Mahavir Sir Ki Pathshala

Mahavir Sir Ki Pathshala MD is a professionally trained Thang-Ta Martial Artist with inborn skills in Yoga PranayamMeditatio

थांग ता मार्शल आर्ट ट्रेनींग कॅम्प ठाणे.
22/08/2025

थांग ता मार्शल आर्ट ट्रेनींग कॅम्प ठाणे.

22/08/2025
थांग ता मार्शल आर्ट स्कूल गेम वजन गट
21/08/2025

थांग ता मार्शल आर्ट स्कूल गेम वजन गट

🌟 *29 वी राज्य थांग-ता चैम्पियनशिप* 🌟*⚔️ परंपरा | पराक्रम | अनुशासन**दिनांक : 19–20–21 सितंबर 2025*📍 *स्थान : अमरावती*🔥 ...
20/08/2025

🌟 *29 वी राज्य थांग-ता चैम्पियनशिप* 🌟
*⚔️ परंपरा | पराक्रम | अनुशासन*

*दिनांक : 19–20–21 सितंबर 2025*
📍 *स्थान : अमरावती*

🔥 *KHELO INDIA SELECTION* 🔥

👉 *यह सिर्फ एक प्रतियोगिता नहीं, बल्कि एक योद्धा की आत्मा को जगाने का अवसर है।*
👉 *तलवार और भाले की इस प्राचीन कला में दिखाइए अपना दमखम।*
👉 *जीत के साथ मिलेगा राष्ट्रीय स्तर पर आगे बढ़ने का सुनहरा मौका!*

✨ *आइए, इतिहास से जुड़ें और भविष्य बनाएँ ✨*

ठाणे डिस्ट्रिक्ट थांग ता चॅम्पियनशिप 2025
19/08/2025

ठाणे डिस्ट्रिक्ट थांग ता चॅम्पियनशिप 2025

यह तस्वीर थांग-ता (Thang-Ta) मार्शल आर्ट की क्लास की है, जहाँ बच्चे पूरे उत्साह और अनुशासन के साथ लकड़ी की तलवारों (या ड...
31/07/2025

यह तस्वीर थांग-ता (Thang-Ta) मार्शल आर्ट की क्लास की है, जहाँ बच्चे पूरे उत्साह और अनुशासन के साथ लकड़ी की तलवारों (या डंडों) के साथ अभ्यास कर रहे हैं।

🗡️ हर बच्चा एक योद्धा की तरह दिख रहा है — मन में साहस, हाथों में शौर्य और पाँवों में संतुलन।
🌀 इस युद्धकला में केवल शरीर नहीं, मन और आत्मा भी संलग्न होती है।
🌟 यह सिर्फ युद्ध का अभ्यास नहीं, आत्मनियंत्रण, अनुशासन और आत्मविश्वास की साधना है।
🔥 ये बच्चे नन्हें-नन्हें कदमों से अपने भीतर के शिव को जगाने के पथ पर हैं।

सलाम है इन नन्हें योद्धाओं को जो परंपरा, शक्ति और अनुशासन के संगम को जी रहे हैं।

इस पावन चित्र में थांग-ता युद्धकला के गुरुदेव को श्रद्धा-सुमन अर्पित करते यह क्षण केवल एक प्रणाम नहीं, बल्कि परंपरा, अनु...
30/07/2025

इस पावन चित्र में थांग-ता युद्धकला के गुरुदेव को श्रद्धा-सुमन अर्पित करते
यह क्षण केवल एक प्रणाम नहीं, बल्कि परंपरा, अनुशासन और आत्मबल के प्रति समर्पण का प्रतीक है।

🌺 कुछ पंक्तियाँ:

"गुरु है वो ज्योति, जो अंधकार हर ले,
शस्त्र और शास्त्र की मर्यादा जो मन में भर दे।
थांग-ता के पथ पर जो चलना सिखाए,
हर सांस में वीरता की अग्नि जलाए।
जय हो गुरुदेव, प्रणाम है आपको,
आपके चरणों में समर्पित हमारा सब कुछ हो।"

