Monu Singh

Monu Singh Monu Kumar Patel

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24/03/2023

#मुसलमाननहींसमझेज्ञानक़ुरआन
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#मुसलमाननहींसमझेज्ञानक़ुरआन

हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुसलमान नहीं समझे ज्ञान क़ुरआन"

पेज नंबर - 262
’’भूत-प्रेत की बाधा से मिली निजात‘‘
मैं शाहिना गर्ग, शिमला (हिमाचल प्रदेश) की रहने वाली हूँ। मैंने पोस्ट ग्रेजुएट किया है। एक मुस्लिम परिवार से संबंध होने के नाते मैं रोजे रखना, नमाज करना ये सब करती थी क्योंकि मुझे भी अल्लाह की तलाश थी। मुझे प्रेत बाधा की समस्या हो गई थी। मैंने बहुत सारे पीर, फकीरों, मजारों पर दिखाया। लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। मेरी शादी एक हिन्दू परिवार में हुई। मैंने हिन्दू रीति-रिवाज के हिसाब से भी भक्ति साधना की। लेकिन कोई लाभ
नहीं हुई। मेरे ससुराल वालों ने भी मुझे बहुत जगह दिखाया। लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। मानसिक और आर्थिक
परेशानी सम्पूर्ण परिवार की बढ़ गई थी। फिर हमारे एक रिश्तेदार हैं जो शिमला में ही रहते हैं। उन्होंने हमें बताया
कि आप संत रामपाल जी महाराज की शरण में चले जाओ। वहाँ सब ठीक हो जाएगा। लेकिन हमें भरोसा नहीं हुआ और हम वापिस घर आ गए। उन्होंने हमें एक किताब ज्ञान गंगा भी दी। लेकिन हमने उसे भी 3.4 महीने तक ऐसे
ही रखे रखा। फिर हम बहुत ज्यादा परेशान होते गए तो हमने संत रामपाल जी महाराज से जून 2014 में नाम दीक्षा ली। जब संत रामपाल जी महाराज जी ने मुझे आशीर्वाद दिया तो ऐसे लगा कि मन से पता नहीं कितना भार उतर गया और संत जी ने कहा कि सब ठीक हो जाएगा। फिर हम घर आ गए और मेरी प्रेत बाधा भी समाप्त हो गई। मैं एकदम ठीक हो गई। मेरी बीमारी की वजह से हमारा तालाक भी होने वाला था जो संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के बाद में टल गया। आज हम अच्छे से रह रहे हैं। मेरे पति के पास में जॉब नहीं थी। संत रामपाल जी महाराज की दया से आज उनकी जॉब भी लग गई है। संत रामपाल जी महाराज पवित्रा शास्त्रों के अनुसार भक्ति विधि बताते हैं। भगत समाज से मेरा यही निवेदन है कि आप संत रामपाल जी महाराज जी की शरण में आएँ।
वही पूर्ण संत हैं जो सही भक्ति विधि बताते हैं।
भक्तमति शाहिना गर्ग
शिमला, हिमाचल प्रदेश
सम्पर्क सूत्र:- 8307744506
आपने उपरोक्त कुछ भक्तात्माओं की आत्मकथाएँ पढ़ी। ऐसे-ऐसे भक्त हजारों-लाखों हैं जो अपनी आत्मकथा पुस्तकों में लिखवाना चाहते हैं। लेकिन यहाँ पर स्थान के अभाव के कारण हम कुछेक भक्तों की आत्मकथा लिख पाए। यदि सभी भक्तों की आत्मकथा हम लिखने बैठ जाएँ तो शायद सैकड़ों पुस्तकें छप जाएँगी। इसलिए समझदार व्यक्ति को संकेत ही पर्याप्त होता है।

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सूचना:- मुसलमान धर्म से संबंधित अधिक जानकारी एवं नाम दीक्षा के लिए इन नंबरों पर संपर्क करें ! Phone no. 9812238507,9992600852,8950781981,9555000803

