Parimal Prakashan

Parimal Prakashan कुछ किस्से कुछ बातें....

 #सादरआभारसुधीरसिंहभईयाहिन्दी के कालजयी कवि केदारनाथ अग्रवाल के 114वें जन्मदिन पर बांदा जिला न्यायालय परिसर में  बौद्धिक...
03/04/2025

#सादरआभारसुधीरसिंहभईया
हिन्दी के कालजयी कवि केदारनाथ अग्रवाल के 114वें जन्मदिन पर बांदा जिला न्यायालय परिसर में बौद्धिक समुदाय और अधिवक्ताओं ने रचनात्मक रूप से याद किया।
बुंदेली के मशहूर कवि महेश कटारे सुगम ने अपनी हिंदी और बुंदेली कविताओं और गजलों के माध्यम से अपने अग्रज कवि का स्मरण किया और सराहे गए।
सुगम जी ने ' ऐसों कबों मुकद्दर होइहै / पंच सबै पथरा हो जैहाँ/ऐसों नहि जानत तों ' और ' पथरा मारो खून न निखरे का मतलब ' , कौल - वादा- वफ़ा- इकरार की ऐसी - तैसी ' आदि कविताओं - गजलों का पाठ करके श्रोताओं को अपने साथ बांधा।
इस अवसर पर परिमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित डॉ सुधीर अवस्थी की नव प्रकाशित पुस्तक ' औदात्य के कवि केदार नाथ अग्रवाल ' का विमोचन भी उपस्थित रचनाकारों ने किया।
वरिष्ठ कवि प्रो. चंद्रिका प्रसाद दीक्षित ' ललित ' ने केदार के काव्य वैशिष्ट्य पर टिप्पणी करते हुए सुगम जी को बुंदेली गज़ल का जनक बताया।
अधिवक्ता संघ के पूर्व अध्यक्ष रणवीर सिंह चौहान और अशोक त्रिपाठी ' जीतू ' , एजाज अहमद ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया।
आयोजन की अध्यक्षता अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष द्वारिकेश यादव मंडेला, संचालन जनवादी लेखक संघ के सुधीर सिंह ने और धन्यवाद ज्ञापन प्रतीक फाउंडेशन के संयोजक मयंक खरे ने किया।
उपस्थित लोगों में डॉ राम गोपाल गुप्त, डॉ अश्वनी कुमार शुक्ल, गोपाल गोयल, जवाहर लाल जलज, प्रेम सिंह, पुष्पेंद्र भाई, नारायण दास गुप्त , परिमल प्रकाशन के अंकुर सहाय, राजीव गुप्ता , अनूप राज सिंह आदि मुख्य थे।
#सुधीरसिंह
BookwalaPrayagraj

Mahesh Katare Sugam
Mayank Khare
Prem Singh
Sudhir Awasthi

 #डॉ०सुधीरकुमारअवस्थी सर की वर्ष 2025 की प्रकाशित पुस्तक "औदात्य के कवि केदारनाथ अग्रवाल" आपके नवीन संस्करण के लिये आपको...
03/03/2025

