Prayag Prashasti प्रयाग प्रशस्ति

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06/05/2025

पाकिस्तान ने दो एयरपोर्ट 48 घंटे के लिए बंद करने की घोषणा की।

06/05/2025

पाकिस्तान के बहावलपुर, कोटली और मुजफ्फराबाद में भारतीय सेना ने की एयरस्ट्राइक

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07/04/2025

लद्दाख बाइक ट्रिप — सिर्फ़ एक सफ़र नहीं, ज़िंदगी का सबसे यादगार अनुभव!
पेट्रोल से लेकर परांठों तक, होमस्टे से लेकर हाईवे तक, हर मोड़ पर एक नई कहानी मिली।
खर्चे तो हुए, लेकिन जो यादें बनीं, वो अनमोल हैं।
अगर आप भी प्लान कर रहे हैं लद्दाख ट्रिप, तो जानिए पूरा बजट — ट्रैवल, फूड, स्टे, पेट्रोल और भी बहुत कुछ!

प्रयागराज में 2025 के महाकुंभ को और भी विशेष बनाने के लिए इस बार रेलवे और प्रशासन ने बहुभाषी सेवाओं का विस्तार किया है। ...
19/11/2024

प्रयागराज में 2025 के महाकुंभ को और भी विशेष बनाने के लिए इस बार रेलवे और प्रशासन ने बहुभाषी सेवाओं का विस्तार किया है। पहली बार रेलवे स्टेशनों पर 10 से अधिक भाषाओं में अनाउंसमेंट की सुविधा दी जाएगी, जिनमें हिंदी, अंग्रेजी के साथ गुजराती, मराठी, तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, बंगाली, असमिया, उड़िया और पंजाबी शामिल हैं। यह कदम लाखों श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए उठाया गया है, ताकि उन्हें अपनी भाषा में ट्रेनों और अन्य सुविधाओं की जानकारी आसानी से मिल सके​​।

इसके अलावा, डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल भी बड़े पैमाने पर किया जाएगा। श्रद्धालुओं की सहायता के लिए AI आधारित “कुंभ सहायक” चैटबॉट पेश किया जाएगा, जो हिंदी और अन्य भाषाओं में महाकुंभ से जुड़ी जानकारियां देगा। यह चैटबॉट गूगल नेविगेशन से लैस होगा, जिससे श्रद्धालु स्नान घाट, पार्किंग स्थल और अन्य महत्वपूर्ण स्थानों तक आसानी से पहुंच पाएंगे​​।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय, जिसे अक्सर "पूर्व का ऑक्सफोर्ड" कहा जाता है, भारत के सबसे प्रतिष्ठित और प्राचीन विश्वविद्यालयों ...
02/09/2024

इलाहाबाद विश्वविद्यालय, जिसे अक्सर "पूर्व का ऑक्सफोर्ड" कहा जाता है, भारत के सबसे प्रतिष्ठित और प्राचीन विश्वविद्यालयों में से एक है। इसकी स्थापना 23 सितंबर 1887 को हुई थी, और यह देश के चौथे सबसे पुराने विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है। विश्वविद्यालय का मुख्य परिसर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (पहले इलाहाबाद) शहर में स्थित है, जो अपने शैक्षिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है
इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना 1867 में मुइर सेंट्रल कॉलेज के रूप में हुई थी, जो बाद में 1887 में एक पूर्ण विश्वविद्यालय में परिवर्तित हुआ। इसके संस्थापक सर विलियम मुइर थे, जो उस समय उत्तर पश्चिमी प्रांतों के लेफ्टिनेंट गवर्नर थे। मुइर कॉलेज की स्थापना का उद्देश्य उच्च शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता और उत्कृष्टता प्रदान करना था।

