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मौलाना हबीबुर्रहमान लुधियानवी और भगत सिंह का परिवार--- #कहानीलुधियाना की गलियों में वह समय बहुत ही अशांत था। हर गली, हर ...
25/08/2025

मौलाना हबीबुर्रहमान लुधियानवी और भगत सिंह का परिवार

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#कहानी

लुधियाना की गलियों में वह समय बहुत ही अशांत था। हर गली, हर चौक पर अंग्रेज़ी सिपाहियों का पहरा था। क्रांति की आवाज़ें धीमे-धीमे मगर गूंज रही थीं। इसी दौर में भगत सिंह का नाम अंग्रेज़ों के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुका था।

असेंबली में बम फेंकने की घटना के बाद भगत सिंह और उनके परिवार पर अंग्रेज़ सरकार का कहर टूट पड़ा। आस-पड़ोस के लोग, जो कभी उनके साथ बैठकर बातें किया करते थे, अचानक उनसे दूर हो गए। कोई उनके घर आने की हिम्मत नहीं करता। क्योंकि अंग्रेज़ों की जासूस आँखें हर वक्त उन पर लगी रहती थीं।

इसी मुश्किल घड़ी में, मौलाना हबीबुर्रहमान लुधियानवी ने अपनी दहलीज़ खोली। मौलाना के घर का दरवाज़ा उस समय खुला जब हर कोई अपने दरवाज़े बंद कर रहा था। उन्होंने भगत सिंह के परिवार को अपने घर में जगह दी, उन्हें सहारा दिया, और अंग्रेज़ों से बचाकर महीनों तक सुरक्षित रखा।

मौलाना के भीतर यह जज़्बा विरासत में था। उनके दादा शाह अब्दुल क़ादिर 1857 की लड़ाई में क्रांतिकारियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़े थे और चांदनी चौक में अंग्रेज़ों से लड़ते हुए शहीद हुए थे। यही जज़्बा मौलाना के खून में दौड़ रहा था।

मजलिस-ए-अहरार-ए-इस्लाम के संस्थापक के रूप में मौलाना हबीबुर्रहमान ने आज़ादी की लड़ाई में बड़ा किरदार निभाया। वह हिंदुस्तान की आज़ादी और एकता के लिए खड़े हुए और बंटवारे के सख्त खिलाफ़ रहे।

जब अंग्रेज़ों का डर हर घर को जकड़ रहा था, उस वक्त मौलाना का घर उम्मीद और पनाह की जगह बन गया। वहाँ सिर्फ दीवारें ही नहीं थीं, बल्कि आज़ादी का सपना भी जिंदा था।

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#संदेश

👉 यह कहानी हमें याद दिलाती है कि आज़ादी की लड़ाई केवल कुछ नामों की नहीं थी, बल्कि उसमें ऐसे असंख्य गुमनाम और महान इंसान शामिल थे जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना दूसरों को सहारा दिया।
👉 मौलाना हबीबुर्रहमान लुधियानवी ने दिखा दिया कि मज़हब से ऊपर उठकर इंसानियत और वतन की मुहब्बत सबसे बड़ी ताक़त है।

आप सब की क्या राय है?
24/08/2025

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SRK अपने बेटे के साथ! ❤️
24/08/2025

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सेंट क्वेंटिन नहर की लड़ाई (उत्तरी फ्रांस), 29 सितम्बर 1918 के बाद आराम करते ब्रिटिश सैनिक।यह तस्वीर 137वीं (स्टैफ़ोर्डश...
24/08/2025

सेंट क्वेंटिन नहर की लड़ाई (उत्तरी फ्रांस), 29 सितम्बर 1918 के बाद आराम करते ब्रिटिश सैनिक।

यह तस्वीर 137वीं (स्टैफ़ोर्डशायर) इन्फैंट्री ब्रिगेड के सैनिकों की है, जो 46वीं डिवीजन का हिस्सा थी।

पहली नज़र में मुझे लगा मानो मिट्टी के ढेर पर चींटियाँ चल रही हों। लेकिन ज़ूम करने पर दिखता है कि ये सैनिक कितने थके, कमजोर और कंकाल जैसे लग रहे हैं।
सोचिए, यह तस्वीर युद्ध के अंत से महज़ डेढ़ महीने पहले की है — क्योंकि प्रथम विश्व युद्ध 11 नवम्बर 1918 को समाप्त हुआ।
दिल से यही दुआ निकलती है कि इनमें से ज़्यादातर सैनिक सुरक्षित घर लौटे हों और लंबी, सुखद ज़िंदगी जी पाए हों।

Victorious British soldiers resting after the Battle of St Quentin Canal, Northern France, September 29, 1918.

It shows the men of the 137th (Staffordshire) infantry brigade. Part of the 46th Division.

