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Baloch Activists Appeal to India as Reports of Crackdown in Pakistan ContinueBy Muzaffar Ali | AjmerReports of alleged h...
26/07/2025

Baloch Activists Appeal to India as Reports of Crackdown in Pakistan Continue

By Muzaffar Ali | Ajmer

Reports of alleged human rights violations in Balochistan, a province in southwest Pakistan, have resurfaced in recent weeks, as Baloch activists living abroad continue to call for international attention — including from India — to what they describe as a deteriorating situation.

According to sources the ground situation in Balochistan is far worse than what is visible in public reports. “Since Balochistan’s merger with Pakistan, the province has struggled to secure political and economic autonomy,” he said in a WhatsApp conversation. “Despite being rich in natural resources like oil, gas, and minerals, the real authority lies with the federal government, not the people of Balochistan.”

The activist claims that the demand for greater autonomy has often been labeled as a rebellion by the Pakistani state, resulting in repeated military actions and civilian casualties. According to figures cited by activists, including veteran human rights campaigner Mama Qadeer, more than 47,000 Baloch and 37,000 Pashtuns are reportedly missing. These claims have been echoed by Voice for Baloch Missing Persons, a Quetta-based NGO that has been campaigning against enforced disappearances since 2009.

The organization famously undertook a 2,500-kilometer long march in 2013 from Quetta to Islamabad to highlight the plight of missing persons. The issue has also been raised in various international forums, including at the United Nations Human Rights Council.

BOX: Activists Urge India’s Moral Support
The Baloch diaspora, particularly political leaders and activists living in exile, have repeatedly appealed to India for moral and diplomatic support.

Brahmdagh Bugti, the leader of the Baloch Republican Party (BRP), currently resides in Switzerland and continues to advocate for Baloch rights through global platforms. In 2016, Baloch student leader Karima Baloch, then exiled in Canada, made headlines with a video message directed to Indian Prime Minister Narendra Modi, appealing for solidarity with the Baloch people.

“India has historically stood for democracy and secularism,” the New Delhi-based activist said. “Many Baloch people believe India could play a constructive role in raising this issue diplomatically and supporting justice for victims of state violence.”

BOX: The Complex History of Balochistan’s Merger with Pakistan
The modern political identity of Balochistan has roots in the 1938 formation of Anjuman-e-Watan, led by Abdul Samad Khan Achakzai, also known as “Baloch Gandhi.” Initially, leaders of the princely state of Kalat — today part of Balochistan — favored joining a united, secular India and even aligned themselves with the Indian National Congress.

Following the 1940 Lahore Resolution, which proposed the creation of a separate Muslim homeland, Baloch leaders advocated for a separate identity for Kalat, fearing domination under the proposed Pakistan.

On August 4, 1947, during a tripartite meeting in Delhi involving Lord Mountbatten, Mir Ahmad Yar Khan of Kalat, and M.A. Jinnah, it was agreed that Kalat would become an independent state. A formal declaration of independence followed on August 12, 1947, with Kalat establishing its own flag, legislature, and government. However, by March 1948, Kalat was incorporated into Pakistan — a move that Baloch nationalists continue to contest to this day.

END: Editorial Note:
The Pakistani government has maintained that its operations in Balochistan are necessary to preserve national integrity and combat insurgency. However, international human rights organizations have urged independent investigations into the reported cases of enforced disappearances and extrajudicial actions.

As this issue remains sensitive and unresolved, voices from both within and outside Pakistan continue to raise concerns over the future of Balochistan and the rights of its people.

पाक के जुल्म से तंग आकर भारत से मदद की आस में है बलूचिस्तान  मुजफ्फर अली  पाकिस्तान से आर्थिक व मानसिक रुप से प्रताडित ब...
13/07/2025

