16/10/2025
बारह महीने में एक बार दिवाली सामाजिक ढंग से तुम मनाओ। हमारी मनाह नहीं है, लेकिन हम तो तुम्हें ऐसी दिवाली दिखा देना चाहते हैं कि ओ मिठाई खाओ और फिर मिठाई की बुरी हालत हो। ऐसी दिवाली हम तुम्हारे लिए सदा नहीं चाहते। फटाखड़ा पेट फोड़ कर तुम्हें आनंद दे और खुद नाश हो जाए। ऐसी दिवाली हम सदा के लिए नहीं चाहते हैं। साल में दो चार दिन के लिए भले तुम करो, लेकिन हम तो चाहते हैं कि उन बुद्ध पुरुषों के वशिष्ठ, वेदव्यास, पाराशर, कबीर, नानक आदि ऋषियों ने जो मिठाई बनाई है *ब्रह्मविद्या की* जय जय उस *ब्रह्मविद्या की मिठाई* खाकर तुम *समता के सिंहासन* पर ऐसे बैठो कि हर श्वास तुम्हारी दिवाली हो और *हर कर्म* तुम्हारा *कुशलता से भरा* हुआ हो और *हर निगाह* तुम्हारी *ब्रह्म की निगाह* हो!