08/11/2024
#शोधआलेखआमंत्रण
केदारनाथ अग्रवाल और उनकी कविता : विविध आयाम
केदारनाथ अग्रवाल आधुनिक हिन्दी कविता के ऐसे विरले कवि हैं जिनका काव्य भारतीय जन जीवन के उन सभी पक्षों को स्पर्श करता है जो हम सभी के साथ अनुस्यूत हैं । उनकी कविता सच्चे अर्थों में जीवन की कविता है। मार्क्सवादी विचारधारा से प्रेरित होते हुए भी उन्होंने विचारधारा के तर्क एवं भाषिक उतावलेपन से अपनी काव्य संवेदना को बचा कर रखा है। यथार्थवादी दृष्टिकोण से अनुप्राणित होते हुए भी उनकी काव्य संवेदना केवल 'सत्यम' की ही नहीं बल्कि 'शिवम' और 'सुंदरम' की भी संपोषिका है। उनकी कविता जहां एक ओर यथार्थवादी दृष्टि से ऊर्जा प्राप्त करती हुई शोषण के विरुद्ध आक्रोश को व्यक्त करती है, वहीं दूसरी ओर श्रमजीवी के प्रति गहरी सहानुभूति भी व्यक्त करती है। उनकी कविता न केवल राजनीति बल्कि प्रेम, प्रकृति, और लोक जीवन के अनेक रंगों से अनुप्राणित कविता है।
केदारनाथ अग्रवाल की वैचारिकता का प्रस्थान बिंदु निश्चित रूप से मार्क्सवादी विचारधारा को माना जा सकता है, किंतु उन्होंने कभी भी अपनी काव्य संवेदना को किसी विचारधारा का कैदी नहीं बनने दिया। उनकी काव्य संवेदना के संबंध में डॉ. अशोक त्रिपाठी का यह कथन उल्लेखनीय है कि केदार जी के पाठक कभी भी उन्हें एक सांचे में कैद नहीं कर सकते। कोई उन्हें ग्रामीण चेतना का कवि मानता है, तो कोई नगरीय का। कोई उन्हें सौंदर्य का कवि मानता है, तो कोई संघर्ष का। कोई उन्हें राजनीतिक चेतना का कवि मानता है, तो कोई प्रकृति चेतना का। कोई उनके काव्य में मनुष्यता की खोज को रेखांकित करता है, तो कोई उन्हें लोकजीवन का चितेरा मानता है। वस्तुतः केदार जी के काव्य की वैचारिकता किसी एक धरातल पर आधारित नहीं है। वे खंड- खंड जीवन के नहीं बल्कि सामाजिक सरोकारों से संपन्न जीवन की पूर्णता के कवि हैं। इसीलिए उनकी कविताओं में जहां जीवन संघर्ष एवं उसकी विसंगतियों का स्वर प्रमुख है तो वहीं श्रम सौंदर्य से लेकर मानव एवं प्रकृति सौंदर्य का राग भी है। उनकी प्रगतिशीलता अन्य प्रगतिशील कवियों से निराली है। वे प्रगतिवादी होते हुए भी कवि हृदय हैं।
अनुभूति की प्रामाणिकता केदारनाथ अग्रवाल की कविता का विशेष गुण है। उनकी कविता में अनुभूति की सच्चाई का यह गुण उनकी लोक सम्पृक्ति के कारण उत्पन्न हुआ है। उनकी कविता में विषय कुछ भी रहा हो किंतु सभी में उनकी मूल संवेदना मनुष्यता से कभी विलग नहीं हुयी। उनकी कविता में मानव प्रेम का वर्णन हो या प्रकृति प्रेम का वर्णन हो, वर्ग संघर्ष और सामाजिक वैषम्य की अभिव्यक्ति हो, श्रम सौन्दर्य या उसकी महिमा का चित्रण हो, उनकी दृष्टि हमेशा जीवन दर्शन से संपृक्त रही है। केदारनाथ अग्रवाल के समर्थ आलोचक डॉ. रामविलास शर्मा का यह कथन अक्षरशः सत्य है कि 'केदार केवल आंदोलन के कवि नहीं है, वह उन सब के कवि हैं जिसे मनुष्य आंदोलन से प्राप्त करना चाहता है।'
केदारनाथ अग्रवाल की कविता का शिल्प पक्ष भी उनके संवेदना पक्ष की तरह विविधता पूर्ण है। भाव बोध और शिल्प विधान दोनों का औचित्यपूर्ण सामंजस्य ही उदात्त काव्य का प्राण है । महान रचनाकार इस परिप्रेक्ष्य में सजग रहता है कि उसके द्वारा अपनाया जा रहा शिल्प विधान, रचना को प्रभावी बना सकता है अथवा नहीं। केदार की कविता की दृष्टि इस विषय में बहुत स्पष्ट है। उनका मानना है कि आस्वाद की प्रक्रिया चाहे जैसी हो कृतिकार और पाठक दोनों सह आस्वादी होते हैं।
केदारनाथ अग्रवाल की दृष्टि यथास्थितिवादी कभी नहीं रही, बल्कि समतामूलक समाज की स्थापना के लिए वे परिस्थितियों में बदलाव के प्रबल समर्थक रहे हैं । परिवर्तनकामी व्यक्तित्व के बावजूद यह सुखद आश्चर्य है कि उनके जीवन काल में उनका सम्पूर्ण साहित्य परिमल प्रकाशन इलाहाबाद से ही प्रकाशित हुआ। लेखक और प्रकाशन संस्थान के बीच ऐसा अनन्य प्रेम वास्तविकता में दुर्लभ है। परिमल प्रकाशन के संस्थापक स्व० शिवकुमार सहाय एवं केदार जी का पारस्परिक अनन्य स्नेह आजीवन बना रहा। परिमल प्रकाशन के लोगो में केदार जी छवि आज भी उस पारस्परिक स्नेह की संवाहक बनी हुयी है। स्व० शिवकुमार सहाय के पौत्र श्री अंकुर शर्मा सहाय परिमल प्रकाशन के माध्यम से आज भी केदार जी के प्रति उस स्नेह परम्परा का निर्वहन कर रहे हैं। उनके सहयोग से "केदारनाथ अग्रवाल और उनकी कविता : विविध आयाम" शीर्षक से एक शोध परक संपादित ISBN पुस्तक के प्रकाशन की योजना है। यह एक ऐसा अनुष्ठान है जो आप सभी प्रबुद्ध प्राध्यापकों, अध्येताओं, शिक्षाविदों व शोधार्थियों के विषय से संबंधित मौलिक शोध आलेखों की अमूल्य आहुति के बिना पूर्ण होना संभव नहीं है। विषय से संबंधित मौलिक शोध आलेख आमंत्रित हैं।
संपादक:- डॉ. सुधीर कुमार अवस्थी