पाक के जुल्म से तंग आकर भारत से मदद की आस में है बलूचिस्तान

मुजफ्फर अली
पाकिस्तान से आर्थिक व मानसिक रुप से प्रताडित बलूचिस्तान राज्य भारत की तरफ से मदद मिलने के इंतजार में है। जैसे जैसे पाकिस्तान की सेना बलूचिस्तानियों पर जुल्म ढाती है वैसे ही तीव्रता से बलूच नागरिक भारत की ओर मदद की नजरों से देखते हैं। कुछ दिन पूर्व ही पाक सेना ने दो बलूच पुरुषों को गोली मार दी और महिलाओं को उठा कर ले गए जिनका कोई अता पता नहीं है और ऐसी घटनाएं आम बन चुकी है जिसके कारण बलूच पाकिस्तान से नफरत करने लगे हैं। यह कहना है नई दिल्ली में रह रहे बलूचिस्तान की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे एक संगठन के नेता का। अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर बलूच नेता ने वाट्सअप कॉलिंग में बताया कि बलूचिस्तान की ज़मीनी हक़ीक़त, आँकड़ों से भी बदतर लगती है, पाकिस्तान में विलय के बाद से बलूचिस्तान कभी भी सामाजिक-राजनीतिक स्वायत्तता हासिल नहीं कर सका है। बलूचिस्तान में तेल, गैस, खनिज के भंडार है लेकिन वास्तविक राजनीतिक शक्तियाँ और आर्थिक संसाधन पाक संघीय सरकार के हाथों में हैं। यही कारण है कि पाक बलूचिस्तान स्वायत्ता की मांग को विद्रोह बताता है और बदले में बलूच नागरिकों पर अमानवीय सैन्य कार्रवाइयां करता है। बलूच संगठन के नेता ने भेजे एक दस्तावेज के अनुसार पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग के अनुसार, मामा कदीर ने दावा किया है कि 47,000 बलूच और लगभग 37,000 पश्तून लापता हैं। इसमें मुठभेड़ों में मारे गए स्थानीय लोगों की संख्या शामिल नहीं है। एनजीओ वॉयस फॉर बलूच मिसिंग पर्सन्स 2009 से न्याय के लिए लड़ रहा है। इस गैर सरकारी संगठन ने स्थानीय लोगों पर सेना के अत्याचारों के विरोध में 2,500 किलोमीटर का पैदल मार्च भी किया। इसके बाद, इस मामले को संयुक्त राष्ट्र के मंचों पर भी उठाया गया। लेकिन बलूच की आवाज को पाक की रणनीति दबा देती है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से की मदद की गुहार -
बलूच नेता ने अपने लेख में कहा है कि अपने देश में रहकर अपने लोगों के हक में आवाज उठाना जोखिम भरा हो गया है इसलिए बलूचिस्तान की स्वतंत्रता को लेकर अनेक सक्रिय संगठन के नेता, कार्यकर्त्ता विदेश में रहकर अपनी आवाज उठा रहे हैं। बलूचिस्तान को सबसे ज्यादा उम्मीद भारत से है। बलूच के नगारिक शुरु से भारत की धर्मनिरपेक्ष नीति के कायल हैं। बीआरपी संगठन नेता ब्रह्मदाग़ बुगती वर्तमान में स्विट्जरलैंड में रह रहे हैं। इंटरनेट पर उनकी उपस्थिति ने बलूचिस्तान की स्थिति के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद की है। बीएसओ-आज़ाद की नेता करीमा बलूच ने भी इस अभियान में काफ़ी योगदान दिया है। 2016 में, उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री मोदी को संबोधित करते हुए एक वीडियो बनाया था जिसमें मदद की गुहार लगाई गई थी। करीमा वर्तमान में कनाडा में शरणार्थी के रूप में रह रही हैं। बलूच नेता ने कहा कि भारत सरकार हमारी मदद करे और पाक के जुल्म से बचाए।
ऐसे हुआ बलूचिस्तान का पाक में विलय -
बलूच नेता ने भेजे लेख में बलूचिस्तान के बारे में विस्तार से बताया है कि बलूच राष्ट्रवाद की नींव 1938 में अब्दुल समद खान अचकज़ई द्वारा गठित अंजुमन-ए-वतन पार्टी के गठन के साथ पड़ी। बलूच-गांधी के नाम से प्रसिद्ध अचकज़ई तब से बलूच आंदोलन के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। 1940 तक, कलात जो कि बलूचिस्तान का पुराना नाम है , के नेता एकपक्षीय भारतीय राज्य में विश्वास करते थे; जो कि एक एकल, धर्मनिरपेक्ष और संप्रभु देश है। इसी विचारधारा के कारण अंजुमन का कांग्रेस में विलय हुआ। 1940 में, लाहौर प्रस्ताव पारित हुआ। इसमें मुसलमानों के लिए एक अलग देश बनाने का निष्कर्ष निकाला गया, जिसे बाद में पाकिस्तान, के रूप में जाना गया। इस प्रस्ताव का कांग्रेस ने व्यापक रूप से विरोध किया और इसके परिणामस्वरूप एक अलग बलूच की मांग उठी। लेकिन, यह भी कलात के लिए भाग्य का परिवर्तनकारी बिंदु नहीं था। 4 अगस्त, 1947 को दिल्ली में लॉर्ड माउंटबेन, मीर अहमद यार खान कलात के मुख्यमंत्री और एम.ए. जिन्ना के बीच एक सम्मेलन बैठक हुई। वहाँ यह निर्णय लिया गया कि कलात राज्य 5 अगस्त 1947 को स्वतंत्र होगा और उसे वही दर्जा प्राप्त होगा जो 1838 में था और जिसके अपने पड़ोसियों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध थे। जब खान ने 12 अगस्त को औपचारिक स्वतंत्रता की घोषणा की, तो कलात का झंडा फहराया गया, राज्य के दार-उल-अवाम (निचला सदन) और दार-उल-उमरा (उच्च सदन) का गठन किया गया। न केवल विधानमंडल का गठन किया गया, बल्कि पाकिस्तान और कलात के बीच एक गतिरोध समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। इस समझौते ने प्रदर्शित किया कि पाकिस्तान ने अपने पड़ोसी की संप्रभुता को मान्यता दी है। भारत, पाकिस्तान और जम्मू-कश्मीर रियासत के बीच भी यही समझौते हुए। कुछ महीनों बाद, जम्मू-कश्मीर और कलात दोनों पर पाकिस्तान ने हमला कर दिया। कश्मीर का एक हिस्सा भारत में शामिल हो गया, जबकि कलात को पाकिस्तान में शामिल होने के लिए मजबूर होना पड़ा।

Tired of Pakistan's oppression, Balochistan is waiting for help from India
13/07/2025

Tired of Pakistan's oppression, Balochistan is waiting for help from India

15/05/2025

• Muzaffar Ali - - Islamic countries' relations with India have been strong in the past and are good even today due to Prime Minister Narendra Modi's foreign policy and bold image, especially India's relations with Saudi Arabia have never been as strong as they are today. Our relations with United...