#डॉ०सुधीरकुमारअवस्थी सर की वर्ष 2025 की प्रकाशित पुस्तक "औदात्य के कवि केदारनाथ अग्रवाल" आपके नवीन संस्करण के लिये आपको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
केदारनाथ अग्रवाल प्रगतिवादी काव्य धारा के प्रमुख हस्ताक्षर हैं। उनका संपूर्ण काव्य अखंड मानवीय दृष्टिकोण का सुंदरतम और सर्वोत्तम चित्र प्रस्तुत करता है। उनकी कविताओं में जहां एक और मिट्टी की सोंधी महक है तो वहीं दूसरी ओर लोक संवेदना और लोक सौंदर्य का ललित समन्वय भी है। केदार के काव्य का केंद्र मानवीय संवेदना की लोकवादी अभिव्यक्ति है जिसका उद्देश्य मानव मूल्यों का निर्माण करना है। वे सच्चे अर्थों में प्रगतिशील कवि थे, क्योंकि उनकी कविता जन सामान्य के विविध स्तरीय संघर्ष और ग्रामीण सामाजिक चेतना का हार्दिक आख्यान है। लोक जीवन का वास्तविक स्वरूप उत्साह और उमंग के साथ उनके काव्य में अभिव्यक्त हुआ है। लोकजीवन, लोकसंघर्ष, तथा प्रकृति एवं मानव सौंदर्य के प्रति उनमें गहन अनुराग है। प्रत्यक्षतः केदारनाथ अग्रवाल प्रगतिशील आंदोलन की देन हैं, बावजूद इसके उनकी कविता में जीवन के सभी रंग विद्यमान हैं। एक ओर जहाँ उनके काव्य में देश प्रेम की क्रांतिकारी परंपरा परिलक्षित होती है, तो वही दूसरी ओर सौंदर्य और प्रेम के संस्कार भी दृष्टिगोचर होते हैं। इन दोनों की प्रेरणा कवि को आरंभिक जीवन से मिली है। उनके जीवन का एक छोर यदि प्रकृति प्रेम एवं सौंदर्य से बंधा है तो दूसरा छोर देश और समाज से।

केदारनाथ अग्रवाल के समर्थ आलोचक डॉ. रामविलास शर्मा का यह कथन अक्षरशः सत्य है कि 'केदार केवल आंदोलन के कवि नहीं है, वह उन सब के कवि हैं जिसे मनुष्य आंदोलन से प्राप्त करना चाहता है।' केदार का काव्य ऐसा है जिसमें सभी के लिए स्थान है। वास्तविकता से परखा जाए तो केदारनाथ अग्रवाल ने जीवन के उन सभी पक्षों को अभिव्यक्ति दी है जो भारतीय जनमानस के साथ किसी न किसी रूप में अवश्य जुड़े हुए हैं। चाहे प्रेम या शृंगार हो, मानव जीवन के दुख-सुख या श्रम से पस्त जीवन हो, चाहे क्रूर व्यवस्था के पाखंड हों या प्रजातंत्र का खोखला चेहरा, और इन सबसे भिन्न प्रकृति के सभी उपादानों पर न्योछावर कवि की अनुभूति की वह अप्रतिम मानवी संसक्ति जो जीवन को नई चेतना से अनुप्राणित कर देती है। जीवन उनकी कविता से कभी दूर नहीं रहा। जनजीवन का ऐसा कोई विषय नहीं जो उनकी काव्य परिधि से बाहर रहा हो। उनकी कविताएं निश्छल हृदय की सहज अभिव्यक्तियां हैं। उनका रचना काल इतना विस्तृत होते हुए भी वे कभी अपनी मूल मानवतावादी काव्यचेतना से विलग नही हुए। पेशे से वकील होते हुए भी उनकी वकालत ने कभी भी उन्हें जनजीवन की आशा आकांक्षाओं उनके दुख- सुख से दूर नहीं किया। वकालत का पेशा कभी उनके लिए रुकावट नहीं बना, बल्कि वह उन्हें निरंतर ऊर्जस्वित करता रहा।... Banti Verma Vinay Mishra Jai Patel CyberOfficer Rajesh Singh Sevaram Tripathi Jai Prakash Singh Sudhir Singh

वर्ष 2025 की नवीनतम पुस्तक।भारत में मानव एवं उनके समाज का अध्ययन किसी न किसी रूप में मनु के समय से ही प्रारंभ हो चुका था...
09/01/2025

