24/03/2025
रेडियो केवल एक संचार माध्यम नहीं, बल्कि हमारे बचपन और युवावस्था की अनगिनत यादों का साक्षी रहा है। 90 के दशक में पले-बढ़े हम जैसे लोगों के लिए रेडियो केवल खबरों या गानों का जरिया नहीं था, बल्कि यह हमारी भावनाओं और सोच का हिस्सा था। रेडियो की आवाज़ के साथ सुबह की शुरुआत होती और रात को इसकी मधुर धुनों के साथ नींद आ जाती।
अंतरराष्ट्रीय प्रसारणों का तो एक अलग ही आकर्षण था। बीबीसी, रेडियो जापान, रेडियो जर्मनी, वॉयस ऑफ़ अमेरिका जैसे रेडियो स्टेशनों से जुड़कर हम दुनिया के विभिन्न कोनों की खबरें और संस्कृतियाँ जान पाते थे। श्रोताओं की चिट्ठियाँ पढ़ी जातीं, जिनमें एक अपनापन झलकता था। जब कभी अपना नाम या पत्र किसी कार्यक्रम में सुनने को मिलता, तो गर्व और खुशी का अनुभव अविस्मरणीय होता।
लेकिन अब धीरे-धीरे रेडियो की दुनिया सिमट रही है। एक-एक कर कई अंतरराष्ट्रीय प्रसारण बंद हो गए हैं, और इंटरनेट तथा डिजिटल मीडिया ने रेडियो की जगह ले ली है। हालाँकि तकनीक का विकास ज़रूरी है, लेकिन रेडियो जैसी आत्मीयता और जुड़ाव शायद ही किसी और माध्यम में मिल सके।
रेडियो हमारे अतीत की वह मीठी याद है, जिसे भुला पाना मुश्किल है। यह न केवल मनोरंजन का माध्यम था, बल्कि भावनाओं का साथी और दुनिया को समझने का एक अनोखा जरिया भी था।
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