07/05/2025

Special Message from Haji Syed Sarwar Chishty
secretary Anjuman Syedzadgaan, Khadim Dargah Khwaja Saheb Ajmer Sharief

हम भारत की वीर सेनाओं और हमारे राष्ट्र की निर्णायक नेतृत्व शक्ति को “ऑपरेशन सिंदूर” की साहसी और सटीक सफलता पर दिल से बधा...
07/05/2025

हम भारत की वीर सेनाओं और हमारे राष्ट्र की निर्णायक नेतृत्व शक्ति को “ऑपरेशन सिंदूर” की साहसी और सटीक सफलता पर दिल से बधाई और गहरी कृतज्ञता अर्पित करते हैं। यह अभियान 22 अप्रैल को पहलगाम, कश्मीर में निर्दोष भारतीय नागरिकों पर हुए कायरतापूर्ण आतंकवादी हमले के खिलाफ एक प्रचंड और न्यायपूर्ण उत्तर है।

यह केवल एक सैन्य अभियान नहीं, बल्कि भारत का नैतिक ऐलान है — सम्पूर्ण विश्व को यह संदेश देने के लिए कि आतंकवाद मानवता पर एक अभिशाप है। जो भी निर्दोषों के खिलाफ हिंसा को शरण देता है, उसे बढ़ावा देता है या उसे सहारा देता है, अब वह किसी भी बहाने, किसी भी छुपे ठिकाने में सुरक्षित नहीं रह सकता।

भारत अडिग खड़ा है — निडर, न्यायप्रिय और धर्मनिष्ठ। 140 करोड़ भारतीयों के एकजुट हृदयों के साथ, हमारे महान राष्ट्र ने यह स्पष्ट कर दिया है कि हम अधर्म और आतंक के आगे कभी नहीं झुकेंगे, बल्कि सच्चाई, सम्मान और संकल्प के साथ उठ खड़े होंगे। यह संदेश अब स्पष्ट है: जो आतंक का पोषण करेंगे, उन्हें एक शांतिप्रिय और संप्रभु राष्ट्र के दृढ़ प्रतिकार का सामना करना होगा।

हम भारतवासी, जो प्रेम, एकता और मानवता की सेवा पर आधारित आध्यात्मिक विरासत के उत्तराधिकारी हैं, पहलगाम के शहीदों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं और अपने देश की रक्षा करने वाले वीरों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं।

आज ज़रूरत है कि दुनिया के सभी लोग — धर्मगुरु, नागरिक, और देश — एक साथ आएं, और इस आतंकवाद नामक पाप का समूल नाश करें ताकि जीवन की पवित्रता और हमारे साझा विश्व में शांति बनी रहे।

हाजी सैय्यद सलमान चिश्ती
गद्दीनशीन - दरगाह अजमेर शरीफ
चेयरमैन - चिश्ती फाउंडेशन

20/03/2025

औरंगजेब विवाद से फिर सकता था केन्द्र सरकार के मंसूबे पर पानी
आरएसएस ने औरंगजेब को अप्रासांगिक बताकर किया पटाक्षेप

अजमेर में मिला था औरंगजेब को हुज्जती होने का खिताब

औरंगजेब क्रूर शासक था यह कोई नया खुलासा नहीं है जिस पर आज बहस की जाए। तीन सौ साल हो गए औरंगजेब को मिटटी में मिले हुए। शायद इसीलिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ओर से इस विषय को अप्रसांगिक बता दिया है साथ ही कहा है कि इस मुददे पर हिंसा समाज के लिए ठीक नहीं है। औरंगजेब को लेकर देश विदेश के अनेक इतिहासकारों ने बहुत किताबें लिखी हैं। देश में मुगल सम्राज्य का इतिहास औरंगजेब के बगैर अधूरा है। लेकिन दिलचस्प यह है कि केन्द्र सरकार औरंगजेब के बडे भाई दारा शिकोह पर फिदा है। केन्द्र सरकार ने नई दिल्ली में दारा श्किोह के मजार को ढूंढकर उसको संवारा है। केन्द्र में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार का मानना है कि दारा शिकोह को ज्यादा महत्व दिया जाए क्योंकि दारा शिकोह की विभिन्न धर्माे में प्रेम, सहिष्णुता और ज्ञान में गहरी रुचि थी। संघ और बीजेपी को लगता है कि दारा शिकोह जैसे चेहरे, भारतीय संस्कृति की उसी सोच को आगे बढ़ाते थे, जिसमें संघ और बीजेपी यकीन रखती है। बीजेपी सरकार साल 2017 में दिल्ली के डलहौजी मार्ग का नाम बदलकर दारा शिकोह मार्ग कर चुकी है। दारा शिकोह का जन्म 20 मार्च 1615 में अजमेर में हुआ था। अजमेर के दौराई मैदान में ही 1659 में दारा शिकोह और औरंगजेब के बीच दिल्ली की सल्तनत के लिए तीन दिन तक संघर्ष हुआ जिसमें औरंगजेब विजयी हुआ। दारा शिकोह को बंदी बनाकर मौत के घाट उतार दिया गया। कहा जाता है कि दारा शिकोह का धड आज भी दौराई के कब्रिस्तान में है लेकिन इतना नीचे दब गया है कि उसको ढूंढना अब मुमकिन नहीं है। हालांकि इतिहास में इसकी पुष्टि नहीं मिलती। वहीं दारा शिकोह का सिर काटकर औरंगजेब ने आगरा में अपने पिता शाहजहां को भेज दिया था क्योंकि शाहजहां दारा शिकोह को बहुत चाहते थे और उसे ही अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे। बाद में नई दिल्ली में हुमायूं के मकबरें के प्रांगण में दारा शिकोह के अवशेष को दफन किया। केन्द्र की भाजपा सरकार ने दारा शिकोह के मजार को ढूंढने के लिए एक कमेटी गठित की थी ताकि उसके मजार को संवार कर उसकी नीतियों को उजागर करें। इतिहासकार दारा शिकोह के बारे में लिखते हैं कि उसने उपनिषेदों का फारसी में अनुवाद कराया था जिसे सिर ए अकबर नाम दिया गया। दारा शिकोह ने हिन्दू मुस्लिम के बीच समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया था।
दरअसल संघ का मानना है कि अकबर के अतिरिक्त दारा शिकोह के प्रचार प्रसार से भी मोदी सरकार का मुस्लिम वर्ग में मैसेज अच्छा जाएगा। इस कवायद के पीछे भाजपा की मुस्लिम विरोधी छवि को मिटाना और मुस्लिम वर्ग को भाजपा से जोडना उददेश्य रहा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत सरकार की धर्मनिरपेक्ष छवि मजबूत बनेगी। लेकिन हाल ही में औरंगजेब को लेकर उठे विवाद और हिंसा से केन्द्र सरकार के मुस्लिम वर्ग में अपनी पैठ बनाने के मंसूबे की कामयाबी में बाधा नजर आई क्योंकि औरंगजेब क्रूर शासक था यह तो सच है लेकिन इस बात को लेकर हिंसक प्रदर्शन और धार्मिक किताब जलाने की अफवाह से मुस्लिम वर्ग को फिर भाजपा से दूर ना कर दे यही चिंता की बात थी। इस बात को यहीं पटाक्षेप करने की उददेश्य से संघ ने स्पष्ट किया कि औरंगजेब का विषय अप्रसांगिक है और हिंसा समाज के लिए ठीक नहीं है।

