Chandi Patrika - Kalyanmandir Prakashan

Chandi Patrika - Kalyanmandir Prakashan सनातन धर्म के ज्ञान-मय क्रिया-पक्ष की ?

भारत की अत्यन्त प्रसिद्ध शक्ति-आराधना को सरल हिन्दी में प्रकट करने का महान् कार्य पण्डित देवीदत्त जी शुक्ल द्वारा सन् 1942 में प्रारम्भ हुआ था। शुक्ल जी हिन्दी की ऐतिहासिक पत्रिका ‘सरस्वती’ के यशस्वी सम्पादक थे। आपको इस महान्् कार्य में, आपके ही प्रथम शिष्य पं0 शिवनाथ काटजू का सहयोग प्राप्त हुआ।
‘कुम्भ’ के अवसर पर 15 जनवरी, 1942 को प्रयाग में धूम-धाम से आप दोनों के प्रयासों से शक्ति के आराधकों का

सम्मेलन हुआ। इस प्रथम सम्मेलन में कई प्रस्ताव घोषित हुए। पहले प्रस्ताव द्वारा सरल हिन्दी में प्रचार एवं प्रसार हेतु ‘पत्रिका’ एवं ‘पुस्तकें’ छापने का निर्णय हुआ। फलतः मार्च, 1942 से ‘चण्डी’ पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ, जो अनवरत जारी है।

शक्ति की आराधना से सम्बन्धित रहस्यों को प्रकट करने के लिए ‘चण्डी’ पत्रिका को कई विभूतियों का सहयोग प्राप्त हुआ। ‘चण्डी’ पत्रिका का दूसरा वर्ष प्रारम्भ होते ही ’गुप्तावतार’ श्री मोतीलाल जी मेहता का प्रागट्य हुआ। फिर ’राष्ट्र-गुरु’ परम पूज्य स्वामी जी महाराज, दतिया की कृपा मिली। दण्डी संन्यासी स्वामी श्री अक्षोभ्यानन्द जी सरस्वती की कृपा शुक्ल जी को पहले से ही प्राप्त थी। इस प्रकार इन तीन विभूतियों एवं पटना से पूज्या माई जी की कृपा प्राप्त होने पर अनेक उच्च कोटि के साधक विद्वान् बन्धु ‘चण्डी’ पत्रिका से जुड़ने लगे और शक्ति-आराधना सम्बन्धी गूढ़ से गूढ़ बातें भी सरल हिन्दी में निबन्ध एवं कविताओं के रूप में प्रकट होने लगीं।

साधक एवं विद्वान् बन्धुओं में मेरठ से पं0 योगीन्द्रकृष्ण दौर्गादत्ति जी शास्त्री, नेपाल से मेजर जनरल धनशमशेर जंग बहादुर राणा, काशी से पं0 कन्हैयालाल ज्योतिषी, जयपुर से आशुकवि पं0 श्री हरिशास्त्री दाधीच, दरभंगा से श्री श्यामानन्दनाथ, कुम्मिला (वंग प्रदेश) से रासमोहन चक्रवर्ती, पीलीभीत से पं0 दुर्गाशंकर शुक्ल, नैनीताल-अल्मोड़ा से श्रीकालीचरण पन्त, परमहंस श्री 108 स्वामी शंकरतीर्थ महाराज, जोधपुर से स्वामी दिव्यानन्द सरस्वती, टोंक से स्वामी शाश्वतानन्द सरस्वती, सीकर से पं0 नथमल दाधीच, पटना से पं0 ललन पाण्डेय, पं0 श्रीकान्तबिहारी मिश्र, जयपुर से श्रीमती राजेशकुमारी करणौत, मेजर कुँवर श्री रामसिंह, मुम्बई से श्रीहरिकिशन ल0 झवेरी, श्री रमाशंकर पण्डया, सतना से श्री सूर्यप्रकाश गोस्वामी, दतिया से फौजदार श्रीबलवीर सिंह, बंगाल से पूज्य श्री स्वामी हिमालय अरण्य जी, प्रयाग से पं0 काशीप्रसाद शुक्ल शास्त्री, श्री कालीप्रताप धर द्विवेदी, श्री महेशचन्द्र गर्ग आदि-आदि थे।
उक्त विभूतियों एवं विद्वान् साधकों के सहयोग से ‘चण्डी’ पत्रिका के माध्यम से न केवल शक्ति-आराधना के गूढ़ रहस्य उजागर हुए अपितु अनेक पूजा पद्धतियाँ आदि भी प्रस्तुत हुईं।
पं0 देवीदत्त शुक्ल जी के पुत्र एवं गुप्तावतार बाबा श्री मोतीलाल जी मेहता के शिष्य ‘कुल-भूषण’ पं0 रमादत्त शुक्ल जी ने शक्ति-आराधना सम्बन्धी उक्त महान कार्य को अपनी युवावस्था से अन्तिम 85 वर्ष की अवस्था तक आगे बढ़ाया। आपकी देख-रेख में सन् 1972 से पितामह पं0 देवीदत्त जी शुक्ल के निधनोपरान्त आपके पौत्र श्रीऋतशील शर्मा अब इस कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं।

