06/09/2024
कुमाऊँनी लोकगीत -
बेडु पाको बारो मासा, ओ नरण काफल पाको चैत मेरी छैला
बेडु पाको बारो मासा, ओ नरण काफल पाको चैत मेरी छैला - २
भुण भुण दीन आयो -२ नरण बुझ तेरी मैत मेरी छैला -२
बेडु पाको बारो मासा -२, ओ नरण काफल पाको चैत मेरी छैला - २
आप खांछे पन सुपारी -२, नरण मैं भी लूँ छ बीडी मेरी छैला -२
बेडु पाको बारो मासा -२, ओ नरण काफल पाको चैत मेरी छैला - २
अल्मोडा की नंदा देवी, नरण फुल छदुनी पात मेरी छैला
बेडु पाको बारो मासा -२, ओ नरण काफल पाको चैत मेरी छैला - २
त्यार खुटा मा कांटो बुड्या, नरणा मेरी खुटी पीडा मेरी छैला
बेडु पाको बारो मासा -२, ओ नरण काफल पाको चैत मेरी छैला - २
अल्मोडा को लल्ल बजार, नरणा लल्ल मटा की सीढी मेरी छैला
बेडु पाको बारो मासा -२, ओ नरण काफल पाको चैत मेरी छैला - २
अर्थ :-
"बेडु पाको बारामासा" गीत के पीछे एक गहरा सांस्कृतिक और भावनात्मक अर्थ छिपा है। यह सिर्फ एक साधारण लोकगीत नहीं है, बल्कि उत्तराखंड के पहाड़ी जीवन के प्रति प्रेम, वहाँ की प्राकृतिक सुंदरता, और समाज की सादगी का प्रतीक है। गाने के गहरे अर्थ को समझने के लिए हमें इन पहलुओं पर ध्यान देना होगा:
1. प्रकृति और समय की चक्रीयता
"बेडु पाको बारामासा" का शाब्दिक अर्थ है कि "बेडू" (एक पहाड़ी फल) सालभर पकता है, और "काफल" चैत (मार्च-अप्रैल) में। यह प्रकृति की अनवरतता और समय की चक्रीयता को दर्शाता है। यह गीत दर्शाता है कि जैसे ये फल अपने समय पर पकते हैं, वैसे ही जीवन भी अपने समय पर आगे बढ़ता है। जीवन में कठिनाइयाँ और खुशियाँ समय-समय पर आती हैं, लेकिन प्रकृति की तरह हर चीज का समय होता है।
2. सरलता और आत्मनिर्भरता
गीत में जिस तरह से बेडू और काफल जैसे स्थानीय फलों का उल्लेख किया गया है, वह पहाड़ी लोगों की आत्मनिर्भरता और अपने परिवेश के प्रति उनके गहरे संबंध को दर्शाता है। उत्तराखंड के लोग प्रकृति के साथ गहरे संबंध में रहते हैं, जहाँ उनकी जरूरतें प्राकृतिक संसाधनों से पूरी होती हैं। यह उनकी संस्कृति में गहराई से बसा हुआ है।
3. प्यार और रिश्तों का गहराई से वर्णन
गीत में बार-बार "छैला" शब्द का प्रयोग प्रेम और अपने प्रिय के प्रति लगाव को दर्शाता है। यह प्यार सिर्फ रोमांटिक नहीं है, बल्कि इसमें गहरा भावनात्मक और सामाजिक जुड़ाव भी है। रिश्तों की यह गहराई और भावनाओं की सरल अभिव्यक्ति पहाड़ी समाज की विशिष्टता को दिखाती है, जहाँ लोग अपने प्रियजनों से प्रेम और सम्मान से जुड़े होते हैं।
4. संघर्ष और सहनशीलता
गीत में "त्यार खुटा मा कांटो बुड्या" (कांटे पैरों में चुभते हैं) जैसी पंक्तियाँ जीवन की कठिनाइयों और संघर्षों का प्रतीक हैं। पहाड़ी जीवन आसान नहीं होता, वहाँ कठिनाइयाँ और चुनौतियाँ होती हैं, लेकिन लोग धैर्य और सहनशीलता के साथ जीवन की इन चुनौतियों का सामना करते हैं। यह पंक्ति उस आंतरिक शक्ति और सहनशीलता को दर्शाती है, जो पहाड़ी लोगों के जीवन का अभिन्न हिस्सा है।
5. सांस्कृतिक गौरव और विरासत
अल्मोड़ा की "नंदा देवी" और "लल्ल बाजार" का जिक्र उत्तराखंड की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को दर्शाता है। नंदा देवी उत्तराखंड के लोगों की आराध्य देवी हैं और इस गीत में उनका जिक्र, पारंपरिक और सांस्कृतिक प्रतीकों के प्रति गहरे सम्मान को दर्शाता है। यह गीत सिर्फ मनोरंजन नहीं है, बल्कि अपने मूल्यों, धर्म, और परंपराओं को जीवित रखने का एक तरीका है।
6. स्थानीयता और सामुदायिक जीवन
गीत में स्थानीय फलों, बाजारों, और सामाजिक जीवन का वर्णन भी सामुदायिक जीवन के महत्व को दर्शाता है। उत्तराखंड का समाज छोटे, घनिष्ठ समुदायों में बसा हुआ है, जहाँ लोग एक-दूसरे के साथ मिल-जुलकर रहते हैं। यह गीत इस सामुदायिक जीवन और आपसी सहयोग का भी प्रतीक है।
निष्कर्ष:
"बेडु पाको बारामासा" सिर्फ एक लोकगीत नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक दर्पण है, जो उत्तराखंड के जीवन, संघर्षों, प्रेम, और प्रकृति से जुड़ी आत्मीयता को गहराई से दर्शाता है। यह गीत उन भावनाओं और मूल्यों को संजोए हुए है, जो पहाड़ी जीवन की सादगी और गहराई को प्रतिबिंबित करते हैं।
fans