12/07/2025
हिंदूओ का यह भ्रम भी टूटना चाहिए कि वो भाजपा की वजह से जिंदा हैं और हां यह सच अवश्य है कि भाजपा केवल हिंदूओ की वजह से अस्तित्व मे है..❣️
यह भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को याद रखना होगा
मोदी के नवरत्नों में से सबसे उच्च श्रेणी के नवरत्न जफर सरेशवाला के कहने पर गुजरात से तोगड़िया सहित पूरे विहिप और बजरंग दल को सलटा दिया गया। हैदराबाद से ओवैसी मोदी के अघोषित नवरत्न रहे हैं। अब उनको खुश करने के लिए टी राजा सिंह को सलटा दिया गया।
जो भी थोड़ा कट्टर हिंदू हुआ है, बीजेपी आरएसएस ने उसकी बैंड बजा दी, ये कभी हिंदुत्ववादी थे ही नही।
अभी ये बाबाजी के पीछे लगे है, दिल्ली में खालिस्तानियों जाटों की हुड़दंगई और गुंडाई के पीछे आरएसएस की ही शह थी,22 में बाबा को लगभग हटा ही दिए थे मगर जोरदार जनसमर्थन से डर गए।
कल्याण सिंह, जिन्होंने रामलला के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दी थी। कारसेवकों पर गोली नही चलाई, सरकार कुर्बान कर दी थी। उनकी पहचान क्या थी? एक हिंदूवादी नेता, जिसके लिए जाति से पहले धर्म था। नतीजा? अपमान, अलगाव, तिरस्कार। भाजपा ने उन्हें 'व्यक्तिवादी' 'महत्वाकांक्षी' बताकर किनारे लगा दिया।
अपमानित होकर पार्टी से बाहर निकले, राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बनाई और मजबूरन फिर भाजपा में आए। क्यों? क्योंकि उनके बाहर निकलने से लेकर वापस आने तक सिर्फ उनकी जाति के लोगो ने उनका साथ दिया। वो जीवनपर्यन्त हिंदूवादी नेता बने रहे लेकिन उनके साथ कभी 'हिन्दू' नही खड़ा हुआ।
उमा भारती, जिनकी आवाज़ में अयोध्या की मिट्टी की महक थी। जिन्होंने मध्यप्रदेश में भाजपा को प्रचंड बहुमत दिलाया था, लेकिन जैसे ही कोर्ट से वारंट आया,
पार्टी ने दरवाज़ा बंद कर दिया। अपनी जाति के दम पर उन्होंने भारतीय जनशक्ति पार्टी बनाई, लेकिन फिर वापस भाजपा में आ गई क्योंकि जाति की राजनीति उनको रास ही नही आई।
योगी आदित्यनाथ, आज हिंदू अस्मिता का सबसे बड़ा चेहरा है। उनको कंट्रोल करने की कितनी कोशिशें हुई किसी से छिपी नहीं हैं। उनको कमज़ोर किया गया, हिंदू युवा वाहिनी को खत्म कर के। हालांकि संगठन कानूनी रूप से पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है लेकिन सच्चाई यही है कि योगी को मुख्यमंत्री बनने के बाद मजबूरी में इससे दूरी बनानी पड़ी। संगठन की ताकत खत्म कर दी गई, जिलों में कार्यालय बंद कराए गए, सैकड़ों कार्यकर्ता अलग कर दिए गए।
ये सब यूं ही नहीं हुआ। ये वही सियासी दबाव था, जो हर हिंदूवादी नेता को तोड़ता है। क्योंकि योगी आदित्यनाथ भी जातिवादी नहीं हिंदूवादी चेहरा हैं। आज टी राजा सिंह का भी नम्बर आ गया। राजा सिंह ने तेलंगाना की धूल में हिंदू अस्मिता का झंडा उठाया। हर मुद्दे पर बेबाक बोला। कोई जाति की ढाल साथ नहीं रखी। नतीजा? वो भी पार्टी से बाहर है। उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया ये कहते हुए कि आपका आचरण और आइडियोलॉजी भाजपा के सिद्धांतों से मेल नही खाती।
भाजपा के सिद्धांत क्या है? चिराग पासवान को देखिए। भाजपा में नही है पर भाजपा सरकार में है। सरकार में रहकर मलाई खाने के बाद भी रोज़ आलोचना करते हैं। आरक्षण हो, किसान आंदोलन हो, वक्फ मामला हो या बिहार में विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान, हर मुद्दे पर खुलकर भाजपा की नीतियों के खिलाफ बोलते है। गठबंधन धर्म को निभाने में असफल लेकिन भाजपा उनसे गठबंधन खत्म नही करेगी क्योंकि उनके पीछे उनकी जाति का वोटबैंक और जातीय राजनीति की ढाल है।
एक और नाम है, राजनाथ सिंह। सालों से रक्षा मंत्रालय पर जमे हैं। ना कोई ऐतिहासिक सौदा, ना सेना में क्रांतिकारी बदलाव। पिछला सबसे बड़ा सैन्य सौदा राफेल मनोहर पर्रिकर के समय मे हुआ। सैनिकों के साथ फ़ोटो खिंचाने और फीता काटने के अलावा राजनाथ सिंह के हिस्से कोई उपलब्धि नही है। फिर भी कोई सवाल नहीं करता क्योंकि उनके पीछे यूपी की राजपूत वोट बैंक की ढाल खड़ी है।
यही सच्चाई है। अगर तुम जाति की भीड़ साथ रखते हो,
तो सियासत तुम्हारे पांव धोकर पीती है। तुम अगर सिर्फ हिंदू हो, तो यही सियासत तुम्हारे गले में फंदा डाल देती है। भाजपा उन्हीं नेताओं के पीछे खड़ी है जिनकी ताकत उनकी जाति से आती है। यह पार्टी उन नेताओं को अकेला छोड़ देती है जो हिंदू बनकर जीते हैं और हिंदू बनकर मरते हैं। भाजपा कोई हिंदूवादी पार्टी नही है, भाजपा भिन्न भिन्न जातियों का गुच्छा है।