02/07/2025
मिलिए, पहली महिला पत्रकार शारदा उगरा से
जब 1989 में सचिन तेंदुलकर ने अपना पहला टेस्ट खेला, उसी साल शारदा उगरा ने अपनी पहली पत्रकारिता की नौकरी शुरू की।
एक आम मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की होने के नाते, उनके सामने करियर के गिने-चुने विकल्प थे, लेकिन खेल के प्रति उनका प्यार इतना गहरा था कि उन्होंने तय कर लिया, जिसके बारे में उन्होंने कहा था-
"मैं बहुत बुरी एथलीट थी, लेकिन खेल देखना, पढ़ना, और उस पर लिखना मुझे बेहद पसंद था।"
जब कॉलेज के दिनों में उन्होंने और उनके दोस्तों ने पाकिस्तान के पूर्व कप्तान इमरान ख़ान का इंटरव्यू लिया।
पूरे कॉलेज में उनकी चर्चा हुई और यहीं से उन्हें एहसास हुआ कि वो इस दुनिया में कुछ कर सकती हैं।
उनकी पहली नौकरी थी मुंबई के Mid-Day अख़बार में। वहीं से शुरू हुआ सफर!
वो बताती हैं कि खेल पत्रकारों की दुनिया में महिलाओं को जगह नहीं मिलती थी। प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब वो अकेली महिला होतीं, कोई उन्हें गंभीरता से नहीं लेता था।
"मैं सालों तक सिर्फ इसलिए सवाल नहीं पूछ पाई क्योंकि मुझे डर था कि लोग कहेंगे देखो, बेवकूफ़ लड़की सवाल पूछ रही है,"
एक बार इंडोर स्टेडियम में टॉयलेट तक नहीं था, तो वहां खेल रही टीम ने शारदा के लिए ड्रेसिंग रूम खाली करवा दिया, क्योंकि और कोई विकल्प ही नहीं था।
लेकिन वह हर मुश्किल को पार करती गयी और मैदान में डटी रहीं, उन्होंने भारत और विश्व के बड़े टूर्नामेंट कवर किए, ESPN और Cricinfo की सीनियर एडिटर बनीं, और खेल पत्रकारिता में महिलाओं के लिए एक रास्ता तैयार किया।
शारदा उगरा सिर्फ खेल पत्रकार नहीं हैं, वो उस हर लड़की की प्रेरणा हैं, जो अकेले किसी नए मैदान में उतरने से डरती है।