01/09/2023
1990 के दशक में उत्तरप्रदेश के पर्वतीय आंचल (कुमाऊं और गढ़वाल) को मिलाकर एक प्रथक राज्य बनाने की मांग को लेकर पर्वतीय क्षेत्र के लोगों ने देहरादून, मसूरी, खटीमा, नैनीताल और अल्मोड़ा इत्यादि जगहों पर प्रदर्शन करने शुरू कर दिए।
जिसमें नारे लगने लगे “कोंदा- झुंगरा खाएंगे उत्तराखंड बनाएंगे“, “आज दो अभी दो उत्तराखंड राज दो“
इसी बौखलाहट में तत्कालीन उत्तरप्रदेश सरकार ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलवा कर एक ऐसा काला अध्याय लिखा जो कभी भुलाया नहीं जा सकता।
इन छोटे-छोटे प्रदर्शनों से परेशान होकर तत्कालीन उत्तरप्रदेश सरकार ने अपना तानाशाही रूप दिखाते हुए प्रदर्शनकारियों पर दमनकारी निति और गुंडागर्दी का इस्तेमाल कर उन्हें डराने-धमकाने का हर संभव प्रयास किया, लोगों को अकारण ही जेलों में बंद कर दिया, महिलाओं के साथ अत्याचार किए, सरकारी तंत्र का दुरुपयोग किया
सरकार की इस गुंडागर्दी के विरोध में 1 सितंबर 1994 को जब तत्कालीन उत्तरप्रदेश के खटीमा में कुमाऊं क्षेत्र के पर्वतीय इलाकों से 10000 से ज्यादा प्रदर्शनकारी जिसमें पूर्व सैनिक, महिलाएं, विद्यार्थी और बच्चे भी शामिल थे सभी शांतिपूर्ण ढंग से एक स्वर में नारेबाजी करते हुए पुलिस थाने के सामने से गुजर रहे थे कि तभी पुलिस द्वारा उन पर पथराव व गोलीबारी शुरू कर दी गई, बताया जाता है कि सुबह 11 बजकर 20 मिनट से दोपहर 12 बजकर 50 मिनट तक पूरे डेढ घंटे तक गोलीबारी होती रही जिसमें 8 आन्दोलनकारीयों की मौत की पुष्टि हुई तथा सैकड़ों लोग घायल हो गए।
पुलिस ने महिलाओं और पूर्व सैनिकों को उपद्रवी बताने के लिए इस निंदनीय घटना को जवाबी कारवाही बताया और सरकार ने इसे जवाबी कारवाही मान भी लिया।
1 सितंबर 1994 की इस घटना को खटीमा गोलीकांड के नाम से जाना जाता है, हर साल प्रदेश के लोग 1 सितंबर को खटीमा गोलीकांड के शहीदों की बरसी मनाते हैं लेकिन प्रथक राज्य की जिस कल्पना के साथ आन्दोलन किए गए और आन्दोलनकारी शहीद हुए उनके अलग राज्य की कल्पना भी उनके साथ ही शहीद हो गई क्योंकि इस घटना के 6 साल बाद हमें प्रथक राज्य तो मिल गया लेकिन आज भी शहीदों के सपनों का उत्तराखंड नहीं मिल पाया।
न तो पर्वतीय राज्य को अपनी स्थायी राजधानी मिल सकी, न ही अपने प्राकृतिक संसाधनों पर हक, न रोजगार मिल सका, न मिल सका सशक्त भू-कानून और न मिल सका मूल निवास 1950।
अंत में एक बार फिर से खटीमा गोलीकांड में शहीद होने वाले उत्तराखण्ड के सपूत प्रताप सिंह, सलीम अहमद, भगवान सिंह, धर्मानन्द भट्ट, गोपीचंद, परमजीत सिंह, रामपाल, भुवन सिंह को हम नमन करते हैं और उम्मीद करते हैं कि उनके सपनों का उत्तराखंड बनेगा।।
#खटीमा_गोलीकांड