30/12/2023
*जब-जब धर्म आडंबर की चादर ओढ़ेगा, तब तब असली धर्म ( मानवता ) हजारों कोस दूर चली जाएगी।*
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अयोध्या राम मंदिर महोत्सव में पुष्प वर्षा करने पर ,
दलित समाज के बच्चों को आयोजकों ने पीटा।
केवट और शबरी के प्रसंग को कौन कितना समझा है,
यह आधुनिक शोशेबाज लोग ही जाने!
इस खबर को पढ़कर कम से कम मेरा धर्म के प्रति दृष्टिकोण आहत हो गया।
*बंदहुं बाल रूप सोइ रामू....*
जो राम को समझ लेगा ....
वह फूल फेंकने पर किसी बालक के ऊपर ,
ऐसा घातक निश्चर की तरह प्रहार नहीं करेगा।
बच्चा दलित समाज का हो या किसी शुक्ला जी का,
*मेरा तात्पर्य कभी जाति से नहीं रहा बच्चा केवल बच्चा है।*
सच्चा धर्म समझने का जब मन करे तो सियासत की गंदगी से अपनी नाक बाहर निकलिए ....
राजनीतिक बदबू से दूर हटिए तब सच्चा धर्म समझ में आएगा।
नहीं तो राम जन्म भूमि पर मुकदमा चलेगा जबकि राम जी का जन्म होता ही नहीं ।
वह तो प्रकट होते हैं ...
सकल भूमि गोपाल की या में अटक कहां ?
भगवान का प्रकट स्थल कहीं भी हो सकता है!
हिंदू जनमानस के आस्था के आधार पर माननीय अदालत ने फैसला किया,
फैसला सर माथे पर ।
किसी सियासी पार्टी का दबाव अदालत पर नहीं था ।
और कोई राजनीतिक पार्टी राम मंदिर हमारी झोली में लाकर नहीं डाली है।
धन्यवाद तो उन्हें है जिन्होंने मुकदमा लड़कर जीत हासिल किया।
*हिंदू धर्म की दशा 'गो ब्राह्मण कन्या, गंगा और गायत्री पर आधारित है' ।*
हिंदू धर्म की आधारशिला गौ माता....
खेत खलिहानों में डंडे खा रही हैं ।
*या गौशालाओं में अघोषित आजीवन कारावास झेल रही है।*
अगर ब्राह्मण सबल और संपन्न नहीं है तो लोगों को प्रणाम करने में अरुचि महसूस होती है!
कितने लोग हैं जो गायत्री के नाम पर पूर्णिमा को हवन करते हैं।
या बिना गायत्री मंत्र का जाप किये भोजन नहीं करते ।
आत्मा को टटोलिए धर्म दिखने लगेगा।
*पराई बेटियों में हवस तलाशने वाले लोग ....*
जो डेढ़ साल 2 साल 3 साल की बच्चियों का भी,
बलात्कार करने में मर्दानगी महसूस करते हैं ।
और वे जब धर्म पर चपर चपर अपनी जबान चलाते हैं तो ,
भले लोगों को आत्महत्या कर लेने को मन होता है।
अयोध्या पर देश की नज़रें टिकी हुई है 500 वर्षों के प्रबल इंतजार के बाद ऐसी सुखद घड़ी आई है ।
*लेकिन ऐसी जल्दी पड़ी है जवाबदारों को ?*
रामजी जन्म का दिन चैत्र रामनवमी है।
आखिर ऐसी क्या जल्दी है कि रामनवमी का इंतजार नहीं किया जा सकता?
शंकराचार्य समेत देश का प्रबुद्ध वर्ग भी इस पर भी अपनी राय व्यक्त कर चुका है।
कि बिना रामनवमी का इंतज़ार किए,
जल्दी से जल्दी अपना कौन सा मनोरथ भुना लेना चाहते हैं हम ?
*किसी भी धर्म से , मानवता का धर्म हमेशा बड़ा होता है आयोजन में फूल फेंकने वाले बच्चों को गिर कर मारना धर्म की कौन सी विशेषता है ।*
सियासत के ताल पर, धर्म के साथ नाचना हर आदमी के वश की बात नहीं है।