अजमेर से मिला औरंगजेब को हुज्जती होने का खिताब -

औरंगजेब के बारे में पुरानी पीढी के मुस्लिम बुजुर्ग द्वारा एक किस्सा यूं भी बताया जाता है कि अजमेर में दारा शिकोह के साथ लडाई में विजय प्राप्त करने के बाद औरंगजेब ख्वाजा मोइनुददीन चिश्ती की दरगाह में जियारत के लिए आया और यह कहकर सलाम किया कि मुझे इसका जवाब मिलना चाहिए। कहा जाता है कि औरंगजेब ने कहा जिद की कि मुझे सलाम का जवाब नहीं मिला तो मैं यह नहीं मानंुगा कि यहां गरीब नवाज हैं। उसने तीन बार सलाम किया। उस वक्त मौजूद लोगों ने औरंगजेब को बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन वो जवाब मिलने पर अडा रहा। कहा जाता है कि उसे जवाब मिला और उसके हुज्जती यानि अनावयशक बहस करने वाला, हुज्जती आलमगीर होने का खिताब अजमेर की दरगाह से ही मिला।
- मुजफ्फर अली
लेखक व पत्रकार, अजमेर

*अक्स-ए-लातफ़्सीर है ख्वाजा गरीब नवाज के वंशावली से जुड़ा एक खानदान* महान सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुददीन हसन चिश्ती की व...
21/03/2024

