Raghuvar Dayal Vlog

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     , कब्ज, अपच, गैस, एसिडिटी, पेट साफ न होने की आयुर्वेदिक औषधि #भूमिआंवला के अदभुत फायदे ,यह लीवर के साथ शरीर में अने...
15/05/2025

, कब्ज, अपच, गैस, एसिडिटी, पेट साफ न होने की आयुर्वेदिक औषधि
#भूमिआंवला के अदभुत फायदे ,यह लीवर के साथ शरीर में अनेक बीमारीयों के लिए लाभाकरी हे
भुई आंवला एक जड़ी-बूटी है। आयुर्वेद के अनुसार, भुई आंवला से अनेक बीमारियों को ठीक किया जाता है।
भूमि आंवला लीवर की सूजन, सिरोसिस, फैटी लिवर, पीलिया में, हेपेटायटिस B और C में, किडनी क्रिएटिनिन बढ़ने पर, मधुमेह आदि में चमत्कारिक रूप से उपयोगी हैं।

यह पौधा लीवर व किडनी के रोगो में चमत्कारी लाभ करता है। यह बरसात मे अपने आप उग जाता है और छायादार नमी वाले स्थानों पर पूरा साल मिलता है। इसके पत्ते के नीचे छोटा सा फल लगता है जो देखने मे आंवले जैसा ही दिखाई देता है। इसलिए इसे भुई आंवला कहते है। इसको भूमि आंवला या भू धात्री भी कहा जाता है। यह पौधा लीवर के लिए बहुत उपयोगी है। इसका सम्पूर्ण भाग, जड़ समेत इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके गुण इसी से पता चल जाते हैं के कई बाज़ीगर भूमि आंवला के पत्ते चबाकर लोहे के ब्लेड तक को चबा जाते हैं।

बरसात मे यह मिल जाए तो इसे उखाड़ कर रख ले व छाया में सूखा कर रख लें। ये जड़ी-बूटी की दुकान पंसारी आदि के पास से आसानी से मिल जाता है।

#साधारण_सेवन_मात्रा -
आधा चम्मच चूर्ण पानी के साथ दिन मे 2-4 बार तक। या पानी मे उबाल कर छान कर भी दे सकते हैं। इस पौधे का ताज़ा रस अधिक गुणकारी है।

लीवर की सूजन और पीलिया में फायदेमंद -
लीवर की यह सबसे अधिक प्रमाणिक औषधि है। लीवर बढ़ गया है या या उसमे सूजन है तो यह पौधा उसे बिलकुल ठीक कर देगा। पीलिया हो गया है तो इसके पूरे पौधे को जड़ों समेत उखाडकर, उसका काढ़ा सुबह शाम लें। सूखे हुए पंचांग का 3 ग्राम का काढ़ा सवेरे शाम लेने से पीलिया की बीमारी से मुक्ति मिलेगी। पीलिया किसी भी कारण से हो चाहे पीलिया का रोगी मौत के मुंह मे हो यह देने से बहुत अधिक लाभ होता है। अन्य दवाइयो के साथ भी दे सकते (जैसे कुटकी/रोहितक/भृंगराज) अकेले भी दे सकते हैं। पीलिया में इसकी पत्तियों के पेस्ट को छाछ के साथ मिलाकर दिया जाता है।
वैकल्पिक रूप से इसके पेस्ट को बकरी के दूध के साथ मिलाकर भी दिया जाता है। पीलिया के शुरूआती लक्षण दिखाई देने पर भी इसकी पत्तियों को सीधे खाया जाता है।

कभी नहीं होगी लीवर की समस्या -
अगर वर्ष में एक महीने भी इसका काढ़ा ले लिया जाए तो पूरे वर्ष लीवर की कोई समस्या ही नहीं होगी। LIVER CIRRHOSIS जिसमे यकृत मे घाव हो जाते हैं यकृत सिकुड़ जाता है उसमे भी बहुत लाभ करता है। Fatty LIVER जिसमे यकृत मे सूजन आ जाती है पर बहुत लाभ करता है।

हेपेटायटिस B और C में. Hepatitis b – hepatitis c
हेपेटायटिस B और C के लिए यह रामबाण है। भुई आंवला +श्योनाक +पुनर्नवा ; इन तीनो को मिलाकर इनका रस लें। ताज़ा न मिले तो इनके पंचांग का काढ़ा लेते रहने से यह बीमारी बिलकुल ठीक हो जाती है।