प्रयागराज का अत्यन्त प्रसिद्ध श्री त्रिवेणी का पावन क्षेत्र महापर्व कुम्भ के  अवसर पर, स्थूल रूप से करोड़ों लोगों से भरा...
19/02/2025

प्रयागराज का अत्यन्त प्रसिद्ध श्री त्रिवेणी का पावन क्षेत्र महापर्व कुम्भ के अवसर पर, स्थूल रूप से करोड़ों लोगों से भरा दिखाई दे रहा है। आधुनिक से आधुनिक विधि से लोगों की गणनाएं की जा रही हैं। गणना के द्वारा बड़ी से बड़ी संख्याओं का उल्लेख तो हो रहा है किन्तु उससे यह ज्ञात नहीं होता कि उपस्थित लोगों की त्रिवेणी का क्या स्वरूप है? न ही ऐसी किसी प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था है, जिसके द्वारा सबकी त्रिवेणी की रक्षा करनेवाली शक्ति श्रीवेणी माधव का आश्रय लेकर अमृत रूपी आत्म-ज्ञान को प्राप्त किया जाए। परिणाम सामने है, सब कोई नाना प्रकार के षट्-कर्मों से प्रभावित ही दिख रहे हैं! दिव्य भाव की अनुभूति तो सचमुच श्रीवेणी माधव जी के आश्रित है!!

भारत की पहचान ' सत्यमेव जयते ' से होती है। भारत की यह पहचान प्रयागराज में ' जयति त्रिवेणी ' के रूप में महाकुंभ आदि के पावन अवसर पर विशेष रूप से प्रदर्शित होती है। बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि ' सत्यमेव जयते ' मन्त्र-वाक्य की प्राप्ति प्रयागराज से ही हुई है

श्री त्रिवेणी ज्ञान-माला के अन्तर्गत यह पहले बताया जा चुका है कि जब देह-शक्ति-रूपी यमुना की कृपा से हमारा मन संयमित होता है, तो तारनेवाली पावन करनेवाली शक्ति गंगा से मन युक्त हो जाता है और फिर मन को उस चिन्मय सरस्वती की अनुभूति होती है, जिससे सभी प्रकार के भेदों, भयों, कुण्ठाओं, आपदाओं, संकटों से सुरक्षित होकर परमानन्द की अनुभूति होती है।
अति विशिष्ट श्री विद्या साधना के अन्तर्गत इसका वर्णन त्रैलोक्य-मोहन-चक्र के रूप में हुआ है। इस चक्र की अनुभूति, जागरण के बिना प्रपञ्च-रूपी माया के बन्धनों से मुक्ति संभव नहीं होती है और माया के बंधनों से युक्त ष-कार वर्ण आधारित मारण-मोहन-उच्चाटन आदि षट्-कर्मों के प्रति आतुरता के स्पष्ट दर्शन भी दुर्भाग्य स्वरूप होते हैं

प्रयागराज का प्रसिद्ध पावन क्षेत्र श्री त्रिवेणी --- जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्त मन की तीनों अवस्थाओं में उत्पन्न होनेवाले विकारों के ज्ञान से युक्त है। इसके लिए इसे षट् कूला क्षेत्र अर्थात् मन के छहों विकारों से ज्ञान से युक्त क्षेत्र भी कहा जाता है। इसके द्वारा भक्त, साधक --- मन में विकारों के उत्पन्न और लय होने का विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करते हैं। मन के विकार मद, क्रोध, लोभ, मोह आदि से अनभिज्ञ होने के कारण यहां से दुर्घटनाओं की सूचना भी प्राप्त होती रही हैं। आवश्यकता है कि श्री त्रिवेणी के ज्ञान से भली-भांति युक्त होने का प्रयास किया जाए, जिससे निर्भय करनेवाले आत्म-ज्ञान-रूपी अमृतेश्वरी त्रिवेणी देवी का सान्निध्य प्राप्त हो!

