13/07/2025
भारतीय संस्कृति में गुरु को ईश्वर से भी उच्च स्थान प्राप्त है। गुरु न केवल शिष्य के ज्ञान का मार्गदर्शक होता है, बल्कि उसके जीवन का निर्माता और राष्ट्र का निर्माता भी होता है। गुरु पौर्णिमा का पर्व गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिव्य अवसर है, जो हमारी धार्मिक परंपरा, गौरवशाली गुरु-शिष्य संस्कृति, और राष्ट्र की आत्मरक्षा की भावना को एक सूत्र में पिरोता है।
गुरु पौर्णिमा आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इसे महर्षि वेदव्यास के जन्मदिवस के रूप में भी मनाया जाता है।
यह दिन गुरु को स्मरण करने और उनके प्रति श्रद्धा, भक्ति और कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है।
"गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय..." यह दोहा गुरु की महत्ता को दर्शाता है।
गुरु-शिष्य परंपरा:
भारत की यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है।
प्राचीन गुरुकुलों में शिक्षा केवल विद्या नहीं, बल्कि धर्म, चरित्र, अनुशासन और राष्ट्रधर्म पर आधारित होती थी।
गुरु वशिष्ठ और श्रीराम, संदीपनि और श्रीकृष्ण, समर्थ रामदास और शिवाजी जैसे संबंधों ने धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए नींव रखी।
गुरु ही शिष्य को यह सिखाता है कि जीवन केवल भोग के लिए नहीं, बल्कि त्याग, सेवा और रक्षा के लिए है।
धर्म और राष्ट्र स्व-संरक्षण:
धर्म का अर्थ केवल पूजा-पाठ नहीं है, बल्कि वह जीवन का संपूर्ण मार्गदर्शन है – सत्य, अहिंसा, सेवा, कर्तव्य।
गुरु शिष्य को धर्म का पालन करना सिखाता है और यह भी कि धर्म की रक्षा के लिए आवश्यक हो तो बलिदान से भी पीछे न हटे।
एक जागरूक शिष्य ही अपने राष्ट्र और संस्कृति की रक्षा कर सकता है।
जब गुरु अपने शिष्यों को आत्मनिर्भर, राष्ट्रभक्त और नीतिमान बनाता है, तभी राष्ट्र सुरक्षित होता है
आज के समय में भी गुरु-शिष्य परंपरा का महत्व कम नहीं हुआ है।
आधुनिक शिक्षा में भी यदि गुरु केवल जानकारी नहीं, बल्कि संस्कार और दृष्टि दे, तो वह समाज और देश को नई दिशा दे सकता है।
गुरु पौर्णिमा हमें यह प्रेरणा देती है कि हम केवल ज्ञानी नहीं, बल्कि कर्तव्यनिष्ठ, चरित्रवान और राष्ट्रभक्त बनें।
गुरु पौर्णिमा केवल एक पर्व नहीं, वह एक संस्कार है, एक प्रतिज्ञा है कि हम अपने गुरु के दिखाए मार्ग पर चलकर धर्म और राष्ट्र की रक्षा करेंगे।
गुरु-शिष्य परंपरा हमारी संस्कृति की आत्मा है, और धर्म व राष्ट्र की स्व-संरक्षा उसकी परिणति।
"गुरु से प्राप्त ज्ञान तब पूर्ण होता है जब वह धर्म और राष्ट्र के कार्य में लगे।"
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