🙏 थांग-ता की यह परंपरा सदैव जीवित रहे, और गुरुदेव का आशीर्वाद आप साधकों को सदैव मार्गदर्शन देता रहे

भारतीय संस्कृति में गुरु को ईश्वर से भी उच्च स्थान प्राप्त है। गुरु न केवल शिष्य के ज्ञान का मार्गदर्शक होता है, बल्कि उ...
13/07/2025

भारतीय संस्कृति में गुरु को ईश्वर से भी उच्च स्थान प्राप्त है। गुरु न केवल शिष्य के ज्ञान का मार्गदर्शक होता है, बल्कि उसके जीवन का निर्माता और राष्ट्र का निर्माता भी होता है। गुरु पौर्णिमा का पर्व गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिव्य अवसर है, जो हमारी धार्मिक परंपरा, गौरवशाली गुरु-शिष्य संस्कृति, और राष्ट्र की आत्मरक्षा की भावना को एक सूत्र में पिरोता है।

गुरु पौर्णिमा आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इसे महर्षि वेदव्यास के जन्मदिवस के रूप में भी मनाया जाता है।

यह दिन गुरु को स्मरण करने और उनके प्रति श्रद्धा, भक्ति और कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है।

"गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय..." यह दोहा गुरु की महत्ता को दर्शाता है।

गुरु-शिष्य परंपरा:

भारत की यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है।

प्राचीन गुरुकुलों में शिक्षा केवल विद्या नहीं, बल्कि धर्म, चरित्र, अनुशासन और राष्ट्रधर्म पर आधारित होती थी।

गुरु वशिष्ठ और श्रीराम, संदीपनि और श्रीकृष्ण, समर्थ रामदास और शिवाजी जैसे संबंधों ने धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए नींव रखी।

गुरु ही शिष्य को यह सिखाता है कि जीवन केवल भोग के लिए नहीं, बल्कि त्याग, सेवा और रक्षा के लिए है।

धर्म और राष्ट्र स्व-संरक्षण:

धर्म का अर्थ केवल पूजा-पाठ नहीं है, बल्कि वह जीवन का संपूर्ण मार्गदर्शन है – सत्य, अहिंसा, सेवा, कर्तव्य।

गुरु शिष्य को धर्म का पालन करना सिखाता है और यह भी कि धर्म की रक्षा के लिए आवश्यक हो तो बलिदान से भी पीछे न हटे।

एक जागरूक शिष्य ही अपने राष्ट्र और संस्कृति की रक्षा कर सकता है।

जब गुरु अपने शिष्यों को आत्मनिर्भर, राष्ट्रभक्त और नीतिमान बनाता है, तभी राष्ट्र सुरक्षित होता है

आज के समय में भी गुरु-शिष्य परंपरा का महत्व कम नहीं हुआ है।

आधुनिक शिक्षा में भी यदि गुरु केवल जानकारी नहीं, बल्कि संस्कार और दृष्टि दे, तो वह समाज और देश को नई दिशा दे सकता है।

गुरु पौर्णिमा हमें यह प्रेरणा देती है कि हम केवल ज्ञानी नहीं, बल्कि कर्तव्यनिष्ठ, चरित्रवान और राष्ट्रभक्त बनें।

गुरु पौर्णिमा केवल एक पर्व नहीं, वह एक संस्कार है, एक प्रतिज्ञा है कि हम अपने गुरु के दिखाए मार्ग पर चलकर धर्म और राष्ट्र की रक्षा करेंगे।
गुरु-शिष्य परंपरा हमारी संस्कृति की आत्मा है, और धर्म व राष्ट्र की स्व-संरक्षा उसकी परिणति।

"गुरु से प्राप्त ज्ञान तब पूर्ण होता है जब वह धर्म और राष्ट्र के कार्य में लगे।"

