
19/02/2025
प्रयागराज का अत्यन्त प्रसिद्ध श्री त्रिवेणी का पावन क्षेत्र महापर्व कुम्भ के अवसर पर, स्थूल रूप से करोड़ों लोगों से भरा दिखाई दे रहा है। आधुनिक से आधुनिक विधि से लोगों की गणनाएं की जा रही हैं। गणना के द्वारा बड़ी से बड़ी संख्याओं का उल्लेख तो हो रहा है किन्तु उससे यह ज्ञात नहीं होता कि उपस्थित लोगों की त्रिवेणी का क्या स्वरूप है? न ही ऐसी किसी प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था है, जिसके द्वारा सबकी त्रिवेणी की रक्षा करनेवाली शक्ति श्रीवेणी माधव का आश्रय लेकर अमृत रूपी आत्म-ज्ञान को प्राप्त किया जाए। परिणाम सामने है, सब कोई नाना प्रकार के षट्-कर्मों से प्रभावित ही दिख रहे हैं! दिव्य भाव की अनुभूति तो सचमुच श्रीवेणी माधव जी के आश्रित है!!
भारत की पहचान ' सत्यमेव जयते ' से होती है। भारत की यह पहचान प्रयागराज में ' जयति त्रिवेणी ' के रूप में महाकुंभ आदि के पावन अवसर पर विशेष रूप से प्रदर्शित होती है। बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि ' सत्यमेव जयते ' मन्त्र-वाक्य की प्राप्ति प्रयागराज से ही हुई है
श्री त्रिवेणी ज्ञान-माला के अन्तर्गत यह पहले बताया जा चुका है कि जब देह-शक्ति-रूपी यमुना की कृपा से हमारा मन संयमित होता है, तो तारनेवाली पावन करनेवाली शक्ति गंगा से मन युक्त हो जाता है और फिर मन को उस चिन्मय सरस्वती की अनुभूति होती है, जिससे सभी प्रकार के भेदों, भयों, कुण्ठाओं, आपदाओं, संकटों से सुरक्षित होकर परमानन्द की अनुभूति होती है।
अति विशिष्ट श्री विद्या साधना के अन्तर्गत इसका वर्णन त्रैलोक्य-मोहन-चक्र के रूप में हुआ है। इस चक्र की अनुभूति, जागरण के बिना प्रपञ्च-रूपी माया के बन्धनों से मुक्ति संभव नहीं होती है और माया के बंधनों से युक्त ष-कार वर्ण आधारित मारण-मोहन-उच्चाटन आदि षट्-कर्मों के प्रति आतुरता के स्पष्ट दर्शन भी दुर्भाग्य स्वरूप होते हैं
प्रयागराज का प्रसिद्ध पावन क्षेत्र श्री त्रिवेणी --- जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्त मन की तीनों अवस्थाओं में उत्पन्न होनेवाले विकारों के ज्ञान से युक्त है। इसके लिए इसे षट् कूला क्षेत्र अर्थात् मन के छहों विकारों से ज्ञान से युक्त क्षेत्र भी कहा जाता है। इसके द्वारा भक्त, साधक --- मन में विकारों के उत्पन्न और लय होने का विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करते हैं। मन के विकार मद, क्रोध, लोभ, मोह आदि से अनभिज्ञ होने के कारण यहां से दुर्घटनाओं की सूचना भी प्राप्त होती रही हैं। आवश्यकता है कि श्री त्रिवेणी के ज्ञान से भली-भांति युक्त होने का प्रयास किया जाए, जिससे निर्भय करनेवाले आत्म-ज्ञान-रूपी अमृतेश्वरी त्रिवेणी देवी का सान्निध्य प्राप्त हो!
जो हम सब के लिए एक हैं, जो हम सबके लिए प्रीति-दायक हैं, जिनमें हम सब लीन हो जाते हैं, वे श्री त्रिवेणी हमारे लिए सिद्धि दायक हों
जो जाग्रत्, स्वप्न एवं सुषुप्त तीनों अवस्थाओं में उत्पन्न होनेवाले विकारों का ज्ञान प्रदान करती हैं, श्रुतियों में जो विकारों से रहित निर्विकार नाम से प्रसिद्ध हैं, उन श्री त्रिवेणी की कृपा मुझे प्राप्त हो
जो हमारी देह में इन्द्रियों, प्राणों, मन, बुद्धि, चित्त, अंहकार आदि भिन्न-भिन्न रूपों में हैं, जो इन सबका प्रत्येक क्षण निरीक्षण कर रही हैं, जो अपने तेज से सदैव स्फुरित हो रही हैं, जो साक्षात्कार करने योग्य हैं, वे त्रिवेणी हमारे लिए परमात्मा से युक्त करनेवाली सिद्धि को प्रदान करनेवाली हों