07/11/2023
अनोखा सफ़र
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(धारावाहिक - भाग -2)
गतांक -.... तनु को लग रहा था 'सोलह बरस की बाली उमर को सलाम' गीत फ़िल्माया भले रति अग्निहोत्री पर गया हो लेकिन लिखा इसे गीतकार नीरज जी ने सिर्फ़ उसके लिये,..उसके आज के ख़ास दिन के लिये ही था।..
अब आगे -
तीखे नैन-नक्श के साथ बाँकी चितवन लिये तरुणाई की दहलीज़ पर दस्तक देती सकुचाई-शरमाई सोलह-सत्रह साल की तनु में जहां गज़ब का आकर्षण था तो तेईस-चौबीस साल का अलमस्त ख़ुशमिज़ाज, अपने आप मे मगन वेद भी किसी से कम नहीं। गठी क़द-काठी, बलखाते ख़ूबसूरत बाल, बोलती आँखे, चेहरे पर हमेशा सजी मृदु मुस्कान बरबस हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिये काफी थे।
वेद रंगमंच का स्थापित कलाकार तो तनु प्रतिभाशाली नवागंतुक। एक ही संस्था में होने के कारण अक्सर मुलाकात होने लगी। लेकिन दोनों अनोखे-अलबेले। न ये दिल की बात ज़ुबाँ पर लाने को राज़ी न वो पहल करने को तैयार। प्रस्तुति में वांछित संवाद के अलावा कभी दो लाइन की भी बातचीत नहीं। सिर्फ़ निगाहें कह देतीं, और निगाहें ही पढ़ लेतीं। ये पहली निगाह ही तो थी जिसने मिलते ही दोनों को हमेशा के लिये एक दूसरे का बना दिया था।
संस्था की प्रस्तुतियाँ देखने कभी कभी तनु की मम्मी भी आती थीं। वेद का हँसमुख स्वभाव उन्हें बहुत भाता। वेद भी उन्हें बहुत आदर सम्मान देता सो स्वाभाविक तौर वात्सल्यपूर्ण रिश्ता बन गया, मम्मी का स्नेह उसके हिस्से आने लगा।
रंगमंच से इतर वेद का अपना व्यवसाय भी था। एक दिन सफ़ेद रंग की अपनी वेस्पा स्कूटर से वेद अपने प्रतिष्ठान से वापस लौट रहा था कि अचानक उसे अपना नाम ले के बुलाती आवाज़ सुनाई दी। बीस-तीस मीटर ही आगे बढ़ा था सो स्कूटर किनारे लगा पीछे मुड़ के देखा। सड़क किनारे खड़ी कोई महिला उसे बुला रही थीं। स्कूटर मुड़ी, नज़दीक आते ही आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता चेहरे पे तारी हो गई।
"अरे आंटी... आप यहाँ.. कैसे..!!"
बुलाने वाली ये स्नेहिल आवाज़ तनु की मम्मी की थी।
खिलखिलाती हँसी के साथ तनु की मम्मी बोलीं -
"मेरा तो यही घर है, आप बताइये.. आप यहाँ कैसे ?"
चौंकते हुए वेद बोला -
'ये आपका घर है..! यहाँ रहती हैं आप..!!
अरे यहाँ से तो मैं रोज़ सुबह शाम गुज़रता हूँ, बस एक किलोमीटर आगे ही तो मेरा प्रतिष्ठान है।'
"अच्छा..! कहाँ है आपका प्रतिष्ठान ?"
