Vedpunj News

Vedpunj News यह पेज समाचारों के लिये बनाया है ।,

28/09/2025

Enjoy the videos and music you love, upload original content, and share it all with friends, family, and the world on YouTube.

1913 मे डोली-डाना शिल्पकार सम्मेलन आंदोलन की स्मृति में रैमजे  इंटर कालेज अल्मोड़ा में ऐतिहासिक सम्मेलन हरी प्रसाद टम्टा...
28/09/2025

1913 मे डोली-डाना शिल्पकार सम्मेलन आंदोलन की स्मृति में रैमजे इंटर कालेज अल्मोड़ा में ऐतिहासिक सम्मेलन हरी प्रसाद टम्टा की भूमिका पर चर्चा
---------------------------------------
अल्मोड़ा, 28 सितंबर 2025: ब्रिटिश काल में दलितों के खिलाफ चली असमानता की जंग को याद करते हुए आज रैमजे इंटर कालेज के प्रागण में अल्मोड़ा के डोलीडाना सम्मेलन की शताब्दी स्मृति में एक भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया। 1914 में अल्मोड़ा में आर्य समाज के नेतृत्व में शुरू हुए इस ऐतिहासिक आंदोलन ने सामाजिक समानता की नींव रखी थी, जब अश्पृष्य.समाज के भेदभावों की जकडन से बाहर निकालने के लिये आर्य लमाज के नेता लाला जाजपत राय ने अधिकार दिलाने के लिए हजारों लोगों ने सड़कों पर उतरकर ब्रिटिश शासन और ऊपरी जातियों के अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद की। इस सम्मेलन को आयोजित करने मे तत्कालिक ताम्र उद्योगपति हरीप्रसाद टम्टा की बड़ी भूमिका थी यह आंदोलन न केवल दलित उत्थान का प्रतीक बना, बल्कि आर्य समाज की शुद्धि और सुधार आंदोलनों को मजबूत करने में भी मील का पत्थर साबित हुआ।
कार्यक्रम की भूमिका रखते हुए समता पत्रिका के सम्पादक दयाशंकर टम्टा ने आंदोलन के प्रमुख नायकों की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि हरीप्रसाद टम्टा ने आंदोलन को संगठित रूप देकर जन-जागरण का नेतृत्व किया, जबकि खुशीराम शिल्पकार ने कारीगर समुदाय को एकजुट कर सामाजिक बंधनों को तोड़ने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसी प्रकार, बलदेव आर्य ने आर्य समाज के सिद्धांतों को लागू कर शुद्धि प्रक्रिया को गति दी, सच्चिदानंद भारती ने धार्मिक प्रवचनों से लोगों को प्रेरित किया, और बालक राम प्रज्ञाचक्षु जैसे नेत्रहीन कार्यकर्ता ने अपनी दृढ़ता से आंदोलन को नई ऊर्जा प्रदान की। टम्टा ने जोर देकर कहा कि यह आंदोलन आज भी सामाजिक न्याय की प्रेरणा स्रोत है, हम समानता और जातिगत भेदभाव के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं।
सम्मेलन को संबोधित करते हुए केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री अजय टम्टा ने आंदोलन के सकारात्मक पहलुओं पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि यह न केवल दलितों को सम्मान दिलाने वाला कदम था, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि में सामाजिक एकता का प्रतीक भी बना। पूर्व सांसद प्रदीप टम्टा ने आंदोलन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को रेखांकित करते हुए कहा कि आर्य समाज के प्रयासों से अल्मोड़ा जैसे छोटे शहरों में भी क्रांतिकारी चेतना जागृत हुई। अल्मोड़ा विधायक मनोज तिवारी ने वर्तमान संदर्भ जोड़ते हुए उल्लेख किया कि ऐसे आंदोलनों की स्मृति हमें असमानता के खिलाफ सतत संघर्ष के लिए प्रेरित करती है। अन्य वक्ताओं ने भी आंदोलन की प्रासंगिकता पर बल दिया, जिसमें सामाजिक सद्भाव और महिला सशक्तिकरण पर विशेष जोर दिया गया।
सम्मेलन में बड़ी संख्या में स्थानीय निवासियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, छात्रों ने भाग लिया। कार्यक्रम में सांस्कृतिक प्रस्तुतियां, वृत्तचित्र प्रदर्शन और स्मृति अभिलेखों का विमोचन भी किया गया। आयोजकों के अनुसार, यह आयोजन न केवल इतिहास को जीवंत करने का माध्यम बना, बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए समानता के मूल्यों को मजबूत करने का संकल्प भी दिलाया। रैमसे इंटर कालेज, जो स्वयं ब्रिटिश काल का एक ऐतिहासिक संस्थान है, ने इस आयोजन के माध्यम से अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को निभाया।
यह सम्मेलन अल्मोड़ा की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो बताता है कि अतीत की लड़ाइयां आज भी हमारे संघर्षों को दिशा प्रदान करती हैं। प्रकाश चन्द्र जोशी ने भी कार्यक्रम को संम्बोधित किया