*अक्स-ए-लातफ़्सीर है ख्वाजा गरीब नवाज के वंशावली से जुड़ा एक खानदान*

महान सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुददीन हसन चिश्ती की विश्वप्रसिद्व दरगाह से जुडी संस्थाएं, संपत्तियां, खादिम समुदाय, दरगाह दीवान (सज्जादानशीन)परिवार आर्थिक रुप से संपन्न हो चुके हैं। यह भी कहा जा सकता है गरीब नवाज ने अपनी दरगाह के आस पास रहने वालों को नवाज दिया है और गरीबी अब इनके पास फटक भी नहीं सकती। आजादी के बाद से लेकर सत्तर के दशक तक दिन रात इबादत में रहने वाले, ख्वाजा के आस्ताने में रो रो कर अपने गम दूर करने, करम करने की भीख मांगने वाले खादिम समुदाय और दरगाह दीवान खानदान के बुजुर्गो की दुआओं का फल आज के लोगों को मिल रहा है। दरगाह और आस पास बिखरी रंगीन रौशनीयों की चमक इस बात की गवाही दे रही है कि कभी अपना घर बना चुका अंधेरा अब दरगाह के आस पास से छट चुका है। कभी दरगाह परिसर में रहने वाली खामोश फिज़ा अब कोल्हाहल से दूर चली गई है।
इस हकीकत के बावजूद भी, उजालों से निखरे चेहरों के पीछे कुछ धुंधलाए चेहरे अपनी पहचान खो रहे हैं। ये चेहरे भी कोई गैर नहीं, सूफी संत हज़रत ख्वाजा मोइनुददीन चिश्ती के शिजरे से ताल्लुक रखते हैं। ये चेहरे उस हवेली में रहते हैं जिसे लगभग साढ़े चार सौ साल पहले बादशाह अकबर ने ख्वाजा की दरगाह दीवान परिवार के रहने के लिए बनवाई थी। दीवान साहब की हवेली के नाम से मश्हूर इस हवेली में कुछ ऐसे परिवार रहते हैं जो अपनी दो वक्त की रोटी के लिए आज भी जददोजहद करते हैं। ये परिवार पीरजादा खानदान हैं। इस पीरज़ादा खानदान का शिजरा ख्वाजा गरीब नवाज के शिजरा से जुड़ा है। इस गरिमामय खानदान में सैयद अबरार अली, सैयद ज़हीर हुसैन, सैयद हिदायत हुसैन, सैयद सआदत हुसैन, सैयद तलत हुसैन, सैयद नज़मुददीन और सैयद जमालुददीन का परिवार अपनी रोजी रोटी के लिए कहीं छोटी मोटी नौकरी में लगे हैं तो कोई ऑटो चलाता है तो कोई अपने हुनर के बल पर प्रिटिंग के काम में लगे हैं। ना तो कोई इनके पीछे मुरीदों की भीड़ चलती है और ना कोई अदब से इनके हाथ चूमता है। पीरजादा खानदान की नई पीढी अपनी उस इज्जत को खो रही है जो उन्हे ख्वाजा मोइनुददीन चिश्ती के खानदानी शिजरे से उनके ताल्लुक होने से मिलनी चाहिए। अपने वजूद को बनाए रखने के लिए पीरजादा खानदान के लोगों ने अदालती लड़ाईयां भी लड़ी हैं। सैयद अबरार अली ने अपनी जि़ंदगी ही अदालतों और दरगाह कमेटी के सामने यह साबित करने में लगा दी कि वो भी दरगाह दीवान बनने के हकदार हैं। दरगाह दीवान बनने की प्रक्रिया दरगाह एक्ट में दी गई है । हालांकि इस संबंध में उच्चतम न्यायालय के एक निर्णय को हमेशा हमेशा के लिए मान लिया गया है। पीरजादा खानदान की उम्मीदों को उच्चतम न्यायालय के निर्णय की रौशनी में गुम कर दिया गया है। यदि भविष्य में कभी दरगाह दीवान की पोस्ट खाली होती है तो दरगाह एक्ट के मुताबिक दरगाह कमेटी दरगाह दीवान की पोस्ट को भरने के लिए पीरजादा खानदान से आवेदन मांग सकती है तब कहीं पीरजादा खानदान में उम्मीदवारों को दरगाह दीवान बनने का मौका मिल सकता है। नहीं तो दीवान साहब की हवेली का खंडहर होता हिस्सा एक दिन इतिहास बनके रह जाएगा।
- मुज़फ्फर अली-
- एडिटर, द न्यूज मिरर इंडिया
- अजमेर

..भारत की विदेश नीति का कमालफ्रांस के राष्ट्रपति को पहुंचाया निजामुददीन की दरगाहजिस देश में इस्लाम के प्रचार प्रसार की प...
27/01/2024

..भारत की विदेश नीति का कमाल
फ्रांस के राष्ट्रपति को पहुंचाया निजामुददीन की दरगाह

जिस देश में इस्लाम के प्रचार प्रसार की पाबंदी लगी हो। जिस देश में महिलाओं को हिजाब पहनने से रोका गया हो। जिस देश में इस्लाम के बढते प्रभाव को कम करने के लिए अनेक मुस्लिमों की धार्मिक व सामाजिक परंपराओं पर पाबंदियां लगा दी हों। जो देश इस्लामी दुनिया के विरोधियों के साथ खडा नजर आता हो। उस फ्रांस देश के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रो अपने भारत दौरे में 26 जनवरी 2024 को गणतंत्र दिवस की परेड के बाद सूफी संत हजरत ख्वाजा निजामुददीन औलिया की दरगाह में रात पौने दस बजे पहुंच गए और वहां आधे घंटे तक सूफी कलाम सुनते रहे,ं वहां के खादिमों के साथ दरगाह की जानकारीयां लेते रहे। यह मुस्लिम दुनिया के लिए किसी आश्चर्य से कम खबर नहीं है। लेकिन यह कमाल हमारे देश के विदेश मंत्री एस जयशंकर का है। विदेश मंत्री के तौर पर एस जयशंकर ने दुनियाभर में भारत का नाम ना सिर्फ रौशन किया बल्कि एक मजबूत भारत की छवि भी बनाई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह से विदेश मामले एस जयशंकर को सौंप कर एक सही कदम उठाया है उस पर विदेश मंत्री खरे उतरे हैं। प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री की सूझबूझ भरी विदेश नीति ने फ्रांस जैसे इस्लाम विरोधी छवि वाले देश के राष्ट्रपति को सूफी संत हजरत निजामुददीन औलिया के दर पर पहुंचा कर यह साबित कर दिया कि भारत सच्चे मायनों में एक धर्मनिरपेक्ष देश है। हो सकता है फ्रांस राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को निजामुददीन औलिया की दरगाह जियारत कराने का उददेश्य यह भी रहा हो कि यह दिखाया जा सके कि भारत में सभी धर्म के लोग विशेषकर मुसलमान बहुत शांति और सुरक्षित रुप से रह रहे हैं और इस्लाम की विरासत धरोहर को कोई नुकसान नहीं है। जैसा कि इस्लामिक देशों का संगठन इस्लामिक ऑर्गनाईजेशन ऑफ इस्लामिक कंट्रीज ने कुछ दिनों पहले एक बयान जारी कर भारत में इस्लामी विरासत की धरोहर पर खतरे मंडराने की चिंता जाहिर की थी और बाबरी मस्जिद के स्थान पर राममंदिर निर्माण की निंदा की थी। पाकिस्तान ने भी संयुक्त राष्ट्र में भारत में मुगलकालीन मस्जिदों को इस्लामी विरासत मानते हुए उन पर खतरा मंडराने की बात की है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बातचीत में क्या भारत में मुसलमानों की स्थिति को लेकर कोई बात हुई इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता ना ही कोई खबर मिली है लेकिन जिस तरह से गणतंत्र दिवस की परेड के बाद रात को फ्रांस के राष्ट्रपति को दरगाह पहुंचाया गया है उससे यही निष्कर्ष निकल रहा है कि फ्रांस के राष्ट्रपति को भारत में इस्लाम के फलने फूलने और इस्लामी विरासत की असल धरोहर सूफी संत की दरगाहों में रौनक बरकरार होने का संदेश दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राममंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से ठीक दस दिन पूर्व देश में मुसलमानों के सबसे बडे धार्मिक केन्द्र हजरत ख्वाजा मोइनुददीन चिश्ती की दरगाह में उर्स पर चादर भेज कर संदेश दिया था जो भाजपा विरोध में खडे मुस्लिम वर्ग के लिए और मुस्लिम के विरोध में खडे उग्र हिन्दू वादियों के लिए भी था।