विशेष रूप से, विश्वविद्यालय ने कई प्रसिद्ध शिक्षाविदों, राजनेताओं, न्यायविदों, और साहित्यकारों को तैयार किया है, जिन्होंने न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, स्वतंत्रता सेनानी पुरुषोत्तम दास टंडन, और लेखक हरीवंश राय बच्चन जैसे कई महान व्यक्तित्व इलाहाबाद विश्वविद्यालय से जुड़े रहे हैं।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय का परिसर बहुत ही सुंदर और ऐतिहासिक है। यहाँ के भवनों का वास्तुकला ब्रिटिश और भारतीय शैली का मिश्रण है, जो इसे अद्वितीय बनाता है। विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में लाखों किताबें और पत्रिकाएं हैं, जो छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए एक अमूल्य संसाधन हैं। इसके अलावा, विश्वविद्यालय में विभिन्न शोध केंद्र, खेल सुविधाएं, और छात्रावास भी हैं, जो छात्रों के सर्वांगीण विकास में सहायता करते हैं।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय का छात्र जीवन बहुत ही समृद्ध और विविधतापूर्ण है। यहाँ पर छात्रों को न केवल अकादमिक उत्कृष्टता के लिए प्रेरित किया जाता है, बल्कि उन्हें विभिन्न सांस्कृतिक, सामाजिक, और खेलकूद गतिविधियों में भाग लेने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता है। विश्वविद्यालय में नियमित रूप से विभिन्न सांस्कृतिक और साहित्यिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जो छात्रों के मानसिक और रचनात्मक विकास में मदद करते हैं।

प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्राचीन और पवित्र शहर है। यह शहर ...
01/09/2024

प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्राचीन और पवित्र शहर है। यह शहर तीन नदियों—गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर स्थित है, जिसे त्रिवेणी संगम कहा जाता है। यह स्थान धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है और यहां हर 12 साल में कुंभ मेला आयोजित किया जाता है, जो दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है।

कहानी की शुरुआत होती है आदित्य से, जो एक युवा पत्रकार है और दिल्ली में एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र के लिए काम करता है। उसकी जिंदगी व्यस्तताओं से भरी हुई है, लेकिन उसके दिल में हमेशा से एक खास स्थान के प्रति आकर्षण था—प्रयागराज। वह हमेशा से इस शहर की सांस्कृतिक धरोहर और आध्यात्मिक महत्व के बारे में सुनता आया था, लेकिन कभी यहां आ नहीं पाया था।

एक दिन, उसे अपने अखबार की ओर से कुंभ मेले की रिपोर्टिंग के लिए प्रयागराज भेजा गया। आदित्य के लिए यह एक सपना सच होने जैसा था। जैसे ही वह प्रयागराज पहुंचा, उसे इस शहर की पवित्रता और शांति का अनुभव हुआ। संगम पर स्नान करने का उसका सपना जल्द ही पूरा हुआ, जब उसने त्रिवेणी संगम के पवित्र जल में डुबकी लगाई। उस समय उसे एक अद्भुत अनुभूति हुई, मानो उसके सारे पाप धुल गए हों और वह एक नई ऊर्जा से भर गया हो।

प्रयागराज में रहते हुए, आदित्य ने न केवल कुंभ मेले की धार्मिकता को समझा, बल्कि इस शहर के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को भी जाना। उसने देखा कि कैसे लाखों लोग आस्था और भक्ति से प्रेरित होकर यहां आते हैं। संगम पर बैठकर उसने अनेक साधुओं और संतों से बात की, जो उसे जीवन की गहराइयों के बारे में बताते। इन सभी अनुभवों ने आदित्य के भीतर एक नया दृष्टिकोण उत्पन्न किया।

शहर की गलियों में घूमते हुए, आदित्य ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय, आनंद भवन, और खुसरो बाग जैसे ऐतिहासिक स्थलों का दौरा किया। इन स्थानों ने उसे इस शहर की महानता और गौरवशाली इतिहास के बारे में बताया। उसे यह जानकर भी गर्व हुआ कि यह शहर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुका है।

प्रयागराज में कुछ दिन बिताने के बाद, आदित्य को लगा कि वह सिर्फ एक रिपोर्टर नहीं, बल्कि एक तीर्थयात्री बन गया है। उसने अपने भीतर एक अद्भुत शांति और संतोष महसूस किया। जब वह वापस दिल्ली लौटा, तो उसके लेखों में केवल तथ्यों की जानकारी नहीं थी, बल्कि एक गहरी भावनात्मक गहराई भी थी, जिसे उसने प्रयागराज में अनुभव किया था।

आदित्य के लिए यह यात्रा जीवन बदलने वाली साबित हुई। उसने जाना कि प्रयागराज केवल एक शहर नहीं है, बल्कि एक ऐसी धरोहर है जो सदियों से भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का केंद्र रहा है। यहां का हर कोना, हर गली, एक कहानी कहता है, जो इस शहर के अपार महत्व को दर्शाता है।