#डी_टॉक्सिफिकेशन -
इसमें शरीर के विजातीय तत्वों को दूर करने की अद्भुत क्षमता है।

मुंह में छाले और मुंह पकने पर
मुंह में छाले हों तो इनके पत्तों का रस चबाकर निगल लें या बाहर निकाल दें। यह मसूढ़ों के लिए भी अच्छा है और मुंह पकने पर भी लाभ करता है।

स्तन में सूजन या गाँठ।
स्तन में सूजन या गाँठ हो तो इसके पत्तों का पेस्ट लगा लें पूरा आराम होगा।

जलोदर या असाईटिस
जलोदर या असाईटिस में लीवर की कार्य प्रणाली को ठीक करने के लिए 5 ग्राम भुई आंवला +1/2 ग्राम कुटकी +1 ग्राम सौंठ का काढ़ा सवेरे शाम लें।

#खांसी
खांसी में इसके साथ तुलसी के पत्ते मिलाकर काढ़ा बनाकर लें .

#किडनी
यह किडनी के इन्फेक्शन को भी खत्म करती है। इसका काढ़ा किडनी की सूजन भी खत्म करता है। SERUM CREATININE बढ़ गया हो, पेशाब मे इन्फेक्शन हो बहुत लाभ करेगा।

#स्त्री_रोगो_में -
प्रदर या प्रमेह की बीमारी भी इससे ठीक होती है। रक्त प्रदर की बीमारी होने पर इसके साथ दूब का रस मिलाकर 2-3 चम्मच प्रात: सायं लें। इसकी पत्तियाँ गर्भाधान को प्रोत्सहित करती है। इसकी जड़ो एवं बीजों का पेस्ट तैयार करके चांवल के पानी के साथ देने पर महिलाओ में रजोनिवृत्ति के समय लाभ मिलता है।

#पेट_में_दर्द -
पेट में दर्द हो और कारण न समझ आ रहा हो तो इसका काढ़ा ले लें। पेट दर्द तुरंत शांत हो जाएगा। ये पाचन प्रणाली को भी अच्छा करता है।

#शुगर_में -
शुगर की बीमारी में घाव न भरते हों तो इसका पेस्ट पीसकर लगा दें . इसे काली मिर्च के साथ लिया जाए तो शुगर की बीमारी भी ठीक होती है।

#पुराना_बुखार -
पुराना बुखार हो और भूख कम लगती हो तो , इसके साथ मुलेठी और गिलोय मिलाकर, काढ़ा बनाकर लें। इसका उपयोग घरेलू औषधीय के रूप में जैसे ऐपेटाइट, कब्ज. टाइफाइट, बुखार, ज्वर एवं सर्दी किया जाता है। मलेरिया के बुखार में इसके संपूर्ण पौधे का पेस्ट तैयार करके छाछ के साथ देने पर आराम मिलता है।

#आँतों_का_इन्फेक्शन -
आँतों का इन्फेक्शन होने पर या अल्सर होने पर इसके साथ दूब को भी जड़ सहित उखाडकर , ताज़ा ताज़ा आधा कप रस लें . रक्त स्त्राव 2-3 दिन में ही बंद हो जाएe3q2sssßगा .

अन्य उपयोग -
खुजली होने पर इसके पत्तों का रस मलने से लाभ होता है।

इसे मूत्र तथा जननांग विकारों के लिये उपयोग किया जाता है।

प्लीहा एवं यकृत विकार के लिये इसकी जडों के रस को चावल के पानी के साथ लिया जाता है।

इसे अम्लीयता, अल्सर, अपच, एवं दस्त में भी उपयोग किया जाता है।

इसे बच्चों के पेट में कीडे़ होने पर देने से लाभ पहुँचाता है।
इसकी पत्तियाँ शीतल होती है।

 #रामदाना : अंतरिक्ष तक यात्रा कर चुके इस गुणकारी अनाज से अनजान हैं पृथ्वी के ज्यादातर लोग! #चौलाई  (amaranthus) अर्थात ...
23/09/2024

