठान द्वारा जो उत्पादित देवता है, इस सांसारिक सुखों को छोड़कर आत्मा का साक्षात्कार नहीं करा सकते


परम पूज्य अघोरेश्वर भगवान राम जी

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