28/09/2025
25/09/2025

पटवारी पूजा रानी को मिली अग्रिम जमानत
-------------------------------------------
नैनीताल 24 सितम्बर लालकुआं तहसील की पटवारी पूजा रानी को अग्रिम जमानत मिल गई है
यह जमानत उन्हें थाना लालकुआं, जिला नैनीताल में दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 197/2025 (धारा 108, भारतीय न्याय संहिता 2023) के मामले में प्रदान की गई।पटवारी पूजा रानी की ओर से अधिवक्ता सुनील पुंडीर, ज्योति परिहार, शुभम रौतेला और नीमा आर्या ने न्यायालय के समक्ष अग्रिम जमानत का प्रार्थना पत्र दायर किया। तथा न्यायालय मे पूजा रानी को पक्ष मे दमदार तर्क प्रस्तुत किये

अधिवक्ताओं ने पूजा रानी का पक्ष प्रस्तुत करते हुवे कहा कि , पूजा रानी दिसम्बर 2024 में तहसील लालकुआं में पटवारी पद पर नियुक्त हुईं तब से वह अपने कर्तव्यों का समुचित निर्वहन कर रही हैं।मृतक का कोई भी वैध कार्य उनके पास लंबित नहीं था।मृतक द्वारा तहसील परिसर में दबाव बनाकर कार्य कराने की कोशिश की जाती थी, और इंकार करने पर मृतक आत्महत्या की धमकी देता था।सुसाइड नोट में आशा रानी का नाम है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि किस कार्य के संदर्भ में नाम दर्ज किया गया। क्योकि मृतक का कोई कार्य आशा रानी के पास लम्बित नही था ।
अधिवक्ताओ ने कहा कि गिरफ्तारी होने पर उनके पदीय दायित्वों और प्रतिष्ठा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
जबकि अभियोजन की ओर से तर्क प्रस्तुत करते हुवे कहा कि सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) देव सिंह मेहरा ने जमानत का विरोध करते हुए कहा कि
मृतक महेश चन्द्र जोशी एक सामाजिक कार्यकर्ता थे, जो जमीन सम्बन्धी मामलों के लिए तहसील आते थे।
मृतक ने 20 सितम्बर 2025 को तहसील परिसर में जहर खाकर आत्महत्या कर ली और 22 सितम्बर को उपचार के दौरान उनकी मृत्यु हो गई।उनके सुसाइड नोट में स्पष्ट रूप से पटवारी पूजा रानी का नाम दर्ज है।
यदि अग्रिम जमानत दी गई तो अभियुक्ता साक्ष्यों से छेड़छाड़ कर सकती है।

इस पर न्यायालय ने निर्णय सुनाते हुवे कहा कि
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने और दस्तावेजों का अवलोकन करने के बाद
मृतक के कौन से कार्य वास्तव में पूजा रानी के पास लंबित थे, यह विवेचना से स्पष्ट होगा।
प्रथम दृष्टया ऐसा नहीं दिखता कि मृतक के पास आत्महत्या के अलावा कोई और विकल्प नहीं था।
अभियुक्ता एक महिला और लोक सेवक हैं, अतः निजी स्वतंत्रता एवं परिस्थितियों को देखते हुए अग्रिम जमानत दी जाती है।
जमानत की शर्तें इस प्रकार तय की गई अभियुक्ता ₹25,000 का व्यक्तिगत बंधपत्र और समान धनराशि के दो जमानती दाखिल करेगी। तथा विवेचना में सहयोग हेतु जब भी बुलाया जाए, उपस्थित होगी। साक्षियों या साक्ष्यों को प्रभावित नहीं करेगी।
तथा बिना अनुमति भारत नहीं छोड़ेगी।मृतक के कार्य से संबंधित कोई दस्तावेज हो तो विवेचक को उपलब्ध कराएगी।

