मौज मस्ती & Fun Shun

मौज मस्ती & Fun Shun Comedy reels

09/01/2025

Great Initiative to prevent the accidents from China Threads 🧵

Big News in upcoming New Year
31/12/2024

Big News in upcoming New Year

Award giving for Making Items From Waste Material . On the Occasion of Bal Veer Diwas.   Deliver Care Inspire
27/12/2024

Award giving for Making Items From Waste Material . On the Occasion of Bal Veer Diwas.
Deliver Care Inspire

16/12/2024

जंगल मे टाइगर ने एक फैक्ट्री डाली🐅
उसमे एकमात्र वर्कर एक चींटी थी जो समय से आती जाती थी और फैक्ट्री का सारा काम अकेले करती थी🐜
टाइगर का बिजनेस बहुत ही व्यवस्थित ढंग से चल रहा था।
एक दिन टाइगर ने सोचा ये अकेली चींटी इतना सुंदर काम कर रही है अगर इसको किसी एक्सपर्ट के अंडर में रख दूँ तो और बेहतर काम कर सकती है।
ये खयाल मन मे आते ही टाइगर ने एक मधुमक्खी को प्रोडक्शन मैनेजर अपॉइंट कर दिया।🐝
मधुमक्खी को कार्य का बहुत अनुभव था और वह रिपोर्ट्स लिखने में भी बहुत होशियार थी।
मधुमक्खी ने टाइगर से कहा कि सबसे पहले हमें चींटी का वर्क शेड्यूल बनाना है फिर उसका सारा रिकार्ड प्रोपरली रखने के लिए मुझे एक सेक्रेटरी चाहिए होगा।
टाइगर ने खरगोश को सेक्रेटरी के रूप में अपॉइंट कर दिया।🐇
टाइगर को मधुमक्खी का कार्य पसंद आया उसने कहा कि चींटी के अब तक कंप्लीट हुए सारे कार्य की रिपोर्ट दो और जो प्रोग्रेस हुई है उसको ग्राफ से शो करो।
मधुमक्खी ने कहा ठीक है मगर मुझे इसके लिए कंप्यूटर,लेज़र प्रिंटर और प्रोजेक्टर चाहिए होगा🖥📽🖨
इस सबके लिए टाइगर ने एक कंप्यूटर डिपार्टमेंट बना दिया और बिल्ली को वहां का हेड अपॉइंट कर दिया🐱
अब चींटी बजाय काम के रिपोर्ट पर फोकस करने लगी,जिससे उसका काम पिछड़ता गया अंततः प्रोडक्शन कम हो गया।
टाइगर ने सोचा एक टेक्निकल एक्सपर्ट रखा जाय जो मधुमक्खी की सलाहों पर ओपिनियन दे सके ऐसा सोंचकर उसने बंदर को टेक्निकल इंस्ट्रक्टर अपॉइंट कर दिय🐒
अब चींटी जो भी काम दिया जाता वह उसको पूरी सामर्थ्य से करती मगर काम कभी पूरा ही नहीं होता तो वह विवश होकर उसको अपूर्ण छोड़कर घर आ जाती।
टाइगर को नुकसान होने लगा तो वह अधीर हो उठा उसने उल्लू को नुकसान का कारण पता लगाने के लिए अपॉइंट कर दिया🦉
तीन महीने बाद उल्लू ने टाइगर को रिपोर्ट सौंप दी जिसमे उसने बताया कि फैक्ट्री में वर्कर की संख्या ज्यादा है छंटनी करनी होगी।
अब आप सोचिए किसको निकाला जाएगा....?
जाहिर सी बात है चींटी को ही निकाला जाएगा,यही सारी दुनिया के हर सेक्टर में चल रहा है,जो लोग मेहनत से कार्य कर रहे हैं परेशान हैं सताए जा रहे हैं और जो मेहनत से कोसों दूर हैं सिर्फ शो ऑफ कर रहे हैं वे मज़े में हैं।
Note ------यह उन सभी कर्मचारियों के लिए है जो किसी भी संस्था की प्रारंभिक कड़ी है।
Source- Amit Choudhary

