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मंटो का वो कमरा - आकाशवाणी भवन में ----------------------------------------------------- अपनी लघु कथाओं, बू, खोल दो, ठंड...
09/10/2022

मंटो का वो कमरा - आकाशवाणी भवन में
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अपनी लघु कथाओं, बू, खोल दो, ठंडा गोश्त और टोबा टेक सिंह से प्रसिद्ध हुए सआदत हसन मंटो (11 मई 1912 – 18 जनवरी 1955) को गुजरे हुए और आकाशवाणी के दिल्ली केन्द्र में काम किए हुए एक जमाना गुजर गया। पर अब भी उनके आकाशवाणी केन्द्र के कमरे के बारे में यहां के बहुत से मुलाजिमों को पता है। मंटो का कमरा पहली मंजिल पर नाटक विभाग में था। वे यहां 1940 से अगस्त 1942 के दरम्यान रहे। उनके साथ उर्दू के मशहूर अफसाना निगार कृश्न चंदर भी काम करते थे।

मंटो ने आकाणवाणी दिल्ली के लिए 110 नाटक लिखे। मंटो की आज पुण्यतिथि है। उनके लिखे एक नाटक ‘दस्तावेज’ को श्रोताओं ने खूब पसंद किया था। उन्होंने यहां पर रहते हुए कृष्ण चंदर के साथ बंजारा फिल्म की कहानी भी लिखी। जिसे सेठ जगत नारायण ने खऱीदा था।

सेठ जगत नारायण दिल्ली की बड़ी हस्ती हुआ करते थे। वे जगत,रीटज और नॉवेल्टीसिनेमा घरों के मालिक थे। लाला जगत नारायण सेठ का संबंध दिल्ली की खत्री बिरादरी से था। उनकी कटरा नील में हवेली थी! मंटो के एक जीवनीकार जगदीश चंदर वधावन कहते हैं कि “ मंटो को आकाशवाणी में 150 रुपए माह पर नौकरी मिली थी। इससे पहले वे 60 रुपए महीने की नौकरी कर रहे थे।”

किसके साथ वक्त गुजरता था मंटो का ~

आप जानते हैं तीस हजारी के पास है सेंट स्टीफंस अस्पताल। इससे सटा है भैंरों मंदिर। ये भार्गव लेन पर है। इधर का 5 भार्गव लेन का घर कभी स्थायी अड्डा होता था सआदत हसन मंटो का। वे रोज ही तो यहां पर अपने मित्र कृश्न चंदर से गुफ्तुगू करने आया करते थे। ये बातें तब की हैं जब मंटो दिल्ली में रह रहे थे। उन दिनों मंटो और चंदर आकाशवाणी की उर्दू सेवा में काम करते थे।

तब आकाशवाणी का एक दफ्तर अंडरहिल रोड पर भी होता था। ये जगह भार्गव लेन से दो-तीन मील की ही दूरी पर है। मंटो मुंबई को छोड़कर दिल्ली आकाशवाणी में नौकरी करने आए तो पहला मसला छत का था। उनकी पहले ही दिन किशन चंदर से दोस्ती हो गई। कृश्न चंदर अपने नए दोस्त को अपने साथ अपने घर में ले आए। फिर मंटो इधर करीब दो हफ्ते तक रहे।

मोरी गेट में मंटो ~

सआदत हसन मंटो ने यहां नोकरी करते हुए मोरी गेट में एक घर किराए पर भी ले लिया। यहां उकी पत्नी भी आ गई। अब मंटो और कृश्न चंदर दिल्ली की खाक छानने लगे। दिल्ली में कुछ समय तक रहने के बाद मंटो फिर से बंबई लौट गए। कृश्न चंदर का मुंबई-दिल्ली आना जाना लगा रहा। मंटो बाद में जब भी दिल्ली आए तो 5 भार्गव लेन वाले घर में ही ठहरे। इसमें कृश्न चंदर की मां और छोटे भाई रहते थे। ये घर कृश्न चंदर के परिवार के पास 1990 तक रहा। बहरहाल, देश के विभाजन के बाद मंटो पाकिस्तान चले गए। वहां पर 1955 में उनकी मृत्यु हो गई।