अल्मोड़ा में गौ सेवा न्यास द्वारा गौ पितृ तर्पण का आयोजनअल्मोड़ा। श्राद्ध पर्व के अवसर पर आज गौ सेवा न्यास गुरुकुल शोले ...
19/09/2025

अल्मोड़ा में गौ सेवा न्यास द्वारा गौ पितृ तर्पण का आयोजन

अल्मोड़ा। श्राद्ध पर्व के अवसर पर आज गौ सेवा न्यास गुरुकुल शोले में गौ संरक्षण के संकल्प के साथ गौ पितृ तर्पण कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में हेम जोशी, आनन्द सिंह बगडवाल प्रताप सिंह सत्याल, यशवंत परिहार, पवन साह, मनोज सनवाल, दयाकृष्ण काण्डपाल, चन्द्रमणी भट्ट, स्वाति तिवारी, जानकी काण्डपाल, आनन्दी वर्मा सहित अनेक लोग उपस्थित रहे।

कार्यक्रम में दायित्वधारी राज्य मंत्री गंगा विष्ट भी अपने सहयोगियों सहित पहुँचीं। उन्होंने गौशाला के प्रबंधन की सराहना की। इस अवसर पर गौ सेवा म्यास के सचिव दयाकृष्ण काण्डपाल ने उन्हें गौशाला की वर्तमान स्थिति से अवगत कराया। उन्होंने बताया कि वर्षा ऋतु में मार्ग क्षतिग्रस्त हो जाने से गौशाला में गायों के आवागमन में दिक्कतें आ रही हैं और मार्गों के निर्माण की आवश्यकता है।

राज्यमंत्री गंगा विष्ट ने समस्याओं का संज्ञान लेते हुए गौशाला को हर संभव सहयोग देने का आश्वासन दिया।

महिलाओ ने किया जैविक केन्द्र चितई  का भ्रमण ------------------------------------- अल्मोड़ा आज दिनांक 17 सितंबर को राज्य ...
17/09/2025

महिलाओ ने किया जैविक केन्द्र चितई का भ्रमण
-------------------------------------
अल्मोड़ा आज दिनांक 17 सितंबर को राज्य जैविक केंद्र के प्रभारी डॉक्टर देवेंद्र नेगी के तत्वाधान में जनपद पौड़ी के 50 महिलाओं का समूह जो की पौड़ी जनपद के अलग-अलग विकासखंडों से आए थे उन्होंने चितई में जैविक उत्पादन के बारे में यहां पर कृषि में उत्कृष्ट कार्य कर रही लता कांडपाल के वहां भ्रमण किया उन्होंने कृषि यंत्रों के साथ-साथ उन्हें अपने मोटे अनाज को हम किस प्रकार से विवरण कर सकते हैं उसके बारे में बारीकी से जानकारी दी तथा यहां की संस्कृति का जो प्रत्येक अल्पना है उसके बारे में भी विस्तार से बताया साथ ही जंगलों की आज काम करने के लिए हम बायो क्रिकेट अर्थात पारुल का कोयला की जानकारी से पौड़ी जनपद की महिलाओं को अवगत कराया महिलाओं ने इस शैक्षिक भ्रमण को बहुत यादगार बताया

खतड़वा: उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर, पशुधन संरक्षण और ऋतु परिवर्तन का प्रतीक----------------------------------------उत...
17/09/2025

