25/07/2025
भाई शिवराम : कर्नल साहब के ड्राइवर थे (2008-2017) पर इस के साथ साथ वह , कर्नल साहब के सहचर, साथी और केयर टेकर रहे हैं। आप अभी साहब के घर की देखभाल कर रहे हैं । आगन्तुकों को कर्नल साहब के किस्से सुनाना शिवराम जी की साहब के प्रति भक्ति है। ये आज़ भी अपने आप को साहब से जुड़े हुए पाते हैं ।
दैनिक भास्कर मे पत्रकार श्री जीतू गुर्जर ने शिवराम जी के व्यक्तित्व और चरित्र पर गरिमापूर्ण लेख लिखा है, जिसे यहाँ साझा कर रही हूं।
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शिवराम गुर्जर : एक मौन समर्पण की अमर गाथा”
शिवराम गुर्जर (पाटकटारा जिला करौली)वो नाम जो शायद कभी किसी अख़बार की हेडलाइन नहीं बना, ना किसी सभा में पुकारा गया, लेकिन जिसने कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के हर आंदोलन, हर यात्रा, हर थकान और हर संघर्ष में एक साया बनकर साथ निभाया, उसे भुला पाना मुमकिन नहीं। वह केवल एक ड्राइवर नहीं था—वह बैंसला साहब के जीवन का मौन संगी, एक ऐसा सच्चा साथी था जो बिना बोले सब समझता था और बिना मांगे सब दे देता था। तपती दोपहर में धूल भरी सड़कों पर गाड़ी के स्टेयरिंग को थामे, भूखे-प्यासे लंबे आंदोलन के बीच जब बाकी सब रुक जाते थे, तब शिवराम बिना थके चलता रहा। कभी सभा स्थल के बाहर, कभी रेल की पटरी के पास, कभी किसी सचिवालय के बाहर बैठा वह व्यक्ति आंदोलन की रीढ़ था—भले ही वह तस्वीर में न हो, लेकिन हर दृश्य में उसकी छाया मौजूद रहती थी। कर्नल बैंसला ने उसे कभी ड्राइवर नहीं कहा, वे कहा करते थे—"शिवराम मेरा आदमी नहीं, मेरा संतुलन है, मेरे जीवन की यात्रा का मौन साथी है," और वास्तव में वह वही था—एक ऐसा इंसान जिसने कभी अपनी उपस्थिति जताई नहीं, लेकिन जिसकी उपस्थिति के बिना कोई मंज़िल पूरी नहीं होती। उसने परिवार से अधिक समय कर्नल साहब की सेवा में बिताया, लेकिन उसकी आँखों में कभी शिकायत नहीं दिखी—बस वह स्थिर मुस्कान जो यह कहती थी, "मैं वहीं हूँ, जहाँ मुझे होना चाहिए।" उसका जीवन प्रदर्शन नहीं, पूर्ण समर्पण की मिसाल था; वो नायक नहीं था, पर वह हर नायक के पीछे खड़ा वह अडिग किरदार था जिसके बिना कोई इतिहास पूरा नहीं होता। शिवराम जैसे लोग कभी नाम की पंक्ति में नहीं होते, लेकिन जब किसी आंदोलन की आत्मा को समझा जाता है, तो उनकी छाया सबसे गहराई में बैठी होती है। वे लोग जो मंच पर नहीं दिखते, पर हर संघर्ष के पीछे नींव की ईंट की तरह टिके होते हैं—ऐ