मंटो की मौत से अवाक कृश्न चंदर चंदर ने तब लिखा-"जिस दिन मंटो से मेरी पहली मुलाक़ात हुई, उस रोज मैं दिल्ली में था। जिस रोज़ वह मरा है,उस रोज़ भी मैं दिल्ली में मौजूद हूं। उसी घर में हूं, जिसमें चौदह साल पहले वह मेरे साथ पंद्रह दिन के लिए रहा था। घर के बाहर वही बिजली का खंभा है, जिसके नीचे हम पहली बार मिले थे। वह ग़रीब साहित्यकार था। वह मंत्री न था कि कहीं झंडा उसके लिए झुकता। आज दिल्ली में मिर्जा ग़ालिब पिक्चर चल रही है। इसकी कहानी इसी दिल्ली में, मोरी गेट में बैठ कर मंटो ने लिखी थी। एक दिन हम मंटो की तस्वीर भी बनाएंगे और उससे लाखों रूपए कमायेंगे। यह मोरी गेट, जहां मंटो रहता था, यह वह जामा मस्जिद की सीढियां हैं, जहां हम कबाब खाते थे, यह उर्दू बाज़ार है। सब कुछ वही है, उसी तरह है । सब जगह उसी तरह काम हो रहा है। आल इंडिया रेडियो भी खुला है और उर्दू बाज़ार भी, क्योंकि मंटो एक बहुत मामूली आदमी था। वह ग़रीब साहित्यकार था। वह मंत्री न था कि कहीं झंडा उसके लिए झुकता।”

टोबा टेक सिंह का बिशन सिंह कहाँ ~

सआदत हसन मंटो कालजयी कहानी टोबा टेक सिंह के मुख्य पात्र बिशन सिंह को दिल्ली में देखना चाहेंगे ? मानसिक रूप से विक्षिप्त बिशन सिंह को देश के बंटवारे के चलते अपनी मिट्टी से दूर भेजा जा रहा था। ये उसे नामंजूर था। तो जो इंसान शारीरिक-मानसिक रूप से स्वस्थ है उसकी अपने घर को हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ने की पीड़ा किस तरह की होती होगी ? बिशन सिंह से मिलते-जुलते पात्र रोज मिलते हैं राजधानी के सब-रजिस्ट्रार के दफ्तरों में।

साउथ दिल्ली के एक सब-रजिस्ट्रार दफ्तर में लगभग 50 साल का इन्सान अपने आंसू पोँछ रहा है। उसके साथ पांच-छह कुलीन दिखने वाले उसके मित्र-संबंधी बैठे हैं। इनमें दो औरतें भी हैं। आप इनसे साहस जुटाकर इधर आने की वजह जानना चाहते हैं। आंसू पोँछने वाले इंसान से रोने की वजह पूछते हैं। तो उनमें से एक सज्जन बताते हैं,‘ हमने लाजपत नगर में अपने डैडी के बनाए घर को बेच दिया है। आज अपने घर के नए मालिक के साथ सेल डीड पर साइन करने के लिए आए हैं हम सब भाई-बहन।’ इनमें एक सुबक रहा है। पर आंखें सबकी नम हैं। अब इस ग्रुप की एक महिला कहने लगती है, ‘आज बहुत कठोर दिन है। आज हमारा उस घर से नाता टूट गया जिसे हमारे मम्मी-डैडी ने बनाया था। हमने कभी नहीं सोचा था कि हमारा घर बिकेगा।’ये कहते-कहते वो भी रोने लगती है। सारा माहौल गमगीन है।

