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निष्पक्षता जीवन को सही राह की ओर अग्रसर करती है. मन में घंटों कुतूहल से अच्छा है अपनी अभिव्यक्ति का प्रयोग करें. आलोचक कहलाना अच्छी बात है, इससे दब्बूपन दूर होता है. प्रगतिशील समाज के लिए "जलय संदेश" यही संदेश है.

नया साल 2025: नई-नई आकांक्षाएंनये साल में प्रवेश. नये साल का स्वागत. नया साल आया. नया साल आया, ढेर सारी खुशियाँ लाया. नय...
01/01/2025

नया साल 2025: नई-नई आकांक्षाएं

नये साल में प्रवेश. नये साल का स्वागत. नया साल आया. नया साल आया, ढेर सारी खुशियाँ लाया. नया साल सभी के लिए नई उन्नतियों का साल बने. नये साल में सभी की ख्वाहिशें पूरी हो. नया साल खुशियों से भरा हो. नया साल हम सभी की जिंदगी में ख़ुशियों को भर दे. विद्यार्थी इस साल अपनी बेहतरीन ऊर्जा का प्रदर्शन करे. सेवा क्षेत्र के लोग अपनों के साथ समय बिताते हुए अपनी भरपूर उत्पादकता से अपना उत्तरदायित्व निभाएं. श्रमिकों के साथ किसी प्रकार का अन्याय न हो. उनका शोषण बंद हो. उनको पूरी और पर्याप्त मजदूरी मिले. प्रशासन उनसे किये गये दुर्व्यवहार पर अपनी कड़ी कार्रवाई बरते. दबंगों के दबाव से रहित होकर उनके द्वारा की जाने वाली शिकायतों की एफआईआर की जाये. नेता अपने अनुभवों से जनता के कल्याण की सोचें. जनता को अपने भाषणों से एक नई सोच का अनुभव प्रदान करें. जनता के बीच ऐसा भाषण न दे, जिससे उनके बीच द्वेषभाव पले-बढ़े, बल्कि एक ऐसा समन्वय कायम करे कि वे अपने-अपने इतिहास को साथ-साथ ले चल कर अपनी संस्कृति पर गर्व करें और मिल-जुल कर साथ रह सके. नये साल में हमारी नई पीढ़ी फेक न्यूज़ के जाल से बचते हुए, बहस के बजाय स्वस्थ चर्चा कर सके. हमारी छात्र पीढ़ी बारहवीं के बाद विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेकर अपना ज्ञानार्जन करे और अपनी बौद्धिक क्षमता का विकास कर सके, न कि अपनी आर्थिक मजबूरियों या जानकारी के अभाव में अपने रास्ते से भटक जाये और किसी शहरी विश्वविद्यालय के बजाय शहरी फैक्ट्रियों में अपना भविष्य खपाएं.

इन्हीं सब शुभकामनाओं के साथ आपको नये साल की हार्दिक बधाई.

निष्पक्षता जीवन को सही राह की ओर अग्रसर करती है. मन में घंटों कुतूहल से अच्छा है अपनी अभिव्यक्ति का प्रयोग करें. आलोचक क...
27/12/2024

निष्पक्षता जीवन को सही राह की ओर अग्रसर करती है. मन में घंटों कुतूहल से अच्छा है अपनी अभिव्यक्ति का प्रयोग करें. आलोचक कहलाना अच्छी बात है, इससे दब्बूपन दूर होता है. प्रगतिशील समाज के लिए "जलय संदेश" का यही संदेश है.

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14/09/2024

हिंदी दिवस की शुभकामनायें.

