
03/09/2025
रात के ठीक बारह बज चुके थे।
शहर के बाहर एक पुरानी हवेली में अंधेरा पसरा हुआ था। हवेली के दरवाज़े पर लगे ज़ंग खाए ताले को किसी ने हाल ही में तोड़ा था।
अजय और उसके तीन दोस्त एडवेंचर के शौक़ीन थे। सबने टॉर्च जलाकर अंदर क़दम रखा। जैसे ही दरवाज़ा बंद हुआ, तेज़ हवा चली और अजीब-सी सरसराहट सुनाई दी।
“किसी ने कहा...?” अजय बुदबुदाया।
कानों में फुसफुसाहट गूँजने लगी—
"यहाँ से निकल जाओ... वरना आख़िरी दरवाज़ा खोल दोगे..."
सब डर गए, मगर हिम्मत दिखाते हुए अंदर बढ़े। हवेली में पाँच बड़े कमरे और आख़िरी में एक काला दरवाज़ा था। दीवारों पर खून जैसे निशान बने थे।
जैसे ही उन्होंने वो आख़िरी दरवाज़ा खोला, अंदर सिर्फ़ एक आईना था। मगर उस आईने में उनकी परछाई नहीं, बल्कि किसी और की परछाई खड़ी थी—खून से सना चेहरा, लाल आँखें और धीमी हँसी...
अचानक आईने के अंदर वाला हाथ बढ़ा और अजय का गला पकड़ लिया।
बाक़ी दोस्त चीख़ते रह गए... और दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया।
उसके बाद से कोई भी उस हवेली से ज़िंदा लौटकर नहीं आया।