- सैयद मुजफ्फर अली
पत्रकार, अजमेर

भारत संस्कृतियों का एक सुंदर मिश्रण है: हाजी सैयद सलमान चिश्तीचिश्ती फाउंडेशन के अध्यक्ष और ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के ...
09/08/2023

भारत संस्कृतियों का एक सुंदर मिश्रण है: हाजी सैयद सलमान चिश्ती

चिश्ती फाउंडेशन के अध्यक्ष और ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के दरगाह के गद्दीनशीन
हाजी सैयद सलमान चिश्ती ने जकार्ता, इंडोनेशिया में आसियान अंतर-धार्मिक और अंतर-संस्कृति शिखर सम्मेलन 2023 को संबोधित किया जिसमें"वसुधैव कुटुंबकम" की सच्ची भावना के साथ आसियान शिखर सम्मेलन में एक विश्व, एक परिवार, एक भविष्य की गूंज सुनाई दी। चिश्ती ने कहा कि
भारत, अपने समृद्ध इतिहास और विरासत के साथ, लंबे समय से संस्कृतियों और धर्मों का एक सुंदर मिश्रण रहा है। हमारे राष्ट्र का बहुलवादी ताना-बाना सहिष्णुता और सह-अस्तित्व के मूल्यों का प्रमाण है। हमारा मानना ​​है कि बातचीत बेहतर समझ और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का मार्ग है। ऐसी दुनिया में जो धार्मिक और सांस्कृतिक गलतफहमियों सहित कई चुनौतियों का सामना कर रही है, समावेशन को बढ़ावा देना और विविधता का जश्न मनाना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। सार्थक बातचीत में शामिल होकर, हम उन सामान्य मूल्यों की पहचान कर सकते हैं जो हमें इंसान के रूप में बांधते हैं और आम चिंताओं को दूर करने के लिए समाधान विकसित कर सकते हैं।
प्रमुख भारतीय सूफी आध्यात्मिक नेता और चिश्ती फाउंडेशन के अध्यक्ष हाजी सैयद सलमान चिश्ती ने कहा कि आसियान सम्मेलन इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में आयोजित किया गया था, जिसका आयोजन "" के लिए किया गया था। इसका उद्देश्य शांति, सुरक्षा और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए समन्वय केंद्र बनाना है

सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि भारत की ओर से, मैं "आसियान साझा सांस्कृतिक मूल्य" विषय के तहत अंतर-धार्मिक और अंतर-सांस्कृतिक संवाद के लिए इस प्रतिष्ठित आसियान शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए सम्मानित महसूस कर रहा हूं। हमें विविध संस्कृतियों और आस्थाओं के बीच समझ, सम्मान और सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए एक क्षेत्र के रूप में एक साथ आने की जरूरत है। इस संवाद के माध्यम से, हम पुल बनाने और अज्ञानता और पूर्वाग्रह की दीवारों को तोड़ने का प्रयास करते हैं। साथ मिलकर, हम एक ऐसा वातावरण बना सकते हैं जहां सभी समुदाय व्यापक मानव परिवार को अपनाते हुए अपनी विशिष्ट पहचान को संरक्षित करते हुए फल-फूल सकें।''

उन्होंने कहा कि भारत आसियान क्षेत्र में अंतरधार्मिक और अंतरसांस्कृतिक सद्भाव को बढ़ावा देने में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रतिबद्ध है। “हम उन पहलों का समर्थन करना जारी रखेंगे जो आपसी सम्मान को प्रोत्साहित करती हैं, विभिन्न संस्कृतियों और मान्यताओं के बारे में शिक्षा को बढ़ावा देती हैं और सामाजिक एकजुटता को मजबूत करती हैं। हमें उम्मीद है कि यह शिखर सम्मेलन स्थायी साझेदारी और सहयोग के लिए एक स्प्रिंगबोर्ड साबित होगा।” उन्होंने कहा कि शिखर सम्मेलन सभी आसियान देशों के लिए अधिक शांतिपूर्ण, सहिष्णु और समृद्ध भविष्य में उत्प्रेरक के रूप में कार्य करेगा।

