Uttar.aanchal Beauty

Uttar.aanchal Beauty जय देवभूमि । जय उत्तरांचल 🔱

नया घर कितना भी खूबसूरत हो, लेकिन पुराना घर फिर भी आंखों में पानी ला देता है।😔
22/04/2025

नया घर कितना भी खूबसूरत हो, लेकिन पुराना घर फिर भी आंखों में पानी ला देता है।😔



A gentle reminder that endings can be beautiful too.🌅
01/11/2024

A gentle reminder that endings can be beautiful too.🌅

यह महिंद्रा जीप, पुरानी दौर की सवारी,मिट्टी की सड़कों पर, चलती थी भारी।धूल उड़ाते खेतों के बीच,गांव के रास्तों में इसका ...
04/10/2024

यह महिंद्रा जीप, पुरानी दौर की सवारी,
मिट्टी की सड़कों पर, चलती थी भारी।
धूल उड़ाते खेतों के बीच,
गांव के रास्तों में इसका राज था निच।

पहियों की खड़खड़, इंजन की आवाज,
सहजता से चीरती, हर मुश्किल के बाज।
बूढ़े पेड़ों के नीचे खड़ी,
जीप की छांव में होती बातें बड़ी।

न दहेज़ की चिंता, न शहरी भीड़,
महिंद्रा जीप में मिलती थी पूरी भीतरी शांति।
रहट के किनारे, खेतों की सैर,
जीप का साथ जैसे कोई पुराना प्यारा प्यार।

समय के साथ, बदल गई सवारी,
पर वो पुरानी महिंद्रा जीप आज भी है प्यारी।
याद दिलाती वो बीते दिनों का समर्पण,
हर सफर में था अपनापन, हर मोड़ पर था गर्व।


नसीब और कर्म में क्या अंतर है :1. नसीब (भाग्य): इसे हम उन घटनाओं या परिस्थितियों के रूप में देख सकते हैं, जो हमारी इच्छा...
25/09/2024

नसीब और कर्म में क्या अंतर है :

1. नसीब (भाग्य): इसे हम उन घटनाओं या परिस्थितियों के रूप में देख सकते हैं, जो हमारी इच्छा या प्रयास के बिना होती हैं। यह जीवन में अनियंत्रित और अप्रत्याशित पहलुओं को दर्शाता है। इसे अक्सर किस्मत के रूप में देखा जाता है, जो हमारे पूर्वजन्मों के कर्मों या ब्रह्मांडीय शक्तियों पर निर्भर माना जाता है।

2. कर्म: यह हमारे द्वारा किए गए कार्यों और प्रयासों का परिणाम होता है। कर्म सिद्धांत के अनुसार, हम अपने वर्तमान और भविष्य को अपने कर्मों के माध्यम से आकार देते हैं। यह पूरी तरह से हमारी इच्छा, मेहनत और निर्णय पर आधारित होता है।

अन्तर:
- नसीब हमें बिना किसी प्रयास के मिलती है, जबकि कर्म हमारे द्वारा किए गए कार्यों का परिणाम होता है।
- नसीब को हम नियंत्रित नहीं कर सकते, लेकिन कर्म पर हमारा पूर्ण नियंत्रण होता है।
- कर्म के अनुसार, अच्छा कर्म अच्छा परिणाम लाता है और बुरा कर्म बुरा परिणाम। नसीब को इस रूप में देखा जाता है कि वह कभी भी बदल सकता है।

इसलिए, नसीब जीवन में होने वाली अज्ञात परिस्थितियों का प्रतीक है, जबकि कर्म हमारे द्वारा किए गए कार्यों का प्रभाव है।

एक वक्त था जब गांव के सब लोग बस में बैठकर बाजार जाया करते थे सड़क पर चलती बस जब अपना खास हार्न बजाती तो घरों में पता चलत...
10/09/2024

एक वक्त था जब गांव के सब लोग बस में बैठकर बाजार जाया करते थे सड़क पर चलती बस जब अपना खास हार्न बजाती तो घरों में पता चलता कि पहला टाइम गुजर रहा है।

किसी को अपने यहां मेहमान आने की जानकारी होती और किसी को अपने घर बैठे मेहमान को रावाना करने की फिक्र होती,

और फिर वक्त बदल गया.
रोड बदल गए. लोग बदल गए.. मोहब्बतें बदल गई.. बसें बदल गई.. साइकिल ठिकाने लग गई.. पेड़ कट गए.. चिड़िया उड़ गई..