24/03/2023

#मुसलमाननहींसमझेज्ञानक़ुरआन
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#मुसलमाननहींसमझेज्ञानक़ुरआन

हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुसलमान नहीं समझे ज्ञान क़ुरआन"
पेज नंबर - 263-264
(अध्याय नं. 5)
‘‘संक्षिप्त सृष्टि रचना‘‘
सबसे पहले सतपुरुष अकेले थे, कोई रचना नहीं थी। सर्वप्रथम परमेश्वर जी ने चार अविनाशी लोक की रचना वचन (शब्द) से की।
1. अनामी लोक जिसको अकह लोक भी कहते हैं।
2. अगम लोक 3. अलख लोक 4. सतलोक।
फिर परमात्मा ने चारों लोकों में चार रुप धारण किए। चार उपमात्मक नामों से प्रत्येक लोक में प्रसिद्ध हुए।
1. अनामी लोक में अनामी पुरुष या अकह पुरुष।
2. अगम लोक में अगम पुरुष।
3. अलख लोक में अलख पुरुष।
4. सतलोक में सतपुरुष उपमात्मक नाम रखे।
फिर चारों लोकों में परमात्मा ने वचन से ही एक-एक सिंहासन (तख्त) बनाया। प्रत्येक सिंहासन पर सम्राट के समान मुकुट आदि धारण करके विराजमान हो गए। फिर सतलोक में परमेश्वर ने अन्य रचना की। एक शब्द (वचन) से 16 द्वीपों तथा एक मानसरोवर की रचना की। पुनः 16 वचन से 16 पुत्रों की उत्पत्ति की। उनमें मुख्य भूमिका अचिन्त, तेज, सहजदास, जोगजीत, कूर्म, इच्छा, धैर्य और ज्ञानी की रही है। अपने पुत्रों को सबक सिखाने के लिए कि समर्थ के बिना कोई कार्य सफल नहीं हो सकता। जिसका काम उसी को साजे और करे तो मूर्ख बाजे। सतपुरुष ने अपने पुत्र अचिन्त से कहा कि आप अन्य रचना सतलोक में करें। मैंने कुछ शक्ति तेरे को प्रदान कर दी है। अचिन्त ने अपने वचन से अक्षर पुरुष की उत्पत्ति की। अक्षर पुरुष युवा उत्पन्न हुआ। मानसरोवर में स्नान करने गया, उसी जल पर तैरने लगा। कुछ देर में निंद्रा आ गई। सरोवर में गहरा नीचे चला गया। (सतलोक में अमर शरीर है, वहाँ पर शरीर श्वांसों पर निर्भर नहीं है।) बहुत समय तक अक्षर पुरूष जल से बाहर नहीं आया। अचिन्त आगे सृष्टि नहीं कर सका, तब सतपुरुष (परम अक्षर पुरुष) ने मानसरोवर पर जाकर कुछ जल अपनी चुल्लु (हाथ) में लिया। उसका एक विशाल अण्डा वचन से बनाया तथा एक आत्मा वचन से उत्पन्न करके अण्डे में प्रवेश की और अण्डे को जल में छोड़ दिया। जल में अण्डा नीचे जाने लगा तो उसकी गड़गड़ाहट के शोर से अक्षर पुरूष की निंद्रा भंग हो गई। अक्षर पुरुष ने क्रोध से देखा कि किसने मुझे जगा दिया। क्रोध उस अण्डे पर गिरा तो अण्डा फूट गया। उसमें से एक युवा तेजोमय व्यक्ति निकला। उसका नाम क्षर पुरुष रखा। (आगे