चिश्ती ने कहा कि इस्लाम, हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म ने इंडोनेशिया, कंबोडिया, थाईलैंड और म्यांमार जैसे कई दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के धार्मिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कई प्राचीन मंदिर और धार्मिक संरचनाएं भारतीय परंपराओं की स्थापत्य और कलात्मक शैली के प्रभाव को दर्शाती हैं।

11वीं सदी के महान सूफी संत हजरत ख्वाजा गरीब नवाज मोइनुद्दीन चिश्ती (आर) का संदेश सभी के प्रति बिना शर्त प्यार है, जो कश्मीर से कन्याकुमारी तक पूरे भारत और दक्षिण एशिया में गूंजता है क्योंकि सूफी तीर्थ में विभिन्न धर्मों के भक्तों और साधकों का आना-जाना लगा रहता है।
कला और संस्कृति के क्षेत्र में, नृत्य, संगीत और पारंपरिक प्रदर्शन जैसे भारतीय कला रूपों ने कुछ आसियान देशों की सांस्कृतिक अभिव्यक्ति को प्रभावित किया है, जिससे स्थानीय परंपराओं के साथ एक अनूठा मिश्रण हुआ है।

इतना ही नहीं बल्कि व्यापार और वाणिज्य में भी समान समानता है। भारत का दक्षिण पूर्व एशिया के साथ समुद्री व्यापार का एक लंबा इतिहास है, जिसने दोनों क्षेत्रों के बीच वस्तुओं, विचारों और प्रौद्योगिकी के आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान की है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि प्राचीन समुद्री व्यापार मार्ग भारत को दक्षिण पूर्व एशिया के विभिन्न बंदरगाहों से जोड़ते थे, जो सांस्कृतिक प्रसार और सांस्कृतिक संपर्क में योगदान करते थे।

अध्यात्म और धर्म की बात करें तो साहित्य और महाकाव्यों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। रामायण और महाभारत जैसे भारतीय महाकाव्यों ने कई दक्षिण पूर्व एशियाई देशों की साहित्यिक और सांस्कृतिक परंपराओं को गहराई से प्रभावित किया है। इन महाकाव्यों के स्थानीय संस्करण और रूपांतरण अक्सर क्षेत्र की लोककथाओं और कहानियों में एकीकृत होते हैं।

जहां तक ​​भारतीय प्रवासियों की बात है, भारतीय व्यापारियों, व्यापारियों और बसने वालों ने ऐतिहासिक रूप से विभिन्न दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में समुदाय स्थापित किए हैं, जिससे भारत और आसियान क्षेत्र के बीच सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों को बढ़ावा मिला है।
इसके साथ ही हमारी पारंपरिक चिकित्सा एवं उपचार पद्धतियां भी विचारणीय हैं। आयुर्वेद, पारंपरिक भारतीय चिकित्सा प्रणाली, ने कुछ दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में पारंपरिक उपचार पद्धतियों को प्रभावित किया है, जिससे हर्बल उपचार और समग्र स्वास्थ्य देखभाल पद्धतियों को अपनाया गया है। भाषा पर प्रभाव लिपि के अलावा, संस्कृत ने कई दक्षिण पूर्व एशियाई भाषाओं की शब्दावली के विकास में भी योगदान दिया है, खासकर तकनीकी और दार्शनिक शब्दों के संदर्भ में।

सैयद सलमान चिश्ती ने कहा कि त्योहार और कार्यक्रम: दिवाली, होली और वेसाक (बुद्ध के जन्म का उत्सव) जैसे भारतीय त्योहार कुछ आसियान देशों में समुदायों द्वारा मनाए जाते हैं, जो भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं की निरंतर प्रासंगिकता को दर्शाते हैं।

आपको याद होगा कि पूरे इतिहास में, भारतीय विद्वानों और शिक्षकों ने ज्ञान प्रदान करने और बौद्धिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिए दक्षिण पूर्व एशिया की यात्रा की, जिससे क्षेत्र के बौद्धिक विकास में योगदान मिला। समकालीन सांस्कृतिक आदान-प्रदान के संदर्भ में, हाल के दिनों में, राजनयिक पहलों, व्यापार समझौतों और लोगों से लोगों के बीच संपर्कों के माध्यम से भारत और आसियान देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाया गया है, जिससे एक-दूसरे की संस्कृतियों की गहरी समझ को बढ़ावा मिला है।

एक महत्वपूर्ण पहलू वास्तुकला है. भारतीय स्थापत्य शैली, विशेष रूप से प्राचीन मंदिरों और स्मारकों में देखी गई शैलियों ने इंडोनेशिया, कंबोडिया और थाईलैंड जैसे देशों में पवित्र और ऐतिहासिक इमारतों के डिजाइन और निर्माण को प्रभावित किया है। उदाहरण के लिए, कंबोडिया में अंगकोर वाट मंदिर परिसर में हिंदू वास्तुशिल्प तत्व शामिल हैं।

मैं आपको याद दिला दूं कि व्यापार मार्गों के माध्यम से भारतीय व्यापारियों ने ऐतिहासिक समुद्री व्यापार नेटवर्क में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जो दक्षिण एशिया को दक्षिण पूर्व एशिया से जोड़ता था। समुद्री मार्गों ने वस्तुओं, मसालों, वस्त्रों और सांस्कृतिक विचारों के आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाया, जिससे दोनों क्षेत्रों के विकास में मदद मिली।