चहचहाट थम गई पैदल वाले रास्तों पर घास उग गई. और फिर गांव के लोग आपस में बेगाने हो गए. एक दूसरे की परवाह खत्म हो गई.. और इस तरह एक हसीन जमाने का अंत हो गया

कुमाऊँनी लोकगीत - बेडु पाको बारो मासा, ओ नरण काफल पाको चैत मेरी छैलाबेडु पाको बारो मासा, ओ नरण काफल पाको चैत मेरी छैला -...
06/09/2024

कुमाऊँनी लोकगीत -

बेडु पाको बारो मासा, ओ नरण काफल पाको चैत मेरी छैला
बेडु पाको बारो मासा, ओ नरण काफल पाको चैत मेरी छैला - २

भुण भुण दीन आयो -२ नरण बुझ तेरी मैत मेरी छैला -२
बेडु पाको बारो मासा -२, ओ नरण काफल पाको चैत मेरी छैला - २

आप खांछे पन सुपारी -२, नरण मैं भी लूँ छ बीडी मेरी छैला -२
बेडु पाको बारो मासा -२, ओ नरण काफल पाको चैत मेरी छैला - २

अल्मोडा की नंदा देवी, नरण फुल छदुनी पात मेरी छैला
बेडु पाको बारो मासा -२, ओ नरण काफल पाको चैत मेरी छैला - २

त्यार खुटा मा कांटो बुड्या, नरणा मेरी खुटी पीडा मेरी छैला
बेडु पाको बारो मासा -२, ओ नरण काफल पाको चैत मेरी छैला - २

अल्मोडा को लल्ल बजार, नरणा लल्ल मटा की सीढी मेरी छैला
बेडु पाको बारो मासा -२, ओ नरण काफल पाको चैत मेरी छैला - २

अर्थ :-

"बेडु पाको बारामासा" गीत के पीछे एक गहरा सांस्कृतिक और भावनात्मक अर्थ छिपा है। यह सिर्फ एक साधारण लोकगीत नहीं है, बल्कि उत्तराखंड के पहाड़ी जीवन के प्रति प्रेम, वहाँ की प्राकृतिक सुंदरता, और समाज की सादगी का प्रतीक है। गाने के गहरे अर्थ को समझने के लिए हमें इन पहलुओं पर ध्यान देना होगा:

1. प्रकृति और समय की चक्रीयता

"बेडु पाको बारामासा" का शाब्दिक अर्थ है कि "बेडू" (एक पहाड़ी फल) सालभर पकता है, और "काफल" चैत (मार्च-अप्रैल) में। यह प्रकृति की अनवरतता और समय की चक्रीयता को दर्शाता है। यह गीत दर्शाता है कि जैसे ये फल अपने समय पर पकते हैं, वैसे ही जीवन भी अपने समय पर आगे बढ़ता है। जीवन में कठिनाइयाँ और खुशियाँ समय-समय पर आती हैं, लेकिन प्रकृति की तरह हर चीज का समय होता है।

2. सरलता और आत्मनिर्भरता

गीत में जिस तरह से बेडू और काफल जैसे स्थानीय फलों का उल्लेख किया गया है, वह पहाड़ी लोगों की आत्मनिर्भरता और अपने परिवेश के प्रति उनके गहरे संबंध को दर्शाता है। उत्तराखंड के लोग प्रकृति के साथ गहरे संबंध में रहते हैं, जहाँ उनकी जरूरतें प्राकृतिक संसाधनों से पूरी होती हैं। यह उनकी संस्कृति में गहराई से बसा हुआ है।

3. प्यार और रिश्तों का गहराई से वर्णन

गीत में बार-बार "छैला" शब्द का प्रयोग प्रेम और अपने प्रिय के प्रति लगाव को दर्शाता है। यह प्यार सिर्फ रोमांटिक नहीं है, बल्कि इसमें गहरा भावनात्मक और सामाजिक जुड़ाव भी है। रिश्तों की यह गहराई और भावनाओं की सरल अभिव्यक्ति पहाड़ी समाज की विशिष्टता को दिखाती है, जहाँ लोग अपने प्रियजनों से प्रेम और सम्मान से जुड़े होते हैं।