बहुत दिन हो गये,जल्द मिलते हैं ब्लॉग पर:

Reliance की 47वीं Annual General Meeting यानी AGM में रिलायंस इंडस्ट्री के चेयरमेन मुकेश अंबानी ने Jio AI Cloud को लॉन्च किया है, जहां यूजर्स अपने...

https://jalaysandesh.blogspot.com/2024/08/jio-ai-cloud-welcome-offer.html
30/08/2024

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27/06/2024

*आपातकाल की याद*यह आश्चर्यजनक है कि कांग्रेस को आपातकाल के स्मरण पर आपत्ति हो रही है और वह भी तब, जब उसकी ओर से यह दावा ...
25/06/2024

*आपातकाल की याद*

यह आश्चर्यजनक है कि कांग्रेस को आपातकाल के स्मरण पर आपत्ति हो रही है और वह भी तब, जब उसकी ओर से यह दावा किया जा रहा है कि वह संविधान बचाने के लिए प्रतिबद्ध है और इसी क्रम में नई लोकसभा के पहले दिन संसद परिसर में संविधान की प्रतियां लहराई गईं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी यही काम आम चुनाव के समय भी कर रहे थे। यदि कांग्रेस और उसके सहयोगी दल संविधान बचाने के लिए वास्तव में प्रतिबद्ध हैं तो फिर उन्हें आपातकाल के स्मरण पर आपत्ति क्यों? क्या इसलिए कि उसे थोपने का काम इंदिरा गांधी ने किया था? आपातकाल थोपकर न केवल लोकतंत्र को कलंकित किया गया था, बल्कि संविधान को कुचलने के साथ देश को बंदीगृह में तब्दील कर दिया गया था। यदि विपक्षी दल और विशेष रूप से कांग्रेस संविधान के प्रति तनिक भी आदर रखती है तो उसे संविधान की प्रतियां लहराने के बजाय आपातकाल के उस काले दौर को न केवल याद करना चाहिए, बल्कि उसे लागू करने वालों की निंदा भी करनी चाहिए। कांग्रेस को कम से कम यह साहस तो दिखाना ही चाहिए कि वह अपने नेताओं की ओर से आपातकाल थोपे जाने को एक भूल करार दे। यदि वह ऐसा नहीं कर सकती तो फिर वह आपातकाल से लड़ने वालों की आलोचना करने से तो बचे ही। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के हिसाब से केंद्र सरकार को आपातकाल की याद करने के बजाय वर्तमान मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। आखिर ये दोनों काम एक साथ क्यों नहीं हो सकते? क्या अतीत की भूलों को याद नहीं किया जाना चाहिए? ध्यान रहे जो समाज अतीत की गलतियों को भूल जाता है, वह वैसी ही गलतियां फिर करता है।

यह एक कुतर्क ही है कि आपातकाल का स्मरण इसलिए नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि उसे लागू हुए 50 वर्ष होने जा रहे हैं। क्या अब कांग्रेस यह भी कहेगी कि देशवासियों को भारत विभाजन की याद नहीं करनी चाहिए? यदि कांग्रेस और उसके साथ खड़े राजनीतिक दल ऐसा कुछ सोच रहे हैं कि संविधान की प्रतियां लहराने से देश आपातकाल का स्मरण करना छोड़ देगा और यह भूल जाएगा कि उस दौरान विपक्ष, मीडिया और नागरिक अधिकारों का भयावह दमन करने के साथ संविधान के साथ किस तरह छेड़छाड़ की गई थी और इसी क्रम में न्यायपालिका को भी धमकाया गया था तो यह संभव नहीं। अच्छा हो कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के नेता संविधान की जिन प्रतियों को लहरा रहे हैं, उन्हें पलट कर और कुछ न सही तो संविधान की प्रस्तावना ही पढ़ लें, ताकि इससे अवगत हो सकें कि किस तरह संविधान को बदलने की कोशिश की गई थी। यह मजाक ही है कि कांग्रेस संविधान बचाने का भी दम भर रही और यह भी कह रही कि मोदी जनादेश की अनदेखी करके प्रधानमंत्री बन गए हैं।

___(साभार : दैनिक जागरण)___

#आपातकाल #इंदिरा_गांधी ून

     (साभार: दैनिक जागरण)
21/06/2024



(साभार: दैनिक जागरण)

"पिता के नाम पत्र"पूज्य पिताजी, घुटना स्पर्श।          इंटरनेट मीडिया के आशीर्वाद से मैं यहां कुशल से हूं। देर रात तक आप...
18/06/2024

"पिता के नाम पत्र"

