16/03/2022
राष्ट्रीय क्राइम ब्यूरो के आकड़े के अनुसार भारत में हर वर्ष 50 हजार से अधिक अनुसूचित जाति एवं जनजाति के खिलाफ आपराधिक घटनाये होती है , जिनमे उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश ऐसे राज्य है जो सबसे शीर्ष पर रहते है। 2019 में 45,961 मामले दर्ज हुए जो 2020 में 50,291 हो गए मतलब 9.4 % की वृद्धि हुयी जिसे कथित रूप से सरकार की उपलब्धि कहा जा सकता है।
इन अपरधों में 16,543 मामले साधरण अपराध, गाली देना,जबरन काम करवाना मना करने पर पिटाई करना, उनके घर पर जाकर अपनी जाति का धौंस ज़माना आदि शामिल है। 3,372 मामले बलात्कार, 3,373 मामले महिलाओं को राह चलते बेज्जत करना, या बलात्कार के प्रयास करना, कपडे फाड़ देना आदि, 855 हत्या और 1,119 इरादतन हत्या के प्रयास।
8,272 उनकी जाती को लेकर हुए अपराध। इसके अतिरिक्त अनुसूचित जनजाति के साथ हुए अपराधों के मामले आज तक आकड़े साफ न हो पाए लेकिन सरकारी आकड़ों में 7,570 मामले दर्ज है जिनमे हिंसा, बंधुआ मजदूरी, अपहरण और बलात्कार आदि शामिल है।
ये आकड़े न तो 10 वर्ष पूर्व है नहीं 20 वर्ष पूर्व नहीं बल्कि पहले भी थे आज भी है और उम्मीद है सरकार इस कार्य पर कभी सक्रियता से बात नहीं करेगी। फिल्मों में इनके मुद्दों को सामाजिक चेतना और परिवर्तन के नाम पर केवल व्यापार के लिए उठाया जाता है।
अब क्या अनुसूचित जाति और जनजाति को पलायन कर जाना चाहिए पर कहाँ और इन्हे कौन जगह देगा अगर पलायन करना चाहे तो ? एक सामाजिक सौहार्द और राजनैतिक उद्देश्यपूर्ण फिल्म में उन समुदाय को न दिखाया जो कश्मीरी पंडितो के साथ भी खड़े थे।
आज सरकार क्यों ऐलान कर देती जो भी पंडित कश्मीर में रहना चाहता है उसके लिए व्यवस्था है और कितने पंडित कश्मीर में रहना चाहते है , कश्मीर की भौगोली बनावट और जलवायु परिवर्ततन से वहां जीना आसान नहीं है जितना यहाँ बाते करना है। सच तो यह की कुछ लोग पीठ दिखाकर भाग गए थे।
Cp