खतड़वा: उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर, पशुधन संरक्षण और ऋतु परिवर्तन का प्रतीक
----------------------------------------
उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में आश्विन संक्रांति (कन्या संक्रांति) के दिन मनाया जाने वाला खतड़वा पर्व एक ऐसा लोक उत्सव है, जो किसी हार जीत का दिन नही अपितु समय. परिवर्तन का दिन होता है , खतडुवा जो प्रकृति, पशुपालन और सामुदायिक एकजुटता की गहन समझ को दर्शाता है। यह पर्व न तो किसी ऐतिहासिक युद्ध की स्मृति है और न ही क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता का प्रतीक—बल्कि यह पहाड़ी जीवन की व्यावहारिक आवश्यकताओं और सांस्कृतिक संवेदनशीलता का जीवंत चित्रण है। ठंडी हवाओं के आगमन के साथ पशुओं की रक्षा और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने वाला यह त्योहार, ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार—पशुधन—को सम्मानित करता है। लोक संस्कृति विशेषज्ञ डॉ. शेर सिंह बिष्ट जैसे विद्वानों ने इसे उत्तराखंड की लोक परंपराओं की एक अनमोल निधि के रूप में रेखांकित किया है, जहां पर्यावरणीय सामंजस्य और सामुदायिक सहभागिता की भावना प्रमुख है।
पर्व की रीतियाँ: प्रकृति से संवाद का माध्यम
खतड़वा की शुरुआत सुबह गोठ (पशुशाला) की सफाई से होती है। सूखी घास, पिरुल और झाड़ियों से बने 'खतड़'—जो पहाड़ी भाषा में गर्म बिछौना या रजाई का प्रतीक है—को पशुओं के लिए व्यवस्थित किया जाता है। कांस के फूलों और हरी घास से निर्मित 'बूढ़ा-बूढ़ी' के पुतले गोबर के ढेर पर स्थापित होते हैं, जो ऋतु परिवर्तन के प्रतीक के रूप में शाम को जलाए जाते हैं। इस अग्नि की राख से पशुओं और परिवार के सदस्यों के माथे पर तिलक लगाया जाता है, जो रोगों और ठंड से रक्षा की कामना का प्रतीक है। चीड़ की लकड़ियों से बनी मशालों (छिलुक) को पशुओं के ऊपर घुमाकर आरती की जाती है, जो सामूहिक उत्सव का रूप ले लेती है। ये रीतियाँ न केवल शीत ऋतु की चुनौतियों का सामना करने की तैयारी हैं, बल्कि प्रकृति के चक्र को स्वीकार करने की सांस्कृतिक अभिव्यक्ति भी हैं।
लोकगीत: भावनाओं का संगीतमय अभिव्यक्ति
खतड़वा के लोकगीत पर्व की आत्मा हैं, जो पीढ़ियों से गाए जाते हैं और पशुधन के प्रति गहरे लगाव को उजागर करते हैं। इन गीतों में 'गाय की जीत, खतड़ की हार' का प्रतीकात्मक उल्लेख प्रमुख है, जो गाय की प्राकृतिक गर्मी और उपयोगिता को रजाई (खतड़) से श्रेष्ठ बताता है। एक प्रसिद्ध गीत इस प्रकार है:
"गाय जीती, खतड़ हारा,
भाग खतड़वा भाग!
जाड़े से रक्षा करो,
पशुधन को मंगल दो।"