4. संघर्ष और सहनशीलता

गीत में "त्यार खुटा मा कांटो बुड्या" (कांटे पैरों में चुभते हैं) जैसी पंक्तियाँ जीवन की कठिनाइयों और संघर्षों का प्रतीक हैं। पहाड़ी जीवन आसान नहीं होता, वहाँ कठिनाइयाँ और चुनौतियाँ होती हैं, लेकिन लोग धैर्य और सहनशीलता के साथ जीवन की इन चुनौतियों का सामना करते हैं। यह पंक्ति उस आंतरिक शक्ति और सहनशीलता को दर्शाती है, जो पहाड़ी लोगों के जीवन का अभिन्न हिस्सा है।

5. सांस्कृतिक गौरव और विरासत

अल्मोड़ा की "नंदा देवी" और "लल्ल बाजार" का जिक्र उत्तराखंड की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को दर्शाता है। नंदा देवी उत्तराखंड के लोगों की आराध्य देवी हैं और इस गीत में उनका जिक्र, पारंपरिक और सांस्कृतिक प्रतीकों के प्रति गहरे सम्मान को दर्शाता है। यह गीत सिर्फ मनोरंजन नहीं है, बल्कि अपने मूल्यों, धर्म, और परंपराओं को जीवित रखने का एक तरीका है।

6. स्थानीयता और सामुदायिक जीवन

गीत में स्थानीय फलों, बाजारों, और सामाजिक जीवन का वर्णन भी सामुदायिक जीवन के महत्व को दर्शाता है। उत्तराखंड का समाज छोटे, घनिष्ठ समुदायों में बसा हुआ है, जहाँ लोग एक-दूसरे के साथ मिल-जुलकर रहते हैं। यह गीत इस सामुदायिक जीवन और आपसी सहयोग का भी प्रतीक है।

निष्कर्ष:

"बेडु पाको बारामासा" सिर्फ एक लोकगीत नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक दर्पण है, जो उत्तराखंड के जीवन, संघर्षों, प्रेम, और प्रकृति से जुड़ी आत्मीयता को गहराई से दर्शाता है। यह गीत उन भावनाओं और मूल्यों को संजोए हुए है, जो पहाड़ी जीवन की सादगी और गहराई को प्रतिबिंबित करते हैं।


fans

हे मेरू पहाड़, हे मेरु उत्तराखंड,  जहाँ बर्फ छ, ऊंच-ऊंच चमकद,  जहाँ छनदी धार बगैर छ,  मनख तेरी याद म, हर दम जागीर छ।प्यू...
27/08/2024

हे मेरू पहाड़, हे मेरु उत्तराखंड,
जहाँ बर्फ छ, ऊंच-ऊंच चमकद,
जहाँ छनदी धार बगैर छ,
मनख तेरी याद म, हर दम जागीर छ।

प्यूंली के फूल, ऊचां बुरांश,
ह्वे घन्यारा जंगल, ह्वे हरियाल औ घांस,
गौं की गल्याण, माटी की सौंधी सुगंध,
त्यार बगैर त को ठौर छ? तेरी याद म मेर मन फड़फड़ंद।

ह्वे गौं के ईंछण, कच्ची रौंली भट,
जहां बसा ह्वे छ सारा संसारक स्वाद,
जंय बगैर छ खुशबू, हंस, हेरालु, प्यार,
बौरक बौर म, मेर मन त्यार के बिन बेमतलाब छ।

हे मेरू पहाड़, तू ही मेर संसार,
तेरी गोद म, छ मेर हृदय सुकूनवार,
तू दूर सही, पर दिल म छ नजदीक,
हे मेरू उत्तराखंड, तू ही मेर प्रेरणा, तू ही मेर संगीत।

विचार :- गौरव फुलारा

"Embracing the calm of a cloudy day, where nature finds its quiet beauty beneath a blanket of gray."
22/08/2024

"Embracing the calm of a cloudy day, where nature finds its quiet beauty beneath a blanket of gray."