your Change your

05/09/2024

नब्बे का वो दौर जब गेहूं से भरे कट्टे को कैरियर पर रखकर उसको पापा की खटारा साइकिल पर काली रबर की ट्यूब से गद्दी से होते हुए दो-तीन बार लपेटकर ठीक से सेट करना कोई आसान टास्क नहीं रहा,, खैर!! ये सब करने के बाद साइकिल को रोड पर संभालना और ज्यादा जटिल हो जाता था जब कैरियर के चिमटे कमजोर हों क्योंकि उस condition में वो भारी भरकम कट्टा इधर उधर लहराता था तो उसे साधने के लिए एक हाथ पीछे कर कट्टे का मुहँ पकड़ना पड़ता था,, चक्की करीब आधा किलोमीटर दूरी थी पर वो आधा किलोमीटर मील का पत्थर हो जैसे ऐसी लगती थी! अब जैसे तैसे चक्की पर पहुंचता तो वो चक्की वाले बड़के भैया पसीने में तर एक बार में खींचकर उतार देते थे पर साइकिल पूरी ट्रेन के पुल की तरह झंझना जाती थी!

भैया ने कट्टा तोल दिया है और उसी पर 39 किलो 500 ग्राम पिंक स्याही से लिख दिया है,, पापा का नाम पल्ली तरफ लिखा हुआ है पहले से ही,, अब चलता हूं हवा खाता हुआ उसी खटारा साइकिल पे शर्ट के बटन खोले हुए मस्त एक दम ये सोचते हुए कि कल फिर इसे लेने आना है वाली टेंशन के साथ! 😅😅

05/09/2024

एक जमाना था...
खुद ही स्कूल जाना पड़ता था क्योंकि साइकिल बस आदि से भेजने की रीत नहीं थी, स्कूल भेजने के बाद कुछ अच्छा बुरा होगा ऐसा हमारे मां-बाप कभी सोचते भी नहीं थे...
उनको किसी बात का डर भी नहीं होता था,
🤪 पास/नापास यही हमको मालूम था... *%* से हमारा कभी भी संबंध ही नहीं था...
😛 ट्यूशन लगाई है ऐसा बताने में भी शर्म आती थी क्योंकि हमको ढपोर शंख समझा जा सकता था...
🤣🤣🤣
किताबों में पीपल के पत्ते, विद्या के पत्ते, मोर पंख रखकर हम होशियार हो सकते हैं ऐसी हमारी धारणाएं थी...
☺️☺️ कपड़े की थैली में...बस्तों में..और बाद में एल्यूमीनियम की पेटियों में...
किताब कॉपियां बेहतरीन तरीके से जमा कर रखने में हमें महारत हासिल थी.. ..
😁 हर साल जब नई क्लास का बस्ता जमाते थे उसके पहले किताब कापी के ऊपर रद्दी पेपर की जिल्द चढ़ाते थे और यह काम...
एक वार्षिक उत्सव या त्योहार की तरह होता था.....
🤗 साल खत्म होने के बाद किताबें बेचना और अगले साल की पुरानी किताबें खरीदने में हमें किसी प्रकार की शर्म नहीं होती थी..
क्योंकि तब हर साल न किताब बदलती थी और न ही पाठ्यक्रम...
🤪 हमारे माताजी पिताजी को हमारी पढ़ाई बोझ है..
ऐसा कभी लगा ही नहीं....
😞 किसी एक दोस्त को साइकिल के अगले डंडे पर और दूसरे दोस्त को पीछे कैरियर पर बिठाकर गली-गली में घूमना हमारी दिनचर्या थी....
इस तरह हम ना जाने कितना घूमे होंगे....

🥸😎 स्कूल में मास्टर जी के हाथ से मार खाना, पैर के अंगूठे पकड़ कर खड़े रहना, और कान लाल होने तक मरोड़े जाते वक्त हमारा ईगो कभी आड़े नहीं आता था.... सही बोले तो ईगो क्या होता है यह हमें मालूम ही नहीं था...
🧐😝 घर और स्कूल में मार खाना भी हमारे दैनंदिन जीवन की एक सामान्य प्रक्रिया थी.....

