10/01/2025
#महेंदर_मिसिर_जयंती_समारोह_2025...
बिहार प्रान्त के छपरा ( सारण ) जिला के मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर उत्तर स्थित जलालपुर प्रखण्ड के नजदीक काहीं मिश्रवलिया गांव में 16 मार्च 1886 के माता गायत्री देवी आ पिता शिवशंकर मिसिर किहाँ जनमल महेन्दर मिसिर के भोजपुरी भाषा में पूरबी के पुरोधा मानल जाला.
मिसिर जी पहलवान रहनी. कसल देह रहे. धोती - कुर्ता पहिनी. गरदन में सोना के सिकड़ी आ मुंह में पान चबावत रहीं.
महेन्दर मिसिर के पत्नी के नाम परेखा देवी रहे. परेखा जी कुरूप रहली. त उनका से विमुख होके गीत - संगीत में आपन दुःख उतारे लगलें महेन्दर मिसिर. हिकायत मिसिर एकलौता बेटा रहलें मिसिर जी के.
छपरा के जमींदार हलिवंत सहाय से महेंदर मिसिर के नजदीकी बढ़ल त उ जनलें कि मुजफ्फरपुर के कोठावाली के बेटी ढेलाबाई पर हलिवंत सहाय फ़िदा बाड़न. महेंदर मिसिर ढेलाबाई के अपहरण कऽ के सहायजी के सऊँपि दिहलन.
बाद में उनका एकर पछतवो भइल आ सहायजी के मउवत का बाद ढेलाबाई के हक दियवावे में ऊ उनका साथे खाड़ रहलन.
बंगाल के संन्यासी आन्दोलन के प्रभाव रहे मिसिर जी पर. उनका देशभक्ति के धुन सवार हो गइल आ ऊ अंगरेजन के उखाड़ फेंके खातिर आ क्रन्तिकारियन के मदद खातिर जाली नोट छापल शुरू कर दिहलें.
अंगरेजन के कान खड़ा हो गइल. उ खुफिया तंत्र के जाल बिछा देलन स. सीआइडी के जटाधारी प्रसाद आ सुरेन्द्र नाथ घोष के अगुवाई में खुफिया तौर - तरीका से छानबीन चलल. जटाधारी प्रसाद त गोपीचंद बनि के तीन बरिस ले मिसिरजी के संघतिया आ नोकर रहले आ भरोसा जीति के घात कर देलें.
16 अप्रैल 1924 के रात में नोटे छापत में नोट के गड्डी आ मशीन का साथे महेन्दर मिसिर आ उनका चारो भाई के गिरफ्तार करवा देलें.
गोपीचंद के दगाबाजी पर महेंदर मिसिर के भीतर से मरमभेदी गीत गूंजल रहे -
' पाकल - पाकल पानवां खिवले गोपीचनवा,
पिरितिया लगा के ना.
मोहे भेजले जेहलखनवां रे, पिरितिया लगा के ना!'
हाजिरजवाबी गोपीचंद यानी कि जटाधारी प्रसाद जबाब में बोलल रहलें –
‘ नोटवा जे छापि - छापि गिनिया भजवलऽ ए महेन्दर मिसिर,
ब्रिटिश के कइलऽ हलकान, ए महेन्दर मिसिर.
सगरे जहनवां में कइलऽ बड़ा नाम, ए महेन्दर मिसिर.
पड़ल बा पुलिसवा से काम, ए महेन्दर मिसिर!'
बाकिर महेंदर मिसिर अइसन काहे कइलन?
अपना गीत में बतावत बाड़न –
‘ हमरा नीको ना लागे राम, गोरन के करनी,
रुपया ले गइले, पइसा ले गइले, ले गइले सब गिन्नी.
ओकरा बदला में त दे गइले ढल्ली के दुअन्नी,
हमरा नीको ना लागे राम, गोरन के करनी.'
मिसिर जी के दस साल खातिर बक्सर जेल में बंदी बनाके भेजि दिहल गइल बाकिर उनका मिलनसार व्यवहार से तीन साल सजा कम हो गइल. जेले से ऊ सात खण्ड में ‘अपूर्व रामायण’ के रचना कइले जवना के भोजपुरी के पहिलका महाकाव्य मानल जाला.
अध्यात्म पर जबरदस्त पकड़ रहे महेंदर मिसिर के –
' माया के नगरिया में लागल बा बजरिया ए सोहागिन सुनऽ
चीझवा बिकाला अनमोल ए सोहगिन सुनऽ
कवनो सखी घूमि - फिरि मारेली नजरिया ए सोहागिन सुनऽ
कवनो सखी रोवे मनवां मार ए सोहागिन सुनऽ.'
अइसे त महेंदर मिसिर महेन्द्र मंजरी, महेन्द्र विनोद, महेन्द्र मयंक, भीष्म प्रतिज्ञा, कृष्ण गीतावली, महेन्द्र प्रभाकर रत्नावली, महेन्द्र चंद्रिका, महेन्द्र कवितावली वगैरह के अलावा तीन गो नाटक आ अनगिनत फुटकर गीतन के रचना कइलें बाकिर उनका प्रसिद्धि पूरबी गीतन से हीं मिलल.
महेंद्र मिसिर के सबसे लोकप्रिय पूरबी बा –
' अंगुरी में डंसले बिया नगिनिया रे, ए ननदी! दियरा जरा द
दियरा जरा द, अपना भईया के बोला द
पोरे-पोरे उठेला लहरिया रे,
ए ननदी! अपना भइया के बुला द,
अंगुरी में डंसले बिया…'
एह गीत से रउरा बुझा गइल होई कि नारी मन के विशेषज्ञ रहलें महेंदर मिसिर.
एगो उनकर अउर लोकप्रिय पूरबी देखल जाय –
' सासु मोरा मारे रामा, बांस के छिंऊकिया,
ए ननदिया मोरी रे, सुसुकत पनिया के जाय.
छोटे - मोटे पातर पियवा, हंसि के ना बोले,
ए ननदिया मोरी रे से हो पियवा, कहीं चली जाय.
गावत महेन्दर मिसिर इहो रे पुरूबिया,
ए ननदिया मोरी रे पिया बिनु, रहलो ना जाय.'
उनकर एगो अउर लोकप्रिय गीत बा –
' आधी - आधी रतिया, कुहूके कोयलिया,
राम बैरनिया भइली ना.
मोरा अंखिया के निनिया, राम बैरनिया भइली ना।
कहत महेन्दर मिसिर, कवन हमसे चूक भइल राम
अन्हरीया लागे ना, मोरा घरवा दुअरवा,
राम, अन्हरीया लागे ना.'
ढेलाबाई के कोठी में बनल शिव मंदिर में 26 अक्टूबर 1946 के महेन्दर मिसिर एह दुनिया के अलविदा कह देलें.
बाकिर
लोकमन से विदा भइल संभव बा का ?
पूरबी के अमर गीतन में हमेशा गूँजत रहिहें पूरबी के पुरोधा महेंदर मिसिर.
आईं!!!
हमनी के मिलजुल के भोजपुरी भाषा के धरोहर, पूरबी के पुरोधा महेन्द्र मिश्र के 140वां जयंती समारोह आरा के बाबू वीर कुंवर सिंह स्टेडियम में धूमधाम से मनाई जा।