इस यात्रा के बाद आदित्य ने ठान लिया कि वह हर साल प्रयागराज आएगा और इस पवित्र धरती के स्पर्श से अपने जीवन को और भी समृद्ध बनाएगा।

खुसरोबाग, प्रयागराज का एक ऐतिहासिक स्थल है, जो मुगलकाल की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को संजोए हुए है। यह बाग मुगल शहज़ादे ख...
31/08/2024

खुसरोबाग, प्रयागराज का एक ऐतिहासिक स्थल है, जो मुगलकाल की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को संजोए हुए है। यह बाग मुगल शहज़ादे खुसरो मिर्जा के नाम पर बनाया गया था, जो सम्राट जहाँगीर के पुत्र और अकबर के पौत्र थे। खुसरोबाग न केवल अपनी खूबसूरती और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके पीछे एक दुखभरी कहानी भी छिपी है।

कहानी उस समय की है, जब जहाँगीर ने सत्ता संभाली थी। खुसरो, जो अकबर के दुलारे थे, अपने पिता जहाँगीर के खिलाफ विद्रोह करने की कोशिश की थी। खुसरो को उम्मीद थी कि वे अपने नाना अकबर के समर्थन से सिंहासन पर बैठेंगे। लेकिन उनकी योजना विफल हो गई और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

कैद में रहते हुए खुसरो की मां, शाह बेगम, अपने बेटे की दुर्दशा से अत्यंत दुखी थीं। उन्होंने अपने बेटे को छुड़ाने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन सब असफल रहे। धीरे-धीरे खुसरो की स्थिति और भी गंभीर होती गई। एक दिन, शाह बेगम ने अपने बेटे की स्थिति देखी और गहरे दुख में आत्महत्या कर ली।

शाह बेगम की मृत्यु के बाद, खुसरो का जीवन और भी कठिन हो गया। कैद में रहते हुए, उसे अपने परिवार के लोगों का साथ नहीं मिला और अंततः अपने ही भाई शाहजहां के आदेश पर उसकी हत्या कर दी गई। खुसरो की मृत्यु के बाद, उन्हें और उनकी मां को इसी खुसरोबाग में दफनाया गया।

खुसरोबाग में तीन प्रमुख मकबरे हैं - खुसरो का, उनकी मां शाह बेगम का, और उनकी बहन निसार बेगम का। ये मकबरे मुगलकालीन वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण हैं, जिन पर सुंदर नक्काशी और डिजाइन की गई है। यह बाग आज भी उन घटनाओं की गवाह है, जो खुसरो के जीवन में घटित हुईं।

खुसरोबाग की शांति और उसकी हरियाली, आज भी वहां आने वाले लोगों को एक अलग ही अनुभव कराती है। यह जगह न केवल एक ऐतिहासिक धरोहर है, बल्कि एक यादगार स्थल भी है, जो मुगल शहजादे खुसरो की संघर्षमयी जीवन कथा को हमेशा के लिए जीवित रखता है। यहाँ आने वाले लोग इन मकबरों को देखकर खुसरो और उनके परिवार के दुखद अतीत को महसूस करते हैं और इस बाग की सुंदरता में खो जाते हैं।

प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदियों के संगम के लिए प्रसिद्ध है। ...
31/08/2024

प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदियों के संगम के लिए प्रसिद्ध है। इस संगम स्थल को हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। कहा जाता है कि यहां पर स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

सर्दियों की एक सुबह थी, जब सूरज की किरणें धुंधली रोशनी में संगम के पानी पर चमक रही थीं। दूर-दूर से श्रद्धालु यहां स्नान करने के लिए आए थे। संगम के किनारे एक वृद्ध महिला, जिसकी आंखों में एक अनोखी चमक थी, अपने पोते के साथ बैठी थी। वह उस जगह को देख रही थी जहां तीन नदियां मिलती हैं। उसकी नजरों में गहरा विश्वास था और मन में अटूट श्रद्धा।

वृद्धा ने अपने पोते को बताया, "बेटा, ये वही जगह है जहां ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। कहते हैं कि सरस्वती नदी, जो अब दृष्टिगोचर नहीं होती, इसी संगम में गुप्त रूप से बहती है।"

पोते ने उत्सुकता से पूछा, "दादी, क्या सच में ये जगह इतनी पवित्र है?"