जो हम सब के लिए एक हैं, जो हम सबके लिए प्रीति-दायक हैं, जिनमें हम सब लीन हो जाते हैं, वे श्री त्रिवेणी हमारे लिए सिद्धि दायक हों

जो जाग्रत्, स्वप्न एवं सुषुप्त तीनों अवस्थाओं में उत्पन्न होनेवाले विकारों का ज्ञान प्रदान करती हैं, श्रुतियों में जो विकारों से रहित निर्विकार नाम से प्रसिद्ध हैं, उन श्री त्रिवेणी की कृपा मुझे प्राप्त हो

जो हमारी देह में इन्द्रियों, प्राणों, मन, बुद्धि, चित्त, अंहकार आदि भिन्न-भिन्न रूपों में हैं, जो इन सबका प्रत्येक क्षण निरीक्षण कर रही हैं, जो अपने तेज से सदैव स्फुरित हो रही हैं, जो साक्षात्कार करने योग्य हैं, वे त्रिवेणी हमारे लिए परमात्मा से युक्त करनेवाली सिद्धि को प्रदान करनेवाली हों

अखिल भारतीय शाक्त सम्मेलन में आध्यात्मिक गोष्ठी
19/02/2025

अखिल भारतीय शाक्त सम्मेलन में आध्यात्मिक गोष्ठी

श्री त्रिवेणी के ज्ञान को स्पष्ट करते हुए तीन प्रकार के फल बताए गए हैं। १. ज्ञानानन्द अर्थात् ज्ञान के आनन्द से युक्त है...
19/02/2025

श्री त्रिवेणी के ज्ञान को स्पष्ट करते हुए तीन प्रकार के फल बताए गए हैं। १. ज्ञानानन्द अर्थात् ज्ञान के आनन्द से युक्त है। अथवा भ्रमित करनेवाले शुष्क ज्ञान से रहित है। २. विचार अर्थात् नाना प्रकार के ज्ञान-मय भावों से युक्त है, जिसका गीता में विचार - योग के रूप में निरूपण हुआ है। ३. मुक्ति अर्थात् सांसारिकता की सम्यक् जानकारी के साथ परम तत्व की जानकारी प्रदान करनेवाला है

श्री त्रिवेणी के ज्ञान की विशेषता यह है कि इसके द्वारा हृदय, शिर और शिखा अर्थात् स्नायु शक्ति स्वरूपी तीनों मुख्य अम्बा की आराधना होती है और मनुष्यों को सहज रूप में आत्म-ज्ञान-रूपी परम आनन्द की अनुभूति होती। इसके लिए ही इस ज्ञान को ' अम्बा-त्रयाराधिता ' कहा जाता है

आत्म-विद्या की छाया के समान श्री त्रिवेणी के ज्ञान से  सभी युक्त हैं। इस विशेष बात को हमारे यहां वेदों, उपनिषदों, पुराणो...
19/02/2025

आत्म-विद्या की छाया के समान श्री त्रिवेणी के ज्ञान से सभी युक्त हैं। इस विशेष बात को हमारे यहां वेदों, उपनिषदों, पुराणों, तन्त्रों आदि सबके द्वारा भली-भांति बताया गया है। यही कारण है कि इस विशेष ज्ञान को प्राप्त करने के लिए आज भी अधिकांश सनातनी भारतीय उत्सुक रहते हैं और वे अत्यन्त उत्साह के साथ श्री त्रिवेणी क्षेत्र में उपस्थित होने का प्रयास करते हैं। प्रयागराज के महापर्व कुम्भ से यह बात बहुत अच्छी तरह से पुनः स्पष्ट हो रही है। ४० करोड़ की कल्पना से अधिक सनातनी भारतीय आ चुके हैं और उनकी संख्या बढ़ती ही जा रही है। इस बढ़ती हुई संख्या को देखते हुए यह भी आवश्यक लग रहा है कि आत्म-विद्या-रूपी श्री त्रिवेणी के ज्ञान को स्थायी रूप से प्राप्त करने की व्यवस्था भी होनी चाहिए

' प्रयागे तु ललिता ' सूत्र से स्पष्ट होता है कि प्रयागराज अर्थात् श्री त्रिवेणी के दर्शन, नमन से श्रीललिता नामक सौभाग्य ...
19/02/2025