गीता कालोनी सब-रजिस्ट्रार के दफ्तर में भी होता है प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त का पंजीकरण। इधर हमेशा सन्नाटा पसरा रहता है भीड़-भाड़ के बावजूद। माहौल में उदासी है। अचानक से किसी के सुबकने की आवाज आपके कानों तक पहुंचती हैं। पांच-छह लोगों के एक समूह में एक इंसान को बाकी समझा रहे हैं। वह नाराज है। वह शख्स एक खास पेपर पर साइन करने से अंतिम क्षणों में इंकार करता है। ‘मैं नहीं करूंगा इस पेपर में साइन। तुम उस घर को बेच रहे हो जो बाऊ जी ने कितनी मेहनत से बनवाया था। मैं उस घर में ही रहूंगा’। उसके स्वर में पीड़ा और करुणा के मिले–जुले भाव हैं।

विवेक शुक्ला
Vivek Shukla

नवभारत टाइम्स, 18 जनवरी, 2022
#नईदिल्ली

2022 का मेडिसिन/फिजियोलॉजी का नोबेल पुरस्कार डॉ. स्वांते पेबो को मिला है।और इन्होंने खोजा क्या है?----------------------...
09/10/2022

2022 का मेडिसिन/फिजियोलॉजी का नोबेल पुरस्कार डॉ. स्वांते पेबो को मिला है।
और इन्होंने खोजा क्या है?
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आज के समय विज्ञान मानता है कि आधुनिक मानव यानि होमो सेपियंस यानि हम लोग इस धरती पर सबसे पहले अफ्रीका में 300000 साल पहले दिखाई दिए थे। लेकिन हमसे पहले एक अन्य मानव प्रजाति अफ्रीका से बाहर विचरण कर रही थी। यह प्रजाति थी नियंडरथल मानवों की। नियंडरथल मानव 400000 लाख साल पहले धरती पर आये थे और यूरोप व एशिया के अधिकतर भूभाग में फैले हुए थे।

लगभग 70000 साल पहले आधुनिक मानवों ने अफ्रीका से एशिया की धरती पर कदम रखा था। आज से 30000 हजार साल पहले नियंडरथल मानव विलुप्त हो गए। तो इसका मतलब यह हुआ कि लगभग 40000 साल तक होमो सेपियंस और नियंडरथल मानव एक साथ यूरोप और एशिया में विचरण कर रहे थे।

1990 के दशक में वैज्ञानिकों ने मानव के जेनेटिक कोड को देखना शुरू किया। इसके लिए नए नए औजार और नई तकनीकें विकसित हो रही थी। डॉ स्वांते पेबो ने इन्हीं औजारों और तकनीकों की मदद से नियंडरथल मानव के जेनेटिक कोड का अध्ययन करने करने लगे। लेकिन ये तकनीकें नियंडरथल मानव के डीएनए को समझने के लिए कारगर सिद्ध नहीं हो रही थीं क्योंकि नियंडरथल का डीएनए पूर्ण अवस्था में मिलता ही नहीं था।

म्युनिख विश्वविद्यालय में काम करते हुए डॉ पेबो ने माईटोकॉन्डरिया (हमारी कोशिकाओं में मौजूद एक विशेष संरचना जिसे कोशिका का पावर हाउस भी कहा जाता है) में मौजूद डीएनए का अध्ययन करने पर ध्यान केंद्रित किया। हालांकि माईटोकॉन्डरिया के डीएनए में कोशिका के डीएनए से कम जानकारी होती है लेकिन नियंडरथल के केस में यह कोशिका के डीएनए से ज्यादा अच्छी हालत में मिल रहा था इसलिए सफलता की संभावना ज्यादा हो गई थी।
अपनी नई तकनीक के द्वारा पेबो ने नियंडरथल मानव की एक 40000 हजार साल पुरानी हड्डी के माईटोकॉन्डरिया के डीएनए का सीक्वेन्स बनाने में सफलता हासिल कर ली। और यह पहला सबूत था जो यह बताता है कि आधुनिक मानव नियंडरथल से जेनेटिक तौर पर भिन्न है। यानि यह एक भिन्न प्रजाति है।
2010 में पेबो और उनकी टीम ने नियंडरथल का पहला जेनेटिक सीक्वेन्स छापा। पेबो की इस खोज ने हमें यह बताया कि आज से आठ लाख साल पहले हमारा यानि होमो सेपियंस और नियंडरथल मानव का एक कॉमन पूर्वज इस धरती पर था।