इस गीत का अर्थ है कि गाय की मौजूदगी गोठ को गर्म रखती है, जिससे ठंड की मार कम होती है—एक जैविक सत्य जो पहाड़ी जीवन की सादगी को प्रतिबिंबित करता है। बच्चे जोर-जोर से गाते हैं, "गाय जीत, खतड़ुवै की हार, भाग खतड़ुवा भाग!", जो पशुओं को लगने वाली बीमारियों ('खतड़ुआ' रोग) की हार का प्रतीक है। ये गीत न केवल मनोरंजन का साधन हैं, बल्कि सामुदायिक एकता को मजबूत करने वाले सांस्कृतिक पुल भी हैं। वे वर्षाकाल की समाप्ति और शरद की शुरुआत को चिह्नित करते हुए, प्रकृति के साथ सामंजस्य की सीख देते हैं।
पर्व की प्रासंगिकता: आधुनिक संदर्भ में सांस्कृतिक संरक्षण
आज के दौर में, जब शहरीकरण और प्रवास के कारण ग्रामीण परंपराएँ लुप्त हो रही हैं, खतड़वा जैसा पर्व पर्यावरण संरक्षण और जैव विविधता के महत्व को याद दिलाता है। यह पशुधन की कुशलता की कामना करता है, जो पहाड़ी कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था का मूल है। ठंडे हिमालयी क्षेत्रों में पशुओं की रक्षा न केवल आर्थिक आवश्यकता है, बल्कि सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा भी। वैश्विक जलवायु परिवर्तन के दौर में, यह पर्व सतत विकास का मॉडल प्रस्तुत करता है—जहां मानव, पशु और प्रकृति का सह-अस्तित्व प्राथमिक है। हाल के वर्षों में, प्रवास के कारण इस पर्व का उत्साह कम हुआ है, लेकिन युवा पीढ़ी द्वारा इसे पुनर्जीवित करने के प्रयास (जैसे सामुदायिक आयोजन और डिजिटल माध्यमों से प्रचार) सकारात्मक संकेत हैं। खतड़वा हमें सिखाता है कि सच्ची विजय संघर्ष में नहीं, बल्कि सामंजस्य और संरक्षण में है।
डॉ. शेर सिंह बिष्ट की टिप्पणी: लोक संस्कृति की गहन व्याख्या
उत्तराखंड की लोक संस्कृति पर गहन कार्य करने वाले डॉ. शेर सिंह बिष्ट ने खतड़वा को 'पशुपालन और ऋतु चक्र की सांस्कृतिक अभिव्यक्ति' के रूप में वर्णित किया है। उनके अनुसार, यह पर्व 'क्षेत्रीय मिथकों से परे, पर्यावरणीय बुद्धिमत्ता का प्रमाण है, जहां पशुओं को परिवार का अभिन्न अंग माना जाता है।' बिष्ट जी के कार्यों, जैसे "उत्तराखंड की लोक संस्कृति" में, वे जोर देते हैं कि ऐसी परंपराओं को ऐतिहासिक भ्रांतियों से मुक्त रखना आवश्यक है, ताकि उनका मूल सांस्कृतिक स्वरूप बरकरार रहे। उनकी दृष्टि में, खतड़वा 'विजय उत्सव' नहीं, बल्कि 'रक्षा और कृतज्ञता का उत्सव' है, जो हिमालयी जीवन की सहनशीलता को प्रतिबिंबित करता है।
निष्कर्ष: सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण
खतड़वा पर्व उत्तराखंड की सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है—एक ऐसा उत्सव जो हार-जीत के द्वंद्व से ऊपर उठकर, जीवन के सतत चक्र को मनाता है। लोकगीतों की मधुर धुनें, रीतियों की सरलता और प्रासंगिकता की गहराई इसे जीवंत बनाती हैं। डॉ. शेर सिंह बिष्ट जैसे विद्वानों की अंतर्दृष्टि हमें प्रेरित करती है कि ऐसी परंपराओं को संरक्षित रखें, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ इस सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ सकें। आइए, इस पर्व को अपनाकर प्रकृति और पशुधन के प्रति अपनी जिम्मेदारी को मजबूत करें—क्योंकि सच्ची संस्कृति संरक्षण में ही फलती-फूलती है।