वर्ष 2025 की नवीनतम पुस्तक।
भारत में मानव एवं उनके समाज का अध्ययन किसी न किसी रूप में मनु के समय से ही प्रारंभ हो चुका था, परन्तु प्रामाणिक एवं वैज्ञानिक ढंग पर उनका अध्ययन हाल ही में प्रारंभ हुआ है। अंग्रेज शासकों ने अपनी शासन सत्ता की जड़ मजबूत करने के लिए जातियों एवं जनजातियों की संस्कृति का ज्ञान रखना आवश्यक समझा, और इसी दृष्टिकोण से उनका अध्ययन 18वीं सदी के अन्त से प्रारंभ हुआ।
वैसे तो मानव मात्र का अध्ययन ही मानवविज्ञान का विषय क्षेत्र कहा जाता है, किन्तु मानवविज्ञान का जन्म लगभग 100 वर्ष पूर्व जिन परिस्थितियों में हुआ, उनमें यूरोपियन, मानववैज्ञानिक अधिकांशतः ऐसे अन्य महादेश के वासियों का अध्ययन करते थे, जो सामाजिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से यूरोप की तुलना में अति पिछड़े हुए थे। इस प्रकार एशिया और अफ्रीका, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और द्वीपसमूहों के आदिवासियों के सांस्कृतिक अध्ययन से सामाजिक, सांस्कृतिक मानवविज्ञान की परंम्परा में जुड़ गये। इसके कई कारण थे- इन आदिम जातियों अथवा आदिवासी कबीले का सामाजिक जीवन छोटे पैमाने पर सरल और संगठित है। प्रशासकों के लिए शासित लोगों की सांस्कृतिक और सामाजिक संरचना का ज्ञान आवश्यक था, जिससे शासन अध्ययन सुगम ढंग से चलाया जा सके, और इन्ही उद्देश्यों से प्रेरित होकर अंग्रेज सैनिक अधिकारियों और प्रशासकों ने अपने भारतीय साम्राज्य में बिखरी आदिवासियों की संस्कृति का अध्ययन किया। इस प्रकार देश में सांस्कृतिक, सामाजिक अध्ययनों का महत्त्व सैद्धान्तिक विज्ञान की तरह है, और व्यवहारिक भी है। आज सभी समाजों में मानववैज्ञानिक या मानवशास्त्री यह स्वीकार करने लगे हैं, कि मानवीय ज्ञान का विकास अनुभव सिद्ध अध्ययनों में व्याप्त अत्यधिक विविधता पूर्ण एवं जटिल तथ्यों को तभी समझा जा सकता है, जब प्राथमिक रूप से उनका अवलोकन कर निष्कर्ष प्रस्तुत किया जाय।.....
BookwalaPrayagraj Kitab Mela पुस्तकविश्व

01/01/2025

नया साल नई उम्मीदें ले आएं।
जीवन में खुशियां छा जाए
हर दिन हँसते मुस्कुराते बीत जाये
नया साल त्योहार जैसा हो जाये।
नये वर्ष की हार्दिक बधाई।

29/12/2024

प्रयागराज पुस्तक मेला 2024 का कल समापन।
#पुस्तक BookwalaOnline

10/11/2024

केदारनाथ अग्रवाल और उनके उनकी कविता : विविध आयाम
शोध परक पुस्तक में शोध आलेख प्रकाशन हेतु-

https://www.facebook.com/share/p/17XYLTmSi2/?mibextid=oFDknk

08/11/2024

(कवि केदारनाथ अग्रवाल)
केदार बाबा की कुछ ऐसी तस्वीरें जो के शायद उनके परिजनों के पास भी न होंगी। ज़रूरी नही के आपका किसी के प्रति स्नेह तभी हो, की जब आपका उस व्यक्ति के कोई विशेष लाभ या कोई रिश्ता हो, कुछ लोग ऐसे भी होतें है, जिनसे आत्मीय लगाव होता है, और वह आपके हृदय के करीब रहता है।
Shresth Bhargava Banti Verma Vivek Nirala Sudhir Singh Sevaram Tripathi Shiv Kumr Mehta Saket Pathak Susmita Yadav Mitali Kumaar Pramod Kumar Srivastava

 #शोधआलेखआमंत्रणकेदारनाथ अग्रवाल और उनकी कविता : विविध आयामकेदारनाथ अग्रवाल आधुनिक हिन्दी कविता के ऐसे विरले कवि हैं जिन...
08/11/2024