पेबो और उनकी टीम को आधुनिक मानव के डीएनए में नियंडरथल के डीएनए के अंश भी मिले जिससे यह पता चलता है आधुनिक मानव और नियंडरथल मानव के बीच में इंटरब्रीडिंग होती रही है।

लेकिन सिर्फ यही काफ़ी नहीं था। पेबो को दक्षिणी साइबेरिया की एक गुफा में 40000 साल पुरानी इंसानी ऊँगली की हड्डी मिली थी। जब पेबो ने इसकी डीएनए सीक्वेन्सिंग की तो उन्हें कुछ ऐसा मिला जोकि आज तक किसी को नहीं मिला था। इस हड्डी का डीएनए न तो नियंडरथल के डीएनए से मिलता था और न ही आधुनिक मानव के डीएनए से। यह मानव की एक सर्वथा नई प्रजाति थी। इस नई प्रजाति को डेनिसोवा नाम दिया गया क्योंकि जिस जगह यह हड्डी मिली थी उस जगह को डेनिसोवा ही कहा जाता है। डेनिसोवा और नियंडरथल लगभग 600000 साल पहले एक दूसरे से अलग हुए थे।
लेकिन अभी एक महत्वपूर्ण खोज और बाक़ी थी। दक्षिण पूर्व एशिया के लोगों में से 6% में डेनिसोवा मानव के डीएनए के अंश भी मिले हैं, जिससे पता चलता है कि इन दोनों समूहों के बीच भी सम्पर्क रहा होगा।

बहरहाल इन खोजों ने हमारे पूर्वजों के बारे में हमारी जानकारी को विकसित किया है। साथ ही इनसे हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता के विकास को समझने में भी मदद मिली है।

तीस साल पहले शुरू हुई विज्ञान की इस नई शाखा ने अब फल देने शुरू किये हैं, उम्मीद है कि आगे भी मानव अपने ज्ञान का दायरा बढ़ाता रहेगा।

इसके अलावा एक और बात। डॉ स्वांते पेबो 1982 के फिजियोलॉजी/मेडिसिन के नोबेल पुरस्कार विजेता सुनये बेर्गस्त्रोम के पुत्र हैं। सुनये बेर्गस्त्रोम को नोबेल पुरस्कार प्रोस्टाग्लैंडिन नामक एक बायोकेमिकल के ऊपर उनके काम के लिए मिला था।

नवमीत नव
Navmeet Nav

#नोबेलपुरस्कार

इस फोटो में जो सज्जन हैं उनका नाम श्रीमान  #कृष्णमूर्ति_अय्यर है -जोकि  #किट्टू_मामा के नाम से प्रसिद्ध हैं।  #अयंगर_ब्र...
08/10/2022

इस फोटो में जो सज्जन हैं
उनका नाम श्रीमान #कृष्णमूर्ति_अय्यर है -जोकि #किट्टू_मामा के नाम से प्रसिद्ध हैं। #अयंगर_ब्राह्मण हैं।

#किट्टू_मामा एक 68 वर्षीय वरिष्ठ नागरिक हैं
और #थेपीकुलम के पास #त्रिची में #दोसा और #इडली बेचते हैं,
जो #चतिराम_बस_स्टैंड के निकट है।

वह शाम 6 बजे के बाद अपनी दुकान खोलते हैं
और स्वादिष्ट इडली-दोसा स्वादिष्ट चटनी के साथ बहुत सस्ती कीमतों पर बेचते हैं।
जोकि सड़क पर 1 ठेले में संचालित करते हैं।
इस काम में उनकी पत्नी और एक युवा कर्मी सहायता करते हैं।

उनके ज्यादातर ग्राहक मजदूर हैं,
महिला हॉस्टल में रहने वाली कामकाजी महिलाएं,
बस कंडक्टर / ड्राइवर,ऑटो रिक्शा
और टैक्सी ड्राइवर, माल गाड़ी खींचने वाले, टेम्पो ड्राइवर / ट्रक ड्राइवर आदि।