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गुरु-शिष्य परंपरा और थांग-ता (Thang-Ta)थांग-ता भारत  की एक पारंपरिक मार्शल आर्ट (सशस्त्र युद्ध कला) है, जिसका नाम दो शब्...
10/07/2025

गुरु-शिष्य परंपरा और थांग-ता (Thang-Ta)

थांग-ता भारत की एक पारंपरिक मार्शल आर्ट (सशस्त्र युद्ध कला) है, जिसका नाम दो शब्दों से बना है:

थांग = तलवार (Sword)

ता = भाला (Spear)

यह कला सिर्फ युद्ध तकनीकों का अभ्यास नहीं है, बल्कि इसमें शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक प्रशिक्षण भी शामिल होता है। थांग-ता का अभ्यास और इसका स्थानांतरण पूरी तरह से गुरु-शिष्य परंपरा पर आधारित होता है।

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🔱 थांग-ता में गुरु-शिष्य परंपरा की भूमिका

1. गुरु का महत्व:

थांग-ता सिखाने वाला गुरु केवल तकनीकी कौशल नहीं सिखाता, वह आत्म-संयम, अनुशासन, और परंपरा की गरिमा भी सिखाता है।

गुरु ही शिष्य को दर्शन, योग, ध्यान और आत्म-नियंत्रण में प्रशिक्षित करता है।

2. दीक्षा (Initiation):

थांग-ता की शुरुआत दीक्षा से होती है, जहाँ गुरु शिष्य को स्वीकार करता है।

यह सिर्फ युद्ध कला की दीक्षा नहीं होती, बल्कि एक जीवनशैली और दर्शन की शुरुआत होती है।

3. गुरु के साथ रहना (गुरुकुल परंपरा):

पुराने समय में शिष्य गुरु के साथ रहता था और नित्य अभ्यास, सेवा और ध्यान करता था।

यह संबंध केवल शिक्षक और विद्यार्थी का नहीं होता, बल्कि आध्यात्मिक और पारिवारिक होता है।

4. संदेश और मौखिक परंपरा:

थांग-ता की कई तकनीकें और नियम मौखिक परंपरा के रूप में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलते आए हैं।

गुरु अपने व्यक्तिगत अनुभवों से शिष्य को गूढ़ रहस्य समझाता है, जो किसी किताब में नहीं मिलते।

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🌀 आध्यात्मिक दृष्टिकोण:

थांग-ता केवल लड़ाई की कला नहीं, बल्कि एक शिव-साधना, एक ध्यान प्रक्रिया है। इसमें ऊर्जा, चेतना और ब्रह्मांड के साथ तालमेल पर ज़ोर दिया जाता है। गुरु शिष्य को सिखाता है कि बाहरी युद्ध से पहले, अपने भीतर के विकारों से लड़ना जरूरी है।

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🌿 आधुनिक युग में थांग-ता और गुरु-शिष्य परंपरा:

आज भी भारत मणिपुर और कुछ पूर्वोत्तर क्षेत्रों में थांग-ता पारंपरिक रूप से गुरु-शिष्य परंपरा में सिखाई जाती है।

कुछ संस्थान इसे संरक्षित करने में लगे हैं, परंतु असली गहराई उसी परंपरा में मिलती है जहाँ शिष्य पूर्ण समर्पण के साथ गुरु के अधीन अभ्यास करता है।

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🙏 संस्कृत श्लोक:

> "न गुरुर्वादनं कुर्याद् गुरुणा न वदेत् क्वचित्।
ज्ञानं स्वं परिहन्ति स्याद् गुरोः प्रीत्यै न यो व्रजेत्॥"
(गुरु के बिना कुछ भी कहना या करना ज्ञान का अपमान है; सच्चा शिष्य वही है जो गुरु की प्रसन्नता के लिए समर्पित है

10/07/2025

गुरु सदा सहायते 🙏

International Olympic Day 23 jun 2025
24/06/2025

International Olympic Day 23 jun 2025

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