#शोधआलेखआमंत्रण
केदारनाथ अग्रवाल और उनकी कविता : विविध आयाम
केदारनाथ अग्रवाल आधुनिक हिन्दी कविता के ऐसे विरले कवि हैं जिनका काव्य भारतीय जन जीवन के उन सभी पक्षों को स्पर्श करता है जो हम सभी के साथ अनुस्यूत हैं । उनकी कविता सच्चे अर्थों में जीवन की कविता है। मार्क्सवादी विचारधारा से प्रेरित होते हुए भी उन्होंने विचारधारा के तर्क एवं भाषिक उतावलेपन से अपनी काव्य संवेदना को बचा कर रखा है। यथार्थवादी दृष्टिकोण से अनुप्राणित होते हुए भी उनकी काव्य संवेदना केवल 'सत्यम' की ही नहीं बल्कि 'शिवम' और 'सुंदरम' की भी संपोषिका है। उनकी कविता जहां एक ओर यथार्थवादी दृष्टि से ऊर्जा प्राप्त करती हुई शोषण के विरुद्ध आक्रोश को व्यक्त करती है, वहीं दूसरी ओर श्रमजीवी के प्रति गहरी सहानुभूति भी व्यक्त करती है। उनकी कविता न केवल राजनीति बल्कि प्रेम, प्रकृति, और लोक जीवन के अनेक रंगों से अनुप्राणित कविता है।
केदारनाथ अग्रवाल की वैचारिकता का प्रस्थान बिंदु निश्चित रूप से मार्क्सवादी विचारधारा को माना जा सकता है, किंतु उन्होंने कभी भी अपनी काव्य संवेदना को किसी विचारधारा का कैदी नहीं बनने दिया। उनकी काव्य संवेदना के संबंध में डॉ. अशोक त्रिपाठी का यह कथन उल्लेखनीय है कि केदार जी के पाठक कभी भी उन्हें एक सांचे में कैद नहीं कर सकते। कोई उन्हें ग्रामीण चेतना का कवि मानता है, तो कोई नगरीय का। कोई उन्हें सौंदर्य का कवि मानता है, तो कोई संघर्ष का। कोई उन्हें राजनीतिक चेतना का कवि मानता है, तो कोई प्रकृति चेतना का। कोई उनके काव्य में मनुष्यता की खोज को रेखांकित करता है, तो कोई उन्हें लोकजीवन का चितेरा मानता है। वस्तुतः केदार जी के काव्य की वैचारिकता किसी एक धरातल पर आधारित नहीं है। वे खंड- खंड जीवन के नहीं बल्कि सामाजिक सरोकारों से संपन्न जीवन की पूर्णता के कवि हैं। इसीलिए उनकी कविताओं में जहां जीवन संघर्ष एवं उसकी विसंगतियों का स्वर प्रमुख है तो वहीं श्रम सौंदर्य से लेकर मानव एवं प्रकृति सौंदर्य का राग भी है। उनकी प्रगतिशीलता अन्य प्रगतिशील कवियों से निराली है। वे प्रगतिवादी होते हुए भी कवि हृदय हैं।