#रामदाना : अंतरिक्ष तक यात्रा कर चुके इस गुणकारी अनाज से अनजान हैं पृथ्वी के ज्यादातर लोग!
#चौलाई (amaranthus) अर्थात रामदाना को 3 अक्टूबर, 1985 को अपनी पहली यात्रा करने वाले स्पेस शटल अटलांटिस में रामदाना भेजा गया था। चालक दल के सदस्यों ने अंतरिक्ष में रामदाना को अंकुरित करने का एक्सपेरिमेंट किया और नासा के शेफ ने मिशन के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों के खाने के लिए रामदाना की कुकीज़ तैयार की थी।
हालांकि जो रामदाना अंतरिक्ष की सैर कर चुका है उसके बारे में पृथ्वी पर कम ही लोग जानते होंगे।
अब तो भूले-बिसरे ही याद आता है हमें रामदाना. उपवास के लिए लोग इसके लड्डू और पट्टी खोजते हैं. पहले इसकी खेती का भी खूब प्रचलन था. मंडुवे यानी कोदों के खेतों के बीच-बीच में चटख लाल, सिंदूरी और भूरे रंग के चपटे, मोटे गुच्छे जैसे दिखने वाली फसल चुआ (चौलाई) होती थी जिसके पके हुए बीज रामदाना कहलाते हैं. जब पौधे छोटे होते थे तो वे चौलाई के रूप में हरी सब्जी के काम आते थे. तब पहाड़ों में मंडुवे की फसल के साथ चौलाई उगाने का आम रिवाज था. यह तो शहर आकर पता लगा कि रामदाना के लड्डू और मीठी पट्टी बनती है. पहाड़ में रामदाना के बीजों को भून कर उनकी खीर या दलिया बनाया जाता था. एक बार, नाश्ते में रामदाने की मुलायम और स्वादिष्ट रोटी खाई थी. रोटी का वह स्वाद अब भी याद है. अब तो पहाड़ में भी खेतों में दूर-दूर तक चौलाई के रंगीन गुच्छे नहीं दिखाई देते हैं.

इतिहास टटोला तो पता लगा, चौलाई के गुच्छे तो हजारों वर्ष पहले दक्षिणी अमेरिका के एज़टेक और मय सभ्यताओं के खेतों में लहराते थे. रामदाना उनके मुख्य भोजन का हिस्सा था और इसकी खेती वहां बहुत लोकप्रिय थी. जब सोलहवीं सदी में स्पेनी सेनाओं ने वहां आक्रमण किया, तब चौलाई की फसल चारों ओर लहलहा रही थी. वहां के निवासी चौलाई को पवित्र फसल मानते थे और उनके अनेक धार्मिक अनुष्ठानों में रामदाना काम आता था. विभिन्न उत्सवों, संस्कारों और पूजा में रामदाने का प्रयोग किया जाता था. स्पेनी सेनापति हरनांडो कार्टेज को चौलाई की फसल के लिए उन लोगों का यह प्यार रास नहीं आया और उसने इसकी खड़ी फसल के लहलहाते खेतों में आग लगवा दी. चौलाई की फसल को बुरी तरह रौंद दिया गया और उसकी खेती पर पाबंदी लगा दी गई. इतना ही नहीं, हुक्म दे दिया गया कि जो चौलाई की खेती करेगा उसे मृत्युदंड दिया जाएगा. इस कारण चौलाई की खेती खत्म हो गई.


चौलाई का जन्मस्थान पेरू माना जाता है. स्पेनी सेनाओं ने एज़टेक और मय सभ्यताओं के खेतों में चौलाई की फसल भले ही उजाड़ दी, लेकिन दुनिया के दूसरे देशों में इसकी खेती की जाती रही. दुनिया भर में इसकी 60 से अघिक प्रजातियां उगाई जाती हैं.

पहाड़ों में चौलाई सब्जी और बीज दोनों के काम आती है लेकिन मैदानों में इसका प्रयोग हरी सब्जी के लिए किया जाता है. इसकी ‘अमेरेंथस गैंगेटिकस’ प्रजाति की पत्तियां लाल होती हैं और लाल साग या लाल चौलाई के रूप में काम आती हैं. ‘अमेरेंथस पेनिकुलेटस’ हरी चौलाई कहलाती है. ‘अमेरेंथस काडेटस’ प्रजाति की चौलाई को रामदाने के लिए उगाया जाता है. हालांकि, मैदानों में यह हरी सब्जी के रूप में काम आती है. चौलाई के एक ही पौधे से कम से कम एक किलोग्राम तक बीज मिल जाते हैं. इस फसल की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसे कम वर्षा वाले और रूखे-सूखे इलाकों में भी बखूबी उगाया जा सकता है. इस भूली-बिसरी फसल के बारे में हम यह भूल गए हैं कि यह एक पौष्टिक आहार है. कई विद्वान तो इसे गाय के दूध और अंडे के बराबर पौष्टिक बताते हैं.