नृत्य और प्रदर्शन कलाओं के साथ-साथ, भरतनाट्यम और ओडिसी जैसे पारंपरिक भारतीय नृत्य रूपों ने दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में नृत्य परंपराओं को प्रभावित किया है, जिसके परिणामस्वरूप स्वदेशी और भारतीय तत्वों को शामिल करने वाली अनूठी नृत्य शैलियाँ सामने आई हैं। कुछ आसियान देशों में, भारतीय त्योहार स्थानीय समुदायों द्वारा मनाए जाते हैं और राष्ट्रीय सांस्कृतिक कैलेंडर में एकीकृत किए जाते हैं। उदाहरण के लिए, थाई पोंगल, भारत के तमिलनाडु में मनाया जाने वाला एक फसल उत्सव है, जो श्रीलंका और मलेशिया जैसे देशों में तमिल समुदायों द्वारा मनाया जाता है। सामान्य दार्शनिक और आध्यात्मिक अवधारणाओं को देखते हुए, भारतीय दार्शनिक विचारों, जैसे कर्म, धर्म और मोक्ष की अवधारणाओं ने कुछ दक्षिण पूर्व एशियाई समाजों की आध्यात्मिक मान्यताओं और प्रथाओं में प्रतिध्वनि पाई है। ऐतिहासिक साक्ष्य भी दक्षिण पूर्व एशिया में भारतीय शैक्षणिक केंद्रों के अस्तित्व की ओर इशारा करते हैं, जहां भारत और क्षेत्र के विद्वान ज्ञान का आदान-प्रदान करने और शैक्षणिक गतिविधियों में संलग्न होने के लिए एकत्र होते थे। भारतीय कला और कलाकृतियाँ: प्राचीन और समकालीन भारतीय कला और कलाकृतियाँ आसियान देशों के संग्रहालयों और सांस्कृतिक संस्थानों में प्रवेश कर चुकी हैं। उनकी सांस्कृतिक विरासत को विकसित करना और अंतरसांस्कृतिक प्रशंसा के अवसर पैदा करना।

सैयद सलमान चिश्ती ने कहा कि भारतीय फिल्मों, विशेष रूप से बॉलीवुड फिल्मों ने कुछ दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में लोकप्रियता हासिल की है, जिससे दर्शकों को भारतीय संस्कृति, संगीत और नृत्य से परिचित कराया गया है। उन्होंने कहा कि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जहां इन भारतीय प्रभावों ने एक स्थायी प्रभाव छोड़ा है, वहीं आसियान क्षेत्र एशिया के भीतर और बाहर एक विविध सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और समकालीन प्रभाव वाला क्षेत्र है। अंतर्संबंध और सांस्कृतिक अंतःक्रियाओं की समृद्ध टेपेस्ट्री पर प्रकाश डालता है जिसने क्षेत्र के इतिहास को आकार दिया है। जैसे-जैसे दुनिया विकसित हो रही है, ये ऐतिहासिक संबंध भारत और आसियान देशों के बीच सहयोग और समझ को बढ़ावा देने में भूमिका निभाते रहे हैं। भारतीय प्रभाव के इन विभिन्न पहलुओं ने भारत और आसियान क्षेत्र के बीच स्थायी संबंधों में योगदान दिया है।

उन्होंने क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान को आकार दिया है और भारत और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के बीच आपसी प्रशंसा और समझ में योगदान दिया है। जैसे-जैसे संस्कृतियाँ विकसित होती रहती हैं, ये ऐतिहासिक संबंध आगे सहयोग और मित्रता विकसित करने के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करते हैं।

​इससे पहले, आसियान महासचिव डॉ. काव किम हॉर्न ने इंडोनेशिया के जकार्ता में रिट्ज कार्लटन मेगा कुनिंगन में आयोजित आसियान अंतरसांस्कृतिक और अंतरधार्मिक संवाद सम्मेलन 2023 के उद्घाटन समारोह को संबोधित किया। जबकि इंडोनेशिया गणराज्य के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने समारोह के दौरान उद्घाटन भाषण दिया।

यह कार्यक्रम नाहदा उलमा इंडोनेशिया द्वारा आयोजित किया गया था और इंडोनेशियाई सरकार द्वारा समर्थित था। इसमें आसियान सदस्य देशों और क्षेत्र के अन्य देशों के धार्मिक और सांस्कृतिक नेताओं, सरकारी अधिकारियों, शैक्षणिक संस्थानों के सदस्यों और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

हमारा मानना ​​है कि बातचीत बेहतर समझ और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का मार्ग है। ऐसी दुनिया में जो धार्मिक और सांस्कृतिक गलतफहमियों सहित कई चुनौतियों का सामना कर रही है, समावेशन को बढ़ावा देना और विविधता का जश्न मनाना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। सार्थक बातचीत में शामिल होकर, हम उन सामान्य मूल्यों की पहचान कर सकते हैं जो हमें इंसान के रूप में बांधते हैं और आम चिंताओं को दूर करने के लिए समाधान विकसित कर सकते हैं।
हाजी सैयद सलमान चिश्ती ने कहा, 'भारत संस्कृतियों का एक सुंदर मिश्रण है और आसियान के साथ मिलकर विश्व शांति का सूत्रधार बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा और इसे जकार्ता में आसियान 2023 शिखर सम्मेलन के दौरान विभिन्न मंचों पर भाग लेने वाले देशों के प्रतिनिधियों द्वारा सकारात्मक रूप से मान्यता दी गई थी। 7 अगस्त 2023 को इंडोनेशिया।

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