दादी ने मुस्कुराते हुए कहा, "हाँ बेटा, यहां पर स्नान करने से आत्मा शुद्ध होती है। इस संगम का महत्व सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि जीवन को एक नई दिशा देने वाला है।"

सूर्य की किरणें अब और तेज़ हो चुकी थीं, और संगम का दृश्य और भी मनमोहक लग रहा था। वृद्धा ने अपने पोते का हाथ पकड़ा और उसे संगम में स्नान करने के लिए ले गई। गंगा और यमुना की ठंडी धाराओं में जैसे ही वे उतरे, एक अजीब सी शांति और पवित्रता उनके मन में समा गई।

जब वे संगम से बाहर आए, तो वृद्धा ने महसूस किया कि उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य पूरा हो गया है। उनके पोते ने भी अपनी दादी की आंखों में वो गहराई देखी, जो केवल श्रद्धा और विश्वास से ही उत्पन्न होती है। उस पल, संगम के तट पर खड़े होकर, दोनों ने इस पवित्र भूमि की महिमा को हृदय से महसूस किया।

प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, भारत के सबसे प्राचीन और पवित्र शहरों में से एक है। यहाँ का त्रिवेण...
31/08/2024

प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, भारत के सबसे प्राचीन और पवित्र शहरों में से एक है। यहाँ का त्रिवेणी संगम हिन्दू धर्म के श्रद्धालुओं के लिए अत्यधिक महत्व रखता है। त्रिवेणी संगम वह स्थान है जहाँ तीन पवित्र नदियाँ—गंगा, यमुना, और अदृश्य सरस्वती—आपस में मिलती हैं। यह संगम न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह इतिहास, संस्कृति, और आध्यात्मिकता का अद्वितीय संगम भी है।

सुबह की पहली किरण के साथ ही संगम तट पर एक अजीब सा सन्नाटा छा जाता है। उस शांत वातावरण में बस नदी की हल्की-हल्की धारा की आवाज़ सुनाई देती है। श्रद्धालु स्नान के लिए आते हैं, अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए। ऐसा माना जाता है कि यहाँ स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं और आत्मा पवित्र हो जाती है।

संगम का दृश्य हर सुबह एक नई कहानी कहता है। कुछ लोग गंगा में डुबकी लगाते हैं, तो कुछ यमुना के किनारे बैठकर ध्यान करते हैं। वहीं, कुछ लोग अदृश्य सरस्वती की तलाश में अपनी आँखें बंद कर लेते हैं। यह स्थान उन सभी के लिए एक आश्रय स्थल है, जो अपनी आत्मा की शांति की खोज में हैं।

एक बार की बात है, एक वृद्ध संत संगम तट पर पहुँचे। उन्होंने जीवन भर तपस्या की थी, पर उनकी आत्मा को अभी भी शांति नहीं मिली थी। उन्होंने सोचा कि शायद संगम में स्नान करने से उन्हें मुक्ति मिल जाएगी। संत ने गंगा, यमुना, और सरस्वती का ध्यान किया और धीरे-धीरे जल में डुबकी लगाई। जैसे ही उन्होंने डुबकी लगाई, उनकी आँखों के सामने पूरा जीवन चलचित्र की तरह चलने लगा। उन्हें अपने सभी कर्मों का एहसास हुआ। लेकिन उस पल में, जब उन्होंने अपने ह्रदय से क्षमा माँगी, तो उन्हें एक अद्वितीय शांति का अनुभव हुआ। संत ने महसूस किया कि यह सिर्फ जल का संगम नहीं था, यह उनकी आत्मा का संगम था।

संगम के तट पर शाम की आरती होती है। दीपक की रोशनी और मंत्रोच्चार का मिलन वातावरण को और भी पवित्र बना देता है। संत ने आरती में हिस्सा लिया और उनके मन में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ। उन्होंने जाना कि त्रिवेणी संगम केवल एक स्थान नहीं है, बल्कि यह एक यात्रा है—आत्मा की, मन की, और भक्ति की।

प्रयागराज का त्रिवेणी संगम सदियों से इस धरती पर मानवता को यही संदेश देता आ रहा है: यहाँ केवल नदियों का संगम नहीं, बल्कि आत्माओं का भी संगम होता है।

23/08/2024

Beautiful Rashtrapati Bhawan

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