अनुभूति की प्रामाणिकता केदारनाथ अग्रवाल की कविता का विशेष गुण है। उनकी कविता में अनुभूति की सच्चाई का यह गुण उनकी लोक सम्पृक्ति के कारण उत्पन्न हुआ है। उनकी कविता में विषय कुछ भी रहा हो किंतु सभी में उनकी मूल संवेदना मनुष्यता से कभी विलग नहीं हुयी। उनकी कविता में मानव प्रेम का वर्णन हो या प्रकृति प्रेम का वर्णन हो, वर्ग संघर्ष और सामाजिक वैषम्य की अभिव्यक्ति हो, श्रम सौन्दर्य या उसकी महिमा का चित्रण हो, उनकी दृष्टि हमेशा जीवन दर्शन से संपृक्त रही है। केदारनाथ अग्रवाल के समर्थ आलोचक डॉ. रामविलास शर्मा का यह कथन अक्षरशः सत्य है कि 'केदार केवल आंदोलन के कवि नहीं है, वह उन सब के कवि हैं जिसे मनुष्य आंदोलन से प्राप्त करना चाहता है।'
केदारनाथ अग्रवाल की कविता का शिल्प पक्ष भी उनके संवेदना पक्ष की तरह विविधता पूर्ण है। भाव बोध और शिल्प विधान दोनों का औचित्यपूर्ण सामंजस्य ही उदात्त काव्य का प्राण है । महान रचनाकार इस परिप्रेक्ष्य में सजग रहता है कि उसके द्वारा अपनाया जा रहा शिल्प विधान, रचना को प्रभावी बना सकता है अथवा नहीं। केदार की कविता की दृष्टि इस विषय में बहुत स्पष्ट है। उनका मानना है कि आस्वाद की प्रक्रिया चाहे जैसी हो कृतिकार और पाठक दोनों सह आस्वादी होते हैं।
केदारनाथ अग्रवाल की दृष्टि यथास्थितिवादी कभी नहीं रही, बल्कि समतामूलक समाज की स्थापना के लिए वे परिस्थितियों में बदलाव के प्रबल समर्थक रहे हैं । परिवर्तनकामी व्यक्तित्व के बावजूद यह सुखद आश्चर्य है कि उनके जीवन काल में उनका सम्पूर्ण साहित्य परिमल प्रकाशन इलाहाबाद से ही प्रकाशित हुआ। लेखक और प्रकाशन संस्थान के बीच ऐसा अनन्य प्रेम वास्तविकता में दुर्लभ है। परिमल प्रकाशन के संस्थापक स्व० शिवकुमार सहाय एवं केदार जी का पारस्परिक अनन्य स्नेह आजीवन बना रहा। परिमल प्रकाशन के लोगो में केदार जी छवि आज भी उस पारस्परिक स्नेह की संवाहक बनी हुयी है। स्व० शिवकुमार सहाय के पौत्र श्री अंकुर शर्मा सहाय परिमल प्रकाशन के माध्यम से आज भी केदार जी के प्रति उस स्नेह परम्परा का निर्वहन कर रहे हैं। उनके सहयोग से "केदारनाथ अग्रवाल और उनकी कविता : विविध आयाम" शीर्षक से एक शोध परक संपादित ISBN पुस्तक के प्रकाशन की योजना है। यह एक ऐसा अनुष्ठान है जो आप सभी प्रबुद्ध प्राध्यापकों, अध्येताओं, शिक्षाविदों व शोधार्थियों के विषय से संबंधित मौलिक शोध आलेखों की अमूल्य आहुति के बिना पूर्ण होना संभव नहीं है। विषय से संबंधित मौलिक शोध आलेख आमंत्रित हैं।
संपादक:- डॉ. सुधीर कुमार अवस्थी