चलकर यही काल कहलाया।) सतपुरुष ने दोनों से कहा कि आप जल से बाहर आओ। अक्षर पुरुष तुम निंद्रा में थे, तेरे को नींद से उठाने के लिए यह सब किया है। अक्षर पुरुष और क्षर पुरुष से सतपुरुष ने कहा कि आप दोनों अचिंत के लोक में रहो। कुछ समय के पश्चात् (क्षर पुरुष जिसे ज्योति निरंजन काल भी कहते हैं) ने मन में विचार किया कि हम तीन तो एक लोक में रह रहे हैं। मेरे अन्य भाई एक-एक द्वीप में रह रहे हैं। यह विचार कर उसने अलग द्वीप प्राप्त करने के लिए तप प्रारम्भ किया। इससे पहले सतपुरुष जी ने अपने पुत्रा अचिन्त से कहा कि आप सृष्टि रचना नहीं कर सकते। मैंने तुम्हें यह शिक्षा देने के लिए ही आप से कहा कि अन्य रचना कर। परन्तु अचिन्त आप तो अक्षर पुरुष को भी नहीं उठा सके। अब आगे कोई भी यह कोशिश न करना। सर्व रचना मैं अपनी शब्द शक्ति से रचूँगा। सतपुरुष जी ने सतलोक में असँख्यों लोक रचे तथा प्रत्येक में अपने वचन (शब्द) से अन्य आत्माओं की उत्पत्ति की। ये सब लोक सतपुरुष के सिंहासन के इर्द-गिर्द थे। इनमें केवल नर हंस (सतलोक में मनुष्यों को हंस कहते हैं) ही रहते हैं और उनको परमेश्वर ने शक्ति दे रखी है कि वे अपना परिवार (नर हंस) वचन से उत्पन्न कर सकते है। वे केवल दो पुत्रा ही उत्पन्न कर सकते हैं। क्षर पुरुष (ज्योति निरंजन) ने तप करना शुरु किया। उसने 70 युग तक तप किया। सत्पुरुष जी ने क्षर पुरुष से पूछा कि आप तप किसलिए कर रहे हो? क्षर पुरुष ने कहा कि यह स्थान मेरे लिए कम है। मुझे अलग स्थान चाहिए। परमेश्वर (सतपुरुष) जी ने उसे 70युग के तप के प्रतिफल में 21 ब्रह्माण्ड दे दिए जो सतलोक के बाहरी क्षेत्र में थे जैसे 21 प्लॉट मिल गए हों। ज्योति निरंजन (क्षर पुरुष) ने विचार किया कि इन ब्रह्माण्डों में कुछ रचना भी होनी चहिए। उसके लिए, फिर 70 युग तक तप किया। फिर सतपुरुष जी ने पूछा कि अब क्या चाहता है? क्षर पुरुष ने कहा कि सृष्टि रचना की सामग्री देने की कृपा करें। सतपुरुष जी ने उसको पाँच तत्व (जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु तथा आकाश) तथा तीन गुण (रजगुण, सतगुण तथा तमगुण) दे दिये तथा कहा कि इनसे अपनी रचना कर। क्षर पुरूष ने तीसरी बार फिर तप प्रारम्भ किया। जब 64 (चौंसठ) युग तप करते हो गए तो सत्य पुरूष जी ने पूछा कि आप और क्या चाहते हैं? क्षर पुरूष (ज्योति निरंजन) ने कहा कि मुझे कुछ आत्मा दे दो। मेरा अकेले का दिल नहीं लग रहा। क्षर पुरूष को आत्मा ऐसे मिली, आगे पढ़ें:-