I thought I was seeing ants on a dirt mound. If you zoom in, you can see how skeletal they all look. Seeing how WW1 ends on November 11th of that same year, I hope most of these men made it back home and went on to live long, fulfilling lives.

In 1985, on the streets of New York’s Lower East Side, style was more than fashion—it was survival, expression, and defi...
23/08/2025

In 1985, on the streets of New York’s Lower East Side, style was more than fashion—it was survival, expression, and defiance all at once. Jim, a character of the era, captured that perfectly when he recalled his mother’s parting words: “Jimbo, don’t you ever dare skimp on that swank.” For him, swagger wasn’t optional; it was a birthright.

One of the most unforgettable accessories tied to this vision? A set of gleaming gold tooth jaws. Though the ones we see today are just an imagined concept, the idea resonates. They blend jewelry with attitude, turning a smile into a statement piece. While grills and gold caps would eventually become popular in later decades, the thought of a full gold jaw—something futuristic, raw, and unapologetically bold—pushes the boundaries even further.

Could such a piece actually be made? With today’s advanced dental tech and the artistry of jewelers, the line between fantasy and reality grows thinner every year. Whether as a wearable fashion statement, a high-end art installation, or a cultural nod to the spirit of the 1980s, gold jaws would certainly turn heads.

वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला कि मुर्गीं पहले आईं, अंडा नहीं, क्योंकि अंडे के छिलके को बनाने वाला प्रोटीन केवल मुर्गियो...
23/08/2025

वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला कि मुर्गीं पहले आईं, अंडा नहीं, क्योंकि अंडे के छिलके को बनाने वाला प्रोटीन केवल मुर्गियों द्वारा ही उत्पादित किया जाता है! #अनोखेfacts

युद्ध की त्रासदी के बीच, जिसे आज बहुत से यूक्रेनियन झेल रहे हैं, 28 वर्षीय व्लादिस्लाव डूडा ने अपने देश को छोड़कर रोमानि...
23/08/2025

युद्ध की त्रासदी के बीच, जिसे आज बहुत से यूक्रेनियन झेल रहे हैं, 28 वर्षीय व्लादिस्लाव डूडा ने अपने देश को छोड़कर रोमानिया की ओर जाने का फैसला किया। इसके लिए उन्हें दुर्गम कार्पेथियन पहाड़ों को पार करना पड़ा, ताकि एक सुरक्षित जीवन मिल सके। उन्होंने अपने ज़्यादातर सामान पीछे छोड़ दिए, लेकिन अपनी सबसे कीमती चीज़ नहीं छोड़ पाए—उनकी छोटी-सी नारंगी बिल्ली, जिसका नाम उन्होंने रखा था "पीच"। उन्हें यह नहीं पता था कि यही नन्ही-सी जान उनकी ज़िंदगी बचाने वाली बनेगी।

दो साथियों के साथ पहाड़ पार करने की कोशिश करते समय वे एक भयानक बर्फ़ीले तूफ़ान में फँस गए। चारों ओर कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, और ठंड इतनी तेज़ थी कि हड्डियों तक चुभ रही थी। इस अफरातफरी में डूडा का पैर फिसल गया और वे गहरी ढलान से नीचे जाकर बर्फ़ीली घाटी में फँस गए। वे अपने साथियों से बिछड़ गए। जैसे-जैसे रात गहराती गई, तापमान शून्य से नीचे गिरता गया और उनका शरीर धीरे-धीरे जमने लगा।

लेकिन डूडा पूरी तरह अकेले नहीं थे…

पीच उनकी जैकेट के अंदर छिपी हुई थी। वह नन्ही बिल्ली उनके सीने से चिपकी रही, अपनी छोटी-सी गर्मी उनके दिल और सीने तक पहुँचाती रही, जबकि मौत धीरे-धीरे उन्हें घेर रही थी। उन निर्मम पलों में उनके पास बस एक हल्की-सी उम्मीद थी—एक वफ़ादार दोस्त, जो हथेली से भी छोटा था।

डूडा ने लगभग 24 घंटे उस घाटी में बिताए—ठिठुरन, भूख और निराशा से लड़ते हुए। आख़िरकार, रोमानियाई बचाव दल ने थका देने वाली खोज के बाद उन्हें ढूँढ लिया। जब वे पहुँचे, तो डूडा लगभग बेहोश थे, गंभीर हाइपोथर्मिया से जूझ रहे थे—लेकिन अब भी अपनी बिल्ली को कसकर पकड़े हुए थे, मानो उनकी जान उसी पर टिकी हो।

एक रेस्क्यू टीम के सदस्य ने कहा:
“बिल्ली उन्हें गर्म रख रही थी… उसी ने उनकी जान बचाई। उन्हें अपनी परवाह तक नहीं थी, बस बिल्ली की थी।”