आइये जानते हैं!नदिया के पार फिल्म से जुड़े कुछ रोचक तथ्य-🎞️नदिया के पार फिल्म की 90 प्रतिशत शूटिंग जौनपुर के केराकत तहसी...
18/09/2024

आइये जानते हैं!
नदिया के पार फिल्म से जुड़े कुछ रोचक तथ्य-

🎞️नदिया के पार फिल्म की 90 प्रतिशत शूटिंग जौनपुर के केराकत तहसील के विजयपुर और राजेपुर नामक गांवों में हुई।
राजश्री प्रोडक्शंस की सबसे सफल फिल्मों में से एक " नदिया के पार” को लिखा और निर्देशित किया था गोविंद मूनिस जी ने और इसे महान संगीतकार “रविंद्र जैन” जी ने अपने संगीत से सजाया था।

केराकत ग्राम के स्थानीय निवासी बताते हैं कि फिल्म की शूटिंग लगभग डेढ़ से दो महीने तक चली। फिल्म की पूरी टीम उस गांव में ही लगभग डेढ़-दो महीनों तक रही।

गाँव के स्थानीय निवासी बताते हैं कि फिल्म की पूरी शूटिंग के दौरान वहाँ पर हमेशा पुलिस तैनात रहती थी क्योंकि कभी-कभी शूटिंग देखने आयी भीड़ बेकाबू हो जाती थी और उन्हें कंट्रोल करने का काम पुलिस करती थी।

गांव के स्थानीय निवासी बताते हैं कि राजश्री प्रोडक्शंस के मालिक ताराचंद बड़जात्या ने गाँव के लोगो को उस दौर में फिल्म की शूटिंग करने के लिए 8 लाख रुपये भी देने की पेशकश की थी । मगर फिल्म के यूनिट मैनेजर रामजनक सिंह उसी गाँव के निवासी थे। उन्हें अपनी ही फिल्म कंपनी के मालिक से अपने ही गाँव में शूटिंग करने के लिये पैसे लेने का दिल नहीं था। इसीलिए उन्होंने फिल्म बनाने के लिए उनके गाँव की लोकेशन का इस्तेमाल करने के लिए एक भी रूपया नहीं लिया था।

फिल्म के होली वाले गीत “जोगी जी धीरे धीरे” के लिए कई बोरियां रंग और गुलाल मंगाए गए थे और गाने में दिख रहे ज्यादातर लोग वही के मूल निवासी थे।

नदिया के पार फिल्म की भाषा अवधी और हिंदी मिश्रित है | फिल्म का नायक सचिन पिलगांवकर एक मराठी अभिनेता हैं और गायक जसपाल सिंह एक पंजाबी गायक हैं।

इस फिल्म में कुल 6 गाने हैं-

●जब तक पूरे न हों फेरे सात / हेमलता
●साँची कहें तोरे आवन से हमरे अगना / जसपाल सिंह
●कौन दिसा में लेके चला रे बटोहिया / हेमलता और जसपाल सिंह
●जोगी जी धीरे धीरे / हेमलता और जसपाल सिंह
●गुंजा रे चन्दन / सुरेश वाडकर और हेमलता
●जब तक पूरे न हों फेरे सात (sad) / हेमलता

इस फिल्म के गाने इतने कर्णप्रिय हैं कि कानों में अमृत घोल देते हैं। यकीन मानिये ! इन कालजई गानो के साथ आपकी यादों का कोई ना कोई खुबसूरत किस्सा जरूर जुड़ा होगा जिसे याद करके आप बीते हुए लम्हों में खो जाएंगे।

फिल्म की पूरी टीम का गांव के लोगों के साथ बहुत ही गहरा रिश्ता बन गया था। ऐसा कहा जाता है की जब फिल्म की शूटिंग खत्म हो गयी थी और फिल्म की टीम गाँव छोड़कर जा रही थी तो जाते हुए पुरे गाँव के लोग ही नहीं बल्कि फिल्म का पूरा स्टाफ गाँव के लोगों से बिछड़ने के दुःख में फूट-फूट के रोये थे।

जब ये फिल्म रिलीज हुई थी तब टिकट खिड़की पर घंटों खड़े होकर लोग इस फिल्म के टिकट के लिए मशक्कत करते थे। बैलगाड़ी भर-भर के लोग इस फिल्म को देखने जाया करते थे।