मारने वाला और मार खाने वाला दोनों ही खुश रहते थे...
मार खाने वाला इसलिए क्योंकि कल से आज कम पिटे हैं और मारने वाला इसलिए कि आज फिर हाथ धो लिए 😀......

😜 बिना चप्पल जूते के और किसी भी गेंद के साथ लकड़ी के पटियों से कहीं पर भी नंगे पैर क्रिकेट खेलने में क्या सुख था वह हमको ही पता है...

😁 हमने पॉकेट मनी कभी भी मांगी ही नहीं और पिताजी ने कभी दी भी नहीं....इसलिए हमारी आवश्यकता भी छोटी छोटी सी ही थीं....साल में कभी-कभार दो चार बार सेव मिक्सचर मुरमुरे का भेल, गोली टॉफी खा लिया तो बहुत होता था......उसमें भी हम बहुत खुश हो लेते थे.....
😲 छोटी मोटी जरूरतें तो घर में ही कोई भी पूरी कर देता था क्योंकि परिवार संयुक्त होते थे ..
🥱 दिवाली में लगी पटाखों की लड़ी को छुट्टा करके एक एक पटाखा फोड़ते रहने में हमको कभी अपमान नहीं लगा...

😁 हम....हमारे मां बाप को कभी बता ही नहीं पाए कि हम आपको कितना प्रेम करते हैं क्योंकि हमको आई लव यू कहना ही नहीं आता था...
😌 आज हम दुनिया के असंख्य धक्के और टाॅन्ट खाते हुए......
और संघर्ष करती हुई दुनिया का एक हिस्सा है..किसी को जो चाहिए था वह मिला और किसी को कुछ मिला कि नहीं..क्या पता..
😀 स्कूल की डबल ट्रिपल सीट पर घूमने वाले हम और स्कूल के बाहर उस हाफ पेंट मैं रहकर गोली टाॅफी बेचने वाले की दुकान पर दोस्तों द्वारा खिलाए पिलाए जाने की कृपा हमें याद है.....
वह दोस्त कहां खो गए , वह बेर वाली कहां खो गई....
वह चूरन बेचने वाली कहां खो गई...पता नहीं..

😇 हम दुनिया में कहीं भी रहे पर यह सत्य है कि हम वास्तविक दुनिया में बड़े हुए हैं हमारा वास्तविकता से सामना वास्तव में ही हुआ है...

🙃 कपड़ों में सलवटें ना पड़ने देना और रिश्तों में औपचारिकता का पालन करना हमें जमा ही नहीं......
सुबह का खाना और रात का खाना इसके सिवा टिफिन में अखबार में लपेट कर रोटी ले जाने का सुख क्या है, आजकल के बच्चों को पता ही नही ...
😀 हम अपने नसीब को दोष नहीं देते....जो जी रहे हैं वह आनंद से जी रहे हैं और यही सोचते हैं....और यही सोच हमें जीने में मदद कर रही है.. जो जीवन हमने जिया...उसकी वर्तमान से तुलना हो ही नहीं सकती ,,,,,,,,

😌 हम अच्छे थे या बुरे थे नहीं मालूम , पर हमारा भी एक जमाना था

🙏 और Most importantly , आज संकोच से निकलकर , दिल से अपने साक्षात देवी _देवता तुल्य , प्रात स्मरणीय , माता _ पिता , भाई एवं बहन को कहना चाहता हूं कि मैं आपके अतुल्य लाड, प्यार , आशीर्वाद , लालन पालन व दिए गए संस्कारो का ऋणी हूं 🙏,
🙏🏻☺😊
एक बात तो तय मानिए को जो भी👆🏻 पूरा पढ़ेगा उसे अपने बीते जीवन के कई पुराने सुहाने पल अवश्य याद आयेंगे।♥️♥️💔
साभार
Vipin Sharma

30/08/2024

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