पूज्य पिताजी, घुटना स्पर्श।
इंटरनेट मीडिया के आशीर्वाद से मैं यहां कुशल से हूं। देर रात तक आपका आनलाइन स्टेटस देखकर उम्मीद करता हूं कि आप भी सकुशल होंगे। जैसा कि आप जानते हैं, कोरोना ने संपूर्ण राष्ट्र को आत्मनिर्भर बना दिया है। आपको जानकार खुशी होगी कि मैं भी आत्मनिर्भर हो चुका हूं। अब मैंने होटल में जाकर खाना छोड़ दिया है। स्मार्टफोन एप से आनलाइन खाना आर्डर करना सीख लिया है। पिताजी, आप मुझे हमेशा निकम्मा और नाकारा समझ कर कोसते थे, लेकिन मां मुझे आशीर्वाद देती रही है। मां का आशीर्वाद अब फलीभूत हो रहा है। उनके आशीर्वाद से इन दिनों मैं चार वाट्सएप ग्रुप का एडमिन हूं। फेसबुक पर भी मेरे पांच हजार मित्र हो गए हैं। आप मुझे आलसी कहा करते थे, लेकिन आपको बता दूं कि अब आपका पपलू काफी मेहनती हो गया है। अहले सुबह से देर रात तक इतनी मेहनत करता हूं कि दोनों सिम के दैनिक दो जीबी डाटा का संपूर्ण प्रयोग कर लेता हूं।
विशेष समाचार यह है कि आनलाइन क्लास के साथ रील्स और मीम्स बनाने के लिए मुझे एपल फोन की आवश्यकता है। मेरा पुराना वाला फोन अब हैंग होने लगा है। आपको पता ही है कि वेबसाइट से लेकर वेबसीरीज तक देखने का मेरा एक मात्र साधन स्मार्टफोन ही है।
आपसे विनम्र निवेदन है कि आप एक लाख रुपये भेज दें, ताकि मैं नया वाला एपल फोन खरीद सकूं। फलस्वरूप मेरी आनलाइन पढ़ाई की आड़ में रील मीम आदि बनाने की प्रक्रिया बाधित न हो और स्वयं के मोबाइल पर आत्मनिर्भर रह सकूं।
विशेष क्या लिखूँ। फादर्स डे के दिन आपकी और मदर्स डे के दिन मम्मी की बहुत याद आती है। उस दिन वाट्सएप स्टेटस और एफबी पर आप लोगों की सेल्फी वाली तस्वीरें डालकर पुत्र धर्म निभा लेता हूं। शेष अगले पत्र में। घर में सभी बड़े लोगों को मेरा प्रणाम वाला इमोजी तथा छोटों को हर्ट वाला इमोजी।

आपका डिजिटलधारी पुत्र
पपलू
पता: एफबी/ एक्स गली, ग्राम- पोस्ट : इंस्टाग्राम, जिला वाट्सएप, राज्य: इंटरनेट मीडिया, पिनकोड- थंब लाक/ फेसलाक

~ विनोद कुमार विक्की (दैनिक जागरण के 'खरी-खरी' कॉलम से साभार)

कोरोना के दिनों, अपनी माँ से धर्म को लेकर बात की. मैं धर्म पर विज्ञान और सवाल लेकर तर्क करने लगा. जो गाँव में रहने वाली ...
26/05/2024

कोरोना के दिनों, अपनी माँ से धर्म को लेकर बात की. मैं धर्म पर विज्ञान और सवाल लेकर तर्क करने लगा. जो गाँव में रहने वाली माँ के लिए नए थे. अपने पक्ष में तर्क रखते हुए भी माँ मन विचलित हो गया. दो तीन दिन बाद माँ ने कहा कि मुझसे ऐसी बातें न किया कर, मेरा पूजा में मन नहीं लगता. मैं तो जैसे हैं वैसे ही पूजना चाहती हूँ. हमें तो अंधकार में ही रहने दे. तेरी बातों से मेरा मन विचलित होता है.'' मूल रूप से मेरी माँ का आग्रह यह था कि जैसे भी भगवान या तस्वीर उनके सामने हैं वे उनको ही पूजने में अपनी ख़ुशी पाती हैं. जिसके खंडन या आलोचना समालोचना, तर्क वितर्क से उन्हें घबराहट होती है, विचलन होता है. इसलिए वे अपनी आस्था में जरा भी कुछ कम करना नहीं चाहतीं. भले ही इससे वे अन्धकार में रहें या दुःख में.