कम बजट में बनी इस फिल्म ने कई सिनेमाघरों में लगातार 100 हफ्ते चलकर कामयाबी के कई रिकॉर्ड बना दिए थे। लगभग 60-70 लाख के लागत से बनी इस फिल्म ने उस जमाने में लगभग 5 करोड़ रुपए की कमाई की थी, जो कि आज के परिवेश में कई सौ करोड़ के बराबर हैं।

फिल्म “नदिया के पार” की सफलता का अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि इसी कहानी पर “हम आपके हैं कौन” नाम से दोबारा एक फिल्म बनायी गयी। यह फिल्म भी सुपरहिट रही। नदिया के पार जहाँ ग्रामीण अंचल पर फिल्माई गई थी तो वहीं ‘हम आपके हैं कौन’ शहरी जीवन पर फिल्माई गई थी। जिसे बाद में “प्रेमलयम” नाम से तेलुगु में भी डब किया गया।

साधना सिंह के मुताबिक, गुंजा का किरदार लोगों को इतना पसंद आया था कि उस जमाने में कई बार तो लोग उन्हें देखते ही उनके पैर छूने ▪️लगते थे। उस दौर में जितनी भी लड़कियाँ पैदा हुई उन सबका नाम गुंजा ही रखा गया।

ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित इस फिल्म को अक्सर लोग एक भोजपुरी फिल्म समझ बैठते हैं जबकि यह फिल्म हिंदी –
अवधी मिश्रित भाषा की ही है। जिसे राजश्री प्रोडक्शंस बैनर तले फिल्मांया गया था।
बहुत कम लोगों को ही पता होगा कि ‘हम आपके हैं कौन’ फिल्म का टाइटल भी फिल्म ‘नदिया के पार’ में बोले गये एक संवाद से लिया गया है।
अभिनेता सचिन पिलगांवकर मूल रूप से मराठी फिल्मों के कलाकार हैं। जबकि आज भी कुछ लोग इन्हें भोजपुरी फिल्मों के अभिनेता समझ बैठते हैं। नदिया के पार फिल्म को करने से पहले सचिन राजश्री प्रोडक्शन की ‘गीत गाता चल’ और ‘अंखियों के झरोखे से’ जैसी फिल्मों में काम कर चुके थे।

इस फिल्म के सबसे चर्चित किरदार ‘नदिया के पार’ की नायिका गुंजा की तो इस किरदार को निभाया था अभिनेत्री “साधना सिंह” जी ने। इस किरदार में साधना सिंह इस कदर घुलमिल गयीं थीं हर किसी को यही लगता था कि साधना सिंह ग्रामीण पृष्ठभूमि से होगी। लेकिन आपको ताज्जुब होगा कि साधना सिंह एक पंजाबी शहरी परिवार से ताल्लुक रखती थीं। हालांकि उन्होंने कभी ऐक्ट्रेस बनने का सोचा तक नहीं था, उन्हें संगीत में रूचि थी और उसी क्षेत्र में कुछ करना चाहती थी। साधना सिंह जी ने गुंजा के किरदार को इतना जीवंत कर दिया था कि आज भी बहुत लोग इन्हें गुंजा के नाम से ही पहचानते हैं।
इस फिल्म का संगीत दिया था जाने माने संगीतकार “रवींद्र जैन” जी ने और फिल्म के गीत भी उन्होंने ही लिखे थे। दोस्तों ताज्जुब की बात है कि रविन्द्र जैन जी जन्मांध थे, लेकिन इन्होंने जिस शिद्दत से इस फिल्म के गाने बनाये। उससे फिल्म की ख़ूबसूरती में चार चाँद लग गये।

फिल्म ‘नदिया के पार’ में एक और अहम किरदार था। वो किरदार था चंदन के बड़े भाई “ओमकार” का जिसे अभिनेता “इंदर ठाकुर” ने निभाया था। इंदर ठाकुर अपने ज़माने के मशहूर विलेन हीरालाल ठाकुर के बेटे थे। दरअसल इंदर ठाकुर एक फैशन डिज़ाइनर और मॉडल भी थे, उन्होंने 1985 में न्यूयॉर्क शहर में वर्ल्ड मॉडलिंग एसोसिएशन सम्मेलन द्वारा आयोजित “अंतर्राष्ट्रीय फैशन डिजाइनर” का पुरस्कार जीता था। यात्रा से लौटते वक्त उनका विमान आतंकवादी बम धमाके का शिकार हो गया था। जिसमें सवार सभी 329 लोग मारे गए थे उनमें इंदर ठाकुर भी शामिल थे।