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24/03/2023

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हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुसलमान नहीं समझे ज्ञान क़ुरआन"
पेज नंबर - 264-268

‘‘हम काल के लोक में कैसे आए ?’’
जिस समय क्षर पुरुष (ज्योति निरंजन) एक पैर पर खड़ा होकर तप कर रहा था। तब हम सभी आत्माऐं इस क्षर पुरुष पर आकर्षित हो गए। जैसे जवान बच्चे अभिनेता व अभिनेत्री पर आसक्त हो जाते हैं। लेना एक न देने दो। व्यर्थ में चाहने लग जाते हैं। वे अपनी कमाई करने के लिए नाचते कूदते हैं। युवा-बच्चे उन्हें देखकर अपना धन नष्ट करते हैं। ठीक इसी प्रकार हम अपने परमपिता सतपुरुष को छोड़कर काल पुरुष (क्षर पुरुष) को हृदय से चाहने लग गए थे। जो परमेश्वर हमें सर्व सुख सुविधा दे रहा था। उससे मुँह मोड़कर इस नकली ड्रामा करने वाले काल ब्रह्म को चाहने लगे। सत पुरुष जी ने बीच-बीच में बहुत बार आकाशवाणी की कि बच्चो तुम इस काल की क्रिया को मत देखो, मस्त रहो। हम ऊपर से तो सावधान हो गए, परन्तु अन्दर से चाहते रहे। परमेश्वर तो अन्तर्यामी है। इन्होंने जान लिया कि ये यहाँ रखने के योग्य नहीं रहे। काल पुरुष (क्षर पुरुष = ज्योति निरंजन) ने जब दो बार तप करके फल प्राप्त कर लिया तब उसने सोचा कि अब कुछ जीवात्मा भी मेरे साथ रहनी चाहिए। मेरा अकेले का दिल नहीं लगेगा। इसलिए जीवात्मा प्राप्ति के लिए तप करना शुरु किया। 64 युग तक तप करने के पश्चात् परमेश्वर जी ने पूछा कि ज्योति निरंजन अब किसलिए तप कर रहा है? क्षर पुरुष ने कहा कि कुछ आत्माएं प्रदान करो, मेरा अकेले का
दिल नहीं लगता। सतपुरुष ने कहा कि तेरे तप के बदले में और ब्रह्माण्ड दे सकता हूं, परन्तु अपनी आत्माएं नहीं दूँगा। ये मेरे शरीर से उत्पन्न हुई हैं। हाँ, यदि वे स्वयं जाना चाहते हैं तो वह जा सकते हैं। युवा कविर् (समर्थ कबीर) के वचन सुनकर ज्योति निरंजन हमारे पास आया। हम सभी हंस आत्मा पहले से ही उस पर आसक्त थे। हम उसे चारों तरफ से घेरकर खड़े हो गए। ज्योति निरंजन ने कहा कि मैंने पिता जी से अलग 21 ब्रह्माण्ड प्राप्त किए हैं। वहाँ नाना प्रकार के रमणीय स्थल बनाए हैं। क्या आप मेरे साथ चलोगे? हम सभी हंसों ने जो आज 21 ब्रह्माण्डों में परेशान हैं, कहा कि हम तैयार हैं। यदि पिता जी आज्ञा दें, तब क्षर पुरूष(काल), पूर्ण ब्रह्म महान् कविर् (समर्थ कबीर प्रभु) के पास गया तथा सर्व वार्ता कही। तब कविरग्नि (कबीर परमेश्वर) ने कहा कि मेरे सामने स्वीकृति देने वाले को आज्ञा दूँगा। क्षर पुरूष तथा परम अक्षर पुरूष (कविर्िमतौजा) दोनों हम सभी हंसात्माओं के पास आए। सत् कविर्देव ने कहा कि जो हंसात्मा ब्रह्म के साथ जाना चाहता हैं, हाथ ऊपर करके स्वीकृति दें। अपने पिता के सामने किसी की हिम्मत नहीं हुई। किसी ने स्वीकृति नहीं दी। बहुत समय तक सन्नाटा छाया रहा। तत्पश्चात् एक हंस आत्मा ने साहस किया तथा कहा कि पिता जी मैं जाना चाहता हूँ। फिर तो उसकी देखा-देखी (जो आज काल(ब्रह्म) के इक्कीस ब्रह्माण्डों में फँसी हैं) हम सभी आत्माओं ने स्वीकृति दे दी। परमेश्वर कबीर जी ने ज्योति निरंजन से कहा कि आप अपने स्थान पर जाओ। जिन्होंने तेरे साथ जाने की स्वीकृति दी है, मैं उन सर्व हंस आत्माओं को आपके पास भेज दूँगा। ज्योति