' प्रयागे तु ललिता ' सूत्र से स्पष्ट होता है कि प्रयागराज अर्थात् श्री त्रिवेणी के दर्शन, नमन से श्रीललिता नामक सौभाग्य विद्या की उपलब्धि होती है क्योंकि श्री ललिता का ज्ञान सौभाग्य विद्या के नाम से प्रसिद्ध है
' प्रयागे तु ललिता ' अर्थात् प्रयागराज के द्वारा देवी ललिता के ज्ञान की उपलब्धि होती है। महर्षि वेदव्यास के द्वारा प्रसिद्ध देवी भागवत में यह बताया गया है। प्रयागराज में देवी ललिता का ज्ञान श्री त्रिवेणी के रूप में अनादि काल से प्रतिष्ठित है

श्री त्रिवेणी का ज्ञान स्थूल, सूक्ष्म और कारण तीनों पुरों से सम्बन्धित अपरिपक्व ज्ञान को दूर करनेवाला है। इसलिए इसे प से ' पुर-हरा ' कहा गया है। स्थूल जगत् में अपरिपक्व ज्ञान के चलते ही हम लोग नये नये स्थानों को लोकप्रिय समझ रहे थे, आज महापर्व कुम्भ के पावन अवसर पर ज्ञात हो रहा है कि संसार का सबसे अधिक लोकप्रिय स्थल ' श्री त्रिवेणी का क्षेत्र ' ही है

श्री त्रिवेणी के दर्शन, स्नान, पूजन, ज्ञान की अद्भुत विशेषता यही है कि यह स्थूल, सूक्ष्म और कारण तीनों रूपों में पवित्रता की अनुभूति से युक्त है। इसके लिए इस ज्ञान को ' पुर-हरा ' कहा गया है

महर्षि वेदव्यास के अनुसार ' प्रयागे तु ललिता ' की वेद-सम्मत प्रतिष्ठा हुई है और उनके अवतार स्वरूप आदि शंकराचार्य जी के द...
19/02/2025

महर्षि वेदव्यास के अनुसार ' प्रयागे तु ललिता ' की वेद-सम्मत प्रतिष्ठा हुई है और उनके अवतार स्वरूप आदि शंकराचार्य जी के द्वारा भारत वर्ष के चारों ओर चार पीठों, आम्नायों के रूप में सौभाग्य विद्या श्रीललिता की प्रतिष्ठा हुई है। भारत वर्ष की इस दिव्य आध्यात्मिक एकता के विलक्षण अद्भुत रहस्यों को जानने तथा समझने का पावन काल आ गया है! महापर्व कुम्भ में उपस्थित होनेवाले करोड़ों भारतीयों की इच्छा, क्रिया एवं ज्ञान का यह मुख्य संदेश हम सबके द्वारा समझने योग्य है!

श्री त्रिवेणी के ज्ञान से युक्त प्रपंचेश्वरी श्री ललिता की आराधना का आश्रय लेकर ही हम लोग वास्तविक रूप में ऐक्य भाव को प...
19/02/2025

श्री त्रिवेणी के ज्ञान से युक्त प्रपंचेश्वरी श्री ललिता की आराधना का आश्रय लेकर ही हम लोग वास्तविक रूप में ऐक्य भाव को प्राप्त कर सौभाग्य की प्राप्ति कर सकते हैं। महापर्व कुम्भ, पिंगल संवत् २०८१ विक्रमी ( २०२५ ) का यही सबसे बड़ा मुख्य संदेश है

श्री त्रिवेणी के स्मरण, दर्शन, स्नान के बाद श्री त्रिवेणी के ज्ञान से युक्त होने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए ही प्रात...
19/02/2025

श्री त्रिवेणी के स्मरण, दर्शन, स्नान के बाद श्री त्रिवेणी के ज्ञान से युक्त होने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए ही प्रातः स्मरणीय आदि शंकराचार्य जी के द्वारा इसकी विधिवत् प्रतिष्ठा हुई है। हम सबकी एकता और सौभाग्य, कल्याण का यही मुख्य आधार है। इसके माध्यम से ही हम दिव्य भावों से युक्त हो सकते हैं। पिंगल संवत् २०८१ वि० महापर्व कुम्भ का यही मुख्य संदेश है

श्री त्रिवेणी का ज्ञान अध्यात्म-विद्या-रूपी अमृत कहलाता है। इसके द्वारा सभी आत्म-तत्व ऊर्ध्व-गामी हो जाते हैं और विद्या तथा शिव-तत्वों की सतत दिव्य अनुभूति का मार्ग प्रशस्त हो जाता है