अंत में हम बस इतना ही कहना चाहेंगे की नदिया के पार फिल्म को बने आज लगभग 42 साल से ऊपर हो गये, मगर यह फिल्म आज भी चाहे जितनी बार भी देखा जाए मन नहीं भरता और आपको हर बार नयापन महसूस होगा।

उम्मीद हैं आपको यह जानकारी पसंद आई होगी। इस फिल्म पर आपकी क्या राय हैं कमेंट में जरूर बताये।
Fb से साभार

इस चायवाले ने जंगल के बीचो-बीच खोली लाइब्रेरी, पैदल पहुंचकर पढ़ने लगे लोग!इस पुस्तकालय का नाम ‘अक्षर’ रखा गया। यहाँ एक र...
18/09/2024

इस चायवाले ने जंगल के बीचो-बीच खोली लाइब्रेरी, पैदल पहुंचकर पढ़ने लगे लोग!
इस पुस्तकालय का नाम ‘अक्षर’ रखा गया। यहाँ एक रजिस्टर में पढ़ने के लिए दी गई पुस्तकों का रिकॉर्ड रखा जाने लगा। पुस्तकालय की सदस्यता एक बार 25 रुपए दे कर या मासिक 2 रुपए दे कर ली जा सकती थी।
आज के समय में किसी भी शहर या गाँव में पुस्तकालय का होना कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन केरल के इदुक्की ज़िले के जंगलों के बीच बसे कस्बे एडमलक्कुडी में रहने वाले आदिवासी मुथुवान जाति के लोगों के लिए अपने आस-पास पुस्तकालय का होना एक सपने जैसा था।

वर्ष 2010 में यहाँ दो चीज़ें हुईं – पहला, एडमलक्कुडी केरल का पहला ऐसा कस्बा बना जहां आदिवासी ग्राम पंचायत का गठन हुआ और दूसरा, इस कस्बे के इरिप्पुकल्लु क्षेत्र के एक छोटी-सी चाय की दुकान पर एक पुस्तकालय की स्थापना की गई।

शायद यह दुनिया का एकमात्र पुस्तकालय है जो एक ऐसे वन क्षेत्र के बीचोंबीच है जहां सिर्फ पैदल ही पहुँचा जा सकता था। हालांकि, इस साल मार्च में पहली बार जीप से एडमलक्कुडी तक पहुँचना संभव हुआ है।

Fb साभार से


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चंद्रमा पर पहली लैंडिंग 20 जुलाई 1969 को हुई थी, और चंद्रमा पर कदम रखने वाले पहले अंतरिक्ष यात्री अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA के अपोलो 11 मिशन के अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग थे।

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( फ्यूज बल्ब )  जयपुर शहर में बसे मालवीय नगर में एक आईएएस अफसर रहने के लिये आये। जो अभी हाल ही में सेवानिवृत्त हुये थे ?...
02/07/2024

( फ्यूज बल्ब )


जयपुर शहर में बसे मालवीय नगर में एक आईएएस अफसर रहने के लिये आये। जो अभी हाल ही में सेवानिवृत्त हुये थे ? ये रिटायर्ड आईएएस अफसर हैरान-परेशान से रोज शाम को पास के पार्क में टहलते हुये अन्य लोगों को तिरस्कार भरी नज़रों से देखते थे और किसी से भी बात नहीं करते थे ? एक दिन एक बुज़ुर्ग के पास शाम को गुफ़्तगू के लिए बैठे और फिर लगातार उनके पास बैठने लगे , लेकिन उनकी वार्ता का विषय एक ही होता था - मैं भोपाल में इतना बड़ा आईएएस अफ़सर था कि पूछो मत ? यहां तो मैं मजबूरी में आ गया हूं ? मुझे तो दिल्ली में बसना चाहिए था ? और वो बुजुर्ग प्रतिदिन शांतिपूर्वक उनकी बातें सुना करते थे ?