निरंजन अपने 21ब्रह्माण्डों में चला गया। उस समय तक यह इक्कीस ब्रह्माण्ड सतलोक में ही थे। तत्पश्चात् पूर्ण ब्रह्म ने सर्व प्रथम स्वीकृति देने वाले हंस को लड़की का रूप दिया परन्तु स्त्री इन्द्री नहीं रची तथा सर्व आत्माओं को (जिन्होंने ज्योति निरंजन (ब्रह्म) के साथ जाने की सहमति दी थी) उस लड़की के शरीर में प्रवेश कर दिया तथा उसका नाम आष्ट्रा (आदिमाया/प्रकृति देवी/दुर्गा) पड़ा तथा सत्यपुरूष ने कहा कि पुत्री मैंने तेरे को शब्द शक्ति प्रदान कर दी है। जितने जीव ब्रह्म कहे आप उत्पन्न कर देना। पूर्ण ब्रह्म कर्विदेव (कबीर साहेब) ने अपने पुत्र सहज दास के द्वारा प्रकृति को क्षर पुरूष के पास भिजवा दिया। सहज दास जी ने ज्योति निरंजन को बताया कि पिता जी ने इस बहन के शरीर में उन सब आत्माओं को प्रवेश कर दिया है, जिन्होंने आपके साथ जाने की सहमति व्यक्त की थी। इसको वचन शक्ति प्रदान की है, आप जितने जीव चाहोगे प्रकृति अपने शब्द से उत्पन्न कर देगी। यह कहकर सहजदास वापिस अपने द्वीप में आ गया। युवा होने के कारण लड़की का रंग-रूप निखरा हुआ था। ब्रह्म के अन्दर विषय-वासना उत्पन्न हो गई तथा प्रकृति देवी के साथ अभद्र गतिविधि प्रारम्भ की। तब दुर्गा ने कहा कि ज्योति निरंजन मेरे पास पिता जी की प्रदान की हुई शब्द शक्ति है। आप जितने प्राणी कहोगे मैं वचन से उत्पन्न कर दूँगी। आप मैथुन परम्परा शुरू मत करो। आप भी उसी पिता के शब्द से अण्डे से उत्पन्न हुए हो तथा मैं भी उसी परमपिता के वचन से ही बाद में उत्पन्न हुई हूँ। आप मेरे बड़े भाई हो, बहन-भाई का यह योग महापाप का कारण बनेगा। परन्तु ज्योतिनिरंजन ने प्रकृति देवी की एक भी प्रार्थना नहीं सुनी तथा अपनी शब्द शक्ति द्वारा नाखुनों से स्त्री इन्द्री (भग) प्रकृति को लगा दी तथा बलात्कार करने की ठानी। उसी समय दुर्गा ने अपनी इज्जत रक्षा के लिए कोई और चारा न देखकर सूक्ष्म रूप बनाया तथा ज्योति निरंजन के खुले मुख के द्वारा पेट में प्रवेश करके पूर्ण ब्रह्म कविर् देव से अपनी रक्षा के लिए याचना की। उसी समय कर्विदेव(कविर् देव) अपने पुत्रा योग संतायन अर्थात् जोगजीत का रूप बनाकर वहाँ प्रकट हुए तथा कन्या को ब्रह्म के उदर से बाहर निकाला तथा कहा ज्योति निरंजन आज से तेरा नाम ‘काल‘ होगा। तेरे जन्म-मृत्यु होते रहेंगे। इसीलिए तेरा नाम क्षर पुरूष होगा तथा एक लाख मानव शरीर धारी प्रणियों कोप्रतिदिन खाया करेगा व सवा लाख उत्पन्न किया करेगा। आप दोनों को इक्कीस ब्रह्माण्ड सहित निष्कासित किया जाता है। इतना कहते ही इक्कीस ब्रह्माण्ड विमान की तरह चलपड़े। सहज दास के द्वीप के पास से होते हुए सतलोक से सोलह शंख कोस (एक कोस लगभग 3 कि.मी. का होता है) की दूरी पर आकर रूक गए। विशेष विवरण:- अब तक तीन शक्तियों का विवरण आया है।
1. पूर्णब्रह्म जिसे अन्य उपमात्मक नामों से भी जाना जाता है, जैसे सतपुरूष, अकालपुरूष, शब्द स्वरूपी राम, परम अक्षर ब्रह्म/पुरूष आदि। यह पूर्णब्रह्म असंख्य ब्रह्माण्डों का स्वामी है तथा वास्तव में अविनाशी है।
2. परब्रह्म जिसे अक्षर पुरूष भी कहा जाता है। यह वास्तव में अविनाशी नहीं है। यह सात शंख ब्रह्माण्डों का स्वामी है।