कुछ ख़ास...
04/10/2024

कुछ ख़ास...

पुस्तक समीक्षा:- केदारनाथ अग्रवाल का साहित्यिक वैशिष्ट्यलेखक:- डॉo साकेत कुमार पाठक
04/10/2024

पुस्तक समीक्षा:- केदारनाथ अग्रवाल का साहित्यिक वैशिष्ट्य
लेखक:- डॉo साकेत कुमार पाठक

किसी भी पुस्तक के प्रकाशन में एक प्रकाशक द्वारा उस छापी गई पुस्तक में कितनी मेहनत छुपी है, और प्रकाशक की क्या अहम भूमिका...
10/03/2024

किसी भी पुस्तक के प्रकाशन में एक प्रकाशक द्वारा उस छापी गई पुस्तक में कितनी मेहनत छुपी है, और प्रकाशक की क्या अहम भूमिका रही है, शायद इस बात को बहुत कम लेख़क ही समझ सकेंगे।
#नयीकवितादर्शनऔरमूल्य
𝕹𝖊𝖜 𝕻𝖚𝖇𝖑𝖎𝖘𝖍𝖊𝖉 𝕭𝖔𝖔𝖐 2024
𝓒𝓸𝓿𝓮𝓻 𝓟𝓱𝓸𝓽𝓸 𝓓𝓮𝓼𝓲𝓰𝓷𝓮𝓭 𝓑𝔂 𝓟𝓱𝓸𝓽𝓸 𝓘𝓷𝓭𝓲𝓪 𝓟𝓻𝓪𝔂𝓪𝓰𝓻𝓪𝓳- 𝓐𝓿𝓪𝓲𝓵𝓪𝓫𝓵𝓮 𝓞𝓷:- 𝔸𝕞𝕒𝕫𝕠𝕟,𝔽𝕝𝕚𝕡𝕜𝕒𝕣𝕥,𝕂𝕠𝕓𝕠 & 𝔾𝕠𝕠𝕘𝕝𝕖 𝔼𝕓𝕠𝕠𝕜...
लेखिका ने नयी कविता के प्रमुख कवियों की रचनाओं के माध्यम से दर्शन एवं मानवीय मूल्यों के विविध पक्षों का बोध कराया है| इन्होने समाज में बदलते जीवन मूल्यों को प्रस्तुत किया है| जैसे सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, पारिवारिक, शैक्षिक तथा सांस्कृतिक, जीवन मूल्यों के गिरते स्तर और उसमे परिवर्तन को उजागर किया है तथा मानव जीवन के कर्म सिद्धांत की महत्ता पर भी बल दिया है, ताकि मानव जीवन उन्नति के चरम शिखरों को प्राप्त कर सके| मानव दुःख को नये कविता के कवियों ने अनुभूति का विषय बनाया है और दुःख को ही दुःख निवारण का साधन भी स्वीकार किया है| अज्ञेय जी ने बड़ी आस्था से इस पीड़ा को अपनाया हैं—
“दुःख सबको मजता है
चाहे स्वयं को मुक्ति देना वह न जाने किंतु जिनको मजता है
उन्हें यह सीख है कि सबको मुक्त रखें|”
लघु मानव की कल्पना ने नयी कविता को एक दार्शनिक आयाम दिया हैं| लघु मानव को उसकी समस्त हीनता और महत्ता के सन्दर्भ में प्रस्तुत करके कवियों ने उसके प्रति सहानुभूति पूर्ण दृष्टी से सोचने के लिए एक नया रास्ता खोला हैं|
वे कहते हैं -----
“समस्या एक मेरे सभ्य नगरों और ग्रामों में| सभी मानव सुखी सुन्दर और शोषणमुक्त कब होंगे| प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने नयी कविता में प्राप्त होने वाली दार्शनिक शब्दावली और विचार को बहुविध आयामों में उद्घघाटित करने का एक सफल प्रयास किया है| अभी तक प्राप्त भारतीय एवं पाश्चात्य दार्शनिक शब्दों और विचारों का अनुसंधान करते हुए विभिन्न नये कवियों की कविताओं को लक्षित करना लेखिका का अभिप्राय रहा हैं| नयी कविता में उपलब्ध दार्शनिक शब्दावली के अनुशीलन से यह स्पष्ट हो जाता है कि नयी कविता की भाषिक संवेदना दर्शन से ही अनुप्रेरित है| इस पुस्तक के माध्यम से लेखिका का अभिप्राय यही रहा है की हमारा समाज सभ्य, परिस्कृत एवं स्वच्छ बन सके जिसके लिये हमें मानवीय मूल्य को अपनाना होगा एवं मन में----
“सर्व भवन्तु सुखिनः एवं बहुजन हिताय की भावना रखनी होगी|

Bookvip.com

Address

Allapur
Allahabad
211006

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Parimal Prakashan posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Business

Send a message to Parimal Prakashan:

Share

Category