आईएएस अफसर की रोज-रोज घमंड भरी बातों से परेशान होकर एक दिन उस बुजुर्ग ने उनसे पूछा कि - *आपने कभी फ्यूज बल्ब देखे हैं ?* बल्ब के फ्यूज हो जाने के बाद क्या कोई देखता है‌ कि‌ बल्ब‌ किस कम्पनी का बना‌ हुआ था ? या कितने वाट का था ? या उससे कितनी रोशनी होती थी ? बुजुर्ग ने कहा कि बल्ब के‌ फ्यूज़ होने के बाद इनमें‌‌ से कोई भी‌ बात बिलकुल भी मायने नहीं रखती है ? लोग ऐसे‌ बल्ब को‌ कबाड़‌ में डाल देते‌ हैं ? मैं सही कह रहा हूं कि नहीं ? फिर जब उन रिटायर्ड‌ आईएएस अधिकारी महोदय ने सहमति‌ में सिर‌ हिलाया तो‌ बुजुर्ग फिर बोले‌ - *रिटायरमेंट के बाद हम सबकी स्थिति भी फ्यूज बल्ब जैसी हो‌ जाती है‌ ?*

हम‌ कहां‌ काम करते थे‌ ? कितने‌ बड़े‌ पद पर थे‌ ? हमारा क्या रुतबा‌ था ? यह‌ सब‌ कोई मायने‌ नहीं‌ रखता‌ ? बुजुर्ग ने बताया कि मैं सोसाइटी में पिछले कई वर्षों से रहता हूं और आज तक किसी को यह नहीं बताया कि मैं दो बार सांसद रह चुका हूं ? उन्होंने कहा कि वो जो सामने वर्मा जी बैठे हैं वे रेलवे के महाप्रबंधक थे ? और वे जो सामने से आ रहे हैं मीणा साहब वे सेना में ब्रिगेडियर थे ? और बैरवा जी इसरो में चीफ थे ? लेकिन हममें से किसी भी व्यक्ति ने ये बात किसी को नहीं बताई ?

क्योंकि मैं जानता हूं कि सारे फ्यूज़ बल्ब फ्यूज होने के बाद एक जैसे ही हो जाते हैं ? चाहे वह जीरो वाट का हो या 50 वाट का या फिर 100 वाट का हो ? *कोई रोशनी नहीं‌ , तो कोई उपयोगिता नहीं ?*

उन्होंने आगे कहा कि आपने देखा होगा कि उगते सूर्य की जल चढ़ाकर सभी पूजा करते हैं , पर डूबते सूरज की कोई पूजा नहीं‌ करता‌ ? *लेकिन कुछ लोग अपने पद को लेकर इतने वहम में होते‌ हैं‌ कि‌ रिटायरमेंट के बाद भी‌ उनसे‌ अपने अच्छे‌ दिन भुलाये नहीं भूलते।* वे अपने घर के आगे‌ नेम प्लेट लगाते‌ हैं - रिटायर्ड आइएएस‌ / रिटायर्ड आईपीएस / रिटायर्ड पीसीएस / रिटायर्ड जज‌ आदि - आदि ?

बुजुर्ग ने आगे कहा कि माना‌ कि‌ आप बहुत बड़े‌ आफिसर थे‌ ? बहुत काबिल भी थे‌ ? पूरे महकमे में आपकी तूती बोलती‌ थी‌ ? पर अब क्या ? अब यह बात मायने नहीं रखती है ? बल्कि *मायने‌ यह रखता है‌ कि पद पर रहते समय आप इंसान कैसे‌ थे ? आपने आम लोगों को कितनी तवज्जो दी ? समाज को क्या दिया ? मित्र - बन्धुओं के कितने काम आये ? समाज में कितने लोगों की मदद की ?* या फिर सिर्फ घमंड में ही ऐंठे रहे ?

बुजुर्ग आगे बोले कि अगर पद पर रहते हुये कभी घमंड आये तो बस याद कर लेना कि एक दिन आपको भी फ्यूज होना है ???

*सीख* : यह कहानी उन लोगों के लिये एक आइना है जो पद और सत्ता में रहते हुये कभी अपनी कलम से किसी का हित नहीं करते ? *और रिटायरमेंट होने के बाद ऐसे लोगों को समाज की बड़ी चिंता होने लगती है ?* अभी भी वक्त है हमारी इस कहानी को पढ़िये ? चिंतन करिये तथा समाज की यथासंभव मदद कीजिये ? अपने पद रूपी बल्ब से समाज व देश को रोशन करिये , तभी रिटायरमेंट के बाद समाज आपको अच्छी नजरों से देखेगा और आपका सम्मान करेगा ???







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