3. ब्रह्म जिसे ज्योति निरंजन, काल, कैल, क्षर पुरूष तथा धर्मराय आदि नामों से जाना जाता है जो केवल इक्कीस ब्रह्माण्ड का स्वामी है। अब आगे इसी ब्रह्म (काल) की सृष्टि के एक ब्रह्माण्ड का परिचय दिया जाएगा जिसमें तीन और नाम आपके पढ़ने में आयेंगेः- ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव। ब्रह्म तथा ब्रह्मा में भेद - एक ब्रह्माण्ड में बने सर्वोपरि स्थान पर ब्रह्म (क्षर पुरूष) स्वयं
तीन गुप्त स्थानों की रचना करके ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव रूप में रहता है तथा अपनी पत्नी प्रकृति (दुर्गा) के सहयोग से तीन पुत्रों की उत्पत्ति करता है। उनके नाम भी ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव ही रखता है। जो ब्रह्म का पुत्रा ब्रह्मा है, वह एक ब्रह्माण्ड में केवल तीन लोकों (पृथ्वी लोक, स्वर्ग लोक तथा पाताल लोक) में एक रजोगुण विभाग का मंत्री (स्वामी) है। इसे त्रिलोकिय ब्रह्मा कहा है तथा ब्रह्म जो ब्रह्मलोक में ब्रह्मा रूप में रहता है, उसे महाब्रह्मा व ब्रह्मलोकिय ब्रह्मा कहा है। इसी ब्रह्म (काल) को सदाशिव, महाशिव, महाविष्णु भी कहा है। श्री विष्णु पुराण में प्रमाण:- चतुर्थ अंश अध्याय 1 पृष्ठ 230-231 पर श्री ब्रह्मा जी ने कहाः-
जिस अजन्मा सर्वमय विधाता परमेश्वर का आदि, मध्य, अन्त, स्वरूप, स्वभाव और सार हम नहीं जान पाते।(श्लोक 83)
जो मेरा रूप धारण कर संसार की रचना करता है, स्थिति के समय जो पुरूष रूप है तथा जो रूद्र रूप से विश्व का ग्रास कर जाता है, अनन्त रूप से सम्पूर्ण जगत् को धारण करता है।(श्लोक 86)

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23/03/2023
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22/03/2023


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 Sant Rampal Ji Maharaj wants everyone of us to consider other women as daughter, sister and mother according to their a...
19/03/2023



Sant Rampal Ji Maharaj wants everyone of us to consider other women as daughter, sister and mother according to their age so as to build a good society.

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14/03/2023

#सतभक्ति_से_सर्व_सुख
Not only one but there are thousands of instances of the cure of the cancer disease among the devotees of Sant Rampal Ji Maharaj.
SA True Story

 #सर्वशक्तिमान_कबीरभगवानWe are in the earth now & this earth also belongs to Kaal/Devil,He has given some facility to co...
10/03/2023

#सर्वशक्तिमान_कबीरभगवान
We are in the earth now & this earth also belongs to Kaal/Devil,He has given some facility to complete own selfishness for us.But given for us more problems from facility.While there is no problem in Satlok & its owner is also Kabir Good

 #राम_रंग_होरी_होSant Rampal Ji Maharaj True way ofworship granted by True Guru Sant Rampal Ji Maharaj is the only way t...
07/03/2023

#राम_रंग_होरी_हो

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worship granted by True Guru Sant Rampal Ji Maharaj is the only way to attain Supreme happiness in Satlok which is Eternal and everlasting.
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