17/09/2025

फरोज़ गांधी: जीवन, योगदान और इंदिरा गांधी से विवाह
-----------------------------------------
फरोज़ गांधी (12 सितंबर 1912 – 8 सितंबर 1960) एक भारतीय पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे, जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता संग्राम और उसके बाद के लोकतांत्रिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पति और राजीव गांधी के पिता थे। पारसी समुदाय से आने वाले फरोज़ गांधी का जीवन और कार्य भारत की राजनीति और समाज में एक अमिट छाप छोड़ गया।
जन्म और प्रारंभिक जीवन
फरोज़ जहांगीर घांडी का जन्म 12 सितंबर 1912 को बॉम्बे (वर्तमान मुंबई) में एक गुजराती पारसी परिवार में हुआ था। उनके पिता जहांगीर फरदून घांडी एक समुद्री इंजीनियर थे, और उनकी माता रतिमाई कोम्मिसरियट एक पारसी महिला थीं। फरोज़ अपने चार भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई में हुई, और बाद में वे उच्च शिक्षा के लिए लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स गए, जहाँ उनकी मुलाकात जवाहरलाल नेहरू की बेटी इंदिरा नेहरू से हुई।
फरोज़ का धर्म जोरोस्ट्रियन (पारसी) था, और उनके परिवार की जड़ें गुजरात के सूरत और नवसारी क्षेत्र से थीं। उन्होंने महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर अपने उपनाम को 'घांडी' से 'गांधी' में बदल लिया, हालांकि वे महात्मा गांधी से रक्त-संबंधी नहीं थे।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
फरोज़ गांधी ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। लंदन में पढ़ाई के दौरान वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति जागरूक हुए और भारत लौटकर इलाहाबाद में जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हो गए। वे 'नवजीवन' अखबार के प्रबंध संपादक बने, जो कांग्रेस के विचारों को प्रचारित करता था। इसके अलावा, उन्होंने 1930 के दशक में इलाहाबाद में किसान आंदोलनों को संगठित करने में मदद की और कई बार जेल भी गए। उनकी निडर पत्रकारिता और संगठनात्मक क्षमता ने उन्हें स्वतंत्रता सेनानियों के बीच सम्मान दिलाया।
इंदिरा गांधी से विवाह
फरोज़ गांधी और इंदिरा नेहरू की मुलाकात 1930 के दशक में लंदन में हुई थी, जब दोनों पढ़ाई के लिए वहाँ थे। उनकी दोस्ती धीरे-धीरे प्रेम में बदल गई। 1942 में, इलाहाबाद में एक पारंपरिक हिंदू रीति-रिवाज के साथ उनका विवाह हुआ। यह विवाह उस समय विवादास्पद रहा, क्योंकि फरोज़ पारसी थे और इंदिरा हिंदू, जिसके कारण सामाजिक और धार्मिक स्तर पर कुछ विरोध हुआ। जवाहरलाल नेहरू ने इस विवाह का समर्थन किया, और महात्मा गांधी ने भी इसे स्वीकार किया।
इस दंपति के दो पुत्र हुए: राजीव गांधी (1944-1991) और संजय गांधी (1946-1980)। फरोज़ और इंदिरा का वैवाहिक जीवन समय के साथ तनावपूर्ण रहा, लेकिन दोनों ने अपने निजी और सार्वजनिक जीवन को अलग रखते हुए देश के लिए काम किया।
राजनीतिक और सामाजिक योगदान
स्वतंत्रता के बाद, फरोज़ गांधी ने भारतीय राजनीति में एक स्वतंत्र और साहसी आवाज के रूप में अपनी पहचान बनाई। वे 1952 और 1957 में उत्तर प्रदेश के रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा सांसद चुने गए। संसद में उनकी भूमिका एक निगरानीकर्ता (watchdog) की थी, जो सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करने में विश्वास रखते थे।
लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा: फरोज़ गांधी को संसदीय लोकतंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए जाना जाता है। 1950 के दशक में उन्होंने कई भ्रष्टाचार के मामलों को उजागर किया, विशेष रूप से एलआईसी घोटाला (1957), जिसमें उन्होंने तत्कालीन वित्त मंत्री टी.टी. कृष्णमाचारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को संसद में उठाया। इस घोटाले ने सरकार को जवाबदेह बनाने में उनकी साहसी भूमिका को दर्शाया।
पत्रकारिता और जनजागरण: फरोज़ ने 'नेशनल हेराल्ड' और 'नवजीवन' जैसे समाचार पत्रों के माध्यम से जनता को जागरूक करने का काम किया। उनकी पत्रकारिता स्वतंत्रता और निष्पक्षता के सिद्धांतों पर आधारित थी।
श्रमिक और किसान हित: उन्होंने उत्तर प्रदेश में श्रमिकों और किसानों के अधिकारों के लिए काम किया और सामाजिक न्याय के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई।
मृत्यु और विरासत
फरोज़ गांधी का निधन 8 सितंबर 1960 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ, जब वे केवल 48 वर्ष के थे। उनकी मृत्यु ने भारतीय राजनीति में एक शून्य छोड़ा, क्योंकि वे एक निडर और स्वतंत्र विचारक थे। उनकी विरासत उनके बेटों, विशेष रूप से राजीव गांधी के माध्यम से, जो बाद में भारत के प्रधानमंत्री बने, और उनकी पत्नी इंदिरा गांधी के योगदान के साथ जुड़ी रही।
निष्कर्ष
फरोज़ गांधी एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम, पत्रकारिता और संसदीय लोकतंत्र में अपनी पहचान बनाई। इंदिरा गांधी से उनका विवाह न केवल एक निजी संबंध था, बल्कि यह भारत के राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। उनकी साहसिक और स्वतंत्र सोच आज भी प्रेरणा देती है।

Address

DUGALKHOLA
Almora

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Vedpunj News posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Share