डूडा को तुरंत अस्पताल ले जाया गया, जहाँ उनका फ्रॉस्टबाइट का इलाज शुरू हुआ। वहीं पीच एक पल के लिए भी उनसे दूर नहीं हुई—यहाँ तक कि जब डूडा को स्ट्रेचर पर एम्बुलेंस तक ले जाया जा रहा था, तब भी वह उनके साथ ही रही।

आख़िरकार, डूडा और उनकी बिल्ली दोनों स्वस्थ हो गए। उनकी यह कहानी एक शक्तिशाली प्रतीक बन गई—कि कभी-कभी मदद सबसे छोटे और अनदेखे साथियों से मिलती है।

In the heart of the tragedy that many Ukrainians are enduring because of the war, 28-year-old Vladislav Duda decided to leave his country and cross the rugged Carpathian Mountains toward Romania in search of a safer life. He left behind most of his belongings, but he could not part with his most precious possession: his small orange cat, which he named “Peach.” He did not know that this tiny creature would be the reason he survived.

While trying to cross the mountains with two companions, they were caught by a powerful snowstorm that reduced visibility to almost nothing, with the cold biting to the bone. Amid the chaos, Duda’s feet slipped, sending him down a deep slope where he became trapped in a frozen valley, separated from his companions. As night fell, temperatures dropped below zero, and his body began to freeze gradually.

But Duda was not entirely alone…

Peach had been hiding inside his jacket. The small cat pressed against his chest, keeping close and sharing its tiny body heat to warm his heart and chest while death slowly crept closer. In those brutal moments, there was nothing but a faint hope embodied in a loyal friend no bigger than the palm of a hand.

Duda spent nearly 24 hours in that valley, battling frostbite, hunger, and despair. Finally, after an exhausting search, Romanian rescue teams managed to find him. When they reached him, he was nearly unconscious and suffering from severe hypothermia—but still clutching his cat tightly, as if his life depended on it alone.

One of the rescuers said: “The cat was keeping him warm… it saved his life. The only thing he cared about was the cat; he didn’t even care about himself.”

Duda was immediately taken to the hospital to receive treatment for frostbite, while Peach stayed right by his side—even as he was carried to the ambulance bed, refusing to leave him for a single moment.

Duda and his cat both recovered, and their story became a powerful symbol that sometimes help comes from the smallest and we

जब खून निकलता है तो ये होता है।
23/08/2025

जब खून निकलता है तो ये होता है।

1965 में मेझिरिच (Mezhyrich) नामक स्थान पर एक किसान अपने तहखाने को बड़ा कर रहा था। खुदाई के दौरान उसे एक मैमथ (हाथी जैसी...
23/08/2025

1965 में मेझिरिच (Mezhyrich) नामक स्थान पर एक किसान अपने तहखाने को बड़ा कर रहा था। खुदाई के दौरान उसे एक मैमथ (हाथी जैसी प्रागैतिहासिक प्रजाति) का निचला जबड़ा मिला। आगे की खुदाई में वहाँ चार झोपड़ियाँ मिलीं, जो कुल 149 मैमथ की हड्डियों से बनाई गई थीं। ये झोपड़ियाँ लगभग 15,000 साल पुरानी मानी जाती हैं और इन्हें मानव द्वारा बनाए गए सबसे पुराने आश्रयों (shelters) में गिना जाता है।

मेझिरिच (Межиріч) मध्य यूक्रेन का एक गाँव है, जहाँ रोसावा (Rosava) नदी, रोस (Ros) नदी में मिलती है।

इन झोपड़ियों को मैमथ की हड्डियों और दाँतों (tusks) को गोल घेरे में लगाकर बनाया गया था। इनका व्यास लगभग 6 से 10 मीटर (20 से 33 फीट) था। आम तौर पर झोपड़ी के बीच में एक चूल्हा (hearth) होता था और उसके चारों ओर पत्थर के औज़ार और अन्य वस्तुएँ बिखरी हुई मिलती थीं। माना जाता है कि इन झोपड़ियों को ऊपर से जानवरों की खाल से ढक दिया जाता था। इनका मुख्य उद्देश्य था अत्यधिक ठंड और तेज़ हवाओं से बचाव करना।

In 1965 at Mezhyrich, a farmer dug up the lower jawbone of a mammoth while in the process of expanding his cellar. Further excavations revealed the presence of four huts, made up of a total of 149 mammoth bones. These dwellings, dating back some 15,000 years, were determined to have been some of the oldest shelters known constructed by pre-historic man. Mezhyrich (Межиріч) is a village in central Ukraine near the point where the Rosava River flows into the Ros.