उत्तराखंड की यादेंदूर कहीं परदेश में, यादें लौट आती हैं,उत्तराखंड की वादियाँ, फिर आँखों में समाती हैं।पहाड़ों की वो चोटी...
11/07/2024

उत्तराखंड की यादें

दूर कहीं परदेश में, यादें लौट आती हैं,
उत्तराखंड की वादियाँ, फिर आँखों में समाती हैं।

पहाड़ों की वो चोटी, नीला अम्बर छूता था,
हरे-भरे बाग़ों में, मन मेरा झूमता था।

नदी की कलकल, झरनों की बूँदें शीतल,
माँ की ममता, बाबू की डाँटें मृदुल।

मंदिर की घंटियाँ, आरती की वो धुन,
मन में बसती, हर एक छोटी-सी धुन।

लोकगीतों की वो मिठास, धाम की वो सुवास,
बुरांस के फूलों की खुशबू, छू जाती दिल की आस।

हर रोज़ की रौनक, मेले की रंगत,
अब भी मन में बसी, वो गाँव की महक।

यादें वो बचपन की, खेलकूद और साथी,
दूर रह कर भी, मैं उत्तराखंड का ही हूं राही।

समय बितता जाए, दिल वही ठहरता है,
उत्तराखंड की मिट्टी में, मेरा दिल बसा रहता है।

जितनी दूर भी रहूँ, ये वादा है मेरा,
उत्तराखंड का प्रेम, कभी न होगा अधूरा।
गौरव फुलारा
Aáyúsh Fülârà

जून चला गया, रौनक भी चली गयीकोई शहर चले गये कोई भाबर चले गये|साथ मे चले गये प्याजों के कट्टे और लासण के झुण्टेऔर बेडू ति...
10/07/2024

जून चला गया, रौनक भी चली गयी
कोई शहर चले गये कोई भाबर चले गये|
साथ मे चले गये प्याजों के कट्टे और लासण के झुण्टे
और बेडू तिमला काफल की तस्वीरें
चले गये बोलकर कि असूज मे भेज देना ककडी़ मुंगरी के फन्चे

वो आये कुछ दिन और बढा़ गये
गाँवों पन्देरों की चहल पहल
कच्ची सड़कों पर ट्रैफिक
और बाजारों की खरीददारी

कुछ हमसे सीख कर कुछ हमे सिखा कर गये
सीख कर गये आलू की थिचोंणी,
और आलण बनाना
सिखा कर गये जन्मदिन सालगिरह मनाना
रील्स और ब्लाग बनाना
किटी पार्टी करना सिखा गये कारों मे, धारों मे और बाजारों मे,

ऊपर ढय्यों के बन्द मन्दिरों मे बजा गये घण्टियाँ
और बता गये इनकी धार्मिक महत्ता|

अपनी तो मजबूरी बताकर
समझा गये हमें क्यारी खेती बाडी़ करने
गाय भैंस पालने के फायदे,
और स्वरोजगार के कायदे |

बस कुछ दिन ही खडी़ रही
गाँवो के ऊपर नीचे सारियों मे लाल
सफेद काली चमचमाती कारें
जो सरपट दौड़कर छोड़ गये हमे फिर अकेला

मगर हमारे अकेलेपन को देखकर
साथ देने आ गयी
रिमझिम बरखा की बूँदे,
निकल आई घास की कोंपलें
डाण्डों से उड़ता कोहरा
अभी तो छुय्ये भी फूटेंगे
नीचे गदेरा भी जोर से पुकारेगा
उन्हे तरसायेगा हर्षायेगा और फिर यहीं बुलायेगा।

जय हो मेरी देवभूमि उत्तराखंड 👏😘😘

मांगने पर जहाँ पूरी हर मन्नत होती है,माँ के पैरों में ही तो वो जन्नत होती हैएक दुनिया है जो समझाने से भी नहीं समझती,एक म...
05/05/2024

मांगने पर जहाँ पूरी हर मन्नत होती है,
माँ के पैरों में ही तो वो जन्नत होती है
एक दुनिया है जो समझाने से भी नहीं समझती,
एक माँ थी बिन बोले सब समझ जाती थी.


Which one is best?

Address

Chakhutiya
Delhi
263656

Website

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Uttar.aanchal Beauty posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Business

Send a message to Uttar.aanchal Beauty:

Share