'सब पूछताछ इनसे हियँय सड़कय प खड़ेन खड़े कै लिहेव.! अरे अंदर लै जाओ इनका, बैठाय के एक कप चाय पियाओ औ करव खूब पूछताछ।'
ये आवाज़ तनु की मम्मी के ठीक पीछे स्थित दुकान पर बैठे तनु के पापा की थी।
मम्मी वेद का परिचय तनु के पापा से कराते हुए वेद से बोलीं- "आइये आइये अंदर चलिये।"
वेद को तो मानों बिन माँगे कोई खज़ाना मिल गया था, फिर भी बनावटी इनकार करते हुए बोला - 'आज नहीं, आज थोड़ा जल्दी में हूँ आँटी.. फिर कभी आऊँगा तो बैठूँगा।'
"फिर कभी नहीं, अब तो आपको रोज़ आना होगा। चाहे जाते समय, चाहे लौटते समय लेकिन हमसे मिले बिना आप नहीं जाएँगे, आप ही ने बताया कि रोज़ सुबह शाम गुज़रते हैं आप इधर से, और हाँ कभी की बात बाद में पहले अभी चलिये अंदर, जितनी देर लगाएँगे उतना ही आपको देर होगी, और आप जल्दी में हैं.." दोनो खिलखिला कर हँस पड़े।
वेद ने स्कूटर किनारे खड़ी की और दुकान के बगल की गैलरी में तनु की मम्मी के पीछे चल दिया। दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था। तनु से मुलाक़ात..वो भी तनु के घर में..!
ये सोचकर एक अजीब सी सिहरन पूरे शरीर में दौड़ गई। गैलरी पार होने पर दुकान के ठीक पीछे एक बैठकनुमा बरामदा, या बरामदानुमा बैठक। सोफे की तरफ़ इशारा करते तनु की मम्मी बोलीं - "बैठिए, हाँ अब बताइये यहाँ से कितनी दूर और कहाँ है आपका प्रतिष्ठान, और हाँ उससे पहले ये बताइये चाय लेंगे या कॉफ़ी।"
'कॉफी नहीं, चाय पी लूँगा आँटी।'
"ठीक, अभी आते हैं" इतना कह तनु की मम्मी चल दीं।
बैठक-बरामदे की आगे आंगन और आंगन के दूसरी तरफ़ कमरा, और उसके ठीक बगल में ऊपरी मंज़िल पर जाने के लिये सीढ़ी। वेद बैठा तो था बरामदे में रखे सोफे पर लेकिन उसका तेज़ी से धड़कता दिल और बेताब निगाहें आँगन के पीछे के कमरे, और सीढ़ियों पर सिर्फ़ तनु को तलाश रही थीं। इस कमरे से निकलेगी या फिर सीढ़ियों से उतरती दिखाई पड़ेगी !
मम्मी वापस आ गईं.. लेकिन अकेली ! वेद के सामने पड़ी कुर्सी पर बैठते हुए बोलीं - "और सुनाइये क्या हालचाल हैं,.. रिहर्सल कैसी चल रही है.. कब है अगला शो। ये तनु भी मेहनत तो बहुत करती है लेकिन कुछ ठीक ठाक कर पा रही है कि नहीं ?
'नहीं नहीं आँटी बहुत बढ़िया कर रही है तनु, लगता ही नहीं कि न्यूकमर है।'
वेद का सब्र अब जवाब देने लगा था, संकोच भरभरा के ढह गया -
'कहाँ है तनु , दिखाई नहीं पड़ रही !'
"ऊपर पढ़ रही है...(कहते हुए उन्होंने ज़ोर से आवाज़ लगाई) - तनुऊऊ.. ए तनु, नीचे आओ, देखो तो कौन आया है।"
'आई मम्मी' .. ऊपर से आती ये आवाज़ वेद के कानों में जैसे मिश्री घोल गई।
तेज़ी से सीढियां उतरते कदमों की आहट.. आँगन तक पँहुचते मानो ठिठक गई..
सामने वेद को बैठा देख उसकी आँखें जैसे फटी की फटी रह गईं..! कुछ क्षणों के लिये सारा संकोच मानों काफ़ूर हो गया.. मोहनी मुस्कान के साथ बेशुमार ख़ुशी उसके होठों से फूट पड़ी -
"आप... यहाँ.. मेरे घर में..! ओह माय गॉड !!"