त से श्री त्रिवेणी का ज्ञान  तत्व-ज्ञान से युक्त करनेवाला है, ऐसा बताया गया है। महापर्व कुम्भ के पावन अवसर पर करोड़ों भा...
19/02/2025

त से श्री त्रिवेणी का ज्ञान तत्व-ज्ञान से युक्त करनेवाला है, ऐसा बताया गया है। महापर्व कुम्भ के पावन अवसर पर करोड़ों भारतीयों के द्वारा श्री त्रिवेणी के दर्शन, स्नान, पूजन आदि की जो दिव्य भावना प्रदर्शित हो रही है, उसका अमृतीकरण अब तो श्री त्रिवेणी के द्वारा प्राप्त होनेवाले तत्व-ज्ञान से ही हो सकता है।

श्री त्रिवेणी के ज्ञान को म से मनसिजा बताया गया है। इससे स्पष्ट होता है कि श्री त्रिवेणी के ज्ञान की उपलब्धि मानसिक चिन्तन के द्वारा विशेष रूप में होती है। करोड़ों भारतीयों के द्वारा यदि इनका स्थूल रूप में दर्शन, पूजन आदि संभव हुआ है, तो अब मानसिक रूप से इनके ज्ञान के सृजन की आवश्यकता है। इसके द्वारा ही स्थूल दर्शन के आनन्द को न केवल संजोया जा सकता है अपितु उसकी वृद्धि भी की जा सकती है।

श्री त्रिवेणी के ज्ञान को ब अक्षर के द्वारा ' बोधाबोध-कला ' बताया गया है। इससे स्पष्ट होता है कि श्री त्रिवेणी का ज्ञान बोध और अबोध दोनों से युक्त है। अबोध से बोध के नं होने का भाव नहीं लिया जाता। अबोध से अपरिपक्व बोध का भाव लिया जाता है। करोड़ों भारतवासी श्री त्रिवेणी के समीप महापर्व कुम्भ के पावन अवसर पर आ रहे हैं, ऐसे में श्री त्रिवेणी के दर्शन आदि के द्वारा परिपक्व और अपरिपक्व दोनों प्रकार के भावों की अभिव्यक्ति भी नाना प्रकार से दिखाई दे रही है

कुम्भ, कलश, घट सनातन धर्म के अत्यन्त महत्वपूर्ण नाम हैं। सनातन धर्म के द्वारा इनके चिन्तन, मनन, पूजन का महत्व विशेष रूप ...
19/02/2025

कुम्भ, कलश, घट सनातन धर्म के अत्यन्त महत्वपूर्ण नाम हैं। सनातन धर्म के द्वारा इनके चिन्तन, मनन, पूजन का महत्व विशेष रूप में बताया गया है। इस बात को न जानने के कारण ये अत्यन्त महत्वपूर्ण नाम आज ' अपने - अपने वाली संकुचित भावनाओं ' से जकड़े हुए दिखाई दे रहे हैं और उनके द्वारा कुम्भ नाम के सम्बन्ध में व्यर्थ की बातें की जा रही हैं। जो लोग इन नामों के द्वारा शक्ति, बल, ओज, तेज, अमृत आदि की प्राप्ति करना चाहते हैं, उन्हें ' अपने अपने भावों ' से ऊपर उठकर इनसे सम्बन्धित शास्त्रों, प्रामाणिक पुस्तकों के ज्ञान से युक्त होने का प्रयास करना चाहिए

https://youtu.be/ymMW6f-CTdY?si=AzBQTz-r7wf6Lluc
10/02/2025

https://youtu.be/ymMW6f-CTdY?si=AzBQTz-r7wf6Lluc

भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और आस्था का प्रतीक है महाकुंभ, जो हर 12 वर्ष में आयोजित होने वाला यह महापर्व न केवल एक धार्....

10/02/2025
भारत की पहचान ' सत्यमेव जयते ' से होती है। भारत की यह पहचान प्रयागराज में ' जयति त्रिवेणी ' के रूप में महाकुंभ आदि के पा...
05/02/2025

भारत की पहचान ' सत्यमेव जयते ' से होती है। भारत की यह पहचान प्रयागराज में ' जयति त्रिवेणी ' के रूप में महाकुंभ आदि के पावन अवसर पर विशेष रूप से प्रदर्शित होती है। बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि ' सत्यमेव जयते ' मन्त्र-वाक्य की प्राप्ति प्रयागराज से ही हुई है।

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