वहां के स्थानीय लोग उनके उत्पादों की शुद्धता और स्वाद के लिए उनका बहुत सम्मान करते हैं।
बहुत ही उचित मूल्य पर लोगों को स्वादिष्ट भोजन उपलब्ध करवाते हैं।

कुछ दिन पहले वह हमेशा की तरह इडली और डोसा बना और बेच रहे थे।
और एक स्थानीय निगम पार्षद पांडियन ने आकर इडली / डोसा मांगा ..
वह नशे में धुत था।
वह एक स्थानीय "भाई" है
और विक्रेताओं से हफ्ता वसूली करता है। उसके साथ २ चमचे भी थे।
उन सभी ने खाना खाया और पांडियन ने खाने के पैसे नहीं दिए।

जब किट्टू मामा की पत्नी ने पैसे मांगे,
तो पांडियन क्रोधित हो गया और उसने किट्टू मामा को धक्का दे दिया और
इडली / इडली के साथ उसके घोल को फेंक दिया।
और उन्हें गाली दी - "तुम अय्यर - तुम मुझसे पैसे माँगने की हिम्मत कैसे कर रहे हो?"

और वह किट्टू राम के जनेऊ को पकड़कर खींचने और तोड़ने का प्रयास करने लगा।

किट्टू मामा उग्र हो गए और पास में पड़ी एक बांस की छड़ी को उठाया और गुंडों को पीटा।
और बोला कि,
"हाँ मैं एक गरीब ब्राह्मण हूँ लेकिन मेरा जनेऊ "वेदस्वरुप" है।
तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इसका अपमान करने की?

मैं मार्शल आर्ट भी जानता हूं।"

फिर उन्होंने सिलम्बट्टम में अपना कौशल दिखाया और गुंडों को विधिवत तोड़ दिया।

वहाँ सभी लोग देख रहे थे लेकिन डर के कारण गुंडे को नहीं रोका।

नशे में धुत नेता पांडियन भाग गया
लेकिन किट्टू मामा को धमकी दी कि वह अगले दिन अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ आएगा और उन्हें "देख" लेगा।

किट्टू मामा ने खाना बनाने का अपना काम जारी रखा।

वहां आसपास के कुछ मजदूरों ने किट्टू अय्यर से कहा कि अगले दिन गुंडे आने पर वे उसकी रक्षा करेंगे।

अगले दिन शाम को किट्टू मामा ने हमेशा की तरह अपनी दुकान शुरू की।

पार्षद और उसके गुंडे नहीं आए।
उसके अगले दिन भी नहीं आये।

तब किट्टू मामा को पता चला कि
उनके साथ लड़ने के बाद,
पार्षद एक दूसरी दुर्घटना में घायल हो गया है और आईसीयू में है,
और ऑपरेशन के लिए "दुर्लभ रक्त समूह" के रक्त की आवश्यकता है।
टीवी पर भी रक्तदान का अनुरोध किया गया था।

किट्टू मामा तुरंत अस्पताल गए,
रक्तदान किया क्योंकि उनके "रक्त" पार्षद के रक्त समूह का ही था,
जब तक ऑपरेशन खत्म नहीं हुआ,
किट्टू मामा अस्पताल में ही रहे

अगले दिन सुबह,पार्षद के परिवार ने उन्हें धन्यवाद दिया और किट्टू मामा ने जाकर उस पार्षद से मुलाकात की,
जो बात करने की हालत में था।
उसने किट्टू मामा से हाथ जोड़कर माफ़ी मांगी।

और किट्टू मामा ने बताया - “मुझे अपने 'जनेऊ" की रक्षा करनी थी
क्योंकि यह मेरा "धर्म' है।

मुझे तुम्हें भी बचाना था क्योंकि यह भी मेरा "धर्म" है।

और आपके पास एक परिवार है
इसलिए मुझे लगा कि
मुझे निश्चित रूप से रक्त दान करके आपकी सहायता करनी चाहिए
इसलिए मैं पुनः अपने "धर्म" का पालन करने आ गया।

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