
21/06/2025
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।2.48।।
यह श्लोक श्रीमद् भगवद्गीता का है. इसका अर्थ है, 'हे धनंजय, आसक्ति का त्याग करके, सफलता एवं असफलता में समान भाव से कर्म करने से योग की प्राप्ति होती है |