21/06/2025
गोविंद कृष्णन एम, केरल के कन्नूर से हैं। उन्होंने वेदिक शिक्षा के लिए एक गुरुकुल में दाखिला लिया, साथ ही अपनी सामान्य पढ़ाई भी जारी रखी।
वे JEE परीक्षा में सफल हुए और भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (IIST) में प्रवेश पाया।
अब वे ISRO के विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (VSSC) में वैज्ञानिक के रूप में शामिल हो रहे हैं।
गोविंद कहते हैं –
"मैं इस बात से भलीभांति परिचित हूं कि लोगों में यह आम धारणा है कि वैदिक शिक्षा लेने से करियर के अवसर सीमित हो जाते हैं। लोग अक्सर मानते हैं कि आध्यात्म और विज्ञान एक साथ नहीं चल सकते। लेकिन मैंने यह साबित कर दिया है कि ये दोनों साथ चल सकते हैं। यह सब संतुलन और अनुशासन की बात है।"
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🔹 विज्ञान और वेद का मेल – एक संतुलित दृष्टिकोण
भारत की प्राचीन परंपराएं, जैसे कि वेद, केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं हैं – बल्कि ये ज्ञान, चेतना और जीवन के गूढ़ रहस्यों के गहन स्रोत हैं।
वहीं, आधुनिक विज्ञान और तकनीक ब्रह्मांड को समझने के तरीके और उपकरण प्रदान करते हैं।
वेदिक शिक्षा क्यों ज़रूरी है विज्ञान के साथ?
यह व्यक्ति के आंतरिक विकास पर ध्यान देती है – मन की एकाग्रता, अनुशासन और आत्मनियंत्रण जैसे गुण विकसित करती है।
वेदिक अध्ययन से दार्शनिक सोच, गहराई से विचार करने की शक्ति, और जीवन के प्रति एक व्यापक दृष्टिकोण विकसित होता है – जो एक वैज्ञानिक के लिए भी बेहद ज़रूरी है।
यह सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ाव बनाए रखता है, जिससे व्यक्ति की पहचान और उद्देश्य मजबूत होते हैं।
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🔸 कैसे साधें वेद और विज्ञान का संतुलन?
1. समय प्रबंधन: गोविंद की तरह, समय का सही उपयोग और लक्ष्य के प्रति समर्पण सबसे महत्वपूर्ण है। सुबह का समय ध्यान और वेद अध्ययन के लिए, और दिन का बाकी हिस्सा विज्ञान की पढ़ाई के लिए बांटा जा सकता है।
2. एकता की भावना: समझें कि दोनों मार्ग — अध्यात्म और विज्ञान — सत्य की खोज की दिशा में ही जाते हैं।
3. मानसिक संतुलन: योग, ध्यान और वेदिक अभ्यास मन को शांत और केंद्रित रखते हैं, जिससे कठिन वैज्ञानिक समस्याओं को सुलझाने में मदद मिलती है।
4. सकारात्मक सोच और प्रेरणा: ऐसे उदाहरण जैसे गोविंद कृष्णन, युवाओं को यह प्रेरणा देते हैं कि कोई भी पृष्ठभूमि हो – अगर नियत साफ हो और मेहनत सच्ची, तो कोई भी ऊंचाई हासिल की जा सकती है।
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🌟 निष्कर्ष:
गोविंद कृष्णन जैसे युवाओं की कहानी इस बात का प्रमाण है कि वेदिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान दो विरोधी ध्रुव नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं।
जब व्यक्ति अपने आध्यात्मिक मूल्यों के साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाता है, तब वह केवल एक सफल वैज्ञानिक नहीं बनता – वह एक संपूर्ण इंसान बनता है।
✍️ संयम, संतुलन और समर्पण – यही हैं सफलता की असली कुंजी।