मैं समझता हूँ कि एक गृहणी होने के कारण माँ को विश्वविद्यालयों और पुस्तकों से मिलने का मौका न मिला. इसलिए उनके पास एकमात्र धर्म एक आइडेन्टिटी बचता है, उनके लिए आस्था एक पहचान है, अगर उनसे वो भी छीन ली जाए तो उनके पास क्या बचता है? उन्हें शायद दुःख होगा. इसलिए मैंने अधिक बहसें न करके माँ की बातों को जस का तस मान लिया.

भगवान राम में हमारी ऐसी ही आस्था है, वे जैसे हैं अपने हैं, प्रिय हैं, इससे अधिक तर्क में जाने की हमारी इच्छा भी नहीं है. ये राम के प्रति हमारी एक मासूम सी आस्था है, बछड़े सा निरीह लगाव है, जिसे हम खोना नहीं चाहते. राम की तस्वीरें जो मसलन एक्टर अरुण गोविल की तस्वीरें हैं. वे ही हमने देखीं और राम को उसी रूप में मान लिया. उसी में वे पूजनीय हो गए. हमने राम को उसी रूप में तस्वीरों में पाया इसलिए उन्हें ही राम मान लिया. अब अपने इस नितांत स्नेह से गुथीं आस्थाओं में एक छोटी सी चटक भी हमें दुःख लगती है.

इस बीच अरुण गोविल भाजपा में चले गए. उनके बेतुके बयान आने लगे. इससे पहले अधिक लोग उन्हें जानते नहीं थे. लेकिन वे अपने राम को टीवी और सोशल मीडिया पर कुछ उम्रदराज और बहुत अधिक आम भाजपाई जैसा देख रहे थे. अब तक उनके लिए राम की वर्तमान तस्वीरें ही सदियों पुरानी लोककथाओं के नायक राम की तस्वीरें थीं. मगर भाजपा ने उनके राम को एक लोकसभा सीट भर के लिए सड़कों पर चुनाव लड़ने के लिए खड़ा कर दिया. जिन्हें वर्षों से राम के रूप में देखते आए उसे ही अब मोदी के नाम के लिए वोटों की भीख मांगते देख रहे हैं.

किसी का उन आस्थाओं पर ध्यान नहीं गया जिन्हें अरुण गोविल के इस रूप ने तोड़ा. आस्थाओं और मान्यताओं का सम यही है, मेरी मां जैसे आस्थावान औरतें-पुरुष हैं, जिन्हें इससे पहचान और लक्ष्य मिलता है जो उनकी जिन्दगी के दुखों को कुछ कुछ सहनीय बनाता है. वहीं राजनितिक दल भी हैं, जो राम के लिए लड़ते हैं, लेकिन राम के लिए उपलब्ध उन्हीं आस्थाओं को अपने पैरों में कुचल, हमारे सर की पगड़ी बन जाते हैं. सबके अपने अपने राम हैं...

— श्याम मीरा सिंह की वाल से साभार

भव एव भवानीति मे नितरां समजायत चेतसि कौतुकितामम वारय मोहमहाजलाधिं भव शंकर देशिक मे शरणम्- श्री शंकराचार्य #जयंती_विशेष (...
12/05/2024

भव एव भवानीति मे नितरां समजायत चेतसि कौतुकिता
मम वारय मोहमहाजलाधिं भव शंकर देशिक मे शरणम्

- श्री शंकराचार्य

#जयंती_विशेष (12-05-2024)

पुस्तक = "अतीत के स्वर"लेखक = रमाकांत सिंह 'शेष'
05/05/2024

पुस्तक = "अतीत के स्वर"
लेखक = रमाकांत सिंह 'शेष'

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