The huts were built with bones and tusks arranged in a rough circle with a diameter between 6 and 10 m (20 and 33 ft). A hearth typically lied near the centre of the former dwelling, and stone tools and other debris were scattered within and outside the structure. The primary purpose of the mammoth-bone dwellings which were presumably covered with animal skins, was probably shelter from extreme cold and high winds.

किसी का चुप रहना उसका इगो नहीं होता जिन्दगी के कुछ हादसे उसकी अल्फ़ाज़ छीन लेते है?
23/08/2025

किसी का चुप रहना उसका इगो नहीं होता

जिन्दगी के कुछ हादसे उसकी अल्फ़ाज़ छीन लेते है?

🔥 लंदन की महान आग – The Great Fire of London (1666)साल 1666, सितंबर का महीना।लंदन शहर में लगी थी एक भयानक आग, जिसने इतिह...
18/08/2025

🔥 लंदन की महान आग – The Great Fire of London (1666)

साल 1666, सितंबर का महीना।
लंदन शहर में लगी थी एक भयानक आग, जिसने इतिहास की दिशा ही बदल दी।

🔥 आग कैसे लगी?

2 सितंबर 1666 की सुबह थॉमस फैरिनर (Thomas Farriner) नामक बेकरी में चिंगारी से आग भड़की।

लकड़ी से बने घर और तंग गलियों की वजह से आग ने तेज़ी से फैलकर पूरे शहर को घेर लिया।

📍 तबाही का पैमाना

आग 4 दिन (2–6 सितंबर) तक भड़की रही।

लंदन का लगभग 80% हिस्सा जलकर राख हो गया।

87 चर्च, 13,000 से ज़्यादा घर और कई सरकारी इमारतें नष्ट हो गईं।

उस समय लंदन की आबादी करीब 80,000 थी – यानी लगभग 70,000 लोग बेघर हो गए।

⚖️ चौंकाने वाली बात

इतनी भीषण आग के बावजूद सिर्फ 6 मौतें दर्ज हुईं।
इतिहासकार मानते हैं कि असल में मौतें ज़्यादा हुई होंगी, लेकिन उस दौर की रिकॉर्डिंग में केवल 6 का ज़िक्र मिला।

🌍 आग से सीखे सबक

इस हादसे के बाद आधुनिक फायर ब्रिगेड और बीमा व्यवस्था (insurance system) की शुरुआत हुई।

लंदन को दोबारा बनाया गया – लेकिन इस बार पत्थर और ईंट से, ताकि आग दोबारा इतना बड़ा नुकसान न कर सके।

शहर की प्लानिंग बदली और लंदन ने आधुनिक स्वरूप पाना शुरू किया।

✨ संदेश

कभी-कभी आपदा ही बदलाव की नींव रखती है।
लंदन राख से उठकर एक बार फिर दुनिया के सबसे महान शहरों में गिना जाने लगा।

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🎬 आर्यन खान का डेब्यू – The Bad’s of Bollywoodबहुत कम लोग जानते हैं कि शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान ने एक्टिंग नहीं, बल्...
18/08/2025

🎬 आर्यन खान का डेब्यू – The Bad’s of Bollywood
बहुत कम लोग जानते हैं कि शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान ने एक्टिंग नहीं, बल्कि राइटिंग और डायरेक्शन से अपना डेब्यू किया है। उनकी पहली वेब-सीरीज़ “The Bad’s of Bollywood” का फर्स्ट लुक टीज़र रिलीज़ हो चुका है।

✨ टीज़र की खास बातें

आर्यन की आवाज़ और अंदाज़ सुनकर लोग शाहरुख खान की झलक महसूस कर रहे हैं।

वीडियो की शुरुआत होती है SRK की “मोहब्बतें” वाले अंदाज़ से – लेकिन एक नए ट्विस्ट के साथ।

इसमें लक्ष्य लालवानी और सहर बंबा की केमिस्ट्री देखने को मिलती है।

आर्यन कहते हैं:
“बॉलीवुड, जिसे सालों से आपने प्यार भी किया और वार भी। मैं भी वही करूंगा, बहुत सारा प्यार और थोड़ा सा वार। क्‍योंकि पिक्‍चर तो सालों से बाकी है, लेकिन शो अब शुरू होगा।”

🔥 क्यों है खास?

ये सिर्फ़ आर्यन खान का डेब्यू नहीं, बल्कि नई पीढ़ी के फ़िल्मकारों का संदेश है – कहानी कहने का तरीका बदल रहा है।

टीज़र देखकर फैन्स कह रहे हैं – “आर्यन अपने पापा की कार्बन कॉपी लगते हैं।”

बॉलीवुड की ये नई जर्नी अब शुरू हो चुकी है।
क्या आप तैयार हैं इसे देखने के लिए? 🎥

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