हँसते हुये वेद बोला - 'क्यों,..
नहीं आना चाहिये था क्या..?'
साथ काम करते काफ़ी वक़्त बीत चुका था लेकिन रिहर्सल और शो से इतर उन दोनों के बीच शायद ये पहला अनौचरिक संवाद था।
अगले ही पल उसे लगा छलकती ख़ुशी कहीं दिल का राज़ फाश न कर दे। हर्षातिरेक पर लगाम लगा सामान्य होते हुए बोली - 'मैं चाय ले के आती हूँ मम्मी।'
दो चार मिनट बाद तनु चाय की ट्रे ले के आई और मेज पर रख के किनारे पड़े स्टूल पर बैठ गई। चाय पीते वेद और मम्मी बातों में मशगूल लेकिन तनु एकदम चुप। चाय ख़तम होते ही वेद खड़ा हो गया।
'अच्छा आँटी अब तो हो गया न आपके आदेश का पालन, पी ली चाय, अब जाऊँ..।'
"ठीक है आपने बताया था जल्दी में हैं आप, लेकिन अगली बार इतनी जल्दी नहीं जाने देंगे। अब तो आपको रोज़ हमसे मिलने आना पड़ेगा"
ये सुन तनु के दोबारा आश्चर्यचकित होने की बारी थी। तनु की प्रश्नवाचक निगाह देख मम्मी तनु से बोलीं - "अरे तनु ये रोज़ सुबह शाम अपने घर के सामने से गुज़रते हैं। यहीं थोड़ी दूर आगे ही इनका कारोबार है।
ये सुन पता नहीं तनु ख़ुश हुई या परेशान। उसके मुँह से धीरे से बस एक शब्द निकला - 'अच्छा..!'
इधर वेद और मम्मी गलियारे में बढ़े उधर तनु सीढ़ियों पर।
रोज़ तो नहीं हाँ कभी कभी वेद का तनु के घर आना जाना होने लगा। वेद के बुलावे पर तनु की मम्मी भी उसे लेकर वेद के घर आने लगीं। जितनी देर दोनों आमने सामने या आसपास होते अजब सा सुकून मिलता दोनों को एक दूसरे को देखकर। बस एक दूसरे की मौजूदगी से ही दोनों की रूमानी दुनिया आबाद हो जाती। दिन ब दिन देखने-दिखने की बेताबी बढ़ने लगी। ये बेताबी अक्सर वेद की स्कूटर तनु के घर के सामने रोकने लगी। वेद के आने से वेद की मम्मी तो बहुत ख़ुश होतीं लेकिन चार-छः बार के आवागमन के बाद वेद को देखते ही तनु के बड़े भाई के माथे पर बल पड़ने लगे। पापा की जगह अक्सर वही दुकान पर बैठते थे। मम्मी न देख पातीं तो वो वेद को ज़्यादातर दुकान से ही टरका देते। वेद का मन तो होता कि कहे अंदर जाने के लिये लेकिन उसकी ख़ुद्दारी और भैया की भाव-भंगिमा इस लालसा पर लगाम लगा देते।
वेद को आभास हो चुका था कि भैया ताड़ गये हैं कि वेद तनु से मिलने के लिये ही आता है। मतलब मामला गड़बड़ है। हालांकि इस बाबत किसी को कानों-कान भी कोई ख़बर नहीं थी, कारण किसी के सामने तो क्या एकांत में भी दोनों ने एक दूसरे से कभी कोई बात ही नहीं करते, प्रेम-प्रपंच तो बहुत दूर की बात। लेकिन हाय रे ये भैया..उन्होंने तनु और वेद के मौन-प्रेम के बीच ज़ालिम ज़माने की भूमिका अकेले ही सम्हाल ली।
क्रमशः -
(भाग - ३)